मुगल काल - कला व साहित्य


MJPRU-BA-II-History-I-2020
प्रश्न 18. "मुगल शासक कला व साहित्य के संरक्षक थे।" स्पष्ट कीजिए।
अथवा मुगल काल में हुई कला व साहित्य की प्रगति पर एक लेख लिखिए।
उत्तर-मुगल काल की सबसे प्रमुख विशेषता यह थी कि इस काल में कलाओं का प्रचुर विकास हुआ। सभी मुगल शासक शिक्षित थे और वे विद्वानों, साहित्यकारों तथा कलाकारों को आदर और श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे। एक विद्वान् के अनुसार, "मुगल काल में भवन-निर्माण कला, चित्रकला, काव्य और संगीत कला सभी नये रूप में
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निखरी थीं। स्थापत्य कला तो ऐसी थी कि मानो देवदूतों और फरिश्तों ने स्वयं आकर भव्य इमारतों का निर्माण किया हो। ऐसा कलात्मक सृजन पृथ्वी पर कभी-कभी होता है।" औरंगजेब के अतिरिक्त सभी 'मुगल बादशाहों ने ललिता कलाओं के विकास में सक्रिय योगदान दिया। इसी कारण इस युग को 'स्वर्ण युग' कहा जाता है।

बाबर के काल में प्रगति

यद्यपि बाबर का अधिकांश समय युद्धों में व्यतीत हुआ, फिर भी उसने भवनों के निर्माण के लिए कुस्तुनतुनिया से कारीगर बुलवाए थे। उसने आगरा, बयाना, ग्वालियर, धौलपुर, सीकरी आदि में मस्जिदें और इमारतें बनवाईं।
चित्रकला से उसे विशेष प्रेम था। बाबर ने 'तुजुक-ए-बाबरी' में लिखा है कि "मुझे फारसी चित्रकला का गहरा ज्ञान था।" बाबर ने बाहजाद नामक प्रसिद्ध चित्रकार को संरक्षण दिया। बाहजाद ने पर्शियन, चीनी, बौद्ध तथा हिन्दू कलाओं के सम्मिश्रण से एक नवीन कला शैली को जन्म दिया। बाबर ने काव्य और संगीत कला के उत्थान में भी सक्रिय भूमिका निभाई। बाबर संगीत कला से भी विशेष मोह रखता था। उसने संगीत कला पर एक पुस्तक की भी रचना की।

बाबर स्वयं उच्च कोटि का विद्वान् और साहित्यकार था। बाबर ने अपनी आत्मकथा 'तुजुक-ए-बाबरी तुर्की भाषा में लिखी। इसका फारसी में अनुवाद 'बाबरनामा' नाम से किया गया। यह तत्कालीन भारत की राजनीतिक तथा आर्थिक स्थिति की जानकारी देने वाली एक महान् कृति है। बाबर ने कविताओं के संग्रह के रूप में 'दीवान' तुर्की भाषा' में लिखा था।

