लास्की का स्वतन्त्रता तथा सम्पत्ति अधिकार सिद्धान्त

 B. A. II, Political Science I 

प्रश्न 18. लास्की के अधिकार सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।

अथवा '' व्यक्ति के अधिकारों, विशेषतया सम्पत्ति के अधिकार पर लास्की के विचारा को स्पष्ट कीजिए।

अथवा '' लास्की के स्वतन्त्रता तथा सम्पत्ति के अधिकार सम्बन्धी विचारों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर - लास्की के विचार दर्शन में अधिकारों को बहुत अधिक महत्त्व प्रदान किया गया है। उसकी स्वतन्त्रता और सम्पत्ति की अवधारणा भी अधिकारों की कल्पना से जुड़ी हुई है। लास्की के अनुसार राज्य का उद्देश्य व्यक्ति का नैतिक विकास करना है और व्यक्ति के पूर्ण विकास के लिए अधिकार आवश्यक हैं। अधिकारों की परिभाषा करते हुए लास्की का कथन है-

अधिकार सामाजिक जीवन की वे परिस्थितियाँ हैं जिनके अभाव में सामान्यतया कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता।"

लास्की का स्वतन्त्रता तथा सम्पत्ति अधिकार सिद्धान्त

अधिकारों की इस व्यवस्था को बनाए रखना राज्य का प्रमुख कर्त्तव्य है, ताकि प्रत्येक व्यक्ति उनका प्रयोग करते हुए श्रेष्ठ जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सके। लोक-कल्याण की व्यापक दृष्टि से अधिकार अनिवार्य है। राज्य अधिकारों का संरक्षक है। व्यक्ति हित का भौतिक साधन होते हुए भी वह अधिकारों का निर्माणकर्ता नहीं है, वरन् वह तो उन्हें मान्यता प्रदान करता है। अधिकारों का अस्तित्व राज्य के पूर्व से ही है। राज्य उन्हें स्वीकार करे अथवा न करे, इस बात का अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। लास्की के अनुसार अधिकार इस अर्थ में अधिकार हैं कि राज्य के नागरिकों के लिए व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में उनकी उपयोगिग होती है।

लास्की के अधिकार सम्बन्धी विचार

लास्की अधिकारों के समाजवादी दर्शन से प्रभावित है। हॉब्स और ऑस्टिन की भाँति लास्की यह नहीं मानता कि अधिकार सम्प्रभु की इच्छा से उत्पन्न होते हैं। उसका मत है कि अधिकार व्यावहारिक उपयोगिता तभी प्राप्त करते हैं जबकि उन्हें सम्प्रभु की स्वीकृति प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार लास्की ने प्राकृतिक और वैधानिक अधिकारों का खण्डन किया है। उसके अनुसार अधिकारों का अनिवार्य स्रोत नैतिकता है और वे ऐसी सामाजिक परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनके द्वारा मनुष्य का आत्म-विकास होता है।

अधिकारों के सम्बन्ध में लास्की ने समाजवादी मूल्यों पर आधारित एक ऐसी राजनीतिक पद्धति की परिकल्पना प्रस्तुत की है जो ब्रिटेन में विकसित उदारवाही राज्य द्वारा प्रदत्त जनतान्त्रिक अधिकारों का साम्यवादी राज्य द्वारा प्रदत्त आर्थिक और सामाजिक अधिकारों के साथ न्यायोचित समन्वय स्थापित कर सके। दर प्रकार लास्की ने समाजवादी मूल्यों पर आधारित अधिकार सिद्धान्त की स्थापना पर बल दिया है।

अधिकारों के प्रकार

लास्की ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ' A Grammar of Politics ' में ऐसे अधिकारों का उल्लेख किया है जो उसके अनुसार व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक हैं। प्रमुख अधिकार निम्नलिखित हैं

(1) कार्य और अवकाश का अधिकार-

लास्की ने कार्य और अवकाश के अधिकार को अपनी अधिकारों की सूची में प्रथम स्थान दिया है तथा सबसे महत्त्वपूर्ण माना है। उसकी मान्यता है कि समाज का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने प्रत्येक सदस्य को बिना किसी भेदभाव के यह अधिकार प्रदान करे, ताकि वह अपने परिश्रम से जीविकोपार्जन के साधन प्राप्त कर सके, क्योंकि इसके अभाव में उसके व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाएगा और वह एक समाजवादी राज्य का योग्य नागरिक नहीं बन सकेगा।

लास्की के अनुसार कार्य के अधिकार का ही स्वाभाविक परिणाम अवकाश का अधिकार है। जो कार्य करता है, वह उचित अवकाश का अधिकारी भी है। अवकाश का अधिकार कार्य के अधिकार का प्रतिफल है और उसे सार्थकता प्रदान करता है। ये उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि कार्य का अधिकार।

(2) शिक्षा का अधिकार

लास्की के अनुसार शिक्षा का अधिकार दूसरा महत्त्वपूर्ण अधिकार है, जो एक नागरिक को समाजवादी राज्य में प्राप्त होना चाहिए। इसके अभाव में कोई भी व्यक्ति न तो समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर सकता है और न अपने व्यक्तित्व का समुचित विकास कर सकता है। लास्की का मानना है कि औसत व्यक्ति की क्षमता को ध्यान में रखते हुए राज्य प्रत्येक नागरिक के लिए शिक्षा की व्यापक व्यवस्था एवं साधन-सुविधाएँ उपलब्ध कराए।

