क्रीमिया का युद्ध - कारण एवं परिणाम
M.J.P.R.U.,B.A. II, History II/ 2020
प्रश्न
16.
क्रीमिया युद्ध के कारणों एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
अथवा
"क्रीमिया की कीचड़ से नवीन इटली का
जन्म हुआ।" विवेचना कीजिए।
अथवा
''क्रीमिया युद्ध के लिए उत्तरदायी
परिस्थितियों की व्याख्या कीजिए तथा पेरिस सन्धि का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर-यूनान
के स्वतन्त्रता संग्राम के पश्चात् बाल्कन प्रायद्वीप में रूस का प्रभाव बढ़ गया, किन्तु रूस अपनी स्थिति से
पूर्ण सन्तुष्ट नहीं था। रूस का जार निकोलस अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी था। उसकी
प्रबल इच्छाओं ने पूर्वी समस्या के क्षेत्र में एक नये युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार
की, जिसे क्रीमिया का युद्ध कहते हैं।
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क्रीमिया का युद्ध |
क्रीमिया युद्ध के कारण-
(1) फ्रांस का दृष्टिकोण -
फ्रांस का सम्राट् नेपोलियन तृतीय विदेशों में फ्रांस की
प्रतिष्ठा को बढ़ाना चाहता था। वह टर्की के मामलों में गहरी रुचि लेता था। उसके
तथा रूस के ज़ार के सम्बन्ध अच्छे नहीं थे। इसके अलावा नेपोलियन तृतीय अपने देश की
रोमन कैथोलिक जनता को खुश रखने के लिए सैनिक विजय प्राप्त करना चाहता था।
इतिहासकार
हेज ने लिखा है, "रूस व फ्रांस की पुरानी
शत्रुता का बदला लेने, नेपोलियन बोनापार्ट की मॉस्को पराजय
का हिसाब चुकाने, वाटरलू की पराजय एवं वियना सन्धि का बदला
लेने के लिए नेपोलियन तृतीय ने क्रोमियाँ युद्ध में भाग लिया था।"
(2) रूस का दृष्टिकोण -
रूस आरम्भ से ही टर्की साम्राज्य का विघटन चाहता था। वह
टर्की की आन्तरिक दुर्बलता का लाभ उठाकर उस पर अधिकार करना चाहता था। 1853 ई. में रूस के जार ने कहा
था, "हमारे सामने एक अत्यन्त बीमार आदमी है। उसकी
मौत से पूर्व यदि हमने उसकी सम्पत्ति का बँटवारा नहीं किया, तो
यह हमारा महान् दुर्भाग्य होगा।" वास्तव में रूस अपने
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का विकास करने हेतु भूमध्य सागर तथा काला सागर पर अधिकार
करना चाहता था।
(3) इंग्लैण्ड का दृष्टिकोण-
इंग्लैण्ड
टर्की साम्राज्य के विघटन के पक्ष में नहीं था, क्योंकि भूमध्य सागर पर रूस का अधिकार हो
जाने से इंग्लैण्ड के पूर्वी साम्राज्य को खतरा हो सकता था। इंग्लैण्ड की इच्छा थी
कि पूर्वी समस्या का सम्बन्ध यूरोप के बड़े देशों से होने के कारण उसका समाधान भी
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होना चाहिए।
(4) तत्कालीन कारण–
टर्की
साम्राज्य के अन्तर्गत जेरूसलम नामक स्थान ईसाइयों का पवित्र तीर्थस्थल था। वहाँ
पर यूनानी व रोमन कैथोलिक, दोनों प्रकार के पादरी रहते थे। इनकी आपसी
कटुता का लाभ रूस व फ्रांस ने उठाया। ये दोनों देश अपनी सैनिक महत्त्वाकांक्षा को
पूरा करना चाहते थे। जेरूसलम की समस्याओं का लाभ दोनों देशों ने एक-दूसरे के
विरुद्ध उठाया।
क्रीमिया
युद्ध
रूस
ने विपत्ति के दिनों में टर्की की सहायता की थी। फलस्वरूप रूस के प्रस्ताव पर 1833 ई. में उनकियर
स्केलेसी (Unkier Skellessi) की सन्धि पर टर्की ने हस्ताक्षर कर दिए और
वह रूस के प्रभाव में आ गया। इससे इंग्लैण्ड को चिन्ता हुई। पामर्स्टन ने इस सन्धि
को नष्ट करने का निश्चय किया। उसने पूर्वी समस्या पर व्यापक समझौता करने के लिए 1840
ई. में यूरोपीय राज्यों का लन्दन में एक सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन
में बड़े राष्ट्रों द्वारा सन्धि पर हस्ताक्षर करने से टर्की साम्राज्य पर रूस का
प्रभाव कम हो गया। सभी शक्तियों ने स्वीकार किया कि टर्की का अस्तित्व रहना चाहिए।
...