हुमायूँ के काल में प्रगति

 हुमायूँ का सम्पूर्ण जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था, परन्तु हुमायूँ ने कलाओं की प्रगति में गहरी रुचि ली। हुमायूँ का सर्वाधिक योगदान चित्रकला में था। हुमायूँ अपने साथ फारस से दो प्रमुख चित्रकारों ख्वाजा अब्दुस्समद और सय्यद अली तबरीजी को लाया। उसने पृथक् रूप से चित्रकला विभाग स्थापित किया। हुमायूँ ने 'दास्तान-ए-हमीर हमजा' नामक ग्रन्थ को चित्रित करने का कार्य इन्हें सौंपा। साहित्य की प्रगति हेतु भी हुमायूँ ने पर्याप्त कार्य किए। हुमायूँ विद्वान् था और उसे लिखने का भी शौक था। हुमायूँ ने 'दीन-ए-पनाह' नामक पुस्तकालय की स्थापना की। वह विद्वानों तथा साहित्यकारों का आश्रयदाता था और उनको आदर तथा श्रद्धा की दृष्टि से देखता था। उसके काल के प्रसिद्ध विद्वानों में मिर्जा हैदर ने तारीख-ए-रसीदी', जौहर ने 'तजकिरात-उल-वाकियात' और सरहिन्दी नूरुल हक ने 'जुब्दतुल तवारीख' बहुत महत्त्वपूर्ण रचनाएँ की। हुमायूँ की बहिन गुलबदन बेगम ने 'हुमायूँनामा' लिखी, जो एक ऐतिहासिक और साहित्यिक कृति के रूप में मुगल साहित्य में विशिष्ट स्थान रखती है।
हुमायूँ को स्थापत्य कला से भी विशेष अनुराग था। यद्यपि अधिकांश समय युद्धों में व्यतीत हो जाने के कारण वह भवनों के निर्माण पर विशेष ध्यान नहीं दे सका, फिर भी उसने कुछ मस्जिदों का निर्माण करवाया और उनमें से एक फतेहाबाद (हिसार) में अब भी विद्यमान है, जो स्थापत्य कला की दृष्टि से देखने योग्य है। इसकी खपरैलों पर फारसी ढंग से मीनाकारी की गई है। इसके अतिरिक्त 'दीन-ए-पनाह' पुस्तकालय व 'हुमायूँ का मकबरा' भी मुख्य इमारतें हैं। मकबरे के विषय में कहा जाता है कि यह मकबरा ईरानी और भारतीय शैलियों के समन्वय का अनुपम उदाहरण है। .

अकबर के काल में प्रगति

अकबर के शासनकाल में विभिन्न कलाओं के विकास को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है--

(1) स्थापत्य कला-

अकबर के काल में स्थापत्य कला की आशातीत प्रगति हुई। अबुल फजल ने लिखा है, "शहंशाह स्वयं भवनों की योजनाएँ बनाते थे और हृदय एवं मस्तिष्क की रचना को पाषाण और मिट्टी का वस्त्र पहनाते थे।" अकबर ने अनेक भव्य भवनों का निर्माण करवाया। अकबर ने दिल्ली में 'हुमायूँ का मकबरा' बनवाया, जो 1559 ई. में बनकर तैयार हुआ। इसका ऊपरी भाग फारस की शैली के अनुसार था, जबकि निम्न भाग भारतीय शैली से प्रभावित था। अकबर ने फतेहपुर सीकरी में अनेक भव्य भवनों का निर्माण करवाया। उसने 1576 ई. में गुजरात विजय के उपलक्ष्य में 'बुलन्द दरवाजे' का निर्माण करवाया। उसने इलाहाबाद में एक दुर्ग का निर्माण करवाया, जो लगभग 40 वर्ष में बनकर तैयार हुआ। उसके काल की अन्य प्रमुख इमारतें हैं-आगरे का लालकिला, जहाँगीरी महल, अकबरी महल, फतेहपुर सीकरी की इमारतें, जोधाबाई का महल, तुर्की सुल्ताना का महल, बीरबल महल, दीवान-ए-खास, पंच महल, ज्योतिष भवन आदि)

(2) चित्रकला- 

अकबर ने चित्रकला के उत्थान में भी सक्रिय योगदान, दिया। उसने ईरानी और भारतीय, दोनों ही चित्रकारों को राज्याश्रय प्रदान किया। अकबर के काल में अनेक प्रकार के चित्र बनाए जाने लगे थे तथा हस्तलिखित पुस्तकों को चित्रित किया जाने लगा था। अकबर ने अनेक कथानकों पर भी चित्रों का निर्माण करवाया।

(3) संगीत- 

अकबर ने संगीत कला में गहरी रुचि ली। वह स्वयं संगीत का अच्छा पारखी था। उसके दरबार में 36 प्रसिद्ध गायक थे, जिनमें तानसेन और बाज बहादुर विशेष प्रसिद्ध थे। इस समय के अन्य प्रसिद्ध गायक बाबा रामदास, बैजू बावरा आदि थे।

(4) साहित्य-

अकबर ने साहित्यिक प्रगति की ओर विशेष ध्यान दिया। इसके प्रमुख पक्ष निम्न प्रकार थे

