संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना एवं उद्देश्य

B. A. III, Political Science III

प्रश्न 15. संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न अंगों पर एक निबन्ध लिखिए।

अथवा '' संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना एवं उद्देश्यों का सविस्तार वर्णन कीजिए।

उत्तर - सन् 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ हो गया था, जो प्रथम विश्व युद्ध से अधिक भयंकर तथा विनाशकारी था। द्वितीय विश्व युद्ध से बड़े-बड़े राष्ट्र भी घबरा उठे, क्योंकि इसमें जन-धन की बहुत हानि हो चुकी थी। विज्ञान के नवीन आविष्कारों; जैसे- मशीनगन तथा परमाणु बम से लड़े गए युद्ध से हुए विनाश ने जन-सामान्य को भयभीत कर दिया था। अतः मानव सभ्यता के विनाश को रोकने के लिए विश्व के राष्ट्रों ने विश्व-शान्ति तथा सुरक्षा के लिए एक स्थायी विश्व संगठन की स्थापना हेतु सजग तथा सामूहिक प्रयास आरम्भ किए। ऐसे विश्व संगठन के निर्माण के लिए सन 1941 से ही विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में विचार किया गया और इस प्रकार सन् 1945 में दो माह तक चले सेन फ्रांसिस्को सम्मेलन में 10,000  शब्दों वाले एक मसविदे पर 50 राज्यों ने हस्ताक्षर करके संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की। 24 अक्टूबर, 1945 तक विश्व के सभी बड़े राष्ट्रों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र को स्वीकार कर लिया। 24 अक्टूबर ही संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थापना दिवस माना जाता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना एवं उद्देश्य

संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय न्यूयॉर्क में है। वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 राष्ट्र सदस्य हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य 

संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर की प्रस्तावना में इसका उद्देश्य निम्न प्रकार से वर्णित किया गया है---

"हम संयुक्त राष्ट्रों की जनता ने यह निश्चय किया है"

"भावी पीढ़ियों को उस युद्ध की पीड़ा और कष्टों से बचाने का जिसके कारण हमारे जीवन में दो बार मानव जाति को अपार दुःख भोगना पड़ा।

आधारभूत मानवीय अधिकारों, मानव प्रतिष्ठा और महत्त्व, स्त्री-पुरुषों तथा छोटे-बड़े राष्ट्रों के समान अधिकारों में अपनी निष्ठा की पुन: पुष्टि करने का और ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करने का जिनसे सन्धियों एवं अन्य अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के अन्तर्गत आने वाले उत्तरदायित्वों के प्रति न्याय और सम्मान का दृष्टिकोण गहन किया जा सके।"

और अधिक विस्तृत स्वक्तलाके वातावरण में सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने तथा जीवनयापन के अधिक उनममानदण्ड स्थापित करने का।"

और इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए सहिष्णुता बरतने, अच्छे पड़ोसी की तरह एक-दूसरे के साथ शान्तिपूर्वक रहने।" __

और अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा की स्थापना हेतु अपनी शक्ति को एकजुट करने ।

और सिद्धान्तों एवं कार्य-प्रणाली का निर्धारण कर इस बारे में पूर्ण आश्वस्त होने का कि व्यापक और समान हित को छोड़कर अन्य किसी परिस्थिति में सशस्त्र सेनाओं का उपयोग नहीं किया जाएगा।"

और समस्त संसार के निवासियों को आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति के पथ पर उन्मुख रखने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय प्रणाली का उपयोग किया जाएगा।"

इसी के अनुसार, “हमारी अपनी सरकारें संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्तमान चार्टर से सहमत हो गई हैं तथा इसके द्वारा एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन स्थापित करती हैं, जो संयुक्त राष्ट्र संघ कहलाएगा।

संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के प्रथम अनुच्छेद में इसके उद्देश्यों का वर्णन इस प्रकार किया गया है--

अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा स्थापित करना; राष्ट्रों के बीच जन-समुदाय के लिए समान अधिकारों तथा आत्म-निर्णय के सिद्धान्त पर आधारित मित्रतापूर्ण सम्बन्धों का विकास करना; आर्थिक, सामाजिक अथवा मानव जाति के लिए प्रेम आदि अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना तथा इस सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए राष्ट्रों के कार्यों को समन्वित करने के उद्देश्य से एक केन्द्र का कार्य करना।"

संक्षेप में,संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं

(1) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के विरोधी तत्त्वों को रोकना और सामूहिक रूप में ऐसे कार्य करना जिनसे विश्व में शान्ति स्थापित हो सके।

