अंशों का हस्तान्तरण एवं हस्तांकन

प्रश्न 12. अंशों के हस्तान्तरण एवं हस्तांकन का आशय स्पष्ट कीजिए और दोनों में अन्तर बताइए।

अथवा ‘’अंशों के हस्तान्तरण के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम के वैधानिक प्रावधानों का उल्लेख कीजिए तथा अंशों के हस्तान्तरण की विधि बताइए। हस्तान्तरण और पारेषण में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।

अथवा ‘’अंशों के हस्तान्तरण एवं हस्तांकन (परिषण) से आप क्या समझते हैं ? दोनों में अन्तर स्पष्ट कीजिए। अंशों के हस्तान्तरण के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम के वैधानिक प्रावधानों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- अंशों का हस्तान्तरण -Transfer of Shares

कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 82 के अनुसार, कम्पनी में किसी भी सदस्य के अंश अथवा अन्य हित (जैसे लाभांश) चल सम्पत्ति होंगे, जिनका हस्तान्तरण कम्पनी अधिनियम तथा अन्तर्नियमों के अधीन होगा।"

इस प्रकार प्रत्येक अंशधारी को अंशों को हस्तान्तरित करने का वैधानिक अधिकार है। प्रत्येक अंशधारी का यह अधिकार पूर्ण है और यह रोका नहीं जा सकता, परन्तु यह अधिकार कम्पनी अधिनियम तथा अन्तर्नियमों की व्यवस्थाओं के अधीन है। इस अधिकार का प्रयोग कम्पनी अधिनियम की व्यवस्थाओं का पालन करते हुए तथा अन्तर्नियमों में दिये गये किन्हीं प्रतिबन्धों के अधीन ही किया जा सकता है।

अंशों के हस्तान्तरण के लिए व्यवस्थाएँ -Provisions for Transfer of Shares

(1) हस्तान्तरण केवल हस्तान्तरण-

प्रपत्र प्रस्तुत किये जाने पर-अंशों के हस्तान्तरण के लिए कम्पनी को हस्तान्तरण-प्रपत्र सुपुर्द किया जाना आवश्यक है। कम्पनी हस्तान्तरण को रजिस्ट्री नहीं कर सकती जब तक हस्तान्तरण पत्र सुपुर्द नहा कर दिया जाता। यह हस्तान्तरण-पत्र हस्तान्तरणकर्ता तथा हस्तान्तरिती द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए तथा आवश्यक स्टाम्प युक्त होना चाहिए। इस प्रपत्र म हस्तान्तरिती का नाम, पता तथा पेशा निर्दिष्ट किया जाना आवश्यक है और उसके साथ सम्बन्धित अंश प्रमाण-पत्र होना चाहिए और यदि ऐसा अंश प्रमाण-पत्र नहीं होना चाहिए तो आबंटन पत्र भेजना चाहिए। 

अंशों का हस्तान्तरण एवं हस्तांकन

हस्तान्तरिती कम्पनी का सदस्य केवल उस स्थिति में होता है जबकि हस्तान्तरण कम्पनी द्वारा रजिस्टर कर दिया जाता है। जब तक हस्तान्तरणकर्ता का नाम सदस्यों के रजिस्टर से पृथक नहीं कर दिया जाता तथा हस्तान्तरिती का नाम उसके नाम प्रविष्ट नहीं कर दिया जाता, तब तक हस्तान्तरणकर्ता ही अंशों का धारी माना जाता है । जब ऐसा कर दिया जाता है तो एक नया अंश प्रमाण-पत्र हस्तान्तरिती को निर्गमित कर दिया जाता है।

(2) वैधानिक उत्तराधिकारी द्वारा हस्तान्तरण-

मृत सदस्य का वैधानिक उत्तराधिकारी अंशों का हस्तान्तरण कर सकता है यद्यपि वह स्वयं सदस्य नहीं है ।

(3) हस्तान्तरण के लिए आवेदन-पत्र-

अंशों के हस्तान्तरण की रजिस्ट्री के लिए आवेदन-पत्र हस्तान्तरणकर्ता द्वारा अथवा हस्तान्तरिती द्वारा किया जा सकता है। जब आवेदन-पत्र हस्तान्तरणकर्ता द्वारा दिया जाता है और वह आंशिक दत्त अंशों के सम्बन्ध में होता है, तो यह आवश्यक है कि कम्पनी आवेदन-पत्र की सूचनार हस्तान्तरिती को दे। यदि हस्तान्तरिती सूचना की प्राप्ति की तिथि से दो सप्ताह के भीतर कोई आपत्ति नहीं करता,तो यह माना जायेगा कि हस्तान्तरिती को कोई आपत्ति नहीं है और कम्पनी हस्तान्तरण को रजिस्टर कर सकती है।

