भारत में पंचायती राज व्यवस्था
प्रश्न 16. भारत में पंचायती राज व्यवस्था पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर - भारत में पंचायत व्यवस्था अत्यधिक प्राचीन संस्था है। प्राचीन पंचायत व्यवस्था का स्वरूप गाँवों में कुछ प्रमुख व्यक्तियों को पंच बनाकर सामाजिक समस्याओं के निदान करने तक सीमित था। अंग्रेजों के शासन ने उस पंचायत व्यवस्था को नष्टप्राय कर दिया। कांग्रेस के प्रस्तावों एवं तत्कालीन बुद्धिजीवियों ने पंचायत व्यवस्था को भारत की ग्राम्य व्यवस्था के लिए उपयोगी बताया। स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात् राज्यों की सरकारों ने पंचायतों की स्थापना पर विशेष ध्यान दिया है। इसके प्रारम्भ का श्रेय पं. जवाहरलाल नेहरू को है। नेहरूजी का मानना था कि "गाँव के लोगों को अधिकार सौंपना चाहिए। उनको काम करने दो, चाहे वे हजारों गलतियाँ करें। इससे घबराने की जरूरत नहीं। पंचायतों को अधिकार दो।"
तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं.
जवाहरलाल नेहरू ने भारत के ग्रामीण विकास में नागरिकों की सहभागिता के लिए
अमेरिका के 'ब्लॉक मॉडल' पर आधारित सामुदायिक
विकास कार्यक्रम सन् 1952 में प्रारम्भ किया। किन्तु यह कार्यक्रम सरकारी
तन्त्र तथा जनता के बीच की दूरी कम करने में असफल रहा। इस कार्यक्रम की असफलता की जाँच
हेतु बलवन्त राय मेहता की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई। इस समिति ने सन्
1957 के अन्त में अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की कि लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण और
सामुदायिक विकास कार्यक्रमों को सफल बनाने हेतु पंचायत राज संस्थाओं की तुरन्त शुरुआत
की जानी चाहिए। अध्ययन दल ने इसे 'लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण' का नाम दिया।
बलवन्त राय मेहता
समिति ने लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण की जो योजना प्रस्तुत की थी, उसमें तीन प्रकार
की संस्थाओं की स्थापना पर बल दिया गया था
(1) ग्राम स्तर पर ग्राम सभा, ग्राम पंचायत तथा
न्याय पंचायत,
(2) ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति, तथा
(3) जिला स्तर पर जिला
परिषद्।
(1) ग्राम स्तर पर पंचायती राज व्यवस्था के तीनों अंगों
को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
(i) ग्राम सभा—
जिस गाँव की जनसंख्या कम-से-कम
250 होती है, उस गाँव में ग्राम सभा की स्थापना की जाती है। यदि किसी गाँव की जनसंख्या
250 से कम होती है, तो उसके पास के गाँव को भी सम्मिलित कर लिया जाता है। परन्तु इनमें किसी प्रकार
की प्राकृतिक बाधा (जैसे नदी, पहाड़ आदि) नहीं होनी चाहिए। कोई भी व्यक्ति, जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे ऊपर
है, ग्राम सभा का सदस्य हो सकता है। ग्राम सभा का कार्यकाल 5 वर्ष है, परन्तु सरकार एक
वर्ष तक इसकी अवधि बढ़ा सकती है। गाँव के विकास और प्रगति की योजना बनाना ग्राम
सभा का प्रमुख कार्य है।
(ii) ग्राम पंचायत
ग्राम पंचायत ग्राम सभा की कार्यकारिणी होती
है। इसका चुनाव ग्राम सभा के सदस्यों में से होता है। प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक
प्रधान तथा 9 से लेकर 15 तक सदस्य होते हैं। ग्राम पंचायत का संगठन 5 वर्ष के लिए होता है। विशेष परिस्थितियों में इसके
कार्यकाल को एक वर्ष के लिए और बढ़ाया जा सकता है। ग्राम पंचायतें ग्रामों के स्थानीय
स्वशासन की प्रमुख इकाई हैं। ग्राम पंचायतें ग्रामीण क्षेत्रों में शासन प्रबन्ध, शान्ति और सुरक्षा
से सम्बन्धित कार्य करती हैं।
(iii) न्याय पंचायत या पंचायती अदालत-
न्याय पंचायत (पंचायती
अदालत) को ग्राम पंचायत की न्यायपालिका कहा जा सकता है। इसकी स्थापना
का मूल उद्देश्य जनता को सुविधापूर्ण तथा सस्ती न्याय प्रणाली प्रदान करना है। न्याय
