नेतृत्व का अर्थ एवं परिभाषा

प्रश्न 6. नेतृत्व से क्या आशय है ? व्यवसाय प्रबन्ध में नेतृत्व का महत्त्व बताइए।

अथवा "नेतृत्व वह स्फुरण शक्ति है जो अन्य लोगों से काम कराती है।" इस कथन को स्पष्ट कीजिए तथा नेतृत्व का महत्त्व बताइए।

अथवा नेतृत्व से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताएँ बताइए।

उत्तर- 

नेतृत्व का अर्थ एवं परिभाषाएँ

नेतृत्व से आशय किसी व्यक्ति विशेष के उस गुण से है जिसके द्वारा वह अन्य व्यक्तियों का मार्गदर्शन करता है अर्थात् विभिन्न व्यक्तियों या व्यक्तियों के किसी समूह को निश्चित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु अग्रसर करता है। वास्तव में यदि देखा जाए तो नेतृत्व की प्रभावशीलता पर ही प्रबन्ध की सफलता आधारित होती है।

कुण्ट्ज तथा ओ'डोनेल के अनुसार, "नेतृत्व व्यक्ति को प्रभावित करने की कला अथवा प्रक्रिया है, जिससे कि समूह के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वे स्वेच्छापूर्वक कार्य करने लगे।"

न्यूनर एवं कीलिंग के अनुसार, "नेतृत्व कर्मचारियों को अभिप्रेरित एवं निर्देशित करने से सम्बन्धित है, जिससे उपक्रम की रीतियों, कार्यक्रमों और योजनाओं को सरलतापूर्वक क्रियान्वित किया जा सके।"

एफ. जी. मूरे के अनुसार, "नेतृत्व अनुयायियों को नेता की इच्छानुसार क्रियाएँ करने के लिए तैयार करने की योग्यता है।"

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निष्कर्ष रूप में नेतृत्व से आशय किसी व्यक्ति के उन गुणों से है जिनके द्वारा वह अन्य व्यक्तियों का मार्गदर्शन करता है और नेता के रूप में उनकी क्रियाओं का संचालन करता है।

नेतृत्व के लक्षण अथवा विशेषताएँ

नेतृत्व एक ऐसी प्रक्रिया है जो लोगों को प्रभावित करती है, जिससे वे वांछित दिशा में उत्साहपूर्वक कार्य कर सकें। नेतृत्व एक ऐसा कार्य है जो नेताओं द्वारा विभिन्न स्तरों पर, विभिन्न दिशाओं एवं परिस्थितियों में संगठन की आवश्यकता के अनुरूप किया जाता है।

नेतृत्व की प्रमुख विशेषताएँ (लक्षण) निम्नलिखित हैं-

(1) अनुयायियों का होना

नेतृत्व की प्रथम विशेषता यह है कि नेता के अनुयायी होने चाहिए तथा अनुयायियों को नेता का नेतृत्व स्वीकार होना चाहिए।

(2) निरन्तरता

नेतृत्व एक गतिशील प्रक्रिया है। प्रत्येक संगठन की स्थापना से लेकर समापन तक नेतृत्व की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है।

(3) चरित्र व आचरण-

नेता के भाषण अथवा उसके लेख अनुयायियों को उतना प्रभावित नहीं करते जितना कि उसका चरित्र व आचरण। उसके चरित्र व आचरण का अनुयायियों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।

(4) परिस्थितियों के प्रति सावधानी-

नेतृत्व परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है। परिस्थितियों के अनुरूप कार्य करना नेतृत्व की महती विशेषता है।

(5) व्यावहारिक दृष्टिकोण-

समर्पण, विश्वसनीयता, विनोदपूर्ण स्वभाव एवं प्रसन्नचित्त व्यवहार आदि किसी नेता के व्यक्तित्व में निखार लाते हैं। अतः अधीनस्थों के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण होना नेतृत्व का प्रमुख लक्षण है।

(6) आगे बढ़ने की चाह

नेता को भविष्य के प्रति हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। आगे बढ़ने की चाह रखना नेतृत्व के लिए अति आवश्यक है।

(7) आत्म-बोध-

प्रभावशाली नेतृत्व के लिए नेता को अपनी शक्तियों एवं दुर्बलताओं के विषय में सही-सही ज्ञान होना चाहिए। उसे अपने विषय में कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए।

कुशल नेतृत्व के गुण

कुशल नेतृत्व उपक्रम की आधारशिला है। नेतृत्व पर ही उपक्रम की सफलता निर्भर करती है। अत: एक नेता में निम्न गुणों का होना आवश्यक है-

(1) उत्तम स्वास्थ्य-

स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। नेता को अनेक कार्यों एवं उत्तरदायित्वों को निभाना पड़ता है। इसके लिए आवश्यक है कि उसका स्वास्थ्य उत्तम हो।

