मैकियावली के राजनीतिक विचार

B. A. II, Political Science I

प्रश्न 8. मैकियावली के राजनीतिक विचारों का वर्णन कीजिए।

अथवा '' मैकियावली के मानव स्वभाव तथा नैतिकता सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर - मैकियावली ने जो कुछ लिखा, वह अपने देश इटली की तत्कालीन परिस्थितियों में इटली को एक सुदृढ़ राज्य बनाने की दृष्टि से लिखा था। उस समय इटली दुर्दशा की स्थिति में था। मैकियावली अपने देश की ओर से फ्रांस, रोम, जर्मनी आदि देशों में राजदूत भी रहा था, इसलिए उसके विचार व्यावहारिक भी हैं।

मैकियावली के दो प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं(1) The Prince, (2) The Discourses.

मैकियावली के राजनीतिक विचार

मैकियावली के मानव स्वभाव सम्बन्धी विचार-

मैकियावली मनुष्य को मावत: एक स्वार्थी प्राणी मानता है। मानव स्वभाव में बिल्कल भी अच्छाई नहीं है। उसके अनुसार मनुष्य कृतघ्न, चंचल, कपटी, कायर और लोभी होता है।

मैकियावली के मानव स्वभाव सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट करते हए लिखा है, "ह मनुष्य को दुर्बलता, मूर्खता तथा दुष्टता का सम्मिश्रण समझता था, जिन्हें प्रकृति के हाथ का खिलौना और निरंकुशता का शिकार बनने के लिए बनाया गया है।"

मैकियावली के राजनीतिक विचार

मैकियावली मनुष्य को पशु के समान मानता है। वह कहता है कि मानव स्वभाव पर भय के द्वारा ही नियन्त्रण सम्भव है, इसीलिए वह शासक को सलाह देता है कि वह भय का वातावरण रखे।

मानव स्वभाव की एक और विशेषता बताते हुए मैकियावली कहता है कि मनुष्य के पास जो कुछ होता है, वह न केवल सुरक्षित रखना चाहता है, वरन् । उससे भी अधिक प्राप्त करना चाहता है। मैकियावली के अनुसार राज्य मनुष्य की स्वार्थी प्रवृत्ति के ही कारण बना है। व्यक्ति आत्म-सुरक्षा और सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए राज्य के बन्धन स्वीकार करता है। इसलिए मैकियावली ने शासक को सलाह दी है कि उसे कभी भी मनुष्य की सम्पत्ति को नहीं छीनना चाहिए, भले ही उसके प्राण ले लिए जाएँ। इस सम्बन्ध में मैकियावली का कथन उल्लेखनीय है, "अपनी सम्पत्ति छीनने वाले की अपेक्षा एक व्यक्ति अपने पिता के हत्यारे को अधिक आसानी से क्षमा कर देता है।" ,

मानव स्वभाव को पापी, स्वार्थी और दुष्ट मानने के कारण ही मैकियावली ने शासक को सलाह दी है कि "मानव अपनी स्वयं की इच्छा से प्रेम करते हैं, परन्तु पशासक की इच्छा से भयभीत होते हैं। इसलिए बुद्धिमान शासक को भय का सहारा लेना चाहिए, जो उसकी शक्ति में है, न कि प्रेम का।"

मैकियावली के धर्म तथा नैतिकता सम्बन्धी विचार-

मैकियावली की एक महत्त्वपूर्ण देन यह है कि उसने राजनीति को नीतिशास्त्र से पृथक् कर दिया है। सदष्टि से भी वह आधुनिक युग का प्रथम विचारक है। मैकियावली से पहले पधाप अरस्तू ने भी धर्म एवं नैतिकता से राजनीति को पृथक् करने के लिए कलम चलाई थी, परन्तु यह उसके राजनीतिक दर्शन की कोई आधारभूत विशेषता नहीं थी। उसने क्रान्ति को दूर करने के उपायों के सम्बन्ध में धर्म व नैतिकता की उपेक्षा की। परन्तु मैकियावली वैज्ञानिक विश्लेषण के द्वारा यह बताता है कि यद्यपि नैतिकता सर्वश्रेष्ठ गुण है, फिर भी वह राजनीति के गुणों को प्रभावित नहीं कर सकता। गैटेल के शब्दों में, "मैकियावली का अपने पूर्वगामी लेखकों से मुख्य भेद यह था कि वह धर्म और नैतिकता के सम्बन्ध में उनकी धारणा को नहीं मानता था। उसने राजनीति और नैतिकता को एक-दूसरे से पृथक् कर दिया।" इन विचारों के कारण मैकियावली को बहुत ख्याति मिली।

