भारत के प्रधानमन्त्री की नियुक्ति

BA-I,Political Science II

प्रश्न 11. "भारत का प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल रूपी मेहराब की आधारशिला है।" इस कथन के सन्दर्भ में भारत के प्रधानमन्त्री की स्थिति एवं शक्तियों का उल्लेख कीजिए।

अथवा '' भारत के प्रधानमन्त्री की नियुक्ति, उसके अधिकार और कार्यों की विवेचना कीजिए।

अथवा '' भारत के प्रधानमन्त्री की स्थिति तथा शक्तियों का वर्णन कीजिए।

अथवा  "प्रधानमन्त्री बराबर वालों में पहला है।" इस कथन के सन्दर्भ में भारतीय प्रधानमन्त्री के अधिकारों व कर्तव्यों की विवेचना कीजिए।

अथवा  ''भारतीय प्रधानमन्त्री की स्थिति उसके मन्त्रिमण्डल के सन्दर्भ में क्या है ? क्या वह सितारों में चन्द्रमा के समान या समकक्षों में प्रथम है ? इस कथन की विवेचना कीजिए।

उत्तर - ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की भाँति भारतीय प्रधानमन्त्री भी देश का वास्तविक शासक है। किन्तु भारत का प्रधानमन्त्री ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की भाँति समय और संयोग की सन्तान नहीं है। उसका पद संविधान द्वारा उपबन्धित किया। गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 के अनुसार, "राष्ट्रपति को अपने कार्यों । का सम्पादन करने में, सहायता व परामर्श देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होगी, जिसका प्रधान प्रधानमन्त्री होगा।"

pradhanmantri ki niyukti

किन्तु 42वें और 44वें संविधान संशोधन के अनुसार अब यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री और केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल की सलाह मानने के लिए बाध्य होगा। इससे पूर्व इस प्रकार की व्यवस्था का अभाव था।

प्रधानमन्त्री की नियुक्ति

संविधान में प्रधानमन्त्री की नियुक्ति के सम्बन्ध में कहा गया है कि राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमन्त्री की नियुक्ति होगी, किन्तु व्यवहार में राष्ट्रपति का नियुक्ति सम्बन्धी अधिकार अर्थहीन है। संसदीय शासन प्रणाली में ऐसे ही व्यक्ति को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया जा सकता है जो संसद में बहुमत दल का नेता होता है। हाँ, कुछ परिस्थितियों में राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति में स्वविवेक का प्रयोग कर सकता है। 

प्रथम, उस परिस्थिति में जबकि बहुमत दल का नेता स्पष्ट न हो। 

दूसरे, दो या अधिक व्यक्ति उस दल के नेता पद के दावेदार हों। 

तीसरे, आपातकाल में मिले-जुले मन्त्रिमण्डल में राष्ट्रपति किसी ऐसे व्यक्ति को ही प्रधानमन्त्री नियुक्त कर सकता है जिसे कई दलों का समर्थन प्राप्त हो। 

राष्ट्रपति किसी ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति में पूर्ण स्वतन्त्र नहीं है, किन्तु इन परिस्थितियों में भी राष्ट्रपति उसे प्रधानमन्त्री नियुक्त करेगा, जो लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त कर सके।

प्रधानमन्त्री पद के लिए योग्यताएँ

संविधान के द्वारा प्रधानमन्त्री पद के लिए योग्यताएँ निर्धारित नहीं की गई हैं। संविधान में यह भी नहीं कहा गया है कि प्रधानमन्त्री आवश्यक रूप से लोकसभा का सदस्य होगा। श्रीमती इन्दिरा गांधी जब पहली बार प्रधानमन्त्री बनीं, तब वे राज्यसभा की सदस्या थीं।..