(4) कम्पनी का रजिस्ट्री करने से इन्कार करने का अधिकार-

कम्पनी को अन्तर्नियमों के अधीन ऐसा अधिकार प्रदान किया जा सकता है जिसके अधीन वह अंशों के हस्तान्तरण की रजिस्ट्री करने से इन्कार कर सकती है।

अंशों के हस्तान्तरण का अधिकार संचालक मण्डल को होता है। अतः अन्तर्नियम सामान्यत: संचालक मण्डल को हस्तान्तरण की रजिस्ट्री करने से इन्कार करने का अधिकार देते हैं, विशेष रूप से ऐसी दशा में जबकि अंश पूर्ण दत्त नहीं है।

यदि कम्पनी ऐसे किसी हस्तान्तरण की रजिस्ट्री करने से इन्कार करती है तो हस्तान्तरण प्रपत्र होने की तिथि से 2 माह के भीतर ऐसी अस्वीकृति की सूचना हस्तान्तरणकर्ता तथा हस्तान्तरिती को भेजना आवश्यक है।

(5) अस्वीकृति के विरुद्ध आवेदन-

अस्वीकृति की सूचना प्राप्त करने के बाद 2 माह के भीतर हस्तान्तरणकर्ता अथवा हस्तान्तरिती रजिस्ट्री को इन्कार करने के विरुद्ध केन्द्रीय सरकार से आवेदन कर सकते हैं । ऐसा आवेदन लिखित होना चाहिए तथा आवश्यकता शुल्क सहित होना चाहिए।

इस पर केन्द्रीय सरकार कम्पनी को तथा हस्तान्तरणकर्ता एवं हस्तान्तरिती को सूचना देगी और उसको अपने-अपने आधार लिखित रूप में प्रदान करने का अवसर देगी। इसके पश्चात् वह हस्तान्तरण को रजिस्टर किये जाने की आज्ञा प्रदान सकती है अथवा उससे इन्कार कर सकती है।

अंशों का, हस्तांकन या परिषण -Transmission of Shares

अंशों के हस्तांकन का आशय राजनियम के कार्यशील हो जाने के कारण स्वामी से किसी दूसरे व्यक्ति को अंशों का हस्तान्तरण है,जैसे स्वामी की मृत्यु अथवा उसके दिवालिया हो जाने पर।

किसी सदस्य की मृत्यु होने पर उसके उत्तराधिकारी अंशों के अधिकारी होंगे। इसी प्रकार, स्वामी के दिवालिया होने पर उसके अंशों का अधिकार राजकीय प्रापक के लिए चला जाता है।

हस्तान्तरण एवं हस्तांकन में अन्तर

(1) स्वभाव-

हस्तान्तरण किसी सदस्य का स्वैच्छिक कार्य है जबकि दृष्टांकन राजनियम के कार्यशील होने से होता है।

(2) स्टाम्प ड्यूटी-

हस्तान्तरण में सदैव प्रतिफल होता है जबकि परिषण में : ऐसा कोई प्रश्न नहीं है, अतः परिषण के लिए स्टॉम्प ड्यूटी आदि नहीं होती।

(3) दशाएँ-

हस्तान्तरण सम्पत्ति के हस्तान्तरण की भाँति प्रभावशील होता है जबकि सदस्य अंशों को बेचता है, परन्तु परिषद् किसी सदस्य की मृत्यु अथवा दिवालिया होने पर प्रभावशील होता है।

(4) हस्तान्तरण प्रपत्र-

हस्तान्तरण में हस्तान्तरण प्रपत्र निष्पादित किया जाना आवश्यक है,जबकि परिषद् में इसकी आवश्यकता नहीं।

(5) प्रतिफल-

हस्तान्तरण उचित प्रतिफल के लिए किया जाता है, जबकि हस्तांकन में कोई प्रतिफल नहीं होता।

(6) अधिनियम-

हस्तान्तरण कम्पनी अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत होता है, जबकि हस्तांकन उत्तराधिकार अधिनियम या दिवाला अधिनियम के अन्तर्गत होता  है।

 

 

 

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