लॉर्ड वेलेजली - सहायक सन्धि


MJPRU-BA-III-History I-2020
प्रश्न 5. लॉर्ड वेलेजली की सहायक सन्धि के महत्त्व और प्रभाव का परीक्षण
अथवा  ''लॉर्ड वेलेजली की सहायक सन्धि के गुण-दोषों पर प्रकाश डालिए।
अथवा  ''लॉर्ड वेलेजली की सहायक सन्धि व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर - सहायक सन्धि लॉर्ड वेलेजली की कूटनीति का परिणाम थी। वह साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का था। उसने भारत में कम्पनी राज्य का विस्तार करने के लिए सहायक सन्धि का सहारा लिया। यह सन्धि एक प्रकार का प्रतिज्ञा पत्र था, जिसे भारतीय शासकों पर जबरदस्ती थोपा गया। भारतीय शासक भी यह प्रतिज्ञा-पत्र स्वीकार करने को विवश थे। इसका कारण यह था कि वे निर्बल और असंगठित थे।
लॉर्ड-वेलेजली-की-सहायक-संधि

सहायक सन्धि की शर्ते

सहायक सन्धि देशी राज्यों तथा कम्पनी के मध्य होती थी। इसके अनुसार कम्पनी देशी राज्यों को आन्तरिक व बाहरी खतरे के समय सैनिक सहायता देने का वचन देती थी, जिसके बदले में देशी राज्य को अनेक शर्ते माननी पड़ती थीं। इन सभी शर्तों का वर्णन इस प्रकार है

(1) उसे अपने राज्य में एक अंग्रेजी सेना रखनी पड़ती थी और उसका खर्च भी उसे देना पड़ता था। यदि वह सेना का खर्च नहीं दे पाता था, तो उसे अपने राज्य का कुछ भाग अंग्रेजों को देना पड़ता था।
(2) उसे अंग्रेजों का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ता था और वह उनकी अनुमति के बिना किसी अन्य शासक से सन्धि तथा युद्ध नहीं कर सकता था।
(3) उसे अंग्रेजों को सर्वोच्च शक्ति मानना पड़ता था।
(4) वह अंग्रेजों के अतिरिक्त किसी भी यूरोपियन को नौकर नहीं रख सकता था। इस शर्त का उद्देश्य भारत में फ्रांसीसियों के प्रभाव को कम करना था।
(5) उसे अपने राज्य में एक अंग्रेजी रेजिडेण्ट (प्रतिनिधि) रखना पड़ता था, जिसके परामर्श से ही उसे अपना सारा शासन कार्य चलाना पड़ता था।
(6) आपसी झगड़ों की दशा में उसे अंग्रेजों की मध्यस्थता स्वीकार करनी पड़ती थी और उनके निर्णयों को मानना पड़ता था।

सहायक सन्धि से अंग्रेजों को लाभ

इस सन्धि के द्वारा अंग्रेजों को अनेक लाभ पहुँचे, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है
(1) सहायक सन्धि द्वारा कम्पनी की आय के साधन काफी बढ़ गए। कम्पनी को अब सन्धि स्वीकार करने वाले राज्यों से काफी धन मिलने लगा। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों के पास बिना व्यय के एक शक्तिशाली सेना तैयार हो गई।
 (2) इस सन्धि के द्वारा कम्पनी का देशी राज्यों पर प्रत्यक्ष और कड़ा नियन्त्रण स्थापित हो गया।
(3) इस व्यवस्था के कारण कम्पनी का राज्य आन्तरिक विद्रोहों तथा बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित हो गया। सैनिक शक्ति बढ़ जाने से उन्हें बाह्य आक्रमणों के भय से छुटकारा मिल गया तथा देशी राज्यों में रखी हुई अंग्रेजी सेना के भय से आन्तरिक विद्रोहों का कोई खतरा न रहा।
(4) इस व्यवस्था द्वारा अंग्रेज भारत में काफी शक्तिशाली हो गए, परन्तु कोई भी अन्य यूरोपियन शक्ति उनकी इस चालाकी को समझ नहीं सकी। इसका कारण यह था कि देशी राजाओं की स्वतन्त्रता प्रकट रूप से स्थिर रखी जाती थी।
(5) इस व्यवस्था के अनुसार देशी राज्यों में केवल अंग्रेजी सेना ही रखी जा सकती थी और केवल अंग्रेज कर्मचारी ही रखे जा सकते थे। फलस्वरूप फ्रांसीसियों की सभी योजनाओं तथा आशाओं पर पानी फिर गया।
(6) इस व्यवस्था के द्वारा देशी राजाओं की शक्ति बहुत कम हो गई थी। अत: अंग्रेजों को अब बिना किसी कठिनाई के साम्राज्य-विस्तार करने का अवसर मिल गया।
इस प्रकार लॉर्ड वेलेजली ने अपनी कूटनीतिक प्रतिभा से भारतीय राजाओं को सहायक सन्धि का स्वप्न दिखाकर अपने चंगुल में फँसा लिया। सहायक सन्धि उसकी बुद्धिमत्तापूर्ण नीति का परिणाम थी। इसके माध्यम से वेलेजली ने भारतीय राज्यों को अपने जाल में पूर्णतया बाँध लिया और वह बिना युद्ध के भारतीय राज्यों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफल हुआ। वी. ए. स्मिथ ने लिखा है, "वेलेजली की सहायक सन्धि का तात्कालिक उद्देश्य ब्रिटिश शक्ति को भारत में सर्वशक्तिमान बनाना था।"