ब्रिटेन में यह परम्परा है कि प्रधानमन्त्री कॉमन सभा से ही नियुक्त किया जाता है। इसलिए श्रीमती इन्दिरा गांधी के प्रधानमन्त्री नियुक्त होने के पश्चात् संसद के सदस्यों ने यह माँग की थी कि संविधान में यह संशोधन किया जाए कि प्रधानमन्त्री आवश्यक रूप से लोकसभा का सदस्य होगा।

इस प्रकार के संशोधन की माँग को तो मन्त्रिमण्डल ने स्वीकार नहीं किया, किन्तु इस विषय पर वाद-विवाद के दौरान यह स्वीकार कर लिया गया कि साधारणतया प्रधानमन्त्री को लोकसभा का सदस्य होना चाहिए।

यह भी उल्लेखनीय है कि संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति, जो संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं है, वह 6 माह तक प्रधानमन्त्री अथवा मन्त्री रह सकता है। किन्तु संविधान की यह व्यवस्था साधारण नियम नहीं है, वरन् अपवाद स्वरूप ही संसद के बाहर से कोई व्यक्ति मन्त्री नियुक्त हो सकता है।

मन्त्रिमण्डलीय उत्तरदायित्व के सिद्धान्त को लागू करने के लिए प्रधानमन्त्री व मन्त्रियों का सांसद होना अनिवार्य है।

प्रधानमन्त्री के कार्य और शक्तियाँ

संसदीय शासन प्रणाली में शासन का समस्त उत्तरदायित्व प्रधानमन्त्री पर ही होता है। भारतीय प्रधानमन्त्री के कार्य तथा शक्तियाँ बहुत व्यापक हैं, जिनका वर्णन निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है

(I) मन्त्रिपरिषद् के प्रधान के रूप में प्रधानमन्त्री के कार्य और शक्तियाँ -

प्रधानमन्त्री अपना पद ग्रहण करने के तुरन्त पश्चात् अपनी मन्त्रिपरिषद् का गठन करता है। संविधान के शब्द यद्यपि मन्त्रियों की नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को देते हैं, किन्तु व्यवहार में प्रधानमन्त्री ही मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। यही नहीं, मन्त्रिपरिषद् में कोई भी मन्त्री प्रधानमन्त्री की इच्छा तक वहाँ रह सकता है। ये दोनों बातें मन्त्रिमण्डल के सामूहिक उत्तरदायित्व को क्रियान्वित करने के लिए आवश्यक हैं।

प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद् के जीवन और मरण का केन्द्र-बिन्दु है।

संक्षेप में, मन्त्रिपरिषद् के अध्यक्ष के रूप में वह निम्न कार्य करता है

(1) मन्त्रियों की नियुक्ति करता है।

(2) मन्त्रियों के बीच विभागों का वितरण करता है।

(3) बैठकों में अध्यक्षता करता है।

(4) मन्त्रिपरिषद् में हुए किसी मतभेद को दूर करता है।

(5) किसी मन्त्री के असन्तुष्ट होने पर प्रधानमन्त्री उससे त्याग-पत्र माँग सकता है।

(6) प्रधानमन्त्री का पद सर्वविभागीय है। इसका अर्थ यह है कि सभी मन्त्री उसके निर्देश व निरीक्षण में कार्य करते हैं।

(7) मन्त्रिपरिषद् में एकता व सुदृढ़ता बनाए रखने का उत्तरदायित्व प्रधानमन्त्री पर ही है।

(8) जब प्रधानमन्त्री त्याग-पत्र देता है, तो वह समस्त मन्त्रिपरिषद् का त्याग-पत्र होता है।

प्रधानमन्त्री समकक्षों में प्रधान मात्र नहीं है

मन्त्रिपरिषद् में प्रधानमन्त्री की उपर्युक्त स्थिति से स्पष्ट है कि वह समकक्षों में प्रधान या बराबर वालों में पहला नहीं है, जैसा कि उसके लिए कभी-कभी कह दिया जाता है।

प्रो. ए. सी. डैस ने प्रधानमन्त्री के लिए ठीक कहा है, "जर्मन चांसलर की तरह भारत का प्रधानमन्त्री भी अपने मन्त्रिमण्डल में श्रेष्ठ है, क्योंकि संविधान द्वारा उसे मन्त्रिमण्डल का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है और सभी मन्त्री उसके द्वारा नियुक्त होते हैं।"

डॉ. अम्बेडकर ने संविधान सभा में कहा था, "प्रधानमन्त्री वास्तव में मन्त्रिमण्डल रूपी भवन की आधारशिला है और जब तक हम इस पद को इतनी अधिकारपूर्ण स्थिति प्रदान न करें कि स्वेच्छा से मन्त्रियों की नियुक्ति और विमुक्ति कर सके, तब तक मन्त्रिमण्डल का सामूहिक उत्तरदायित्व प्राप्त नहीं हो सकता।"

