औरंगजेब की राजपूत नीति और परिणाम

MJPRU-B. A. II-History I

प्रश्न 12. औरंगजेब की राजपूत नीति का वर्णन कीजिए तथा मुगल साम्राज्य पर उसके प्रभाव की विवेचना कीजिए।
अथवा ''औरंगजेब की राजपूत नीति पर प्रकाश डालिए।
अथवा ''औरंगजेब की राजपूत नीति का परिचय दीजिए। उसकी इस नीति के क्या परिणाम रहे
?


उत्तर - उत्तराधिकार के युद्ध में राजपूतों ने दाराशिकोह का साथ दिया था और औरंगजेब के विरुद्ध युद्ध किया था। जब तक औरंगजेब की स्थिति सुदृढ़ नहीं हो सकी, तब तक तो उसने राजा जयसिंह और राजा जसवन्त सिंह के साथ अच्छा व्यवहार किया तथा उनको उच्च पदों पर आसीन रखा।
औरंगजेब ki राजपूत नीति aur परिणाम
किन्तु वह हृदय से उनको घृणा एवं सन्देह की दृष्टि से देखता था और किसी भी प्रकार उनकी उन्नति नहीं चाहता था। उसने इनको सदैव राजधानी से दूर रखने का प्रयत्न किया। अपनी स्थिति सुदृढ़ होने पर औरंगजेब ने राजा जयसिंह को, जो उसकी नीति का कट्टर विरोधी था, दक्षिण में विष दिलवाकर मरवा दिया। उसकी मृत्यु से उसका एक बहुत बड़ा विरोधी इस संसार से चला गया। ऐसा भी अनुमान किया जाता है कि औरंगजेब ने जसवन्त सिंह को भी विष दिलवाकर मरवा दिया था। औरंगजेब की साम्राज्यवादी नीति के कारण.राजपूतों से उसके निम्नलिखित प्रमुख संघर्ष हुए-

(1) मारवाड़ से संघर्ष-


1670 ई. में मारवाड़ के राजा जसवन्त सिंह की मृत्यु हो गई। लेकिन उनके कोई सन्तान न होने के कारण
मारवाड़ की राजगद्दी के लिए उत्तराधिकार का संघर्ष आरम्भ हो गया। मुगलों के लिए मारवाड़ का बड़ा महत्त्व था। अत: औरंगजेब ने मारवाड़ को मुगल साम्राज्य के अधीन करके वहाँ शाही अधिकारियों की नियुक्ति कर दीं। लेकिन मारवाड़ के राजपूतों ने मुगल सत्ता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, जिसके दमन के लिए बादशाह ने स्वयं अजमेर के लिए प्रस्थान किया और विरोधियों का सफलतापूर्वक दमन करने के पश्चात् दिल्ली लौट आया। लेकिन दिल्ली लौटने पर बादशाह को समाचार मिला कि जसवन्त सिंह की दो विधवा रानियों ने दो पुत्रों को जन्म दिया है, जिसमें एक की मृत्यु हो गई। औरंगजेब ने तुरन्त रानियों को पुत्र सहित राजधानी आने का आदेश दिया। राजपूतों ने औरंगजेब से जसवन्त सिंह के द्वितीय पुत्र अजीत सिंह को मारवाड़ का राजा स्वीकार करने की प्रार्थना की। लेकिन उसने राजपूतों की प्रार्थना पर ध्यान नहीं दिया और रानियों तथा अजीत सिंह को बन्दी बनाने का षड्यन्त्र रचा। राजपूतों ने इनकी रक्षा करने का निश्चय किया। इस समय दुर्गादास राठौर ने अपने अदम्य साहस के बल पर रानियों को राजकुमार सहित जोधपुर भिजवा दिया और मुगलों से युद्ध करना प्रारम्भ कर दिया। उसकी राजभक्ति ने उसका नाम अमर कर दिया। इधर मारवाड़ में अराजकता का दौर प्रारम्भ हो गया। 25 दिसम्बर, 1679 को औरंगजेब ने पुनः मारवाड़ पहुँचकर अपना शिविर स्थापित किया। शहजादा अकबर तथा तहब्बर खाँ के नेतृत्व में शाही सेना ने राजपूतों का दमन किया, लेकिन राजपूत राठौरों ने भी वीरतापूर्वक शाही सेना का सामना किया। अन्त में राजपूत पराजित हुए और मारवाड़ मुगल सत्ता के अधीन आ गया। लेकिन मारवाड़ के राजपूत पराजित होकर भी निराश नहीं हुए और उन्होंने मेवाड़ के सिसौदिया राजवंश से सहायता माँगी। 1680 से 1707 ई. तक मारवाड़ के राजपूतों एवं औरंगजेब के मध्य संघर्ष चलता रहा। अन्त में 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु का समाचार पाते ही अजीत सिंह ने मारवाड़ में प्रवेश किया तथा जफर कुली नामक शाही फौजदार को निष्कासित कर पुनः मारवाड़ पर अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित कर ली। औरंगजेब के उत्तराधिकारी बहादुरशाह ने 1709 ई. में अजीत सिंह को मारवाड़ का राजा स्वीकार कर लिया, जिससे मुगलों और राठौरों के युद्ध का अन्त हुआ।

