कंपनी से क्या आशय है - परिभाषा
प्रश्न 1. 'कंपनी' क्या है ? कम्पनी की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा कंपनी से आपका क्या आशय है ? कम्पनी(कंपनी) की विभिन्न परिभाषाएँ दीजिए तथा एक कम्पनी की आवश्यक विशेषताएँ तथा लक्षणों का वर्णन कीजिए।
अथवा कंपनी की विभिन्न परिभाषाओं को स्पष्ट करते हुए एक संयुक्त स्कन्ध कम्पनी की
विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा "कंपनी विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है जिसका पृथक् वैधानिक अस्तित्व,
अविच्छिन्न उत्तराधिकार एवं एक सार्वमुद्रा होती है।" इस कथन का विवेचन करते हुए कम्पनी की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
“कंपनी अधिनियम के अन्तर्गत दी गयी कम्पनी की परिभाषा अपूर्ण है।"
इस कथन का सत्यापन करते हुए कम्पनी की परिभाषा दीजिए और विशेषताएँ
बताइए।
उत्तर-वैज्ञानिक
प्रगति और औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप बड़े पैमाने पर उत्पादन के युग का
प्रारम्भ हुआ। बड़े पैमाने पर उद्योगों को चलाने के लिए अधिक मात्रा में पूंजी की
आवश्यकता हुई जिसकी पूर्ति एकाकी व्यापारी और साझेदारी संस्था द्वारा सम्भव नहीं
थी।
"आवश्यकता आविष्कार की जननी है।" नामक कहावत
चरितार्थ हुई और कम्पनी प्रारूप का जन्म हुआ। कम्पनी की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित
प्रकार से है-
भारतीय
कम्पनी अधिनियम 1956
की धारा 2 (10) के अनुसार, कम्पनी का
आशय एक ऐसी कम्पनी से है,जो धारा 3 में
परिभाषित की गयी है ।"
भारतीय
कम्पनी अधिनियम 1956
की धारा (4) के अनुसार, “कम्पनी का
आशय इस अधिनियम के अधीन निर्मित कम्पनी अथवा किसी विद्यमान कम्पनी से है। 'विद्यमान कम्पनी' का आशय ऐसी कम्पनी से है जिसका
निर्माण अथवा समामेलन पहले कम्पनी अधिनियमों में से किसी के अन्तर्गत हुआ हो।”
न्यायाधीश मार्शल के अनुसार, संयुक्त पूँजी कम्पनी एक कृत्रिम, अदृश्य तथा अमूर्त संस्था है जिसका अस्तित्व वैधानिक होता है और जो विधान द्वारा निर्मित होताहै।"
न्यायाधीश
जेम्स के अनुसार,
“संयुक्त स्कन्ध प्रमण्डल लाभ के लिये बनायो गयी व्यक्तियों की एक
ऐच्छिक संस्था है। जिसकी पूँजी हस्तान्तरणीय अंशों में विभाजित होती है एवं जिसका
स्वामित्व सदस्य के लिए आवश्यक होता है।"
प्रो.