पंचायत दीवानी और माल के छोटे मुकदमे सुनती है। प्राय: तीन से लेकर पाँच ग्राम पंचायतों
के लिए एक न्याय पंचायत की स्थापना की जाती है। इसके 10 से 25 तक सदस्य होते हैं।
पाँच पंच मिलकर सरपंच और उप-सरपंच का चुनाव करते हैं। न्याय पंचायत का संगठन 5 वर्ष के लिए होता
है।
(2) पंचायत समिति—
पंचायती राज व्यवस्था में प्रत्येक खण्ड के प्रशासन के लिए एक पंचायत समिति होती है। पंचायत समिति में
साधारणतया उससे सम्बन्धित ग्राम पंचायतों के प्रमुख उसके सदस्य होते हैं। कुछ सदस्य
महिलाओं, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों से भी मनोनीत किए जा सकते हैं। इसके सदस्यों
का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। पंचायत समिति में एक प्रधान तथा दो उप-प्रधान
होते हैं। प्रधान का चुनाव निर्वाचक मण्डल द्वारा किया जाता है। पंचायत समिति के प्रमुख
कार्य निम्न प्रकार हैं—सामुदायिक विकास, कृषि, पशुपालन, स्वास्थ्य एवं ग्राम सफाई, शिक्षा, समाज शिक्षा, संचार साधनों का विकास, सहकारिता, कुटीर उद्योगों का विकास, पिछड़े वर्गों का उत्थान, न्याय सम्बन्धी कार्य
आदि।
(3) जिला परिषद्-
जिला परिषद् पंचायत समिति और ग्राम पंचायतों तथा दूसरी ओर राज्य सरकार के बीच कड़ी का काम
करती हैं। प्रत्येक जिले में एक जिला परिषद् की व्यवस्था की गई है। इसका चुनाव भी पंचायत
समिति के समान अप्रत्यक्ष रीति से होता है। इसके सदस्यों का निर्वाचन 5 वर्ष के लिए होता
है। जिला परिषद् का कार्यकाल 5 वर्ष है। इसकी बैठक तीन महीने में एक बार होनी चाहिए, वैसे आवश्यकतानुसार
कभी भी बुलाई जा सकती है। जिला परिषद् के प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं-पंचायत समितियों
के विकास कार्यक्रमों एवं योजनाओं में समन्वय स्थापित करना, राज्य सरकार से प्राप्त
अनुदान वितरित करना, पंचायत समितियों के कार्यों का निरीक्षण करना तथा उनकी प्रगति की सूचना राज्य सरकार
को देना आदि।
ग्राम विकास में पंचायती राज
व्यवस्था का महत्त्व ( योगदान)
अथवा
ग्रामीण भारत के पुनर्निर्माण
में पंचायती राज व्यवस्था की भूमिका
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात्
पंचायतों के पुनर्गठन के पीछे सत्ता के विकेन्द्रीकरण का विचार एवं ग्रामवासियों को
अपना विकास स्वयं करने के लिए व स्वयं निर्णय लेने योग्य बनाना है। ऐसा अनुभव किया
गया कि इन दृष्टिकोणों से पंचायती राज ग्रामीण विकास एवं ग्रामीण पुनर्निर्माण में
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। साथ ही यह प्रजातन्त्र को सुदृढ़ बनाने में भी सहायक
है, क्योंकि इससे ग्रामवासियों में राजनीतिक चेतना में वृद्धि हुई है तथा इससे राष्ट्र-निर्माण
एवं राष्ट्रवाद की भावनाएँ विकसित हुई हैं। यद्यपि पंचायती राज अपने उद्देश्यों की
प्राप्ति में पूर्ण रूप से सफल नहीं रहा है, तथापि राजनीतिक चेतना लाने की दृष्टि से इसका भारतीय
समाज में अत्यन्त महत्त्व है। भारतीय प्रजातान्त्रिक व्यवस्था को इससे स्थायित्व मिला
है। स्थानीय समस्याओं को स्थानीय स्तर पर ही निपटाने की भी प्रेरणा मिली है। इस प्रकार
ग्रामीण विकास एवं ग्रामीण पुनर्निर्माण में पंचायती राज की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण
रही है। इसके महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
(1) शिक्षा का विकास
ग्रामीण समाज में शिक्षा संस्थाओं
की स्थापना करना तथा ग्रामवासियों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना ग्राम पंचायतों का
मुख्य कार्य है।
(2) स्वास्थ्य व्यवस्था
ग्रामीण पंचायतों का एक और महत्त्वपूर्ण
कार्य ग्रामवासियों के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करना तथा प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ
उपलब्ध कराना है, जिससे ग्रामवासियों के स्वास्थ्य स्तर को उन्नत बनाया जा सके।
(3) कृषि सुधार—