(2) मेवाड़ से संघर्ष - 

जब मुगलों ने 1676. में मारवाड़ पर अधिकार कर लिया, तो मेवाड़ का राणा राजसिंह आतंकित हो उठा। अत: उसने मारवाड़ के राठौरों से मिलकर संयुक्त मोर्चा बनाकर मेवाड़ में सैनिक तैयारियाँ आरम्भ कर दीं। ऐसी परिस्थितियों में 30 दिसम्बर, 1679 को औरंगजेब ने अजमेर से मेवाड़ के लिए प्रस्थान किया और देबारी, उदयपुर व चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया। औरंगजेब शाही सेना का नेतत्व शहजादा अकबर को सौंपकर मार्च, 1680 में अजमेर लौट आया। इस समय राजपूतों ने छापामार नीति की शरण ली और मुगलों की सेना को तंग करना प्रारम्भ कर दिया। राणा के पुत्र कुंवर सिंह ने गुजरात पर आक्रमण करके कई स्थानों पर खूब लूटपाट की। औरंगजेब के आदेशानुसार शाही सेना ने मेवाड़ को घेर लिया। किन्तु इसी समय शहजादा अकबर ने अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और वह राजपूतों की सेना का नेतृत्व करते हुए अजमेर को प्रस्थान करने की तैयारियाँ करने लगा। लेकिन 22, अक्टूबर, 1680 को राणा राजसिंह की मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर राणा जयसिंह मेवाड़ के सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। शहजादा अकबर की विद्रोही भावना के कारण औरंगजेब ने राजपूतों से सन्धि करना ही अपने लिए श्रेयस्कर समझा।

औरंगजेब की राजपूत नीति के परिणाम-

औरंगजेब की राजपूत नीति के परिणाम मुगल साम्राज्य तथा समस्त भारतवर्ष के लिए बड़े घातक सिद्ध हुए। कतिपय मुख्य परिणाम निम्नलिखित हैं-

(1) जन-धन की हानि-

औरंगजेब को अपनी राजपूत नीति के कारण राजपूतों से अनेक युद्ध लड़ने पड़े। इन युद्धों में अपार जन-धन की हानि हुई।

(2) साम्राज्य की मर्यादा को धक्का -

मुगल राजपूतों का दमन नहीं कर सके और युद्ध काफी समय तक निरन्तर चलते रहे। इन युद्धों के कारण मुगल साम्राज्य की मर्यादा को बहुत धक्का पहुंचा।

(3) राजपूतों की सहायता से वंचित -

जहाँ राजपूतों की सहायता से अकबर और जहाँगीर ने मुगल साम्राज्य की आधारशिला रखी, वहीं औरंगजेब की नीति के कारण मुगल साम्राज्य राजपूतों की अकथनीय सैनिक सहायता से वंचित हो गया और वे मुगलों के कट्टर शत्रु बन गए।

(4) मालवा में विद्रोह की भावना -

 मालवा के हांडा एवं गौड़ राजपूतों को मेवाड़ और मारवाड़ के राजपूतों से सहानुभूति थी, जिसके कारण उनमें भी विद्रोह की भावना उत्पन्न हो गई और मुगलों के लिए दक्षिण का मार्ग सुरक्षित नहीं रहा।

(5) शहजादा अकबर का विद्रोह - 

शहजादा अकबर के मन में विद्रोह करने का विचार राजपूतों से युद्धों के कारण उत्पन्न हुआ। वह राजपूतों की सहायता से राजसिंहासन प्राप्त करना चाहता था। यदि राजपूतों से युद्ध न होते, तो वह ऐसा विचार कभी नहीं कर सकता था।

Comments

  1. Kya graduation second year history honours mein agar yeh question pucha jaata hai toh 20 marks k liye itna likhna kafi hoga ya fir kuch aur bhi add karna padega please tell

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