सहायक सन्धि के दोष

सहायक सन्धि अंग्रेजों के लिए वरदान सिद्ध हुई, परन्तु देशी शासकों तथा भारतीय जनता के लिए यह सन्धि किसी अभिशाप से कम न थी। उनके लिए इस सन्धि के परिणाम काफी विनाशकारी सिद्ध हुए, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है
(1) देशी राजाओं का अपने राज्य पर कोई राजनीतिक अधिकार नहीं रह गया था। वे अब नाममात्र के ही राजा रह गए थे। सर टॉमस मुनरो के शब्दों में, "राज्यों ने अपनी स्वतन्त्रता, राष्ट्रीय चरित्र अथवा वह सब जो किसी देश को प्रतिष्ठित बनाते हैं, बेचकर सुरक्षा मोल ले ली।"
 (2) इस सन्धि के कारण देशी राजाओं में कुव्यवस्था फैल गई। सन्धि के अनुसार कम्पनी सहायक सेना के व्यय के लिए देशी राजाओं से जो धन माँगती थी, वह बहुत अधिक था और भारतीय शासक इतना अधिक धन देने में असमर्थ थे। फलस्वरूप कम्पनी उनका सबसे उपजाऊ क्षेत्र अपने अधिकार में ले लेती थी, जिसके कारण देशी राज्य आर्थिक रूप से दुर्बल होते चले गए। इस व्यवस्था ने उन राज्यों में कुशासन तथा अव्यवस्था को जन्म दिया।
(3) इस व्यवस्था को स्वीकार करने वाले प्रत्येक देशी राज्य में एक अंग्रेज रेजिडेण्ट की नियुक्ति की गई थी। ये रेजिडेण्ट देशी राजाओं के आन्तरिक मामलों में सदैव हस्तक्षेप करते रहते थे।
(4) कम्पनी की सेना का व्यय इन्हीं राजाओं को देना पड़ता था।
(5) इस व्यवस्था ने केवल भारतीय नरेशों के आत्म-विश्वास तथा शासन के प्रति उत्तरदायित्वों को ही ठेस नहीं पहुँचाई, बल्कि उनकी राष्ट्रीय भावना का भी अन्त कर दिया। वे अंग्रेजी सेना के संरक्षण में अपने आपको सुरक्षित समझकर राष्ट्रीय हितों को भूल गए।
(6) जब देशी राजाओं की आर्थिक स्थिति दयनीय होने लगी, तो उन्होंने जनता पर अधिक कर लगाने प्रारम्भ कर दिए, जिससे जनता को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं, राज्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी से मुक्त होकर उन्होंने स्वयं को भोग-विलास में डुबो दिया, जिससे उनका नैतिक पतन हो गया।

सहायक सन्धि के प्रभाव

सहायक सन्धि के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित थे
(1) सहायक सन्धि को सबसे पहले निजाम हैदराबाद ने स्वीकार किया, क्योंकि वह मराठों से डरा हुआ था। उसने अंग्रेजी सेना के व्यय के लिए 24 लाख वार्षिक देना भी स्वीकार किया।
(2) 1799 ई. में लॉर्ड वेलेजली ने तंजौर के शासक को सहायक सन्धि मानने के लिए विवश कर दिया।
(3) 1800 ई. में वेलेजली ने सूरत के राजा को पेंशन दे दी और सूरत को अंग्रेजी राज्य में सम्मिलित कर लिया।
(4) 1801 ई. में कर्नाटक के नवाब की मृत्यु हो गई। अंग्रेजों ने उसके लड़के की पेंशन नियत कर दी और उसे अंग्रेजी साम्राज्य का अंग बना दिया।
(5) कुछ समय पश्चात् वेलेजली ने टीपू सुल्तान को परास्त करके मैसूर की राजगद्दी पर एक हिन्दू शासक को बैठा दिया। उसे सहायक सन्धि स्वीकार करनी पड़ी।
 (6) पेशवा बाजीराव द्वितीय ने मराठों के आपसी संघर्ष के कारण अंग्रेजों के साथ सहायक सन्धि कर ली। इसके अतिरिक्त मराठों, सरदारों तथा अंग्रेजों के बीच युद्ध छिड़ गया। लॉर्ड वेलेजली ने उन्हें पराजित किया और उन पर भी सहायक सन्धि लाद दी।
इस प्रकार स्पष्ट है कि लॉर्ड वेलेजली ने सहायक सन्धि के द्वारा कूटनीति से ब्रिटिश सम्राज्य को अत्यधिक विशाल बना दिया। डॉ. ईश्वरी प्रसाद के शब्दों में, "इस प्रकार की सन्धि करके वेलेजली ने देशी राज्य नष्ट कर दिए। ये सन्धियाँ अंग्रेजों के लिए अत्यन्त लाभदायक सिद्ध हुईं और इनसे भारत में अंग्रेजी राज्य की नींव जम गई।"


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