संगठन से आप क्या समझते हैं

B. A. III, Political Science I

प्रश्न 5. संगठन से आप क्या समझते हैं ? संगठन के विभिन्न आधार बताइए।

अथवा ‘’संगठन से आप क्या समझते हैं ? इसके मुख्य आधारों को स्पष्ट कीजिए।

 उत्तर -संगठन लोक प्रशासन का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। सामान्य बोलचाल की भाषा में हम कह सकते हैं कि किसी कार्य को योजनाबद्ध ढंग से करना ही संगठन है। दूसरे शब्दों में, कोई कार्य प्रारम्भ करने से पहले उसको भली प्रकार से नियोजित कर लिया जाए, इसी को संगठन कहते हैं। 

ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार 'संगठन' शब्द का अर्थ है -किसी वस्तु का व्यवस्थित ढाँचा बनाना अथवा किसी वस्तु का आकार निश्चित करना तथा उसको कार्य करने की स्थिति में लाना। 

संगठन में तीन तत्त्व निहित हैं

Political Science Notes

यह कार्य किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है, इसमें सहयोग की भावना होती है तथा यह अनेक व्यक्तियों द्वारा किया जाता है।

संगठन का अर्थ हैव्यवस्था 

व्यवस्था में विशेष रूप से व्यक्तियों तथा कार्यों को नियोजित किया जाता है। इस प्रकार संगठन का आशय अनेक व्यक्तियों की ऐसी स्थिति या ढाँचे से है जिसमें वे पहले से निर्धारित लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए योजनाबद्ध रीति से काम करते हैं तथा एक-दूसरे को सहयोग देते हुए अपने निर्धारित कर्त्तव्य का पालन सुव्यवस्थित रूप से करते हैं।

प्रबन्धकीय दृष्टिकोण से 'संगठन' शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता हैं

प्रथम अर्थ में संगठन से आशय संगठन के ढाँचे से है। इस अर्थ में संगठन मूलत: ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो औपचारिक सम्बन्धों द्वारा संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु एक साथ मिलकर प्रयत्न करते हैं।

द्वितीय अर्थ में संगठन से आशय एक ऐसी प्रक्रिया से है जो किसी उपक्रम की विभिन्न क्रियाओं को परिभाषित करने, उन्हें समूह में बाँटने एवं उनके मध्य अधिकार सम्बन्ध स्थापित करने से सम्बन्धित होती है। इस प्रक्रिया में ही यह निर्धारित किया जाता है कि निश्चित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु कौन-कौन सी क्रियाएँ की जाएँगी तथा इन क्रियाओं को विभिन्न अधिकारियों तथा कर्मचारियों को कार्य निष्पादित करने हेत किन-किन समूहों में बाँटा जाएगा। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत ही अधिकारियों एवं कर्मचारियों को कार्य-निष्पत्ति हेतु आवश्यक अधिकार एवं उत्तरदायित्व भी सौंपे जाते हैं।

जॉन एम. गॉस के अनुसार, "संगठन का अर्थ है कर्मचारियों की व्यवस्था करना, ताकि कार्यों और उत्तरदायित्वों के उचित विभाजन द्वारा निर्धारित उद्देश्य को सरलतापूर्वक पूरा किया जा सके।"

एम. मार्क्स के अनुसार, “संगठन उस ढाँचे का नाम है जो शासन के प्रमुख कार्यवाहक तथा उसके सहायकों को सौंपे गए कार्यों को पूरा करने के लिए बनाया जाता है।" __

ग्लैडन के शब्दों में, "संगठन से तात्पर्य है किसी उद्यम में लगे हुए व्यक्तियों के परस्पर सम्बन्धों की ऐसी प्रतिकृति बनाना जो उद्यम के कार्यों को पूरा कर सके।"

उर्विक के अनुसार, "संगठन का अर्थ है उन क्रियाओं का निर्धारण करना जो किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए आवश्यक हों और उनको ऐसे वर्गों में क्रमबद्ध करना जो कि विभिन्न व्यक्तियों को सौंपे जा सकें।"

संक्षेप में, संगठन से तात्पर्य ऐसी कार्य योजना से है जिसमें एक समूह अपने निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सामूहिक रूप से अपनी समस्त शक्तियाँ लगा देता है।

संगठन के आधार

लूथर गुलिक ने संगठन के निम्न चार आधार बतलाए हैं Purpose, Process, Persons तथा Place, जिन्हें 'चार पी' (Four 'P's) के नाम से जाना जाता है। इनका विवरण निम्न प्रकार है___

