विधि का शासन - ब्रिटिश संविधान

B.A. II, Political Science II

प्रश्न 5. " विधि का शासन ब्रिटिश संविधान की प्रमुख विशेषता है।" व्याख्या कीजिए तथा विधि के शासन का महत्त्व बताइए।

अथवा "विधि के शासन से आप क्या समझते हैं ? इसकी सीमाएँ बताइए।

उत्तर - 

विधि का शासन

ब्रिटिश न्याय पद्धति अपनी श्रेष्ठता, निष्पक्षता, न्याय में शीघ्रता प्रशासन में स्वतन्त्रता के लिए विश्व विख्यात है। इसकी श्रेष्ठता का प्रमाण यह है कि अन्य राष्ट्रों ने बहुत सीमा तक इसी पद्धति और प्रक्रिया को अपनाया है। ब्रिटेन में विधि को सर्वोच्च स्थान पर अधिष्ठित किया गया है। विधि के शासन का अभिप्राय यह है कि इंग्लैण्ड में शासन का संचालन किन्हीं विशेष व्यक्तियों की इच्छा से नहीं, वरन् विधि के द्वारा ही किया जाता है। विधि सर्वोच्च है तथा कोई भी व्यक्ति विधि के नियन्त्रण से बच नहीं सकता। उच्चतम स्तर से निम्नतम स्तर तक प्रत्येक व्यक्ति एक ही विधि के अन्तर्गत समान रूप से नियन्त्रित है।

britain mein vidhi ka shasan in hindi

डायसी द्वारा विधि के शासन की व्याख्या

डायसी ने विधि के शासन को ब्रिटिश संविधान का प्रमुख अंग स्वीकार करते हुए उसकी निम्नांकित विशेषताओं का वर्णन किया है

(1) विधि की सर्वोच्चता

ब्रिटिश शासन व्यवस्था में विधि को सर्वोपरि स्थान प्राप्त है। इस सम्बन्ध में हेगन और पॉवेल का कथन है, “जो लोग सरकार बनाते हैं, वे लोग मनमानी नहीं कर सकते । उनको अपनी शक्ति संसद द्वारा निर्मित नियमों के अनुसार ही प्रयोग में लानी होती है।"

इसका तात्पर्य यह है कि सरकारी अधिकारियों के द्वारा मनमाने तरीके से अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं किया जा सकता, उन्हें विधि द्वारा निर्धारित सीमाओं के अन्तर्गत ही कार्य करना पड़ता है।

(2) सभी नागरिकों के लिए एक ही प्रकार की विधि तथा न्यायाल

डायसी के अनुसार विधि के शासन में सभी व्यक्ति, चाहे उन्हें कोई भी पद या स्थिति प्राप्त क्यों न हो,विधि की दृष्टि से समान हैं और उनके लिए एक ही प्रकार के कानून और न्याय व्यवस्था की स्थापना की गई है। यहाँ पर फ्रांस की भाँति दो प्रकार के न्यायाधिकरणों की स्थापना न करते हुए सभी नागरिकों के लिए समान विधि तथा समान न्यायालयों की स्थापना की गई है। इस सम्बन्ध में डायसी का कथन है, हमारे लिए प्रधानमन्त्री से लेकर एक सिपाही या कर वसूल करने वाले तक प्रत्येक कर्मचारी का दायित्व,प्रत्येक ऐसे कार्य के लिए, जो कानून के अन्तर्गत मान्य न हो, उतना ही है जितना किसी साधारण नागरिक का होता है।"

(3) विधि का शासन व्यक्ति के अधिकारों का रक्षक-

इसका तात्पर्य यह है कि विधि के सामान्य सिद्धान्तों द्वारा व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा की जाती है। इस स्थिति को स्पष्ट करते हुए डायसी का कथन है, “केवल उस दशा को छोड़कर जब सामान्य नागरिक विधि द्वारा यह निर्णय कर दिया गया है कि कानून का स्पष्ट उल्लंघन होता है, किसी व्यक्ति को न कोई दण्ड दिया जा सकता है और न उसे विहित रूप में किसी प्रकार की शारीरिक या आर्थिक हानि पहुँचाई जा सकती है। इस अर्थ में विधि का शासन, शासन की उस प्रत्येक व्यवस्था के विरुद्ध है जो अधिकारी व्यक्तियों द्वारा औरों पर प्रतिबन्ध लगाने की क्षति के व्यापक,स्वेच्छापूर्ण तथा विवेकगत प्रयोग पर आधारित हो।

उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर यह स्पष्ट है कि विधि का शासन नागरिक स्वतन्त्रता की सर्वोत्तम सुरक्षा है तथा यह इस तथ्य का भी द्योतक है कि इंग्लैण्ड में किसी वर्ग विशेष का शासन न होकर जनता का तथा कानून का शासन है।

ब्रिटिश शासन व्यवस्था में विधि के शासन का महत्त्व

ब्रिटिश शासन व्यवस्था में विधि के शासन के महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं

(1) विधि के शासन के कारण इंग्लैण्ड में सरकारी अधिकारी मनमाने तरीके से अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकते। उन्हें विधि द्वारा निर्धारित सीमाओं के अन्तर्गत रहते हुए अपना कार्य करना होता है। प्रशासन के सभी कार्यों के लिए आवश्यक है कि उनके किए जाने के लिए कानून द्वारा अधिकार प्रदान किया गया हो।