नैतिकता के सम्बन्ध में मैकियावली का द्वैध सिद्धान्त-

मैकियावली केवल राज्य-हित को साध्य मानता है और अन्य बातों को केवल साधन। इसलिए वह अपने ग्रन्थ 'The Prince' और 'The Discourses' में नैतिकता की दोहरी विवेचना करता है

(1) शासन की नैतिकता, और

(2) नागरिकों के लिए नैतिकता।

मैकियावली के अनुसार शासन के लिए कोई भी बात नैतिक या अनैतिक नहीं है। नैतिक या अनैतिक कार्यों का सम्बन्ध केवल व्यक्ति के कार्यों से ही है। शासन का तो प्रत्येक कार्य नैतिक है। शर्त यह है कि वह कार्य राज्य को सफलता। प्रदान करता रहे।

इस सम्बन्ध में मैकियावली के शब्द उल्लेखनीय हैं, "साध्य साधन का औचित्य बताता है। इसलिए राजा का उद्देश्य विजय प्राप्त करना और राज्य को सुरक्षित रखना होना चाहिए। उसके साधन सदैव आदरणीय समझे जाएँगे और प्रत्येक व्यक्ति द्वारा उनकी प्रशंसा की जाएगी।"

'The Discourses' में भी मैकियावली ने ऐसा ही कहा है, "मेरा यह विश्वास है कि जब राज्य के अस्तित्व को खतरा हो, तब राज्य और गणतन्त्र को उसे बनाए रखने के लिए विश्वास तोड़कर कृतघ्न बन जाना चाहिए।" इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि मैकियावली शासक को हिंसा, निर्दयता, छल-कपट, क्रूरता, अविश्वास आदि सभी प्रकार के साधनों को प्रयोग करने की स्वतन्त्रता देता है, यदि उनसे राज्य की सुरक्षा, शान्ति और विस्तार होता है।

शासन के लिए नैतिकता-

मैकियावली ने कहा है कि जहाँ तक शासक के नैतिक गुणों का सम्बन्ध है, उसमें शेर और लोमड़ी के गुण होने चाहिए। इसका अर्थ यह है कि उसका आचरण समय विशेष पर शेर जैसा शक्तिशाली और समय विशेष पर लोमड़ी जैसा चालाक व धूर्त हो सकता है, क्योंकि मैकियावली के सामने राज्य की सुरक्षा व हित का विचार सर्वोपरि है, इसलिए वह इस मार्ग में नैतिक विचारों को बाधक नहीं बनने देना चाहता है। उसका कहना है कि राजा को ऊपर से दयालु, विश्वासी तथा धार्मिक होने का ढोंग करना चाहिए, परन्तु आवश्यकता पड़ने पर क्रूर, अविश्वासी तथा अधार्मिक बनने को तैयार रहना चाहिए। मैकियावली का कहना है कि शासक को शेर की तरह लोगों को भयभीत रखना चाहिए और परिस्थितियाँ विपरीत होने पर लोमडी बनने से भी नहीं हिचकना चाहिए।

नागरिकों के लिए नैतिकता

मैकियावली ने शासक को नैतिकता से परे रखा है, परन्तु उसने नागरिकों को सद्गुणी, कर्त्तव्यपरायण और आज्ञापालक होने का परामर्श दिया है। मैकियावली के शासक और नागरिकों के आचरण सम्बन्धी इस दोहरे सिद्धान्त को 'मैकियावलीवाद' कहा जाता है। मैकियावली ने कहा है कि शासक अच्छा हो या बुरा हो, नागरिकों को उसकी आज्ञा का पालन करना चाहिए । और राज्य के हितों के लिए अपने व्यक्तिगत हितों को छोड़ देना चाहिए। मैकियावली नागरिकों को अपने पड़ोसियों के साथ मित्रता रखने की सलाह देता है।

