राजा राममोहन राय - भारतीय पुनर्जागरण के पिता
प्रश्न 11. "राजा राममोहन राय नवयुग के दूत थे।"
व्याख्या कीजिए।
अथवा '' राजा राममोहन राय को 'आधुनिक भारत
का जनक' क्यों कहा जाता है ?
भारतीय पुनर्जागरण में उनकी देन का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा "राजा राममोहन राय आधुनिक भारत के निर्माता थे।" इस कथन
के आधार पर उनके सामाजिक सुधारों की विवेचना कीजिए।
अथवा "राजा राममोहन राय 19वीं शताब्दी
के अग्रदूत थे।" विवेचना कीजिए।
उत्तर - राजा राममोहन राय भारतीय राष्ट्रीयता के अग्रदूत थे। उन्हें 'भारतीय' पुनर्जागरण
का पिता' कहा जाता है। श्रीमती एनी बेसेण्ट ने राजा राममोहन राय के बारे में लिखा
है कि "राजा राममोहन राय में एक अद्भुत शक्ति, लगन और दृढ़ता
थी। उन्होंने साहसपूर्ण हिन्दू कट्टरपंथी सीमा को तोड़ने का प्रयत्न किया और स्वतन्त्रता का बीज बोया,
जिसने पुष्पित, पल्लवित और फलवान होकर राष्ट्र के जनजीवन को नई चेतना से अनुप्राणित
किया।"
राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार
राजा राममोहन राय ब्रिटिश शासनकाल के प्रथम समाज सुधारक थे। उनका विचार था कि जब तक किसी समाज में रूढ़ियाँ, बुराइयाँ और दुर्बलताएँ बनी रहेंगी, तब तक वह समाज सशक्त नहीं हो सकता और जब तक कोई समाज सशक्त नहीं होगा, तब तक दुर्बल समाज पर बाहर से आक्रमण होते ही रहेंगे और वह समाज, वह जाति और वह देश गुलाम बना रहेगा। वे जाति प्रथा के कट्टर विरोधी थे। भारत में स्त्रियों की दशा को देखकर उन्हें विकल वेदना होती थी।
समाज-सुधार के लिए उन्होंने निम्नलिखित कार्य किए
(1) सामाजिक न्याय तथा समानता के पक्षधर-
राजा राममोहन राय का विश्वास था कि सामाजिक न्याय और समानता के बिना कोई समाज न तो संगठित हो सकता है और न शक्तिशाली। यदि भारत को शक्तिशाली बनना है, तो उसे करोड़ों हरिजनों को समानता के अधिकार देने होंगे और उन्हें सामाजिक स्वतन्त्रता प्रदान करनी होगी। इस प्रकार राजा राममोहन राय ने छुआछूत, का घोर विरोध किया। उन्होंने जाति प्रथा तथा ब्राह्मणत्व के एकाधिकार की खुलकर आलोचना की।
(2) नारी मुक्ति आन्दोलन के समर्थक-
राजा राममोहन
राय भारत में नारी मुक्ति आन्दोलन प्रारम्भ करने वाले प्रथम व्यक्ति
थे। उन्होंने देखा कि भारत के पवित्र ग्रन्थों में तो नारी की महिमा के अपार गीत गाये
गए हैं, किन्तु व्यवहार में उनकी दशा बड़ी दयनीय थी। उन्होंने
नारी की दशा सुधारने के लिए निम्नलिखित कार्य किए
(i) सती प्रथा का उन्मूलन–
राजपूत काल
से यह जघन्य प्रथा हिन्दुओं में प्रचलित थी। जब राजा राममोहन राय की भाभी विधवा
हुईं, तो उन्हें बलपूर्वक सती कर दिया गया। घण्टे-घड़ियालों की आवाज में अग्निदग्ध नारी
की चीत्कार खो गई। इस घटना से राजा राममोहन राय बहुत व्यथित हुए और उन्होंने
1818 ई. में सती प्रथा के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ किया। उनके इस आन्दोलन के फलस्वरूप
ही तत्कालीन गनर्वर-जनरल लॉर्ड विलियम बेण्टिंक ने सती प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर
दिया। इससे स्त्रियों के सती होने की घटनाएँ बहुत कम . हो गईं।
(ii) पति की सम्पत्ति में भाग -
उस समय मृत
पति की सम्पत्ति में विधवा को कोई भाग नहीं मिलता था। वे पुत्रों या परिवारीजनों पर
निर्भर रहती थीं। इसके लिए भी उन्होंने आन्दोलन चलाया, किन्तु सामाजिक
नियमों की कठोरता के कारण वे इस पर कानून बनवाने में असफल रहे।
(iii) विधवा पुनर्विवाह एवं बहुविवाह की समस्या -
राजा राममोहन राय ने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया और नवयुवकों
द्वारा विधवाओं को अपनाने पर बल दिया। अपने समाचार-पत्र के माध्यम से उन्होंने बहुविवाह
के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ किया। वे चाहते थे कि सरकार ऐसा कानून पारित करे जिससे
कोई व्यक्ति एक पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरा विवाह न कर सके।
(iv) बाल-विवाह का विरोध -
राजा राममोहन राय ने बाल-विवाह का
खुलकर विरोध किया। उन्होंने कहा कि विवाह तब तक नहीं होना चाहिए जब तक बालक या बालिका
युवा न हो जाए।
(v) स्त्री शिक्षा -
राजा राममोहन राय की मान्यता थी कि स्त्रियाँ अपने
अधिकारों को तब तक नहीं समझ सकतीं, जब तक वे शिक्षित न हो जाएँ। शिक्षा ही स्त्री को आदर्श माँ, आदर्श पत्नी
तथा आदर्श नागरिक बनाती है। बिना शिक्षा के नारी का सदैव शोषण होता रहेगा और वह पशुवत्
उन अत्याचारों को सहन .करती रहेगी। उन्होंने स्त्रियों के लिए कई विद्यालय खुलवाए।
(3) सामाजिक रूढ़ियों एवं अन्धविश्वासों का खण्डन -
उस समय हिन्दुओं के मन में विदेश यात्रा के बारे में यह गलत
धारणा बन गई थी कि समुद्र पार की यात्रा करना अशुभ होता है। वे स्वयं इंग्लैण्ड गए
और वहाँ से लौटकर उन्होंने हिन्दुओं को दिखाया कि वे वहाँ से अधिक प्रबुद्ध और अधिक
जागरूक बनकर आए हैं। उनके धार्मिक विश्वासों में कोई कमी नहीं आई। इस प्रकार उन्होंने
सामाजिक रूढ़ियों और अन्धविश्वासों का खण्डन किया।
मूल्यांकन-संक्षेप में,
राजा राममोहन राय आधुनिक भारत
के निर्माता थे। वे न केवल धार्मिक-सामाजिक सुधारक थे, वरन् एक
राजनीतिक चिन्तक भी थे। उन्होंने एक नवीन समाज के निर्माण की आधारशिला रखी। उन्होंने
हिन्दू, मुस्लिम तथा ईसाई धर्मों के अच्छे सिद्धान्तों को चुनकर 'ब्रह्म समाज' की स्थापना
की। इस प्रकार आधुनिकता के प्रभाव में उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता का मार्ग चुना। उन्होंने
देश में नये राजनीतिक जीवन का सूत्रपात किया। राजा राममोहन राय के चिन्तन में
पूरब और पश्चिम,
दोनों का सम्मिश्रण था।
Mohit upadhyay
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ReplyDeleteVery helpful
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