फ्रांस का संविधान

B. A. II, Political Science II 

प्रश्न 17. फ्रांस के पंचम गणतन्त्र के संविधान की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर - फ्रांस के वर्तमान संविधान की रचना सन् 1958 में हुई थी। इसे जनरल दि गॉल के नेतृत्व एवं निर्देशन में निर्मित किया गया था। इसे चतुर्थ गणतन्त्र के सन् 1946 के संविधान के स्थान पर लागू किया गया। इस संविधान ने देश को स्थायित्व प्रदान किया और फ्रांस तेजी से शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरने लगा।

फ्रांस के पंचम गणतन्त्र के संविधान की विशेषताएँ

फ्रांस के पंचम गणतन्त्र के संविधान की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं

(1) लिखित संविधान

विश्व के अन्य देशों के संविधान की भाँति फ्रांस का संविधान भी लिखित एवं निर्मित है, जिसमें 95 धाराएँ थीं। इसमें धारा 90 से लेकर धारा 95 तक संक्रमणकालीन प्रावधान के रूप में थीं। संक्रमणकालीन प्रावधान से जुड़ी इन धाराओं के अब अप्रासंगिक हो जाने के कारण वर्ष 2002 में इन धाराओं को संविधान से हटा दिया गया है। इस प्रकार अब फ्रांस के संविधान में 89 धाराएँ तथा 16 अध्याय हैं । यह सन् 1946 के संविधान से संक्षिप्त, किन्तु अमेरिका के संविधान से कहीं अधिक बड़ा है। फिर भी अनेक महत्त्वपूर्ण बातों को संविधान की परिधि से बाहर रखा गया है। निर्वाचन कानून, संसद के दोनों सदनों के गठन, विधि-निर्माण प्रक्रिया आदि के सम्बन्ध में संविधान पूरी तरह मौन है। इन मूलभूत प्रश्नों का संविधान में उल्लेख न होना उसकी अपूर्णता ही कही जा सकती है

france ke pancham gantantra ki visheshta in hindi

(2) कठोर संविधान-

फ्रांस के पंचम गणतन्त्र का संविधान एक कठोर 'संविधान है। इसमें संशोधन की प्रक्रिया जटिल है । संविधान के अनुच्छेद 89 के अनसार संविधान में दो प्रकार से संशोधन किया जा सकता है। प्रथम, संविधान में संशोधन का प्रस्ताव संसद के सदस्यों द्वारा अथवा प्रधानमन्त्री की सिफारिश पर गणतन्त्र के राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है। यदि संसद के दोनों सदन उसे एक ही रूप में साधारण बहुमत से पारित कर देते हैं, तो उसे जनमत संग्रह के लिए मतदाताओं के पास भेज दिया जाता है। यदि जनमत संग्रह के द्वारा संशोधन विधेयक का अनुमोदन हो जाता है

तो वह संविधान का अंग बन जाता है। दूसरा वैकल्पिक तरीका यह है कि राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन में संशोधन प्रस्तावित कर सकता है, जिसको सदन में उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के 3/5 बहुमत से पारित किया जाए। संविधान में कुछ प्रावधान ऐसे भी हैं जिनमें संशोधन नहीं किया जा सकता। इस दृष्टि से फ्रांस के पंचम गणतन्त्र का संविधान निश्चय ही एक कठोर संविधान है।

(3) एक लोकतान्त्रिक गणराज्य-

भारत तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की भाँति फ्रांस भी एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है। वहाँ की सरकार पूरी तरह लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर आधारित है। प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में निर्मित मन्त्रिमण्डल संसद के निम्न सदन, प्रतिनिधि सदन के प्रति उत्तरदायी होता है। प्रतिनिधि सदन के सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं । संविधान के अनुच्छेद 2 में 'जनता का, जनता के लिए तथा जनता द्वारा शासन' के सिद्धान्त को स्वीकार किया गया है। राज्य का सर्वोच्च पदाधिकारी राष्ट्रपति जनता द्वारा निर्वाचित होता है। उसका कार्यकाल निश्चित होता है तथा संविधान को अवहेलना करने के आरोप में उसे अपदस्थ किया जा सकता है। फ्रांस के संविधान में संशोधन हेतु जनमत संग्रह की व्यवस्था करके संविधान में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के उपकरणों का समावेश करने का प्रयास किया गया है।

(4) धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना-

प्राचीन काल में फ्रांस की राजनीति में धर्म की विशेष भूमिका रहती थी। किन्तु 1789 ई.की क्रान्ति के पश्चात् धर्म तथा राजनीति को एक-दूसरे से पृथक कर दिया गया। पंचम गणतन्त्र के संविधान के अनुच्छेद 2 में फ्रांस को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। भारत की तरह फ्रांस में भी कोई भी धर्म अपनाने की पूर्ण स्वतन्त्रता है और किसी भी धर्म को राज्य धर्म घोषित नहीं किया गया है। परन्तु राज्य धर्म विरोधी नहीं है, यह सभी धर्मों का आदर करता है।

(5) लोकप्रिय सम्प्रभुता पर आधारित-

फ्रांस का संविधान लोकप्रिय सम्प्रभुता के सिद्धान्त पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि संविधान की शक्ति का स्रोत जनता है । संविधान में स्वतन्त्रता, समानता तथा बन्धुत्व की भावना को स्थान प्रदान किया गया है। संविधान में यह भी उल्लेख कर दिया गया है कि सरकार जनता की होगी, जनता द्वारा चलाई जाएगी और जनता के हित के लिए ही कार्य करेगी। संविधान के अनुच्छेद 3 में यह स्पष्ट किया गया है कि सम्प्रभुता जनता में निहित है और जनता अपनी इस शक्ति का प्रयोग अपने प्रतिनिधियों द्वारा अथवा जनमत संग्रह के द्वारा करेगी।