हैने के अनुसार, “कम्पनी
राजनियम द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है । जिसका पृथक् अस्तित्व अविच्छिन्न
उत्तराधिकार एवं सार्वमुद्रा होती है।"
कम्पनी की विशेषताएँ-
(Characteristics
of Company)
कम्पनी
की विभिन्न परिभाषाओं के अध्ययन से कम्पनी की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
(1) स्थायी अस्तित्व-
कम्पनी का अस्तित्व स्थायी होता है। अतः अंशधारियों के मर जाने अथवा व्यक्तिगत रूप से दिवालिया हो जाने या कम्पनी से पृथक् होने का कम्पनी अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अंशधारी आते हैं, जाते हैं परन्तु कम्पनी का अस्तित्व ज्यों का त्यों स्थिर रहता है।
(2) कृत्रिम व्यक्ति-
कम्पनी
कानून द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है, परन्तु इसके कार्य अधिकतर एक
प्राकृतिक मनुष्य के समान ही होते हैं । यह एक व्यक्ति की भाँति अपनी सम्पत्ति का
क्रय एवं विक्रय कर सकती है तथा कम्पनी पर व्यक्तियों की भाँति दावा किया जाता है
तथा कम्पनी भी दूसरे व्यक्ति पर एक व्यक्ति की तरह दावा कर सकती है, इतनी समानताएँ होने के बावजूद कम्पनी का किसी प्राकृतिक व्यक्ति की
तरह हड्डी-माँस का कोई शरीर नहीं होता । इसलिए कम्पनी को कृत्रिम व्यक्ति की संज्ञा दी
गयी है।
(3) सीमित दायित्व-
कम्पनी में सदस्यों का दायित्व सीमित
होता है। अंशों द्वारा सीमित कम्पनी में सदस्यों का दायित्व उसके अंश के मूल्य की
सीमा तक सीमित होता है । गारण्टी द्वारा सीमित कम्पनी में उसके द्वारा गारण्टी
किये गये धन तक सीमित रहता है।
(4) अविच्छिन्न उत्तराधिकार-
कम्पनी का उत्तराधिकार शाश्वंत, अविच्छिन्न
एवं सतत् रहता है । रजिस्ट्रेशन के बाद कम्पनी तब तक अस्तित्व में रहती है जब तक
कि कानून के द्वारा उसका समापन न हो जाये ।
(5) सार्वमुद्रा-
एक कृत्रिम व्यक्ति होने के कारण कम्पनी
स्वयं तो हस्ताक्षर करने में असमर्थ होती है अतः अधिनियम के आधीन उसके हस्ताक्षरों
की जगह सार्वमुद्रा का प्रयोग किया जाता है । हाँ,सार्वमुद्रा के ऊपर किसी
अधिकृत अधिकारी के हस्ताक्षर भी किये जाते हैं ।
(6) अंशों का हस्तान्तरण-
कम्पनी के अन्तर्नियमों में कोई विपरीत
व्यवस्था न होने पर कम्पनी के अंशधारी अपने अंशों का हस्तान्तरण अपनी इच्छानुसार
कभी भी तथा किसी भी व्यक्ति को स्वतन्त्रतापूर्वक कर सकते हैं।
(7) लाभ के लिये ऐच्छिक संघ-
कम्पनी का सदस्य बनना या न बनना किसी
व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। यह लाभ के लिये स्थापित की गयी एक स्वैच्छिक
संस्था होती है।
(8) लोकतान्त्रिक प्रबन्ध-
कम्पनी के वास्तविक मालिक अर्थात्
अंशधारियों द्वारा लोकतान्त्रिक तरीके से कम्पनी के कार्य संचालन हेतु संचालक
अंकेक्षक,
बैंकर आदि की नियुक्ति की जाती है ।
(9) कम्पनी का समापन-
कम्पनी का समापन भी कम्पनी अधिनियम में
दिये गये नियमों के अधीन होता है ।
(10) सम्पत्ति का स्वामित्व-
कम्पनी की समस्त सम्पत्ति उसके ही नाम
में रहती है।
(11) कार्य क्षेत्र की वैधानिक सीमाएँ-
प्रत्येक कम्पनी के मूल उद्देश्य उसके
पार्षद सीमानियम में स्पष्ट रूप से वर्णित होते हैं और मूल उद्देश्यों को पूरा
करने तथा दानक कार्य संचालन सम्बन्धी नियम अन्तर्नियमों में उल्लिखित होते हैं।
अत: प्रत्येक कम्पनी अपने पार्षद सीमानियम, अन्तर्नियम तथा कम्पनी अधिनियम 1956 के प्रावधानों की सीमाओं के ही कार्य कर सकती है।
(12) कार्य क्षेत्र की वैधानिक सीमाएँ-
प्रत्येक कम्पनी कम्पनी अधिनियम, पार्षद
सीमा नियम तथा अन्तर्नियमों के अन्तर्गत कार्य करती है,जो
इसके कार्य क्षेत्र की वैधानिक सीमाएँ निर्धारित करते हैं।
(13) सदस्यों की संख्या-
एक सार्वजनिक कम्पनी के सदस्यों की
न्यूनतम संख्या 07 तथा अधिकतम अपने अंशों की संख्या के बराबर होती
है । जबकि एक निजी कम्पनी की दशा में यह संख्या क्रमशः 02 तथा
20 होती है।
(14) कम्पनी नागरिक नहीं-
कम्पनी एक कृत्रिम वैधानिक व्यक्ति है, परन्तु
यह नागरिक नहीं हो सकती। अतः इसे मौलिक अधिकार प्राप्त नहीं होते।
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