भक्ति आन्दोलन क्या था ?

प्रश्न 9. भक्ति आन्दोलन की विशेषताएँ बताइए। तत्कालीन समाज पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?

अथवा ,भक्ति आन्दोलन के उदय तथा प्रसार के क्या कारण थे ? भक्ति आन्दोलन ने भारतीय समाज को किस प्रकार प्रभावित किया?

अथवा ,भक्ति आन्दोलन क्या था ? इसकी शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर-जब बौद्ध धर्म का पतन हुआ, तब से समाज-सुधार की दिशा में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई। इसके बाद भक्ति आन्दोलन ही एक ऐसा आन्दोलन था जिसने हिन्दुओं और मुसलमानों के मध्य भेदभाव कम किया।


भक्ति आन्दोलन के उदय के कारण 

भक्ति आन्दोलन के उदय के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

(1) भक्ति मार्ग की सरलता

उस युग में हिन्दू धर्म का स्वरूप अत्यन्त जटिल हो गया था। धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-पाठ आदि क्रियाओं को साधारण जनता सरलता से नहीं निभा सकती थी। भक्ति मार्ग अत्यन्त सरल और जटिलता से रहित था, इसलिए यह लोकप्रिय होता चला गया।
भक्ति आन्दोलन

(2) जटिल वर्ण व्यवस्था

 प्राचीन भारतीय समाज में प्रचलित वर्ण व्यवस्था ने धीरे-धीरे जाति व्यवस्था का रूप ले लिया। किन्तु मध्य काल तक आते-आते जाति व्यवस्था बहुत जटिल हो चुकी थी। उच्च वर्ग में पनपी श्रेष्ठता की भावना निम्न वर्ग में असन्तोष उत्पन्न कर रही थी। इस आन्दोलन ने ऊँच-नीच की भावना का विरोध किया। अत: भक्ति मार्ग ने अछूतों तथा निम्न वर्ग के व्यक्तियों के लिए भी मार्ग खोल दिया।

(3) मुस्लिम आक्रमणकारी - 

मध्यकालीन भारत में जन-साधारण मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा मन्दिरों के विनाश के कारण स्वतन्त्रतापूर्वक मन्दिरों में जाकर मूर्ति-पूजा नहीं कर पाते थे। अत: वे भक्ति एवं उपासना के द्वारा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खोजने लगे।।

(4) समन्वय की भावना - 

भारतवर्ष में हिन्दू और मुसलमान काफी लम्बे. समय से साथ-साथ रहे थे, परन्तु दोनों जातियों में परस्पर ईर्ष्या, द्वेष तथा । वैमनस्यता का भाव निरन्तर बढ़ रहा था। भक्ति आन्दोलन के परिणामस्वरूप इन . दोनों जातियों में सद्भावना का विकास हुआ।

भक्ति आन्दोलन के सिद्धान्त


भक्तिकाल में कई महान् सन्तों व ज्ञानी व्यक्तियों का आविर्भाव हुआ। उन्होंने अपने सिद्धान्त और शिक्षाएँ जन-साधारण तक पहुँचाई। उनके सिद्धान्तों में यद्यपि कुछ मतभेद भी थे, तथापि कुछ ऐसी मूलभूत बातें थीं जिन्हें सभी ने स्वीकार किया। ये सिद्धान्त निम्नलिखित थे

