मुगल काल - स्थापत्य कला, वास्तुकला

MJPRU-BA-II-History-I-2020
प्रश्न 19. मुगलकालीन स्थापत्य कला के विकास का विवरण दीजिए।
अथवा ''मुगल काल में वास्तुकला के विकास का विवरण दीजिए।
उत्तर- सभी मुगल सम्राट भवन-निर्माण एवं स्थापत्य कला के प्रेमी थे। स्थापत्य कला को भवन-निर्माण कला , वास्तुकला एवं शिल्पकला के नाम से भी ना जाता है। मुगल सम्राटों ने ईरानी व हिन्दू शैली के समन्वय द्वारा मुगल शैली का निर्माण व उसका विकास कियाजिसकी छाप इनकी सभी कलाओं पर दखाई
मुगलकालीन स्थापत्य कला के विकास
देती है। यद्यपि फर्ग्युसन जैसे इतिहासकारों का कहना है कि मुगलों की वन-निर्माण कला की शैली विदेशी हैपरन्तु यह मत ठीक नहीं है। हैवेल ने हा है, "मुगल वास्तुकला देशी व विदेशी शैलियों का सम्मिश्रण है।" सर जॉन पर्शल ने लिखा है, "भारत जैसे विशाल व असामान्यता तथा विभिन्नता वाले देश यह नहीं कहा जा सकता कि भवन-निर्माण कला किसी एक ही विशिष्ट शव्यापी शैली को लेकर स्थिर रही। भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न शैली का योग किया गया है।" वस्तुतः विभिन्न कालों में मुगल कला विभिन्न प्रकार की ही है।

मुगल काल में स्थापत्य कला (वास्तुकला) का विकास

संक्षेप मेंमुगल काल में स्थापत्य कला का विकास निम्न प्रकार रहा है

(1) बाबर की स्थापत्य कला-

बाबर भारतीय स्थापत्य कला को अच्छा हीं समझता थाइसीलिए उसे आगरा व दिल्ली में भारतीयों द्वारा
बनवाई गई मारतें पसन्द नहीं आईं। बाबर ने भवनों के निर्माण के लिए कुस्तुनतुनिया से कारीगरों को बुलवाया। बाबर ने आगराअलीगढ़सीकरीधौलपुरबयाना, ग्वालियर आदि स्थानों पर कुएँतालाबफब्बारे आदि बनवाए। बाबर द्वारा बनवाए गए निम्न दो भवन भी आज दिखाई देते हैं-
(i)पानीपत की काबुली मस्जिदऔर
(ii) सम्भल की जामा मस्जिद
ये दोनों मस्जिदें 1526 ई. में बनवाई गई थीं। इन मस्जिदों में कोई विशेष नमूना नहीं है। 

(2) हुमायूँ की स्थापत्य कला- 

हुमायूँ का अधिकांश जीवन युद्धों व भाग-दौड़  में बीताअतः उसे इमारतें बनवाने का समय नहीं मिला। फिर भी हुमायूँ ने दोन-ए-पनाहनामक महल दिल्ली में बनवाया। शेरशाह सूरी ने शायद इसे नष्ट कर दिया। हुमायूँ ने फतेहाबाद व आगरा में भी मस्जिदें बनवाईं। स्थापत्य कला की एक महत्त्वपूर्ण कृति हुमायूँ का मकबरा है। यद्यपि इसका निर्माण अकबर के प्रारम्भिक शासनकाल में हुआपरन्तु यह हुमायूँ के काल की इमारत है। यह मकबरा ईरानी और भारतीय शैलियों के मिश्रण का नमूना है। इसमें फारसी शैली का भाव भी है। 


(3) शेरशाह की स्थापत्य कला- 

शेरशाह वास्तुकला का बहुत प्रेमी था। डा॰ कानूनगो के अनुसार वह प्रत्येक शहर में एक किला बनवाना चाहता था और मिट्टी की बनी हुई सरायों को पक्के मकानों में बदलकर उन्हें राज्य की सुरक्षा की चौकियाँ बनाना चाहता था। दिल्ली का पुराना किला शेरशाह सूरी द्वारा बनया हुआ है। शेरशाह सूरी द्वारा बनवाई गई प्रसिद्ध इमारतों में शेरशाह का मकबरा भी है। बिहार के सहसराम में झील के बीच में बना हुआ यह मकबरा अपनी भव्यतासुन्दरता और सुडौलता की दृष्टि से हिन्दू-मुस्लिम शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना है। कनिंघम ने इसे ताजमहल से भी सुन्दर बताया है।

(4) अकबर की स्थापत्य कला- 

मुगलों की स्थापत्य कला सही अर्थ में अकबर के शासनकाल से प्रारम्भ होती है। अकबर ने अपनी स्थापत्य कला में व भारतीय कला का समन्वय किया। अकबर के काल की सभी इमारतें । पत्थर की हैं और सजावट के लिए संगमरमर का प्रयोग किया गया है।
अकबर द्वारा बनवाए गए भवन या इमारतें निम्न प्रकार हैं
(i) आगरे का लालकिला,
(ii) जहाँगीरी महल,
(iii) अकबरी महल, .
(iv) लाहौर का किला,
(v) इलाहाबाद का किला,
(vi) दीवान-ए-आम,
(vii) जोधाबाई का किला,
(viii) बीरबल का महल,
(ix) पंचमहलयह भी सीकरी में है और हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य का मिश्रण
(x) जामा मस्जिदइसका निर्माण 1571 ई. में हुआ। यह चित्रकारी की से फतेहपुरी सीकरी की सर्वश्रेष्ठ इमारत है।
(xi) बुलन्द दरवाजाइसे अकबर ने गुजरात की विजय के बाद बनवाया था। फतेहपुर सीकरी में स्थित है और मुगलकालीन दरवाजों में श्रेष्ठ है।
(xii) शेख सलीम चिश्ती का मकबरायह 1571 ई. में बना था। इसकी कारी देखने योग्य है।
(xiii) सिकन्दराइसका निर्माण कार्य अकबर ने प्रारम्भ करवाया थापरन्तु 1623 ई. में जहाँगीर के शासनकाल में बनकर तैयार हुआ।
अकबर द्वारा बनवाए गए भवनों की इतिहासकारों ने बड़ी प्रशंसा की है। थ ने फतेहपुर सीकरी की इमारतों को अभूतपूर्व व पत्थर पर अंकित कहानी  है।

