बजट क्या है समझाइए ?

  BA-III-Political Science I

प्रश्न.12 बजट की परिभाषा दीजिए। "बजट प्रशासन का एक यन्त्र है।" इस कथन की विवेचना कीजिए।

अथवा ‘’भारत में बजट सम्बन्धी प्रक्रिया पर एक निबन्ध लिखिए।

अथवा ’’बजट क्या है ? भारत सरकार का बजट किस प्रकार बनाया जाता है और पारित होता है ?

बजट का अर्थ और परिभाषाएँ- Budget Definition 

भारत में बजट निर्माण की प्रक्रिया 

भारत में बजट निर्माण की प्रक्रिया को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

(1) अनुमानों को तैयार करना, और

(2) संसद द्वारा बजट अनुमोदित कराना।

बजट अनुमानों को तैयार कराने में चार अभिकरण भाग लेते हैं, जो निम्नलिखित हैं

(i) वित्त मन्त्रालय,

(ii) प्रशासन मन्त्रालय,

(ii) नीति आयोग, और

(iv) भारत का नियन्त्रक व महालेखा परीक्षक

Budget ka arth or paribhasha

(1) अनुमानों को तैयार करना-

बजट में योजना की आवश्यकताओं और खर्चों को स्पष्ट करने के लिए वित्त मन्त्रालय को नीति आयोग से सहायता लेनी होती है। उधर नियन्त्रक व महालेखा परीक्षक भी अनुमान तैयार कराने में आवश्यक लेखा उपलब्ध कराता है। अधिकारियों की पेंशन, ऋण तथा दूसरे ऐसे खर्चों के बारे में उसका कार्यालय ही सूचनाएँ देता है। वित्त विभाग सभी विभागों के अनुमानों की जाँच करके उन्हें मदों में वर्गीकृत करके एकत्रित करता है और उसे मन्त्रिमण्डल के सामने रखता है। मन्त्रिमण्डल यह देखता है कि खर्च पिछले वर्ष से कम है या अधिक और फिर यदि आवश्यक हो तो मन्त्रालय की माँगों में हेरफेर करती है। मन्त्रिमण्डल द्वारा स्वीकृत हो जाने पर बजट प्रस्तावों को एक विधेयक के रूप में निश्चित समय पर संसद में पेश किया जाता है।

(2) संसद द्वारा बजट को अनुमोदित करना-

बजट या वार्षिक वित्तीय विवरण को संसद से अनुमोदित कराने के लिए निम्नलिखित पाँच अवस्थाओं से गुजरना होता है

(i) संसद के समक्ष इसका पेश किया जाना।

(ii) संसद में सामान्य चर्चा।

(iii) अनुदानों के लिए माँगों पर मतदान।

(iv) विनियोग विधेयक पर विचार और उसे पारित करना।

(v) कर लगाने के प्रस्तावों या वित्त विधेयक पर विचार करना और पारित करना।

बजट प्रस्तुत करना-

रेल बजट सामान्य बजट से प्रायः एक सप्ताह पहले पेश होता है। सामान्य बजट वित्त मन्त्री द्वारा फरवरी के अन्तिम कार्यदिवस को लोकसभा में पेश किया जाता है। बजट पेश होने के दो भाग हैं-बजट भाषण और बजट के आँकड़े।

सामान्य चर्चा-

बजट पेश होने के तुरन्त बाद उस पर चर्चा नहीं होती है। बजट पेश होने के प्रायः एक सप्ताह बाद बजट पर सामान्य चर्चा प्रारम्भ होती है, जो कि प्रायः चार दिन तक चलती है। इस समय बजट से सम्बन्धित सिद्धान्तों व नीतियों पर ही चर्चा होती है। इस समय मतदान नहीं होता है। सामान्य चर्चा का समय परा हो जाने पर वित्त मन्त्री विरोधियों की आलोचना का उत्तर देता है।

मांगों पर मतदान–

लोकसभा अध्यक्ष सदन के नेता से परामर्श करके विभिन्न मन्त्रालयों की मांगों के लिए समय सीमा निश्चित कर देता है और उसके बाद मतदान होता है। एक माँग जब मतदान में पास हो जाती है, तो वह 'अनुदान' कहलाती है। लोकसभा में मांगों पर चर्चा के दौरान विरोधी दल के सदस्य कटौती के प्रस्ताव रखते हैं। परन्तु इन कटौती प्रस्तावों का व्यावहारिक महत्त्व इतना ही है कि सरकार की आलोचना करने का विरोधियों को अवसर मिल जाता है। ऐसे प्रस्ताव प्रायः पारित नहीं होते हैं, क्योंकि पारित होने पर कैबिनेट को त्याग-पत्र देना होता

विनियोग विधेयक पारित करना-

 जब सभी विभागों की मांगों पर मतदान हो जाता है, तब लोकसभा द्वारा स्वीकृत माँगें सरकार द्वारा एक विधेयक के रूप में पेश होती हैं, जिसे विनियोग विधेयक कहते हैं। इस अवस्था में संशोधन प्रस्ताव नहीं रखे जाते हैं और वाद-विवाद भी केवल औपचारिक होता है, क्योंकि ये सब कार्य तो पहले ही हो चुके होते हैं।

लोकसभा द्वारा पारित होने पर विधेयक को राज्यसभा के पास भेजा जाता है। राज्यसभा किसी भी धन विधेयक को अस्वीकार नहीं कर सकती है और उसे 14 दिन के भीतर अपनी सिफारिशों सहित विधेयक को लौटा देना होता है।

धन विधेयक होने के कारण राष्ट्रपति को भी इसे पहली बार में ही अपनी स्वीकृति देनी होती है।