(1) ईश्वर की एकता-
भक्ति आन्दोलन के सभी सन्त ईश्वर की एकता में विश्वास करते थे। उनका मत था कि ईश्वर एक है।
(2) ईश्वर के प्रति अपार प्रेम--
इस काल के सन्तों के अनुसार भक्ति तथा ज्ञान के द्वारा ही मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है और भक्ति तथा ज्ञान ईश्वर के प्रति अपार प्रेम द्वारा ही प्राप्त हो सकता है।
(3) गुरु की महत्ता पर बल - 
भक्तिकाल के सन्तों का विश्वास था कि गुरु ही ईश्वर प्राप्ति का मार्ग दिखाता है। वह भक्त के अज्ञान को मिटाकर उसे ज्ञान का मार्ग दिखाता है।
(4) मानवतावादी भावना -
भक्तिकाल के सन्तों का विश्वास था कि समस्त जीव उस एक ही परमात्मा के अंश हैं और उन सभी के अन्दर एक ही आत्मा विद्यमान है। उन्होंने मानवतावादी भावना से प्रेरित होकर विश्व-बन्धुत्व का पाठ पढ़ाया।
(5) सामाजिक कुरीतियों का विरोध - 
मध्य काल में भारतीय समाज में अनेक कुरीतियाँ व्याप्त थीं। धर्म के प्रति अनेक भ्रमपूर्ण भावनाएँ व अन्धविश्वास प्रचलित थे। भक्तिकाल के सन्तों ने सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया और ईश्वर भक्ति पर बल दिया।
(6) जाति-पाति और वर्ग - 
भेद का विरोध-भक्तिकाल के सन्तों ने जाति-पाँति और वर्ग-भेद का विरोध किया। वे सभी मनुष्यों को एक समान मानते थे। उनका विश्वास था कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति या वर्ग का हो, सच्चे हृदय से उपासना करने पर उसे ईश्वर अवश्य ही प्राप्त होता है।
(7) मूर्ति-
पूजा का विरोध-इस आन्दोलन की एक विशेषता यह थी कि  इसने मूर्ति-पूजा में विशेष रुचि नहीं दिखाई और कुछ सन्तों ने इसका स्पष्ट विरोध किया, जिनमें कबीर प्रमुख हैं।
 (8) सरल तथा आडम्बरहीन स्वरूप--
भक्ति आन्दोलन का स्वरूप अत्यन्त सरल तथा आडम्बरहीन था। इसमें परम्परागत चले आ रहे अन्धविश्वासों तथा कर्मकाण्डों के लिए कोई स्थान नहीं था। सरल रूप से भगवान् के प्रति प्रेम तथा सच्चे हृदय से भक्ति करना इस मत का प्रमुख आधार था।
(9) हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल -
भक्तिकाल के सन्तों ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर विशेष बल दिया। कबीर ने हिन्दुओं और मुसलमानों में बढ़ती कटुता को समाप्त करने के लिए दोनों की आलोचना की। हिन्दू और मुसलमान, दोनों ही उनके शिष्य थे। गुरुनानक और रैदास भी हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। चैतन्य महाप्रभु और नामदेव के शिष्यों में भी हिन्दू-मुसलमान, दोनों थे। इस काल के सन्त कवियों ने हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति तथा धार्मिक भावना में समन्वय करने का प्रयास किया।

भक्ति आन्दोलन के प्रभाव (परिणाम)

भक्ति आन्दोलन के भारतीय समाज पर निम्नलिखित प्रभाव (परिणाम) दृष्टिगोचर हुए
(1) बाह्याडम्बरों का अभाव - 
सन्तों के उपदेशों का प्रभाव यह हुआ कि जन-साधारण बाह्याडम्बरों को त्यागकर सरल जीवन व्यतीत करने की ओर अग्रसर हुआ। हिन्दुओं तथा मुसलमानों ने चरित्र की पवित्रता पर विशेष बल दिया।
(2) सामाजिक सद्भावना का जन्म -
 सन्तों की प्रेममयी वाणी से सौम्यता, समरसता तथा सद्भावना का जन्म हुआ। सामाजिक द्वेष और कलह वृत्ति कम हो
(3) हिन्दुओं में आशा तथा साहस का संचार -
इस आन्दोलन के परिणामस्वरूप हिन्दुओं में धार्मिकता की भावना का संचार हुआ तथा उनकी निराशा दूर हुई।
(4) मुसलमानों के अत्याचारों में कमी - 
भक्ति आन्दोलन के सन्तों के उपदेशों का प्रभाव मुसलमान शासकों पर भी पड़ा। उन्होंने हिन्दू तथा मुस्लिम धर्म के मध्य एकता स्थापित करने का प्रयास किया, जिससे मुस्लिम अत्याचार कम
(5) आत्म-गौरव तथा राष्ट्रीय भावना का प्रादुर्भाव - 
भवित आन्दोलन से जन-साधारण में आत्म-गौरव तथा आत्म-सम्मान की भावना उत्पन्न हुई। भक्ति आन्दोलन के बाद महाराष्ट्र, पंजाब आदि में राष्ट्रीय आन्दोलन का जन्म हुआ।
(6) उदारता का संचार सन्तों के -
उपदेशों से हिन्दू तथा मुसलमान, दोनों में उदारता का संचार हुआ। वे भेदभाव को छोड़कर सहिष्णुता को अपनाने लगे।

निष्कर्ष - 

भक्ति आन्दोलन का महत्त्व इसलिए अधिक है कि इसने उस पृष्ठभूमि का निर्माण किया जिसके फलस्वरूप कालान्तर में हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरे के अत्यधिक निकट आ गए। कदाचित इस आन्दोलन के प्रभाव के फलस्वरूप ही आगे चलकर अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति का अनुसरण किया। एक अन्य दृष्टि से भी यह आन्दोलन बहुत महत्त्वपूर्ण रहा। इस आन्दोलन के दौरान विभिन्न सन्तों ने अपनी-अपनी प्रादेशिक भाषाओं में अपने उपदेश दिए तथा कविताओं, दोहों आदि की रचना की। इससे प्रादेशिक भाषाओं के साहित्य के सृजन में सहायता मिली। इसके द्वारा हिन्दी, बंगला, मराठी, मैथिली आदि भाषाओं के साहित्य का सृजन सम्भव हुआ। इस प्रकार 'मध्य युग का भक्ति आन्दोलन महत्त्वपूर्ण तथा अपने युग की एक महान् विशेषता माना गया। -


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