एम. एन. राय के राजनीतिक विचार

B.A-III-PoliticalScience-II

प्रश्न 11. एम. एन. राय के राजनीतिक विचारों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर आधुनिक भारत में दर्शन और राजनीति के विद्वानों में एम.एन. राय का महत्त्वपूर्ण स्थान हैएम. एन. राय (मानवेन्द्र नाथ राय ) द्वारा प्रतिपादित 'नव-मानवतावाद' जीवन में मूल्यों को प्रमुख स्थान देने का उपदेश देता है। राय ने भौतिकवाद की नई व्याख्या की और इसे नैतिक पुट प्रदान किया। व्यक्ति की स्वतन्त्रता और समानता का जयघोष करके राय ने व्यक्ति के गौरव एवं सम्मान को आगे बढ़ाया।

एम. एन. राय के राजनीतिक विचार

एम. एन. राय के विचारों में हमेशा एक वैचारिक अस्थिरता रही है। धर्म, क्रान्ति, समाजवाद और मानवतावाद को समय-समय पर उन्होंने अनुप्राणित किया। परिणामतः वे कभी भी एक स्पष्ट और दीर्घकालीन राष्ट्रीय विचारधारा का पोषण नहीं कर सके । परन्तु इतनी विचार भिन्नता के होते हुए भी समय-समय पर राय ने जो विचार व्यक्त किए, वे बहुत महत्त्वपूर्ण और अंशत: मौलिक भी हैं। एम.एन.राय के प्रमुख राजनीतिक विचार निम्न प्रकार हैं-

एम. एन. राय के राजनीतिक विचार

(1) रोमाण्टिक क्रान्तिवाद -

 राय अपने चिन्तन के प्रारम्भिक काल में एक रोमाण्टिक क्रान्तिकारी रहे हैं। देश का नवयुवक उदारवादियों की नीति और पद्धति से असन्तुष्ट था। उग्रवाद हिलोरें ले रहा था और बंगाल तथा महाराष्ट्र में आतंकवाद । पनप रहा था। राय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से भी प्रभावित थे। राय का मत था कि क्रान्ति और आतंकवाद के माध्यम से सत्ता को उखाड़ फेंका जा सकता है। अतः भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति के

लिए उन्होंने हिंसात्मक साधनों को अपनाने का समर्थन किया। तत्कालीन आतंकवादी राय के इन विचारों से प्रभावित हुए । राय का यह क्रान्तिकारी आंदोलन बुधजीविया को प्रभावित नहीं कर सका यह सिद्धान्त वास्तव मे केवल रोमाण्टिकवाद था और व्यवहार में केवल चन्द्र-आभा (Mom Light in Practice)| यह अधिकांशतः मध्यमवर्गीय युबा वर्ग तक ही सीमित था, जन साधारण का समर्थन नहीं मिला।

(2) मार्कस्वाद -

एम.एन.राय अपने जीवन के प्रारम्भिक काल में एक महान् क्रान्तिकारी थे ,जो भारत के बाहर जाकर मार्कस्वाद  की ओर आकृष्ट हो गए। उन्होंने Socialist International' के संस्थापक सदस्य के रूप में अपने मार्क्सवादी होने का परिचय दिया और भारत में साम्यवादी आन्दोलन को लोकप्रिय बनाने का श्रेय प्राप्त किया। राय ने देखा कि भारत में वर्ग-संघर्ष अपने व्यापक स्वरूप में विद्यमान है और भारतीय दरिद्रता ब्रिटिश साम्राज्यवाद तथा देशी सामन्तवाद के शोषण का परिणाम है। इस दरिद्रता का उन्मलन तभी सम्भव है जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद और सामन्तवादी प्रथा का जड़ से उन्मूलन का दिया जाए। परन्तु राय का यह स्वरूप चिरस्थायी नहीं रह सका और मानवतावादी विचारक के रूप में अपनी पहचान बनाई।

(3) गांधीवाद

 राय ने गांधीवाद को अपने दृष्टिकोण से देखा और उन्होंने इसकी कटु आलोचना की। गांधीवाद की रचनात्मक शक्ति में अविश्वास प्रकट करते हुए उन्होंने कहा है कि इसमें एक ऐसे आर्थिक कार्यक्रम का अभाव है जो जन साधारण को अपनी ओर आकर्षित कर सके। राय ने यहाँ तक कहा कि गांधीवाद पूँजीपतियों, श्रमिकों, किसानों,जमींदारों आदि विभिन्न वर्गों को एक सामान्य मंच पर लाने की असफल चेष्टा करने वाला दर्शन है। उन्हें यह भी बड़ा उपहासजनक लगा कि राजनीति में धर्म व अध्यात्मशास्त्र के प्रवेश की बात की जाए। राय ने महात्मा गांधी को घोर प्रतिक्रियावादी कहा। वे राजनीति के प्रति एक धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण रखते थे तथा सरल जीवन पर बल देते हैं। उन्होंने गांधीवाद को तुच्छ मानवतावादी दर्शन कहा। उन्होंने इसे सांस्कृतिक पिछड़ेपन का प्रतीक माना है। उनके अनुसार इसका बौद्धिक आधार अन्धविश्वास है। उनके शब्दों में"Gandhism was not revolutionism, but weak and watery."