इसके
पश्चात् लगभग 10 वर्षों तक पूर्वी समस्या शान्त रही। इसी दौरान फ्रांस में लुई नेपोलियन का
शासन आया, जिसने जेरूसलम के ईसाई पादरियों का पक्ष लेकर
पूर्वी समस्या को उभारा । क्रीमिया युद्ध इसी का परिणाम था।
क्रीमिया युद्ध 2 वर्षों तक चला, जिसमें दोनों पक्षों की अपार जन-धन की हानि हुई। रूस अकेले फ्रांस,
इंग्लैण्ड, टर्की और
सार्जीनिया की सामूहिक शक्ति का सामना नहीं कर सकता था। उल्लेखनीय है कि
पीडमॉण्ट-सार्जीनिया इटली का राज्य था, जिसके प्रधानमन्त्री
कैवूर ने फ्रांस का साथ देने और उसकी सहानुभूति लेने के लिए रूस के विरुद्ध 15
हजार सैनिक भेजे थे। प्रशा इस युद्ध में तटस्थ रहा। ऑस्ट्रिया ने भी
अपनी तटस्थता की घोषणा की थी, परन्तु युद्ध के दौरान उसने
रूस को धमकाया भी था।
मार्च, 1855 में रूस के जार निकोलस प्रथम की मृत्यु हो
गई और उसके स्थान पर अलेक्जेण्डर द्वितीय जार बना। इस नये सम्राट ने युद्ध को
समाप्त करना ठीक समझा। ऑस्ट्रिया की मध्यस्थता से युद्ध समाप्त हो गया और सन्धि के
लिए पेरिस में तैयारी होने लगी।
पेरिस की सन्धि -
क्रीमिया
युद्ध का अन्त पेरिस की सन्धि से हुआ। 30 मार्च, 1856 को पेरिस की सन्धि हुई, जिसकी मुख्य बातें निम्न प्रकार थीं.
(1) टर्की की
प्रादेशिक अखण्डता और राजनीतिक स्वतन्त्रता बनाए रखी जाए।
(2) टर्की का सुल्तान ईसाई प्रजा की स्थिति को सधारेगा।
(3) रूस ने टर्की की ईसाई प्रजा
के संरक्षण का अधिकार त्याग दिया।
(4) मोल्डेविया और बेलेशिया पर से
रूस का संरक्षण समाप्त हो गया।
(5) कार्स का प्रदेश टर्की को और
क्रीमिया रूस को वापस मिल गया।
(6) सर्बिया की. स्वतन्त्रता को
स्वीकार किया गया।
(7) डेन्यूब नदी व्यापार के लिए
यूरोपीय राष्ट्रों के लिए खुल गई।
(8) काला सागर को तटस्थ घोषित कर
दिया गया।
क्रीमिया युद्ध का परिणाम : नवीन इटली का जन्म
यूरोपीय इतिहास के दृष्टिकोण से वियना कांग्रेस
के बाद क्रीमिया युद्ध एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। इस युद्ध से रूस का प्रसार रुक
गया और टर्की में एक नये जीवन का संचार हुआ। इस प्रकार यूरोपीय राज्यों ने पूर्वी
समस्या को अकेले ही सुलझाने के रूसी दावे को ठुकरा दिया। रूस को कमजोर बना दिया
गया और उसे अपमानित भी किया गया। यद्यपि रूस चुप नहीं बैठा और 14 वर्ष बाद उसने अपने अपमान का
बदला लिया। इस युद्ध का प्रभाव अप्रत्यक्ष रूप से इटली पर पड़ा तथा उसे फ्रांस का
सहयोग प्राप्त हो गया। क्रीमिया युद्ध सामान्य अर्थ में. यूरोपीय इतिहास का एक
युगान्तकारी युद्ध था। न क्रीमिया युद्ध के परोक्ष परिणाम बहुत ही दूरगामी और
व्यापक निकले। इटली व जर्मनी के एकीकरण, रूस की राजनीति,
बाल्कन प्रायद्वीप के पुनर्निर्माण और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर
इसका गहरा प्रभाव पड़ा।
1852 ई. में कैवूर पीडमॉण्ट राज्य का प्रधानमन्त्री था। जब क्रीमिया युद्ध