(1) फारसी भाषा-

अकबर के समय में फारसी भाषा में ग्रन्थों और काव्य का लिखा जाना निरन्तर जारी रहा। इस समय के प्रसिद्ध विद्वान्अबुल फजल, अब्दुल कादिर बदायूँनी और फैजी थे। अबुल फजल ने 'आइन-ए-अकबरी' और 'अकबरनामा' की रचना की। निजामुद्दीन अकबर की 'तबकात-ए-अकबरी' भी फारसी की महत्त्वपूर्ण पुस्तक है।

(ii) अनुवाद कार्य- 

अकबर के काल में साहित्यिक प्रगति का सबसे उल्लेखनीय कार्य भारतीय धार्मिक और ऐतिहासिक ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद के रूप में हुआ। अकबर ने पृथक् रूप से एक अनुवाद विभाग स्थापित किया। उसके काल में विभिन्न विद्वानों द्वारा महाभारत, अथर्ववेद, रामायण, लीलावती, राजतरंगिणी, नल-दमयन्ती, कालियादमन आदि का अनुवाद हुआ। यह फारसी और भारतीय साहित्य का पारस्परिक समन्वय था।

(iii) संस्कृत और हिन्दी भाषाओं के उत्थान का कार्य - 

अकबर के समय में संस्कृत साहित्य की रचना हुई। हिन्दी में भी महान् कृतियों का सृजन हुआ। बीरबल, राजा मानसिंह, नरहरि और हरनाथ ने राजदरबार में रहते हुए हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाया। दरबार से बाहर भी अनेक विद्वानों ने हिन्दी साहित्य की वृद्धि की । तुलसीदास और सूरदास ने जो ग्रन्थ लिखे हैं, वे हिन्दी साहित्य की आधारशिला हैं। महेश ठाकुर ने अकबर के शासनकाल का इतिहास संस्कृत में लिखा। जैन विद्वान् पद्म सुन्दर ने 'अकबर शाही शृंगारदर्पण' और जैन आचार्य सिद्धचन्द्र ने 'भानुचन्द्र चरित्र' ग्रन्थ लिखे। इस प्रकार अकबर का काल हिन्दी और संस्कृत साहित्य की उन्नति की दृष्टि से स्वर्णिम युग था।

जहाँगीर के काल में प्रगति

जहाँगीर के शासनकाल में स्थापत्य कला का बहुत कम विकास हुआ। जहाँगीर ने संगीत और चित्रकला में गहरी रुचि ली। जहाँगीर के काल की सबसे प्रसिद्ध इमारत एत्मादुद्दौला का मकबरा है, जिसे साम्राज्ञी नूरजहाँ ने बनवाया था। जहाँगीर की सबसे अधिक रुचि चित्रकला में थी। उसके दरबार के प्रमुख चित्रकार थे- अबुल हसन, आगा रजा, उस्ताद मंसूर, मनोहर, माधवदास, गोवर्धन, वशनदास और माधव। इस काल के चित्र प्रकृति तथा सांसारिक पात्रों से सम्बन्धित थे। फूल-पत्तियों, पक्षियों, हाथी, घोड़े, शिकार आदि के चित्र भी प्राप्त हुए हैं।
जहाँगीर के काल में भी पर्याप्त साहित्यिक प्रगति हुई। जहाँगीर ने स्वयं अपनी आत्मकथा के रूप में 'तुजुक-ए-जहाँगीरी' नामक पुस्तक लिखी। इसमें तत्कालीन साहित्यिक, कलात्मक और ऐतिहासिक तथ्यों का रोचक विवरण दिया गया है। उसके काल के प्रमुख विद्वान् और उनकी कृतियाँ हैं -मौतमिद खाँ की इकबाल-नामा-ए-जहाँगीरी', ख्वाजा कामगर की 'मअस्सरे जहाँगीरी', निआमत अल्ला की 'मकंजम-ए-अफगानी' और मुहम्मद कासिम फरिश्ता की 'तारीख-एकरिश्ता' आदि।