(3) राजनीतिक अधिकार-

लास्की के अनुसार व्यक्ति को प्राप्त होने वाला यह तीसरा महत्त्वपूर्ण अधिकार है। एक समाजवादी राज्य में इस अधिकार क अन्तर्गत तीन अधिकार सम्मिलित हैं-वयस्क मताधिकार निर्वाचन में प्रत्याशा होने का अधिकार और सरकारी सेवाओं में योग्यतानुसार नियुक्ति प्राप्त करने का अधिकार। एक समाजवादी लोकतन्त्र में यह अधिकार सभी नागरिकों को समान रूप से प्राप्त होना चाहिए।

(4) स्वतन्त्रता का अधिकार-

स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में लास्की ने विभिन्न पुस्तकों में विचार व्यक्त किए हैं, परन्तु उनका मूल तत्त्व लगभग समान हा ह। लास्को के अनसार स्वतन्त्रता कोई विशेष अधिकार नहीं, वरन अधिकारा का सार है अर्थात् अधिकार प्रणाली का मूल तत्त्व स्वतन्त्रता ही है, जिसके आधार पर वह जीवित ही नहीं रहती है, वरन् निरन्तर सिंचित होकर परिपुष्ट भी होती है।

लास्की ने स्वतन्त्रता के तीन रूप बताए हैं व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, राजनीतिक स्वतन्त्रता और आर्थिक स्वतन्त्रता।

व्यक्तिगत स्वतन्त्रता से तात्पर्य व्यक्ति का अपनी इच्छानुसार जीवनयापन करना है। राज्य के द्वारा इस स्वतन्त्रता की रक्षा तभी सम्भव है जबकि उसके अनुचित कार्यों का प्रतिरोध करने की चेतना और शक्ति राज्य में हो।

राजनीतिक स्वतन्त्रता से तात्पर्य राज्य के मामलों में सक्रिय हो पाने की शक्ति है। इसमें विचार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्रमुख है। शिक्षा और प्रेस की स्वतन्त्रता श्रेष्ठ राजनीतिक स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक शर्ते हैं।

आर्थिक स्वतन्त्रता के अन्तर्गत व्यक्ति को अपनी योग्यता के अनुसार रोजी कमाने का अधिकार तथा पर्याप्त वेतन पाने का अधिकार सम्मिलित है।

(5) सम्पत्ति का अधिकार-

लास्की ने सम्पत्ति के अधिकार के सम्बन्ध में भी समाजवादी दृष्टिकोण अपनाया है। व्यक्ति को सम्पत्ति का अधिकार इसलिए आवश्यक है ताकि वह अपने व्यक्तित्व के विकास के साथ-साथ समाज के लिए उपयोगी कार्य भी कर सके। लास्की व्यक्तिगत सम्पत्ति के विरुद्ध नहीं है, परन्तु वह उसके वर्तमान विषम और अन्यायपूर्ण विभाजन का घोर विरोधी है। वह सम्पत्ति के अधिकार को सीमित करने और व्यक्तिगत सम्पत्ति के अधिकार को बनाए रखने के पक्ष में है। व्यक्ति के लिए व्यक्तिगत सम्पत्ति की सीमा निर्धारित करते हए लास्की का कथन है कि "वह प्रत्येक नागरिक के पास इतनी मात्रा में अवश्य होनी चाहिए ताकि उसके माध्यम से वह एक समाजवादी राज्य के नागरिक के रूप में उपयोगी जीवन व्यतीत करते हुए सामाजिक कल्याण में अपना योगदान दे सके।"

अत: यदि व्यक्तिगत सम्पत्ति को समाज के लिए उपयोगी कार्यों से सम्बद्ध कर दिया जाए, तो निश्चय ही वह समाज में अपना उचित स्थान बना लेगी। लास्की का मत है कि ऐसा एक समाजवादी राज्य में ही सम्भव हो सकता है। इस प्रकार लास्की सीमित मात्रा में व्यक्तिगत सम्पत्ति के अधिकार का समर्थक है तथा व्यक्तिगत सम्पत्ति पर नियन्त्रण और व्यक्तिगत सम्पत्ति पर आधारित वर्तमान आर्थिक ढाँचे में परिवर्तन पर बल देता है। इस सम्बन्ध में उसका कथन है कि "या तो सम्पत्ति राज्य के अधीन हो अथवा सम्पत्ति राज्य पर हावी हो जाएगी।"

इस प्रकार लास्की अधिक-से-अधिक सम्भव सीमा तक सम्पत्ति की समानता स्थापित करने के पक्ष में है। लेकिन उसका यह निश्चित और सुविचारित मत है कि सम्पत्ति के अधिकार का सीमाकरण संवैधानिक साधनों के आधार पर ही किया जाना चाहिए, किसी भी प्रकार की शक्ति या क्रान्तिकारी साधनों के आधार पर नहीं। इस प्रकार व्यक्तिगत सम्पत्ति के सम्बन्ध में समाजवादी व्यवस्था कर वास्तविक दृष्टि से एक शोषण मुक्त समाज की रचना की जा सकेगी।

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