मैकियावली अनैतिक या अधार्मिक नहीं

मैकियावली के उपर्युक्त विचारों से यह नहीं समझना चाहिए कि वह स्वयं अनैतिक या अधार्मिक था। इस सम्बन्ध में डनिंग ने लिखा है, "मैकियावली अधार्मिक न होकर धर्मनिरपेक्ष है। वह अपनी राजनीति में अनैतिक न होकर नैतिकता निरपेक्ष है।"

वास्तविकता तो यह है कि मैकियावली नैतिक प्राणी था और उसने नैतिक समस्याओं में रुचि भी ली, परन्तु राष्ट्रप्रेम के कारण उसके लिए राज्य-हित सर्वोपरि था और उसकी प्राप्ति के लिए धर्म-अधर्म, नीति-अनीति आदि सभी साधनों को ठीक मानता है। मैकियावली कहता है "जब देश की सुरक्षा खतरे में हो, तब न्याय-अन्याय, उदारता-क्रूरता, गौरव-लज्जा का कोई विचार नहीं करना चाहिए।"

इस सम्बन्ध में मैक्सी का कथन उल्लेखनीय है, "राजनीतिशास्त्र और नीतिशास्त्र को पृथक करके और प्रस्ताव करके कि राज्य के संचालन में तात्कालिक उपयोगिता के नियम को मार्गदर्शक सिद्धान्त बनाया जाए, मैकियावली ने धृष्टता की, परन्तु यह राजनीतिशास्त्र के लिए एक अमूल्य सेवा हुई है।"

मैकियावली के आदर्श शासक सम्बन्धी विचार-

मैकियावली ने अपने ग्रन्थ The Prince' में राजनीतिक प्रश्नों पर यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। उसने बताया कि किसी व्यक्ति को किन उपायों से राज्य लेना चाहिए, किस प्रकार उसकी रक्षा करनी चाहिए और किस प्रकार उसका विस्तार करना चाहिए। अपने दूसर ग्रन्थ 'The Discourres' में भी उसने यह बताया है कि एक स्वतन्त्र नगर और गणराज्य किस प्रकार साम्राज्य का निर्माण कर सकता है। दोनों ग्रन्थों की सामग्री बहुत कुछ मिलती है, जैसा कि डॉ. मुरे  ने लिखा है, "डिसकोर्सेस में वर्णित सिद्धान्त के आधार पर 'दि प्रिन्स' शासकों के लिए निर्देश-पुस्तिका है।"

संक्षेप में, एक आदर्श शासक को निम्नलिखित सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए

(1) शेर और लोमड़ी का आचरण

मैकियावली ने शासकों को उपदेश देते हुए कहा है कि "नैतिकता की दृष्टि से उनमें शेर और लोमड़ी, दोनों के गुणों का समावेश होना चाहिए।" शासक को शेर की तरह लोगों को भयभीत रखना चाहिए। सामान्य परिस्थितियों में प्रजा को दिए गए वचनों का पालन करना चाहिए

और विपरीत परिस्थितियों में लोमडी बनने से नहीं हिचकना चाहिए और वचन से मुंह मोड़ लेना चाहिए। अतः शासक को चापलूस, खुशामदी और मूर्ख बनाने की कला में निपुण होना चाहिए।

(2) राजा का धर्म-

मैकियावली के अनुसार राजा को धर्म, नैतिकता जैसी कोई चीज नहीं बाँधती है, उसे तो ऊपर से ही धार्मिक होने का ढोंग करना चाहिए। शासन का तो एक ही कार्य है कि भय, शक्ति, लोभ आदि दिखाकर जनता का प्रेम प्राप्त करे।