(1) कार्य अथवा उद्देश्य -

सरकार विभिन्न उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अनेक कार्य करती है। जैसेप्रतिरक्षा, शिक्षा की व्यवस्था, यातायात का प्रबन्ध, जन-स्वास्थ्य की व्यवस्था, पेयजल की पूर्ति, अपराधों पर नियन्त्रण आदि। इन कार्यों को करने के लिए विभिन्न संगठनों का निर्माण किया जाता है। उदाहरण के लिए, प्रतिरक्षा हेतु सेना और पुलिस विभाग, शिक्षा हेतु विद्यालय तथा महाविद्यालय, यातायात व्यवस्था हेतु परिवहन विभाग आदि स्थापित किए जाते हैं

राष्टीय और स्थानीय सरकारों के प्रमुख विभाग भी उद्देश्य के आधार पर ही होते हैं। निजी प्रशासन की बड़ी-बड़ी इकाइयों में भी प्रमुख विभाग उद्देश्य के आधार पर ही होते हैं। उद्देश्य के आधार पर संगठन बनाने का तात्पर्य यह है कि वे सभी लोग जो किसी एक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए काम करते हैं, चाहे उनकी प्रक्रिया कुछ भी क्यों न हो, एक ही विभाग के अंग होंगे। 

उदाहरण के लिए, चिकित्सा विभाग में डॉक्टर, कम्पाउण्डर, नर्स, वार्ड ब्वॉय आदि सभी एक ही विभाग के अन्तर्गत आते हैं। इस प्रकार के संगठन में एक विभाग से सम्बन्धित समस्त सेवाएँ एक ही विभाग के नियन्त्रण में आ जाती हैं तथा उन्हें अन्य विभागों से सहयोग प्राप्त करने में समय नष्ट नहीं करना पड़ता। भारत में केन्द्र तथा राज्य सरकारों के अधिकांश विभाग कार्य अथवा उद्देश्य के आधार पर ही संगठित किए जाते हैं।

(2) प्रक्रिया-

प्रक्रिया के आधार पर विभागीय संगठन करने का अभिप्राय व्यावसायिक अथवा विशिष्ट योग्यता के आधार पर सेवाओं का वर्गीकरण करना है। प्रक्रिया के आधार पर संगठित विभागों के कर्मचारी विशेषज्ञ होते हैं। इस पद्धति में एक-सी पद्धति से कार्य करने वाली तथा एक-सी सामग्री का उपयोग करने वाली सेवाओं को एक विभाग के अन्तर्गत संगठित किया जाता है। भारत में परमाणु ऊर्जा विभाग, विधि कार्य विभाग, न्याय विभाग, रसायन तथा पेट्रो रसायन विभाग, विज्ञान एवं तकनीकी विभाग, इस्पात विभाग इस प्रकार के विभाग हैं।

(3) व्यक्ति समूह

व्यक्ति समूह अथवा प्रभावित हितों के आधार पर विभागीय संगठन का अर्थ यह है कि सेवा किए जाने वाले व्यक्तियों के आधार पर प्रशासनिक इकाइयों को एक ही विभाग में संगठित कर लिया जाए। ऐसे विभाग होंगेबाल विभाग, वृद्ध विभाग, कृषक विभाग, बेरोजगारी विभाग आदि। इनमें से प्रत्येक विभाग अनेक प्रकार के कार्यों का प्रबन्ध करेगा। भारत में महिला कल्याण तथा बाल विकास विभाग, पेंशन तथा पेंशनभोगी कल्याण विभाग इस प्रकार के विभागों के उदाहरण हैं।

(4) क्षेत्र -

विभाग उस क्षेत्र अथवा प्रदेश के आधार पर भी संगठित किए जा सकते हैं जहाँ वे सेवाएँ प्रदान करते हैं। प्रत्येक देश के कुछ क्षेत्रों अथवा भागों की अपनी कुछ विशेष समस्याएँ होती हैं। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि उन विशिष्ट क्षेत्रों की समस्याओं पर पूरा ध्यान दें। जब किसी क्षेत्र विशेष की समस्याओं के समाधान हेतु किसी विभाग की स्थापना की जाती है, तो क्षेत्र हो उस विभाग का आधार होता है। भारत के विदेश मन्त्रालय को इसी आधार पर संगठित विभाग माना जा सकता है।

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