निःसन्देह मन्त्रिपरिषद् में प्रधानमन्त्री सर्वोच्च है। वह सितारों में चन्द्रमा से भी अधिक है, वह मन्त्रिपरिषद् का संचालक है। कोई भी उसकी इच्छा के विरुद्ध मन्त्रिपरिषद् में नहीं रह सकता। वह पुरानी मन्त्रिपरिषद् का त्याग-पत्र लेकर नई मन्त्रिपरिषद् बना सकता है, जिसमें वह उसे छोड़ सकता है, जिससे कि वह असन्तुष्ट है।

प्रधानमन्त्री की उपर्युक्त स्थिति से यह नहीं समझना चाहिए कि वह मन्त्रिपरिषद् का स्वामी है। प्रधानमन्त्री अपने साथियों के साथ सन्देशवाहक जैसा व्यवहार नहीं कर सकता है। प्रधानमन्त्री की शक्ति दूसरे मन्त्रियों को साथ लेकर लिने में है, वह अमेरिका के राष्ट्रपति की भाँति अपने मन्त्रियों के परामर्श को करा नहीं सकता।

(II) प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद् व राष्ट्रपति के बीच कड़ी के रूप में-

प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद् और राष्ट्रपति को मिलाने वाली कड़ी है। वह राष्ट्रपति का प्रमुख परामर्शदाता है।

(1) प्रधानमन्त्री के परामर्श पर ही राष्ट्रपति लोकसभा को भंग करता है, जैसा कि 18 जनवरी, 1977 को राष्ट्रपति श्री फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के परामर्श पर लोकसभा को भंग कर दिया और मार्च में चुनाव कराने की घोषणा की।

(2) प्रधानमन्त्री के परामर्श पर ही राष्ट्रपति विभिन्न महत्त्वपूर्ण अधिकारियों की नियुक्ति करता है।

(3) प्रधानमन्त्री ही मन्त्रिपरिषद् व राष्ट्रपति के मध्य विचार-विनिमय का माध्यम है।

प्रधानमन्त्री के राष्ट्रपति के प्रति कुछ कर्त्तव्य भी हैं। प्रधानमन्त्री का कर्तव्य है कि वह मन्त्रिपरिषद् के निर्णय की सूचना राष्ट्रपति को दे। राष्ट्रपति किसी मन्त्री के व्यक्तिगत निर्णय को प्रधानमन्त्री से कहकर समस्त मन्त्रिपरिषद् के विचारार्थ रखवा सकता है।

(III) प्रधानमन्त्री लोकसभा का नेता होता है-

लोकसभा के नेता के रूप में प्रधानमन्त्री निम्नलिखित कार्य करता है

(1) लोकसभा में वह सरकार की नीति का प्रमुख वक्ता है।

(2) संसद में वह प्रत्येक मन्त्री की सहायता करता है। यदि कोई मन्त्री संसद को अपनी नीतियों या भाषणों से सन्तुष्ट नहीं कर पाता, तो प्रधानमन्त्री को ही हस्तक्षेप करना होता है।

(3) महत्त्वपूर्ण विधेयकों व नीतियों पर प्रधानमन्त्री ही बहस आरम्भ करता है और विरोधियों को बहस का उत्तर देता है।

(4) प्रधानमन्त्री लोकसभा में शान्ति व अनुशासन बनाए रखने में स्पीकर की मदद करता है।

(5) बजट तैयार करने में उसका हाथ रहता है।

(6) प्रधानमन्त्री ही लोकसभा का कार्यक्रम निर्धारित करता है।

(IV) प्रधानमन्त्री दल का नेता होता है-

बहुमत प्राप्त दल का नेता होने के कारण ही कोई व्यक्ति प्रधानमन्त्री नियुक्त किया जाता है। प्रधानमन्त्री ही जनता के मन समक्ष दल के कार्यक्रमों व नीतियों को घोषित करता है। जनता भी प्रधानमन्त्री को ही सुनना चाहती है। वह दल में अनुशासन बनाए रखता है। दल की महत्त्वपूर्ण नीतियाँ उसी के निर्देशन में निश्चित होती हैं। प्रधानमन्त्री के भविष्य के साथ ही दल का भविष्य बँधा होता है।

(V) प्रधानमन्त्री अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत का प्रतिनिधि है-