(6) शक्तिशाली कार्यपालिका

 वर्तमान संविधान में यद्यपि सैद्धान्तिक रूप से संसदीय सरकार को अपनाया गया है, किन्तु व्यवहार में कार्यपालिका शक्तिशाली है। कार्यपालिका का प्रमुख राष्ट्रपति होता है, जो एक निर्वाचक मण्डल द्वारा 5 वर्ष के लिए चुना जाता है। उसे आपातकालीन शक्तियों को धारण करने का भी अधिकार है, यदि उसको यह जानकारी मिले कि गणतन्त्र की संस्थाओं की। स्वतन्त्रता एवं अखण्डता को कोई खतरा उत्पन्न हो गया है। इस सम्बन्ध में उसे प्रधानमन्त्री एवं संसद अध्यक्ष से औपचारिक सलाह भी लेनी पड़ती है। प्रधानमन्त्री की नियुक्ति भी राष्ट्रपति करता है। सभी अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियाँ उसी के द्वारा की जाती हैं।

(7) संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक शासन प्रणालियों का अद्भुत समन्वय

वर्तमान फ्रांसीसी संविधान की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसके अन्तर्गत संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक शासन प्रणालियों का अदभुत सम्मिश्रण पाया जाता है। एक ओर तो राष्ट्रपति को शासन का केन्द्र बनाया गया है और उसे असाधारण शक्ति प्रदान की गई है, उसे संसद के द्वारा पदच्युत भी नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर प्रधानमन्त्री और मन्त्रिपरिषद् की व्यवस्था की गई है, जो राष्ट्रीय सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होंगे। यदि राष्ट्रीय सभा के द्वारा निन्दा प्रस्ताव पारित कर दिया जाता है, तो प्रधानमन्त्री और उसकी मन्त्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देना पड़ता है।

(8) शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त पर आधारित-

फ्रांस के पंचम गणतन्त्र के संविधान में मॉण्टेस्क्यू के शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त को अपनाते हुए कार्यपालिका और विधानमण्डल को पृथक् करने का प्रयास किया गया है। परन्तु इस सिद्धान्त को पूर्ण रूप से नहीं अपनाया गया है, क्योंकि कार्यपालिका अर्थात् मन्त्रिमण्डल विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी है और मन्त्रिमण्डल के सदस्य संसद की कार्यवाही में भाग लेते हैं। शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त को पूर्ण रूप में अपनाना अव्यावहारिक होने के कारण ही ऐसा किया गया है।

(9) मौलिक अधिकारों की व्यवस्था-

फ्रांस के पंचम गणतन्त्र के संविधान में मौलिक अधिकारों को किसी अध्याय विशेष में सूचीबद्ध नहीं किया गया है, परन्तु संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि यह संविधान फ्रांस की जनता के उन अधिकारों में पूरी निष्ठा रखता है जिनकी घोषणा 1789 ई. के मानव अधिकारों के घोषणा-पत्र में की गई थी। संविधान में स्पष्ट रूप से घोषित कर दिया गया है। कि यह संविधान सन् 1946 के संविधान में दिए गए जनता के सभी मौलिक अधिकारों की रक्षा करेगा। कानून की दृष्टि से सभी नागरिकों को समान समझा जाएगा। प्रत्येक नागरिक को उसकी योग्यतानुसार पद पाने का अधिकार होगा। रंग, लिंग, जाति एवं धर्म के आधार पर किसी के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा।

(10) संवैधानिक परिषद् की व्यवस्था

इस संविधान की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें एक संवैधानिक परिषद् की स्थापना की गई है। यह परिषद् जनमत गणना तथा निर्वाचन का निरीक्षण करती है और विभिन्न प्रकार के कानूनों की संवैधानिकता का निर्णय करती है। इस सन्दर्भ में यह उल्लेख किया जाना आवश्यक है कि अमेरिका और भारत की भाँति यहाँ न्यायपालिका द्वारा न्यायिक पुनर्विलोकन का प्रावधान नहीं है। संकटकाल की घोषणा से पूर्व भी राष्ट्रपति संवैधानिक परिषद् से राय लेता है।

(11) द्विसदनीय व्यवस्थापिका-

फ्रांस के पाँचवें गणतन्त्र की संसद द्विसदनीय है, जिसका प्रथम सदन राष्ट्रीय सभा तथा द्वितीय सदन सीनेट है । राष्ट्रीय सभा के सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं, जबकि सीनेट में नवनामित फ्रेंच फेडरेशन, जिसमें समुद्र पार के प्रदेश सम्मिलित हैं, के सभी भागों से प्रतिनिधि सम्मिलित होते हैं।

(12) सार्वभौमिक मताधिकार-

संविधान में यह स्पष्ट किया गया है कि मतदान चाहे प्रत्यक्ष या हो अप्रत्यक्ष, प्रत्येक दशा में वह सार्वभौमिक, समान, विवेकपूर्ण एवं गोपनीय होगा। पुरुष एवं महिलाओं, दोनों को ही समान रूप से वयस्क मताधिकार प्रदान किया गया है। संविधान के अनुसार उन सभी को सामाजिक तथा राजनीतिक, दोनों प्रकार के अधिकार प्रदान किए जाएंगे।

 

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