(2) अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाना। -

(3) राष्ट्रों के मध्य मैत्री सम्बन्धों को बढ़ाने के लिए उचित कदम बढ़ाना ।

(4) आर्थिक, सामाजिक तथा अन्य मानवतावादी समस्याओं के समाधान में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना।

(5) अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राष्ट्रों के कार्यों में उचित सामंजस्य स्थापित करना।

संयुक्त राष्ट्र संघ के अंग

संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख अंग निम्न प्रकार हैं

(1) साधारण सभा (General Assembly) -

साधारण सभा में संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य आते हैं। प्रत्येक सदस्य राष्ट्र को यह अधिकार है कि साधारण सभा के अधिवेशन के समय अपने 5 प्रतिनिधि भेज सकता है। प्रत्येक सदस्य राष्ट्र को केवल एक वोट देने का अधिकार होता है। इस सभा को अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सहयोग स्थापित करने तथा निःशस्त्रीकरण के सम्बन्ध में व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं। यदि विश्व की किसी घटना से अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति के भंग होने का खतरा हो.तो वह सुरक्षा परिषद् का ध्यान उस ओर आकर्षित करती है। साधारण सभा आर्थिक एवं सामाजिक परिषद के सदस्यों का तथा संरक्षण परिषद् के गैर-सरकारी सदस्यों का भी निर्वाचन करती है। सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर यह संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य सचिव की नियुक्ति करती है। साधारण सभा तथा सुरक्षा परिषद् मिलकर अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों का निर्वाचन करते हैं। मुख्य सचिव वार्षिक रिपोर्ट भी 'साधारण सभा में ही प्रस्तुत करता है,समस्त संस्था का बजट भी यह सभा ही स्वीकार करती है।

(2) सुरक्षा परिषद् (Security Council)-

सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यकारिणी कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा का दायित्व इसी का है। स्थापना के समय सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी एवं 6 अस्थायी, कुल 11 सदस्य थे। परन्तु सितम्बर, 1965 में संशोधन द्वारा सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी और 10 अस्थायी, कुल 15 सदस्य कर दिए गए। अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं।

सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यपालिका के रूप में कार्य करती है । संघ के चार्टर के 24वें अनुच्छेद के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा बनाए रखना सुरक्षा परिषद् का प्रमुख कार्य है। यह परिषद पहले समस्या को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाने का प्रयत्न करती है,बाद में अपने अधिकारों का प्रयोग करती है।

(3) आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् (Economic and Social Council)-

 यह परिषद् साधारण सभा के अधीन है। यह परिषद् अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक, संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य और इनसे सम्बन्ध रखने वाले अन्य विषयों पर विचार करती है। प्रारम्भ में इस परिषद् में 18 सदस्य होते थे। सन् 1966 में चार्टर में संशोधन द्वारा सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 27 कर दी गई। तत्पश्चात् सन् 1973 में पुन: एक संशोधन किया गया और इस संशोधन के अनुसार अब परिषद् में सदस्यों की संख्या बढ़कर 54 हो गई है। यह एक स्थायी संस्था है, परन्तु इसके 1/3 सदस्य प्रतिवर्ष अवकाश ग्रहण करते रहते हैं। इस प्रकार प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 3 वर्ष होता है, परन्तु अवकाश ग्रहण करने वाला सदस्य पुनर्निर्वाचित हो सकता है। परिषद में प्रत्येक सदस्य राज्य का एक प्रतिनिधि होता है । इस परिषद् ने निम्नलिखित आयोगों का गठन किया है-

(i) आर्थिक और व्यावसायिक आयोग,

(ii) परिवहन एवं संचार आयोग,

(ii) मानव अधिकार आयोग,

(iv) सांख्यिकीय आयोग

(v) सामाजिक आयोग,

(vi) महिला आयोग,

(vii) मादक द्रव्य आयोग.