शाहजहाँ के काल में प्रगति

शाहजहाँ शिक्षा प्रेमी था। उसने शिक्षा का प्रसार किया और विद्वानों को पूरस्कार तथा वृत्तियाँ देकर शिक्षा को प्रोत्साहन दिया। उसने दिल्ली में एक मदरसे की स्थापना की और बहुत-से पुराने मदरसों का जीर्णोद्धार करवाया। उसका बड़ा पुत्र दाराशिकोह विद्वान् तथा साहित्यकार था। उसने हिन्दुओं के कई ग्रन्थों को फारसी में अनुवाद किया। उसने स्वयं भी कुछ ग्रन्थों की रचना की।
शाहजहाँ ने स्थापत्य कला के विकास में उल्लेखनीय कार्य किया। आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव के अनुसार, "शाहजहाँ का काल केवल कला और कला में भी वास्तुकला की दृष्टि से ही स्वर्ण युग कहा जा सकता है।" शाहजहाँ द्वारा बनवाई गई प्रमुख इमारतें थीं- आगरे का ताजमहल, मोती मस्जिद, जामा मस्जिद और दिल्ली का लालकिला। लालकिले का 'तख्त-ए-ताऊस' उसके वैभव का प्रतीक था।
शाहजहाँ के काल में चित्रकला सामान्य गति से चलती रही। इस समय के प्रमुख चित्रकार थेमीर हाशिम, फकीर उल्लाह, चित्रमणि और अनूम।
शाहजहाँ के काल में फारसी और हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय उन्नति हुई। फारसी की महान् कृतियाँ_'बादशाहनामा', 'सालेह' आदि अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा लिखी गईं। हिन्दी साहित्य के उत्थान की दृष्टि से यह एक रचनात्मक काल रहा। शाहजहाँ के काल में लिखी गईं हिन्दी साहित्य की उल्लेखनीय रचनाएँ हैंसुन्दर कविराय का 'सुन्दर श्रृंगार', सेनापति का 'कवित्त रत्नाकर', कवीन्द्र का 'कवीन्द्र कल्पतरु' आदि। इसके अतिरिक्त चिन्तामणि जगन्नाथ पण्डित, मतिराम आदि शाहजहाँ के दरबार में स्थान प्राप्त किए हुए थे। विहारी इस समय के महान् हिन्दी कवि थे और 'बिहारी सतसई' हिन्दी साहित्य का अनुपम ग्रन्थ है। इस प्रकार शाहजहाँ के काल में फारसी और हिन्दी साहित्य का बड़ा उत्थान हुआ और इस दृष्टि से यह युग 'स्वर्ण युग' बन गया।

औरंगजेब के काल में प्रगति

औरंगजेब इस्लाम धर्म का कट्टर अनुयायी था, इसलिए उसने कलात्मक विकास में कोई रुचि नहीं ली। उसने कलाओं पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया। एक बार नाराज होकर संगीतकारों ने विद्रोह रूप से संगीत का जनांजा निकाला।
औरंगजेब ने उन संगीतकारों से पूछा, "यह क्या है ?" संगीतकारों ने उत्तर दिया, “संरक्षण न मिलने पर संगीत की मौत हो गई है।" तब औरंगजेब ने उपहास करते हुए कहा, "इस जनाजे को खूब गहरा गाढ़ना, कहीं यह फिर से जिन्दा न हो जाए।"
यद्यपि औरंगजेब ने साहित्य की प्रगति में कोई रुचि नहीं ली, परन्तु फिर भी गुप्त रूप से विद्वानों द्वारा फारसी भाषा के ग्रन्थों की रचना होती रही। इस समय के प्रमुख विद्वान् और उनकी रचनाएँ निम्न प्रकार हैं- खफी खाँ की 'मुन्तखब-उल-लुवाब', मिर्जा मुहम्मद की 'आलमगीरनामा', मुहम्मद सकी की 'नुएके दिलकुशाँ'; ईश्वरदास की 'फतुहात-ए-आलमगीरी' और सुजानराय की खुलासा-उल-तवारीख'। औरंगजेब के समय में हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई।

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