(2) स्फूर्ति तथा सहिष्णुता-

स्फूर्ति का अर्थ है-चैतन्यता अथवा सजगता। सहिष्णुता का अर्थ हैकठिनाई के समय धैर्य से काम लेना। एक अच्छे नेता में इन दोनों गुणों का होना आवश्यक है, क्योंकि इनके द्वारा ही वह अधीनस्थों एवं अनुयायियों का नेतृत्व करने में सक्षम हो पाता है।

(3) निर्णय लेने की क्षमता-

उपक्रम में निर्णय का बहुत महत्त्व है, क्योंकि इसा पर उपक्रम का भविष्य निर्भर होता है और सफल नेता वही है जो परिस्थिति पर गम्भीरतापूर्वक विचार करके उचित निर्णय लेने की क्षमता रखता हो।

(4) मानसिक क्षमता-

एक सफल नेता में विकसित मानसिक क्षमता होना भी आवश्यक होता है, तभी वह द्वेष रहित, नवीन विचारधारा से परिपूर्ण एवं स्वीकारने योग्य निर्णय लेने में समर्थ हो सकता है।

(5) संकल्प शक्ति और आत्म-विश्वास-

नेता में दृढ़ निश्चय की प्रवृत्ति होना चाहिए तथा उसे अपने ऊपर पूर्ण विश्वास होना चाहिए। दृढ़ इच्छा-शक्ति वाला, संयमी, परिश्रमी और कर्मठ व्यक्ति ही आत्म-विश्वासी होता है। आत्म-विश्वास के कारण ही उसमें कार्य करने की क्षमता उत्पन्न होती है।

(6) आकर्षक व्यक्तित्व-

आकर्षक व्यक्तित्व वह शक्ति है जो अन्य लोगों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। सामान्यतः स्वस्थ, लम्बे कद के तथा फुर्तीले व्यक्ति दूसरों को सरलता से आकृष्ट कर लेते हैं। अतः आकर्षक व्यक्तित्व नेतृत्व का एक प्रमुख गुण है।

नेतृत्व का महत्त्व

प्रबन्ध का वह साधन है जिसके बिना संगठन निष्क्रिय रहता है। यह एक ऐसी प्रेरक शक्ति है जो मानवीय साधनों का सर्वोत्तम प्रयोग कर उपक्रम को प्रगति की ओर ले जाता है तथा पग-पग पर आने वाली कठिनाइयों का दृढ़तापूर्वक सामना करता है। जॉन जी. ग्लोबर का तो यह कहना है कि "व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के असफल होने में अकुशल नेतृत्व जितना उत्तरदायी है, उतना अन्य कोई कारण नहीं है।"

व्यवसाय प्रबन्ध में नेतृत्व के महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं-

 (1) अभिप्रेरणा का स्त्रोत-

नेतृत्व अभिप्रेरणा का स्रोत है। मानवीय सम्बन्धों का विकास कुशल नेतृत्व के द्वारा ही सम्भव है। नेता व्यक्ति के व्यक्तिगत गुणों को उभारता है और उन्हें अधिक कार्य करने हेतु प्रेरित करता है।

(2) सहयोग प्राप्ति की आधारशिला

नेतृत्व विभिन्न साधनों के माध्यम से अपने सहयोगियों और अनुयायियों का सहयोग प्राप्त करता है। कुशल नेतृत्व के अभाव में कर्मचारियों में द्वेष की भावना का विकास होता है और छोटी बातों को लेकर आपसी विवाद उठ खड़े होते हैं।

(3) कर्मचारियों को उपक्रम के प्रति निष्ठावान बनाए रखना-

कुशल नेतृत्व व्यावसायिक उपक्रम में कार्यरत कमचारया को उनके उद्देश्य के प्रति निष्ठावान बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह उसके प्रयत्नों में निष्क्रियता के स्थान पर सक्रियता लाता है।

(4) प्रबन्ध सामाजिक प्रक्रिया के रूप में-

कुशल नेतृत्व के माध्यम से प्रबन्ध एक सामाजिक प्रक्रिया के रूप में परिवर्तित होता है। इससे एक ओर तो कर्मचारी उपक्रम की प्रगति के लिए अपना सब कुछ त्याग करने हेतु तैयार रहते हैं, वहीं दूसरी ओर प्रबन्धक भी उनको हरसम्भव सहायता-सुविधाएँ देने का प्रयत्न करते हैं।

 उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि कुशल एवं दूरदर्शी नेतृत्व किसी भी संगठन की आधारशिला है। यही उपक्रम को सफलता की ऊँचाइयों तक ले जाता है। इसके अभाव में उपक्रम का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है।

 

 

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