(4) नव-मानवतावाद -

राय ने सन् 1947 में 'नवीन मानवतावाद' नामक पुस्तक की रचना की। इस पुस्तक में उन्होंने एक नवीन समाज की रचना की योजना विश्व के सम्मुख प्रस्तुत की। राय ने अपने मानवतावाद को मौलिक अथवा नवीन इसलिए कहा क्योंकि वे सिद्ध करना चाहते थे उनका मानवतावाद पूर्व के और समकालीन सभी विचारकों द्वारा प्रतिपादित मानवतावाद से कहीं अधिक भिन्न है। राय ने यह माना कि मानवतावाद मानव जाति के इतिहास में एक प्राचीन और सम्माननीय परम्परा रही है। प्रारम्भ में भी लोग मानवतावादी हुए थे और वर्तमान श्री हैं। जहाँ पूर्व के मानवतावादी मनुष्य को किसी अतिमानवीय और अति प्राकृतिक सत्ता के अधीन करने की इच्छा की धारमा सबला नहीं रख पात वारी आधनिक मानवतावादी अपने दर्शन में मनुथ को बाछिता केन्द्रीय ज्यान नहीं सब हैं। आधुनिक मानवतावादी मनुष्य को राज्य के अधीनस्य अवश्य ही बनाना चाहते पर मनुष्य उनके दर्शन का केन्द्र बिन्दु नहीं रहा है।

एम.एन.राय का विश्वास है कि मनुष्य तत्वतः एक बौद्धिक प्राणी है। बाट सिद्धान्त ऐतिहासिक तथा वैज्ञानिक दृष्टि से सत्य है । राय का नव-मानवतावाद मानव की सजनात्मक शक्तियों में विश्वास करता है। उनके इस विश्वासका आधार वैवानिक तथा ऐतिहासिक अनुसन्धानों का वह विवश साख्या है जिसने मनुष्य की। मौलिक तथा सृजनात्मक शक्तियों को प्रमाणित कर दिया है। नव-मानवतावाद यह मानता है कि नैतिक तथा आध्यात्मिक स्वतन्त्रता,विवेक और आधार कति महत्वामी हैं। वे बौद्धिकता तथा नैतिकता को मनुष्य का निहित गुण मानते थे। राय की मान्यता थी कि समाज का संगठन नैतिकता के आधार पर होना चाहिए। इसके लिए बुद्धिबाट और वैज्ञानिक साधनों को अपनाया जाना आवश्यक है। वे व्यक्ति को समाजका मूल मानते हैं। वे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को मानवतावाद का आधार मानते हैं।

संक्षेप में,राय का नव-मानवतावाद का दृष्टिकोण विश्व-राज्य की भावना पर आधारित है। वे राज्य को मानव संगठन की अन्तिम अवस्था नहीं मानते। वे राष्ट्रबाट के स्थान पर विश्व-बन्धुव के पोषक हैं।

(5) लोकतत्र -

राय का विचार था कि संसदीय लोकतन के व्यावहारिक रूप में अनेक दोष है। उसके अनुसार वर्तमान लोकतन्त्र पुँजीवादी लोकतन्त्र है और साम्यवादी लोकतन्त्र की तरह उसमें भी व्यक्ति की स्वतन्त्रता का हास होता है। राय ने वर्तमान उदार या पुँजीवादी लोकतन्त्र के स्थान पर संगठित लोकतन्त्र का विचार प्रस्तुत किया। संगठित लोकतन्त्र में सम्पूर्ण शक्ति जनता की स्थानीय समितियों के हाथों में होगी और सत्ता के शिखर पर बैठा हुआ कोई सर्वसत्ता सम्पन्न व्यक्ति निरंकुश बनकर आदेश नहीं देगा। संगठित लोकताब में राजनीतिक दलों को कोई स्थान नहीं होगा और सच्चे लोकतन्त्र को दल विहीन बनाना

मूल्यांकन उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि राय का सम्पूर्ण राजनीतिक चिन्तन अन्तविरोधों से भरा पड़ा है और उसमें यथार्थवाद का भी अभाव है। क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद से मार्क्सवाद और मार्क्सवाद से नव-मानवतावाद तक की लम्बी उडान सम्बन्धित व्यक्ति के व्यक्तिव और चित्र में अन्नविरोधों का ही परिचय देती है। उनके समस्त चिन्तन में यथार्थवाद का अभाव है और सम्भवत्या इसी कारण वे भारतीय समाज में अपने लिए कोई स्थान नहीं बना पाए। परन्तु उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद राय के योगदान को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। राय राजनीतिक और दार्शनिक विषयों के सम्बन्ध में आधुनिक युग के महानतम लेखका में से थे। इस सन्दर्भ में डॉ. वर्मा का यह कथन सत्य है कि राय का भारतीय चिन्तन के इतिहास में एक व्याख्याकार और इतिहास के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान रहेगा और उनकी पुस्तक 'Reason, Romanticism and Revolution' पाश्चात्य चिन्तन के इतिहास में एक भारतीय लेखक का महत्त्वपूर्ण योगदान है।"

 

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