(5) जहाँगीर की स्थापत्य कला– 

जहाँगीर को चित्रकला से ही अधिक लगाव थावास्तुकला से नहीं। उसके समय की दो इमारतें प्रमुख हैं

(i) एत्मादुद्दौला का मकबरा -

यह मकबरा नूरजहाँ ने अपने पिता की याद में 1626 ई. में बनवाया था। यह आगरा में स्थित है और सफेद संगमरमर का बना है । 

(ii) जहाँगीर का मकबरा -

इसका निर्माण भी नूरजहाँ द्वारा करवाया गया था। यह लाहौर के निकट रावी नदी के किनारे शाहदरा में स्थित है। समाधि पर संगमरमर की पच्चीकारी की गई है।

(6) शाहजहाँ की स्थापत्य कला- 

भवन-निर्माण की दृष्टि से शाहजहाँ का मुगल काल का स्वर्ण युग था। उसके द्वारा बनवाई गई इमारतों में मौलिकता,सुंदरता और कोमलता है। इन भवनों में नक्काशी व चित्रकारी विशेष है। शाहजहाँ के काल में निम्नलिखित इमारतों का निर्माण हुआ-

(i) आगरा के लालकिले में निर्मित इमारतें-

शाहजहाँ ने अकबर द्वारा लाल किले में लाल पत्थर से बनवाई गई इमारतों को तुड़वाकर उन्हें संगमरमर से बनबाया। ये इमारतें हैं-दीवान-ए-आमदीवान-ए-खांसमच्छी भवनशीश महल तथा खास महलझरोखा दर्शन और मुसम्मन बुर्जनगीना और मोती मस्जिद 

(ii) ताजमहल- 

शाहजहाँ द्वारा बनवाई गई सर्वश्रेष्ठ इमारत आगरे का ताजमहल हैजिसे उसने अपनी प्रिय बेगम मुमताज महल की याद में बनवाया जिसकी गणना विश्व के सात आश्चर्यों में की जाती है। यह 22 वर्षों में बनकर हुआ। यह इमारत फारसी ढंग से बनी हुई हैफिर भी बहुत-सी शिल्पकला हिन्दू ढंग की है। पर्सी ब्राउन ने ताजमहल को मुगल वास्तुकला की पूर्णता का प्रतीक कहा है। इसके निर्माण में लगभग  50 लाख व्यय हुआ था।

(iii) दिल्ली का लालकिला- 

शाहजहाँ ने 1632 ई. में दिल्ली में यमुना नदी कीनारे एक विशाल किले का निर्माण करवाया। इसमें दो दरवाजे हैं। इसमें दीवाने-ए-खासदीवान-ए-आम और रंगमहल बहुत सुन्दर हैं। दीवान-ए-खास की दीवार पर लिखा है,"अगर फिरदौस बरसरा जमीनस्त हमीनस्तहमीनस्तहमीनस्त" अर्थात् धरती पर यदि कहीं स्वर्ग हैतो यहीं हैयहीं हैयहीं है।

(iv) दिल्ली की जामा मस्जिद- 

शाहजहाँ ने दिल्ली में लालकिले के निकट मस्जिद बनवाई। यह लाल पत्थर की बनी हुई है। 

(v) तख्त-ए-ताऊस (मयूर सिंहासन) - 

शाहजहाँ ने मयूर की शक्ल का सिंहासन बनवाया था। यह पलंग के आकार का था तथा सोने का बना था। आकार मे 3-1/2  गज लम्बा, 3/4 गज चौड़ा और 5 गज ऊँचा था। पूरा सिंहासन रत्नों से जगमगाता रहता थापरन्तु आज यह तख्त-ए-ताऊस नहीं है।

(v) औरंगजेब की स्थापत्य कला - 

अपने पूर्वजों के विपरीत औरंगजेब नेकलाओं के प्रति कोई प्रेम प्रदर्शित नहीं किया। उसने बहुत कम इमारतें बनबाई परन्तु इनमें से कोई भी उसके पितापितामह और प्रपितामह द्वारा बनवाई इमारतो के समकक्ष नहीं है। दिल्ली की जिस एकमात्र इमारत से औरंगजेब का नाम सम्बन्धित हैवह है लालकिले में स्थित सफेद संगमरमर की मस्जिंद।औरंगजेब ने 1679 ई. में अपनी प्रिय बेगम रबिया-उद्-दौरानी का मकबरा दक्षिण मे औरंगाबाद में बनवाया था। यह द्वितीय ताजमहल के नाम से प्रसिद्ध है। ताजमहल की नकल होते हुए भी यह डिजायनकारीगरी और रचना में उससे कहीं हीन है।औरंगजेब द्वारा बनवाई गईं लाहौर की बादशाही मस्जिद तथा बनारस एवं मथुरा की मस्जिद भी उल्लेखनीय हैं।



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