राष्ट्र संघ की असफलता के 8 कारण


प्रश्न 13. राष्ट्र संघ की असफलता के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - राष्ट्र संघ की स्थापना अत्यन्त सहानुभूतिपूर्ण एवं मैत्रीपूर्ण वातावरण में की गई थी तथा सभी को यह आशा थी कि यह संस्था निष्पक्ष रूप से कार्य करते हुए विश्व-शान्ति के पवित्र उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल होगी। किन्तु कुछ वर्षों बाद ही राजनीतिक परिवर्तन के कारण राष्ट्र संघ की उपयोगिता में कमी आ गई। फलस्वरूप 20 वर्ष के अल्प जीवनकाल के पश्चात् यह संस्था दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से समाप्त हो गई।

राष्ट्र संघ की असफलता के कारण
राष्ट्र संघ की असफलता 8 कारण

 राष्ट्र संघ की असफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे

(1) संविधान की दुर्बलता -

 राष्ट्र संघ के संविधान में अनेक कमियाँ थीं, जो उसकी असफलता का कारण बनीं
(i) राष्ट्र संघ अपने निर्णयों को मनवाने के लिए सदस्य राष्ट्रों को बाध्य नहीं कर सकता था। यह केवल दबाव ही डाल सकता था। अतः जब राष्ट्रों ने उसके निर्णय नहीं माने,तो राष्ट्र संघ महत्त्वहीन हो गया।
(ii) राष्ट्र संघ के पास अपनी कोई सेना नहीं थी। अतः जब जापान ने मंचूरिया पर, इटली ने अबीसीनिया पर और जर्मनी ने ऑस्ट्रिया तथा चेकोस्लोवाकिया पर आक्रमण किया, तो राष्ट्र संघ कुछ न कर सका।

(iii) राष्ट्र संघ की परिषद् सर्वसम्मति से ही किसी राष्ट्र को अपराधी घोषित कर सकती थी। किन्तु अधिकांश राष्ट्र के आपसी स्वार्थों के कारण ऐसा कम हो पाता था। इस सर्वसम्मति के सिद्धान्त ने राष्ट्र संघ पर घातक प्रभाव डाला और वह समाप्त हो गया।
(iv) संविधान में आक्रामक युद्ध का निषेध था, रक्षात्मक युद्ध का नहीं । अतः प्रत्येक राष्ट्र अपने को रक्षात्मक सिद्ध कर युद्ध घोषित कर देता था।
(v) राष्ट्र संघ अपने आर्थिक साधनों के लिए सदस्य राष्ट्रों पर निर्भर था। उसकी स्वतन्त्र आय के साधन न थे। अत: उसे प्रायः आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता था।

(2) संरचना की दुर्बलता - 

राष्ट्र संघ का निर्माण करते समय उसकी संरचना में अनेक दोष रह गए थे, जिनके परिणामस्वरूप उसका विनाश हुआ
(i) संघ की सदस्यता का क्षेत्र व्यापक नहीं रखा गया था। प्रारम्भ में उसमें पराजित राष्ट्र सम्मिलित नहीं किए गए थे। प्रारम्भ में जर्मनी उसका सदस्य न था।
(ii) अमेरिका ने प्रारम्भ से ही उसकी सदस्यता ग्रहण नहीं की थी।
(iii) साम्यवादी भय के कारण सोवियत रूस को भी सदस्य नहीं बनाया गया था।
(iv) केवल कुछ मित्र राष्ट्र, फ्रांस, इटली और जापान ही इसके सदस्य थे। अतः यह मात्र विजेताओं का संघ' था।

(3) अमेरिका का असहयोग -

 उस समय अमेरिका की विदेश नीति यूरोप की राजनीति में भाग न लेकर अमेरिका की आर्थिक स्थित अच्छी करने की थी। अतः वह राष्ट्र संघ का सदस्य नहीं बना। यह दुर्भाग्यपूर्ण था। राष्ट्र संघ के सर्वाधिक शक्तिशाली संस्थापक सदस्य अमेरिका ने राष्ट्र संघ को 'एक अनाथ बालक' के समान यूरोप के दरवाजे पर छोड़ दिया। विल्सन के 'मानस पुत्र' की यूरोप ने बड़ी दुर्दशा की।