हुआ, तो उसने पीडमॉण्ट को इसमें सम्मिलित करने का निश्चय किया। युद्ध में वह
इसलिए सम्मिलित हुआ था कि दिखा सके कि इटली के लोग व उसकी शक्ति किसी से कम नहीं
और उसे भी स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए। क्रीमिया युद्ध में सम्मिलित होने से पीडमॉण्ट
की प्रतिष्ठा बढ़ गई और युद्ध में शामिल राष्ट्र उसके ऋणी हो गए। इन राष्ट्रों की
इटली के प्रति सहानुभूति जाग्रत हुई और वे इटली के एकीकरण के लिए प्रयत्नशील हुए।
उल्लेखनीय है कि पेरिस के शान्ति सम्मेलन में कैदूर ही इटली का
प्रतिनिधि बनकर आया था और वह ऑस्ट्रिया के साथ समानता के स्तर पर सम्मेलन में
बैठा। इस सम्मेलन में कैवूर ने इटली की दुर्दशा का चित्रण प्रभावशाली ढंग से किया
और ऑस्ट्रिया की नीति का विरोध किया। इसके फलस्वरूप कैवूर को इंग्लैण्ड की
सहानुभूति और नेपोलियन का सक्रिय समर्थन मिला, जिसके कारण इटली के एकीकरण को
बल मिला। इन्हीं सब बातों के कारण ठीक ही कहा गया है कि "क्रीमिया की कीचड़ से नवीन इटली का जन्म हुआ।"
क्रीमिया युद्ध के परिणाम एवं महत्त्व
(1) इस युद्ध ने इटली के एकीकरण हेतु उपयुक्त
वातावरण का निर्माण किया। कैवूर ने इस युद्ध में अपनी सेना भेजकर बड़े देशों की
सहानुभूति प्राप्त की।
(2) क्रीमिया युद्ध में रूस की पराजय के फलस्वरूप वहाँ की जनता जार के निरंकुश
व एकतन्त्रात्मक शासन की कमजोरियों पर विचार करने लगी।
(3) इस युद्ध की पराजय से निराश
होकर रूस बाल्कन प्रायद्वीप से अपना ध्यान हटाकर चीन, जापान
व पूर्वी एशिया में लगाने लगा।
(4) क्रीमिया युद्ध के महत्त्व के सम्बन्ध में डेविस थॉम्पसन ने लिखा है,
"युद्ध में पहली बार इंग्लैण्ड व फ्रांस साथ-साथ लड़े थे। इस
युद्ध में स्त्रियों ने पहली बार फ्लोरेंस नाइटेंगिल के नेतृत्व में भाग लिया था
तथा पहली बार विज्ञान के नये आविष्कारों का प्रयोग हुआ था।"..
क्रीमिया युद्ध का औचित्य
अनेक
विद्वानों ने क्रीमिया युद्ध की आलोचना करते हुए इसे 'बेकार का युद्ध' बताया है। उनका विचार है कि इस युद्ध में अपार जन-धन एवं समय का विनाश
होने पर भी पूर्वी समस्या का स्थायी हल नहीं निकाला जा सका। पेरिस की सन्धि की
धाराएँ स्थायी सिद्ध न हो सकी। इस युद्ध का उद्देश्य रूस की शक्ति पर प्रतिबन्ध
लगाना था, किन्तु इस उद्देश्य में भी सफलता न मिल सकी। रूस
द्वारा पेरिस की सन्धि में हुए अपने अपमान को भुलाया नहीं जा सका। मित्र राष्ट्रों
के लिए भी इस युद्ध के परिणाम विनाशकारी सिद्ध हुए।
क्रीमिया
युद्ध ने यथास्थिति की जड़े शान्ति को नष्ट कर दिया और उसके स्थान पर रचनात्मक
युद्धों के युग का प्रारम्भ किया। इस प्रकार शान्ति से युद्ध के क्षेत्र में तथा
मध्ययुगीन से आधुनिक व्यवस्था में अवतरण का समय यदि किसी घटना द्वारा निर्धारित
करना हो, तो यह घटना निःसन्देह रूप से क्रीमिया युद्ध ही है
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