करों के प्रस्ताव पर मतदान अथवा वित्तीय विधेयक-

इस अवस्था में सरकार कर लगाने, कम करने या बढ़ाने का प्रस्ताव रखती है। कुछ कर तो स्थायी होते हैं, जिन पर संसद प्रतिवर्ष विचार नहीं करती है। आयकर, सीमा शुल्क आदि ऐसे कर हैं जिन्हें प्रतिवर्ष पास किया जाता है।

लोकसभा द्वारा पारित इस वित्तीय विधेयक को भी राज्यसभा को 14 दिन के भीतर अपनी सिफारिशों सहित लौटा देना होता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल जाने पर वह विधेयक अधिनियम बन जाता है। इस प्रकार विनियोग अधिनियम और वित्तीय विधेयक पारित हो जाने पर बजट पास हो जाने का कार्य पूरा हो जाता है।

बजट का महत्त्व -

बजट सरकार के वित्तीय प्रशासन का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपकरण है और सार्वजनिक अर्थव्यवस्था का केन्द्र-बिन्दु होता है। इसके महत्त्व के सम्बन्ध में जितना कहा जाए, कम होगा। इसके माध्यम से प्रस्तावित व्यय को सम्भावित आय के अनुसार समायोजित किया जाता है। यह एक ऐसा आधार है जिसके बिना देश की सामाजिक तथा राजनीतिक उन्नति की कल्पना भी नहीं की जा सकती। बजट के महत्त्व को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत रखा जा सकता है

(1) प्रशासन में कुशलता-

बजट प्रशासनिक कुशलता को बढ़ावा देता है. क्योंकि बजट ही एक ऐसा अस्त्र है जिसके माध्यम से संसद कार्यकारिणी के कार्य पर नियन्त्रण रखने में सफल होती है। बजट के माध्यम से प्रत्येक क्षेत्र की आवश्यकताओं का अनुमान लगाकर उसी के अनुसार व्यय की स्वीकृति प्रदान की जाती है। बाद में संसद यह देखभाल करती है कि व्यय स्वीकृतियों के अनुसार ही हो रहा है अथवा नहीं।

(2) हिसाबदेयता-

बजट सरकार को हिसाबदेयता के लिए बाध्य कर देता है। इसके अभाव में प्रत्येक मन्त्रालय और विभाग मनमाने ढंग से कार्य करने लगते हैं और सार्वजनिक आय का कुशलतापूर्वक उपयोग नहीं हो पाता। वर्तमान में सभी मन्त्रालयों और विभागों को बजट के अन्तर्गत दिए गए प्रावधानों के अनुसार कार्य करना पड़ता है और वे मनमानी करने के लिए स्वतन्त्र नहीं होते।

(3) आर्थिक विकास में सहायक-

बजट आय एवं व्यय को प्रदर्शित करने वाला विवरण मात्र ही नहीं होता, बल्कि देश की आर्थिक और सामाजिक उन्नति के लिए सरकार के हाथ में एक शक्तिशाली अस्त्र होता है। देश के आर्थिक विकास के लिए नियोजित उपक्रमों की पूर्ति हेतु आवश्यक धन बजट के माध्यम से जनता से प्राप्त किया जाता है, साथ ही बजट नियोजकों द्वारा निर्धारित नीतियों के क्रियान्वयन में भी सहायता प्रदान करता है।

(4) सामाजिक कल्याण का माध्यम-

बजट के माध्यम से धनिकों पर अधिक कर लगाकर उसे निर्धन व्यक्तियों के कल्याण पर व्यय किया जाता है, जिससे एक ओर जहाँ धन की असमानता कम होती है, वहीं दूसरी ओर पिछड़े क्षेत्रों का विकास होता है, जिससे निर्धन वर्ग का कल्याण होता है।

(5) आर्थिक प्रगति का सूचक-

बजट देश की आर्थिक प्रगति का सूचक होता है। इसी के माध्यम से यह जाना जा सकता है कि देश का आर्थिक विकास हआ है अथवा नहीं, यदि हुआ है तो कितनी मात्रा में हआ। इसी के माध्यम से यह ज्ञात किया जा सकता है कि सरकारी क्रियाओं से राष्ट्रीय आय में कितनी वद्धि हई है। देश की प्रगति में लोक क्षेत्र की भूमिका को भी बजट के माध्यम से जाना जा सकता है। विधायी नियन्त्रण-जिस व्यय के लिए संसद अथवा विधानसभा की स्वीकति प्राप्त न हो अर्थात् जिस मद पर व्यय के लिए बजट में कोई प्रावधान न किया गया हो. उस मद पर सरकार द्वारा कोई व्यय नहीं किया जा सकता।

(7) आर्थिक स्थिरता में सहायक-

प्रो. कीन्स के मतानुसार बजट अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने के उद्देश्य से तेजी के समय बचत का बजट एवं मन्दी के समय घाटे का बजट बनाया जाता है, क्योंकि पूँजीवादी देशों में प्रायः मूल्यों में कमी व्यक्तिगत विनियोगों में कमी के कारण होती है। अत: बजट के माध्यम से मूल्यों को सहारा देकर रोजगार एवं राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को स्थायित्व प्रदान किया जा सकता है।

(8) प्रजातन्त्रीय अर्थव्यवस्था का आधार-

वास्तव में बजट प्रजातन्त्रीय अर्थव्यवस्था का आधार होता है, क्योंकि यह जनता की सामान्य आवश्यकताओं, आकांक्षाओं, सामान्य हितों और लक्ष्यों को एक समन्वित कार्यक्रम के रूप में प्रस्तुत करता है।

 

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