(viii) अपराध नियन्त्रण और अपराध न्याय आयोग, तथा

(ix) जनसंख्या एवं विकास आयोग।

(4) संरक्षण परिषद् (Trustecship Council)-

जिन देशों ने उस समय तक स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं की थी,उनके प्रबन्ध के लिए संरक्षण परिषद् की स्थापना की गई थी। आज्ञा-पत्र में दो मुख्य सिद्धान्तों की घोषणा की गई थी-प्रथम, संरक्षित प्रदेशों के निवासियों के हित का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाएगा और दूसरा, जिनके हाथों में इन प्रदेशों के संरक्षण का भार होगा, उनके सम्मुख विशेष कर्त्तव्य होंगे, जिनका उनको पालन करना होगा। ये कर्त्तव्य सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और शिक्षा सम्बन्धी हैं। संरक्षित प्रदेशों की उन्नति का सदैव ध्यान रखा जाएगा। संरक्षक राष्ट्र सदस्यों को अपने कार्यों की रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव को देते रहना होगा। इन रिपोर्टों को साधारण सभा और अन्य सम्बन्धित विभागों में प्रस्तुत किया जाएगा.' जिससे प्रत्येक राष्ट्र को इनके सम्बन्ध में पूरी-पूरी जानकारी प्राप्त हो जाए। यह परिषद उन रिपोर्टों पर विचार करती है जो शा पन प्रबन्ध करने वाले राष्ट्र संरक्षित प्रदेशों के सम्बन्ध में भेजते हैं। संरक्षण परिषद् को उनके शासन प्रबन्ध का निरीक्षण करने का भी अधिकार प्राप्त है और यह उनको समय-समय पर आवश्यक सुझाव दे सकती है. जो उनको मानने होते हैं।

(5) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice)- 

अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र संघ की कानूनी संस्था है। इसमें 15 न्यायाधीश होते हैं, जिनका निर्वाचन साधारण सभा और सुरक्षा परिषद् करती है। किसी भी राष्ट्र के दो न्यायाधीश नहीं हो सकते। यह न्यायालय अन्य विभागों को विधि सम्बन्धी परामर्श भी देता है । यह न्यायालय हेग (नीदरलैण्ड्स) में स्थित है।

अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के समक्ष सिर्फ वही विवाद आ सकते हैं जो कि राज्यों द्वारा स्वेच्छा से प्रस्तुत किए जाते हैं। राज्यों के निम्नांकित विवाद इस न्यायालय में प्रस्तुत किए जाते हैं

(i) अन्तर्राष्ट्रीय कानून से सम्बन्धित विवाद का कोई भी प्रश्न ।

(ii) किसी समझौते या सन्धि का अर्थ स्पष्ट करना ।

(iii) अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वों को भंग करने पर क्षतिपूर्ति निश्चित करना।

विवादों का समाधान अन्तर्राष्ट्रीय कानून के आधार पर किया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय ने अनेक पेचीदे मामलों को निपटाकर अपनी उपयोगिता सिद्ध की है।

(6) सचिवालय (Secretariat)-

सचिवालय की स्थापना तथा उसके कार्यों का वर्णन संघ के चार्टर के 15वें अध्याय में अनुच्छेद 97 से 101 तक किया गया है। महामन्त्री इसका प्रमुख अधिकारी या सर्वेसर्वा होता है। महामन्त्री की नियुक्ति हेत सुरक्षा परिषद् तथा महासभा की संस्तुति होती है । महामन्त्री का यह उत्तरदायित्व होता है कि वह संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों की वार्षिक रिपोर्ट साधारण सभा या महासभा में प्रस्तुत करे। इसके लिए वह साधारण सभा, सुरक्षा परिषद, संरक्षण परिषद, आर्थिक तथा सामाजिक परिषद् आदि की बैठकों में भाग लेता है तथा इनके कार्यों की समीक्षा करके अपनी रिपोर्ट तैयार करता है । महासचिव को यदि ऐसा आभास हो जाए कि अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ तनावपूर्ण हैं तथा विश्व-शान्ति खतरे में है,तो वह तुरन्त ही महासभा को इसकी जानकारी देकर उसका ध्यान इस ओर खींचता है।

अपने सचिवालय की मापना करने के लिए महामन्त्री महासभा द्वारा निर्दिष्ट नियमों के अनुसार सचिवालय के अधिकारियों एवं अन्य कर्मचारियों को निगचित वारता है। इन सभी सचिवालय सदस्यों को संयक्त राष्ट्र संघ के प्रति पूर्ण निवास काय करना होता है तथा संघ के प्रति स्वामिभक्ति की शपथ भी लेनी होता है। सचिवालय के आठ अंग है जो क्रमशः सामाजिक कार्य, आर्थिक कार्य, न्यास कार्य सुरक्षा सम्बन्धी कार्य जन सचना व सम्पर्क सम्मेलन तथा सामान्य सेवाए, वैधानिक तथा प्रशासकीय सेवाएं आदि अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए उत्तरदायी होते हैं।

 

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