कम्पनी की सदस्यता से क्या अभिप्राय है ?
प्रश्न 13. कम्पनी के सदस्य से क्या अभिप्राय है ? कम्पनी की सदस्यता किस प्रकार प्राप्त की जा सकती है और किस प्रकार उसका समापन किया जा सकता है ?
अथवा ''कम्पनी की
सदस्यता ग्रहण करने की विभिन्न विधियाँ बताइये और किन परिस्थितियों में किसी सदस्य
की सदस्यता समाप्त की जा सकती है ?
अथवा ''एक कम्पनी
के सदस्य तथा अंशधारियों में अन्तर बताइए। सदस्य बनने के लिए वैधानिक व्यवस्थाओं
का वर्णन कीजिए।
अथवा
"कम्पनी का प्रत्येक सदस्य उसका अंशधारी होता है, परन्तु प्रत्येक अंशधारी उसका सदस्य नहीं होता। " इस कथन को स्पष्ट करते हुए कम्पनी की सदस्यता ग्रहण करने के लिए विभिन्न
विधियाँ बताइए।
उत्तर-सामान्य धारणा यह है कि किसी कम्पनी का प्रत्येक अंशधारी उसका सदस्य होता
है। परन्तु यह सत्य नहीं है क्योंकि कोई भी व्यक्ति अंशधारी होते हुए. भी उसका
सदस्य जब तक नहीं होता, जब तक कि उसका नाम कम्पनी के
सदस्यों के रजिस्टर (Register of Members) में न लिखा हो।
जैसे एक अंश अधिपत्र (Share Warrant) का धारक कम्पनी का
अंशधारी होता है.सदस्य नहीं।
इसी प्रकार कुछ परिस्थितियों में सदस्य अंशधारी नहीं हो सकते। जैसे गारण्टी द्वारा सीमित कम्पनी में अंश ही नहीं होते तो अंशधारी का प्रश्न ही नहीं उठता। इसी प्रकार यदि एक सदस्य अपने अंश बेच देता है तो जब तक सदस्य बना रहता है, जब तक कि उसका नाम सदस्यों के रजिस्टर में बना रहता है, परन्तु वह अंश बेचने पर ही वह अंशधारी नहीं रहता। इस प्रकार कम्पनी के सदस्य तथा अंशधारियों में अन्तर है।
सदस्य तथा अंशधारी में अन्तर
(1)
प्रत्येक ऐसा अंशधारी जिसका नाम सदस्यों के रजिस्टर' में नहीं है, सदस्य नहीं है, परन्तु
प्रत्येक सदस्य का अंशधारी होना आवश्यक नहीं है क्योंकि कम्पनी अंशपूँजी के बिना
भी हो सकती है।
(2) एक व्यक्ति जो कम्पनी के अंश
अधिपत्रों का धारक है, परन्तु सदस्य नहीं है,क्योंकि उसका नाम 'सदस्यों के रजिस्टर'
में नहीं है।
(3) एक मृत अथवा दिवालिया सदस्य
का वैधानिक उत्तराधिकारी उस समय तक सदस्य नहीं होता, जब तक
कि उसका नाम कम्पनी के ‘सदस्य रजिस्टर' में नहीं लिख लिया जाता है, यद्यपि वह अंशधारी बन
जाता है।
(4) मृत सदस्य उस समय तक सदस्य बना रहता है जब तक उसका नाम 'सदस्य रजिस्टर’ में बना रहता है, जबकि वह अंशधारी नहीं रहता।
कम्पनी सदस्यता
प्राप्त करने के ढंग
(1)
सीमानियम पर हस्ताक्षर करके-
धारा 41
(1) के अनुसार, “कम्पनी के सीमा नियम पर
हस्ताक्षर करने वालों के लिए यह माना जाता है कि वे कम्पनी के सदस्य होने के लिए
सहमत हो गए हैं और कम्पनी का समामेलन होने पर उनका नाम 'सदस्यों
के रजिस्टर' में लिख लिया जाता है।"
(2) आवेदन तथा आबण्टन द्वारा-
धारा 41
(2) के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति जो कि कम्पनी
का सदस्य होने के लिए लिखित रूप से सहमत होता है और जिसका नाम कम्पनी के रजिस्टर
में लिख लिया जाता है, कम्पनी का सदस्य बन जाता है। ऐसा
अंशों के लिए आवेदन करके उसके आबण्टन द्वारा सम्भव होता है।
(3) अंशों का हस्तान्तरण स्वीकार करके-
धारा 82
के अनुसार, कम्पनी के अंशों का हस्तान्तरण
स्वीकार करके तथा अपना नाम सदस्य रजिस्टर में लिखवाकर कम्पनी का सदस्य बन सकता है।
(4) उत्तराधिकार एवं दिवालिया राजनियम द्वारा-
सदस्यता का यह रूप
उत्तराधिकार एवं दिवालिया राजनियम का परिणाम है। जैसे ही मृत अथवा दिवालिया
व्यक्ति के उत्तराधिकारी का नाम कम्पनी के 'सदस्य रजिस्टर में लिख लिया
जाता है, वह सदस्य बन जाता है।
(5) गर्भित स्वीकृति द्वारा-
सदस्यता का यह रूप ‘अवरोधक सिद्धान्त' (Doctrine of Estoppel)
के लागू होने का परिणाम है । यदि कोई व्यक्ति सदस्य न होने पर भी
अपने को सदस्य मान लेता है और रजिस्टर में अपना नाम लिख जाने का विरोध नहीं करता
अथवा कोई अन्य ऐसा कार्य करता है, जिससे वह कम्पनी का सदस्य
प्रतीत होता है।
सदस्यता का अन्त
(1)
सदस्यता अंशों का हस्तान्तरण कर देने पर,परन्तु
उसी स्थिति में जब नाम सदस्य रजिस्टर से हटा दिया गया हो।
(2) अंशों के हरण अथवा जब्त किये
जाने पर।
(3)
वैधानिक रूप से अंशों का समर्पण या परित्याग कर देने पर।
(4) अन्तर्नियमों द्वारा अंशों
को बेच दिये जाने पर अथवा न्यायालय के किसी आदेश के निष्पादन हेतु अंशों के बेच
देने पर तथा क्रेता का नाम सदस्य रजिस्टर में लिख लिये जाने पर।
(5) सदस्य की मृत्यु होने पर।
(6)
सदस्य के दिवालिया होने पर।
(7)
कम्पनी के समापन पर।
(8)
अंशों के लेने के अनुबन्ध को निरस्त करके।
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