भले ही प्रधानमन्त्री के पास विदेश विभाग न हो, किन्तु सभी अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियाँ व समझौते उसी के द्वारा उसकी प्रेरणा पर किए जाते हैं।

(VI) प्रधानमन्त्री जनता का नेता है -

प्रधानमन्त्री अपने देश की जनता का नेता होता है। जनता न केवल उसका सम्मान करती है और उसके भाषणों को सुनने के लिए उत्सुक रहती है, वरन् देश के सामान्य निर्वाचन में प्रधानमन्त्री ही मुख्य हस्ती होता है।

(VII) प्रधानमन्त्री की आपातकालीन शक्तियाँ -

संविधान के द्वारा यद्यपि आपातकालीन शक्तियाँ राष्ट्रपति को ही प्राप्त हैं, किन्तु व्यवहार में इनका प्रयोग प्रधानमन्त्री और उसका मन्त्रिमण्डल ही करता है। आन्तरिक अव्यवस्था के कारण का सन् 1975 में राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा प्रधानमन्त्री के परामर्श पर ही की थी।

(VIII) अनुग्रह शक्तियाँ -

प्रधानमन्त्री उपाधियाँ तथा पदवियाँ भी प्रदान करता है। यद्यपि यह कार्य राष्ट्रपति की ओर से होता है, किन्तु निर्णय प्रधानमन्त्री की ओर से ही होता है।

प्रधानमन्त्री की स्थिति -

प्रधानमन्त्री की उपर्युक्त शक्तियों से स्पष्ट है कि उसकी शक्तियाँ न केवल अत्यधिक विस्तृत हैं, वरन् वास्तविक भी हैं। लोकसभा में अपना बहुमत होने तक वह न केवल इच्छानुसार विधि-निर्माण व संविधान में संशोधन करा सकता है, वरन् दूसरे देशों से सन्धियाँ व समझौते भी कर सकता है। प्रधानमन्त्री युद्ध और सन्धि की घोषणा कर सकता है। महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियाँ भी प्रधानमन्त्री के द्वारा ही होती हैं।

ब्रिटिश प्रधानमन्त्री के लिए जितनी भी बातें कही गई हैं, वे भारतीय प्रधानमन्त्री पर लागू होती हैं।

 रैम्जे म्योर ने लिखा है, "प्रधानमन्त्री को वास्तव में वैधानिक रूप में इतनी विस्तृत शक्तियाँ प्राप्त हैं कि विश्व के किसी अन्य संवैधानिक शासक को प्राप्त नहीं, अमेरिका के राष्ट्रपति को भी नहीं।"

लास्की ने कहा है, "प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल रूपी भवन की आधारशिला है। वह उसका निर्माणकर्ता, जीवनदाता और मृत्यु का केन्द्र-बिन्दु है।"

डॉ. जैनिंग्स ने लिखा है, "प्रधानमन्त्री बराबर वालों में पहला नहीं है। वह तारों में चन्द्रमा भी नहीं है, जैसा कि हरकोर्ट ने कहा है। वह तो वास्तव में सूर्य है, जिसके चारों ओर पिण्ड चक्कर लगाते हैं।"

भारतीय प्रधानमन्त्री की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है, क्योंकि ब्रिटेन तथा भारत, दोनों ही देशों में संसदीय शासन प्रणाली है। इस प्रणाली में दोनों की स्थिति समान है।

प्रधानमन्त्री तानाशाह नहीं -

यह ठीक है कि प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद् का नेता होता है और मन्त्रियों की नियुक्ति व निष्कासन करता है, फिर भी वह निरंकुश शासक या तानाशाह नहीं है। फाइनर ने ब्रिटिश प्रधानमन्त्री के सन्दर्भ में सही कहा है, "प्रधानमन्त्री कोई सीजर नहीं है कि उसे चुनौती न दी जा सके। उसके विचार भी अनुल्लंघनीय नहीं हैं। प्रधानमन्त्री की शक्ति का एकमात्र आधार यह है कि वह राष्ट्र की कितनी सेवा कर सकता है।" प्रधानमन्त्री की शक्तियाँ उसी समय तक हैं जब तक मन्त्रिमण्डल, संसद और देश का बहुमत उसके साथ है और यह सब उसके व्यक्तित्व और सेवा पर निर्भर करता है।


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