(3) शासक को प्रजा की सम्पत्ति का अपहरण नहीं करना चाहिए

मैकियावली ने राज्य के हितों की सुरक्षा के लिए शासक को यह सलाह दी है कि वह प्रजा की सम्पत्ति को हाथ न लगाए, क्योंकि राज्य मनुष्य की स्वार्थी प्रवृत्ति, आत्म-रक्षा और सम्पत्ति की सुरक्षा के कारण बना है।

(4) पुरस्कारों का वितरण-

मैकियावली का कथन है कि प्रजा को प्रसन्न करने वाले पुरस्कारों तथा उपाधियों का वितरण राजा को स्वयं करना चाहिए, ताकि वह जनता में लोकप्रिय हो।

(5) युद्ध और सेना-

युद्ध और सेना के सम्बन्ध में शासक को परामर्श देते हुए मैकियावली का कथन है कि राज्य की सुदृढ़ता और निरन्तर विस्तार के लिए उसे सतत् जागरूक रहना चाहिए। उत्तम चरित्र वाले, सुप्रशिक्षित और अनुशासित सैनिकों के माध्यम से राज्य-विस्तार और राज्य की सुरक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए शासक को साम्राज्य निर्माण के प्रति विशेष ध्यान देना चाहिए।

शासन सम्बन्धी विचार-

मैकियावली शासन पद्धतियों के वर्गीकरण में अरस्तू का अनुसरण करता है। उसके अनुसार सरकार के तीन शुद्ध और तीन अशुद्ध रूप होते हैं। शद्ध रूप हैं-राजतन्त्र, कुलीन तन्त्र और गणतन्त्र तथा अशुद्ध रूपों के अन्तर्गत आते हैं-अधिनायक तन्त्र, वर्ग तन्त्र और भीड़ तन्त्र या लोकतन्त्र। उसकी पुस्तक The Prince' के अध्ययन से ध्वनित होता है कि वह राजतन्त्र का कट्टर समर्थक है। लेकिन यह बात सही नहीं है, क्योंकि उसके अनुसार शासन के स्वरूप की उपयोगिता विभिन्न सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों में भिन्न प्रकार की होती है। 'The Prince' में राजतन्त्र के समर्थन का मुख्य कारण उसका यह विश्वास था कि निरंकुश राजतन्त्र ही इटली की तात्कालिक परिस्थितियों के लिए सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था हो सकती थी।

मैकियावली के अनुसार जिस समाज में आर्थिक समानता होती है, वहाँ गणतन्त्र सफल शासन व्यवस्था सिद्ध होती है। उसका मत है कि गणतन्त्र में सम्पूर्ण जनता संगठित होकर शासन संचालन में भाग ले सकती है और शासन संचालन की कला में प्रशिक्षित होती है। साथ ही गणतन्त्र में सत्ता परिवर्तन सरलता से होता है।

मैकियावली कुलीन तन्त्र से घृणा करता है, क्योंकि इसमें शासक वर्ग हमेशा जन-साधारण के हितों की उपेक्षा करता है। शासन व्यवस्थाओं के सम्बन्ध में उसके दृष्टिकोण को इन शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है, "जहाँ सम्भव हो, वहाँ गणतन्त्रात्मक व्यवस्था स्थापित की जानी चाहिए और जहाँ आवश्यक हो, वहाँ राजतन्त्रात्मक व्यवस्था, परन्तु कुलीनतन्त्रीय व्यवस्था कहीं भी नहीं।"

मैकियावली के उपर्युक्त विचारों के कारण डनिंग ने उसे 'पहला आधुनिक राजनीतिक दार्शनिक' कहा है। नि:सन्देह वह राष्ट्रीय, सर्वशक्तिमान और धर्मनिरपेक्ष राज्य की कल्पना करने वाला प्रथम विचारक था। कोकर के मतानुसार मैकियावली को प्रथम आधुनिक राजनीतिक विचारक इसलिए कहा जाता है क्योंकि उसने धर्म की सच्चाई की उपेक्षा की और धर्मनिरपेक्ष अनुभव तथा मानवीय त्रुटि को अपने विचार का आधार बनाया।

 


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