ग्राम पंचायतों का महत्त्व इससे
भी स्पष्ट हो जाता है कि ये न केवल ग्रामवासियों को कृषि की आधुनिक एवं नवीन पद्धतियों
से परिचित कराती हैं, वरन् उन्हें कृषि की आधुनिक पद्धतियों से कृषि कार्य करने के लिए प्रेरित भी करती
हैं।
(4) लघु उद्योगों की स्थापना
ग्रामीण समाज के आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से ग्राम
पंचायतें गाँवों में लघु उद्योगों को स्थापित करने के लिए विकसित प्रौद्योगिकी से ग्रामवासियों
को परिचित कराती हैं तथा उन्हें इस दिशा में प्रोत्साहित भी करती हैं।
(5) पशुपालन–
पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था
का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। ग्राम पंचायतें उन्नत नस्ल के पशुओं की व्यवस्था करती हैं।
इसके लिए कृत्रिम गर्भाधान केन्द्रों की स्थापना तथा पशु खरीदने के लिए ऋण की भी व्यवस्था
करती
(6) भूमिहीन कृषकों की समस्या का निराकरण
ग्रामीण समाज में अनेक ऐसे लोग
भी निवास करते हैं जिनके पास कृषि योग्य भूमि का नितान्त अभाव होता है। ऐसे लोगों के
लिए आय की व्यवस्था करना इन पंचायतों का प्रमुख कार्य
(7) यातायात की व्यवस्था
ग्राम पंचायतें गाँवों को शहर
से जोड़ने का भी कार्य करती हैं। इसके लिए पंचायतें सड़कों का निर्माण तथा यातायात
के साधनों का भी प्रबन्ध करती हैं।
(8) मनोरंजन
मनोरंजन जीवन का एक अनिवार्य अंग है। ग्राम पंचायतें
ग्रामीणों के मनोरंजन की भी व्यवस्था करती हैं; जैसे-खेलकूद का आयोजन करना, मेले लगाना, रेडिया-टेलीविजन
आदि की व्यवस्था करना।
(9) मातृत्व तथा बाल-कल्याण
ग्राम पंचायतों का एक और महत्त्वपूर्ण कार्य गर्भवती
महिलाओं के लिए समुचित चिकित्सा व्यवस्था करना है। इसके अतिरिक्त शिशु कल्याण के लिए
टीकाकरण आदि की व्यवस्था भी पंचायतें करती
(10) सामाजिक कुरीतियों का निराकरण-
भारतीय ग्रामीण समाज अनेक प्रकार की कुरीतियों तथा अन्धविश्वासों से ग्रस्त है; जैसे-बाल-विवाह, दहेज प्रथा, नशा, पर्दा प्रथा, विधवा विवाह पर प्रतिबन्ध, बालक तथा बालिका
में भेदभाव करना आदि। ग्राम पंचायतें इनके निराकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती
(11) सार्वजनिक कल्याण कार्य-
सार्वजनिक कल्याण की दृष्टि
से ग्राम पंचायतें अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं । इस दृष्टि से पंचायतों के निम्नलिखित
कार्य हैं
(i ) पेयजल की व्यवस्था,
(ii) मनोरंजन के साधनों (मेले, प्रदर्शनियाँ, खेलकूद, वाचनालय आदि) का
प्रबन्ध,
(iii) प्राकृतिक प्रकोपों की रोकथाम में सहायता,
(iv) चिकित्सा सुविधाएँ व सामाजिक स्वास्थ्य में सुधार, तथा
(v) यातायात के साधनों (नई सड़कें, टूटी-फूटी सड़कों
की मरम्मत, प्रकाश की व्यवस्था आदि) का विकास।
(12) राजनीतिक कार्य
राजनीतिक दृष्टि से भी ग्राम
पंचायतें ग्रामीण पुनर्निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। इस दृष्टि से इनका
महत्त्व निम्न प्रकार है
(i). ग्रामीण नेतृत्व का विकास,
(ii) ग्रामवासियों में राजनीतिक चेतना का विकास,
(iii) ग्रामवासियों में राजनीतिक सहभागिता में वृद्धि,
(iv) ग्रामवासियों का राजनीतिक समाजीकरण,
(v) ग्राम स्तर पर शीघ्र व सस्ता न्याय दिलाना, तथा
(vi) नागरिकता का प्रशिक्षण
देना।
(13) न्यायिक कार्य
सामाजिक न्याय के क्षेत्र में
पंचायतें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य कर रही हैं। पंचायतों द्वारा अस्पृश्यता, जातिवाद और शोषण
से मुक्ति हेतु निरन्तर प्रयास किए जा रहे हैं। कमजोर वर्गों को सुरक्षा प्रदान करने
में भी ग्राम पंचायतें प्रभावशाली भूमिका निभा रही हैं।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट
है कि ग्रामवासियों में राजनीतिक तथा प्रजातान्त्रिक चेतना जाग्रत करने में
पंचायती राज संस्थाओं का अपूर्व योगदान रहा है।
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