(4) वर्साय सन्धि की उपज -

नार्मन बेण्टविच ने कहा कि राष्ट्र संघ एक बदनाम माँ की अपमानित पुत्री थी।यह विजेता राष्ट्रों द्वारा पराजित राष्ट्रों पर थोपी गई सन्धि का परिणाम था, जिसे वे मन से कभी भी स्वीकार न कर सके और मौका मिलने पर उसका विरोध करने से भी न चूके।

(5) सदस्य राष्ट्रों की स्वार्थपरता-

राष्ट्र संघ के निर्माण की तिथि से ही सदस्य राष्ट्र उसे अपनी-अपनी स्वार्थ पूर्ति का साधन बनाने लगे। फ्रांस अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए वर्साय सन्धि को पूर्ण शक्ति के साथ लागू करना चाहता था। ब्रिटेन अपने व्यापारिक हितों के कारण जर्मनी के प्रति उदारता बरतना चाहता था। जर्मनी ने सन् 1926 में संघ की सदस्यता ग्रहण की, लेकिन जब संघ ने उसकी स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगाना चाहा, तो हिटलर ने सन् 1933 में उसकी सदस्यता का परित्याग कर दिया। सोवियत रूस भी उसे साम्यवादी क्रान्ति के लिए घातक मानता था,अतः उसने भी इसकी सदस्यता ग्रहण नहीं की। अस्तु, राष्ट्रों की परस्पर विरोधी नीतियों एवं स्वार्थपरता के कारण राष्ट्र संघ नष्ट हो गया।

(6) निःशस्त्रीकरण की विफलता - 

राष्ट्र संघ अपनी निःशस्त्रीकरण की योजना को लागू करने में असफल रहा। सन् 1930 के बाद यूरोप में हथियारों की होड़ प्रारम्भ हुई,जिसकी परिणति द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में हुई। इसका अवश्यम्भावी परिणाम राष्ट्र संघ का पतन हुआ।

(7) अधिनायकवाद का उदय - 

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् साम्यवाद, नाजीवाद और फासीवाद का अभ्युदय हुआ,जिसने संकीर्ण राष्ट्रीयता को जन्म दिया। हिटलर ने तो यह घोषणा की कि जर्मन जाति विश्व में सर्वश्रेष्ठ है,वह विश्व पर राज्य करने के लिए पैदा हुई है। साम्यवाद के अन्धे प्रचार में रूस ने भी ऐसा ही सब कुछ रिया। अतः राष्ट्र संघ अपने उद्देश्यों में सफल न हो सका और नष्ट हो गया।

(8) विश्वव्यापी आर्थिक संकट -

सन् 1930 में विश्व में भयंकर आर्थिक मन्दी का दौर आया, जिससे प्रत्येक राष्ट्र अपनी समस्याओं से ही जूझने लगा। इस प्रकार आर्थिक राष्ट्रवाद उत्पन्न हुआ, जिससे अन्तराष्ट्रीयता की भावना लुप्त हो गई।

निष्कर्ष -

संक्षेप में, राष्ट्र संघ के चार्टर में अनेक संवैधानिक और संरचनात्मक दुर्बलताएँ थीं। महाशक्तियों ने इसका प्रयोग अपनी स्वार्थ-पूर्ति के लिए करना चाहा. जिससे वह दुर्बल हो गया। पॉटर ने ठीक कहा है कि राष्ट्र संघ असफल नहीं, अपितु राष्ट्रों का संघ असफल रहा।अमेरिका की उदासीनता ने उसे आर्थिक दृष्टि से पंगु बना दिया तथा अधिनायकवाद और संकीर्ण राष्ट्रवाद की प्रवृत्तियों ने उसकी अन्त्येष्टि कर दी।
राष्ट्र संघ तो समाप्त हो गया, किन्तु उसकी सबसे बड़ी और प्रशंसनीय उपलब्धि यह रही कि वह एक ऐसे विश्व संगठन के निर्माण की विचारधारा को जन्म दे गया जिसने वर्तमान संयुक्त राष्ट्र संघ को जन्म दिया। इसका दूसरा लाभ यह भी हुआ कि लोग समझ सके कि बिना युद्ध किए हुए ही शान्तिमय तरीकों से, समझौता वार्ता से समस्याएँ और विवाद सुलझाए जा सकते हैं। चिन्तन और विचार के क्षेत्र में यह सबसे बड़ी उपलब्धि थी।


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