(2) विधि के शासन की मान्यता के कारण ही इंग्लैण्ड में फ्रांस जैसे प्रशासनिक न्यायालय नहीं हैं, जिनके अन्तर्गत प्रशासकीय अधिकारियों के विरुद्ध उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए अभियोग चलाए जा सकते हैं, जो उन्होंने अपने पद पर रहते हुए किए हैं।

(3) इंग्लैण्ड में विधि का शासन नागरिकों के अधिकारों और स्वतन्त्रताओं का रक्षक है । वहाँ व्यक्तियों के अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं की रक्षा इसलिए नहीं की जाती है कि उनकी व्यवस्था संविधान के अन्तर्गत की गई है, वरन् इसलिए कि न्यायिक निर्णय उनकी रक्षा सदा से करते आए हैं।

विधि के शासन के सम्बन्ध में अपवाद

इंग्लैण्ड में विधि के शासन के सम्बन्ध में अपवाद अथवा सीमाएँ निम्न प्रकार हैं

(1) प्रदत्त व्यवस्थापन-

अत्यधिक कार्य-भार बढ़ जाने के कारण ब्रिटिश व्यवस्थापिका समयाभाव के कारण विधि की सूक्ष्मताओं का आकलन नहीं कर पाती। परिणामतः ऐसी दशा में उसने विधि से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं पर विचार करने का कार्य कार्यपालिका को सौंप दिया है। इसे प्रदत्त व्यवस्थापन कहते हैं। यह विधि के शासन को सीमित ही करता है, क्योंकि डायसी द्वारा प्रतिपादित विधि के शासन का अर्थ है कि प्रशासन का प्रत्येक कार्य सामान्य कानून अथवा संसदीय कानून द्वारा अधिकृत हो। किन्तु प्रदत्त व्यवस्थापन की उक्त व्यवस्था के अन्तर्गत प्रशासन स्वयं द्वारा निर्मित नियमों के अनुसार ही कार्य करता है। इस व्यवस्था से विधि के शासन के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है।

(2) प्रशासनिक नियम और न्यायालय

विधि के शासन का एक पक्ष यह है। कि सामान्य व्यक्ति और राजकीय पदाधिकारी, दोनों के लिए ही एक प्रकार के न्यायालय हों। किन्तु वर्तमान समय में व्यवहार में ऐसी कोई बात नहीं है। आज प्रशासनिक न्यायाधिकरणों द्वारा अर्द्ध-न्यायिक रूप में कार्य किया जाता है और ये न्यायाधिकरण सामान्य न्यायालयों की अपेक्षा शीघ्रतापूर्वक और कम खर्च में काम करते हैं। इस प्रकार प्रशासनिक न्यायाधिकरण विधि के शासन के मार्ग में एक बड़ी बाधा सिद्ध हो रहे हैं।

(3) सरकारी कर्मचारियों के विशेषाधिकार

विधि के शासन के अनुसार ब्रिटेन में कानून के समक्ष सभी समान हैं। इसका अपवाद यह है कि ब्रिटेन में कई वर्गों के लोगों को कुछ विशेषाधिकार एवं उन्मुक्तियाँ अब भी प्राप्त हैं। 1893 ई. के Public Authorities Protection Act व सन् 1939 के Limitation Act , के अनुसार यह व्यवस्था की गई है कि यदि अधिकारी अपराध करता है अथवा अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करता है, तो उसके विरुद्ध किसी नागरिक द्वारा 6 माह की अवधि में मुकदमा दायर किया जा सकता है। किन्तु यदि उस अधिकारी पर अपराध सिद्ध न हो सके, तो मुकदमा दायर करने वाले नागरिक को अधिकारी को हर्जाना देना होता है। ऐसी दशा में सामान्यतः सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध मुकदमे नहीं किए जाते और वे विधि का उल्लंघन करने पर भी आरोपित होने से बच जाते हैं।

(4) विदेशियों को उन्मुक्तियाँ-

विधि के शासन के विरुद्ध एक अपवाद यह भी है कि विदेशी राजनयिक तथा दूतावास में निवास करने वाले अथवा अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त संस्थाओं के सदस्य आदि भी ब्रिटिश विधि के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं। वे अपने देश के कानून से ही सम्बन्धित होते हैं।

(5) इंग्लैण्ड के सम्राट के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता और न ही उसे किसी न्यायालय में पेश किया जा सकता है। इस प्रकार सम्राट् अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग करने में स्वतन्त्र है।

(6) ट्रेड यूनियन तथा सशस्त्र सेनाओं के सदस्यों पर भी विधि का शासन लागू नहीं होता।

निष्कर्ष

यद्यपि विधि का शासन ब्रिटिश शासन व्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है तथा इसे ब्रिटेन में पूर्ण मान्यता भी प्राप्त है, किन्तु अनेक अपवादों के कारण विधि की समानता का सिद्धान्त बाधित हो रहा है। आज विधि का शासन मात्र एक खोखला सिद्धान्त रह गया है तथा इंग्लैण्ड में उस रूप में विद्यमान नहीं है, जिस रूप में डायसी ने उसका चित्रण किया है। आज इंग्लैण्ड में अनेक रूपों में इसका उल्लंघन किया जाता है और अब इंग्लैण्ड में बहुत अधिक सीमा तक प्रशासकीय न्याय का विकास हो रहा है।

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