प्रबन्धक तथा प्रबन्ध संचालक में अन्तर
प्रश्न 18 . कम्पनी अधिनियम 1956 के प्रावधानों के अनुसार प्रबन्धक एवं प्रबन्ध संचालक की नियुक्ति सम्बन्धी प्रावधानों को स्पष्ट कीजिए तथा उनके पारिश्रमिक सम्बन्धी नियमों पर भी प्रकाश डालिए।
अथवा ‘’ प्रबन्धक
और प्रबन्ध संचालक की नियुक्ति के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम की व्यवस्थाओं का
उल्लेख कीजिए।
अथवा '’ प्रबन्धक' एवं 'प्रबन्ध संचालक' में
अन्तर स्पष्ट कीजिए। कम्पनी में प्रबन्धक की नियुक्ति एवं उसके पारिश्रमिक के
सम्बन्ध में क्या नियम हैं ?
उत्तर-
प्रबन्धक
(Manager), कम्पनी अधिनियम की धारा 2 (24) के अनुसार, “प्रबन्धक से आशय उस व्यक्ति से है जो संचालक मण्डल
के निरीक्षण, नियन्त्रण तथा निर्देशानुसार कम्पनी के पूर्ण
अथवा अधिकांश कार्यों का प्रबन्ध करता है। इसमें वह संचालक या कोई भी अन्य व्यक्ति
सम्मिलित हैं, जो प्रबन्धक की स्थिति में है भले ही वह किसी
भी नाम से पुकारा जाता है और भले ही उससे सेवा का अनुबन्ध हुआ हो अथवा नहीं।"
इस परिभाषा से स्पष्ट है कि प्रबन्धक के
नाम का महत्व नहीं है, काम का महल है। अत: कोई भी ऐसा व्यक्ति जो
प्रबन्धक का कार्य करता है,प्रबन्धक होता है।
प्रबन्धक तथा प्रबन्ध संचालक में अन्तर
(Differences
between Manager and Managing Director)
प्रबन्धक एवं प्रबन्ध संचालक दोनों
कम्पनी के उच्चाधिकारी होते हैं, किन्त दोनों में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं-
(1) संचालक होना-
प्रबन्धक कम्पनी का संचालक भी हो सकता
है तथा अन्य व्यक्ति भी जबकि प्रबन्ध संचालक को ही संचालक बनाया जाता है।
(2) सेवाओं के लिए अनुबन्ध-
प्रबन्धक की सेवाओं के लिए कम्पनी के
साथ नियमानुसार विशेष अनुबन्ध का होना आवश्यक नहीं है जबकि प्रबन्ध संचालकों के
नियमानुसार अनुबन्ध होना आवश्यक है।
(3) अधिकार क्षेत्र-
प्रबन्धक का क्षेत्र व्यापक होता है ।
यह कम्पनी के समस्त मामलों का प्रबन्ध करता है जबकि प्रबन्ध संचालक का अधिकार
क्षेत्र प्रबन्धक की अपेक्षा सीमित होता है।
(4) अयोग्यता की अवधि-
प्रबन्धक अपनी अयोग्यताओं से 5 वर्ष में मुक्त हो जाता है, जबकि प्रबन्ध संचालक की अयोग्यताएँ आजन्म लागू होती हैं।
(5) नियुक्ति-
प्रबन्धक की नियुक्ति संचालक मण्डल
द्वारा की जाती है जबकि प्रबन्ध संचालक की नियुक्ति अन्तर्नियमों, संचालक
मण्डल अथवा व्यापक सभा में पारित प्रस्ताव द्वारा की जाती है।
(6) संख्या-
एक कम्पनी में एक से अधिक प्रबन्धक नहीं
हो सकते जबकि प्रबन्ध संचालक एक से अधिक हो सकते हैं।
(7) योग्यता अंश-
प्रबन्धक की नियुक्ति के लिए अंश लेने
की आवश्यकता नहीं है जबकि प्रबन्ध संचालक की नियुक्ति के लिए अन्तर्नियमों में
उल्लेखित योग्यता अंश लेना अनिवार्य है।
(8) कर्मचारी होना-
प्रबन्धक कम्पनी का कर्मचारी होता है
जबकि प्रबन्ध संचालक कम्पनी के अंशधारियों का प्रतिनिधि होता है ।
(9) सदस्यता-
प्रबन्धक के लिए कम्पनी का सदस्य होना
आवश्यक नहीं है, किन्तु प्रबन्ध संचालक कम्पनी तथा संचालक मण्डल
दोनों का सदस्य होता है।
प्रबन्धक की नियुक्ति
(Appointment of Manager)
प्रबन्धक की नियुक्ति के लिए अग्रलिखित
व्यवस्थाएँ हैं-
(1) केवल व्यक्ति की ही नियुक्ति-
प्रबन्धक के पद पर केवल व्यक्ति की ही
नियुक्ति की जा सकती है, किसी फर्म या समामेलित संस्था या संघ प्रबन्धक के
रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता है। .
(2) अयोग्यताएँ-
निम्नलिखित व्यक्ति प्रबन्धक के पद पर
नियुक्त नहीं किये जा सकते
1. एक दिवालिया व्यक्ति अथवा वह व्यक्ति जो पिछले 5
वर्षों में दिवालिया घोषित किया जा चुका है।
2. ऐसा व्यक्ति जिसने अपने लेनदारों को भुगतान करना
स्थगित कर दिया हो या नियुक्ति से पूर्व 5 वर्षों में किसी
समय ऐसा कर चुका है अथवा जिसने लेनदारों से कोई समझौता कर लिया है या नियुक्ति से
पूर्व 5 वर्ष में किसी भी समय उसने ऐसा समझौता किया था।
3. ऐसा कोई व्यक्ति जो कि गत 5 वर्षों में किसी भारतीय न्यायालय द्वारा नैतिक अपराध के सम्बन्ध में दोषी
ठहराया गया हो।
(3) प्रबन्धक की नियुक्ति पर प्रतिबन्ध-
प्रबन्धक की नियुक्ति पर निम्नलिखित
प्रतिबन्ध लगे हुए हैं-
1. ऐसा कोई भी व्यक्ति जो किसी कम्पनी में प्रबन्धक
या प्रबन्ध संचालक के ' पद पर नियुक्त है उसे प्रबन्धक के पद
पर नियुक्त नहीं किया जा सकता।
2. यदि कोई कम्पनी ऐसे व्यक्ति को प्रबन्धक के पद पर
नियुक्त करना चाहती है, जो पहले से ही किसी कम्पनी का
प्रबन्धक या प्रबन्ध संचालक है तो वह ऐसा तभी कर सकती है, जबकि
ऐसी नियुक्ति की स्वीकृति संचालक मण्डल में उपस्थित सभी संचालकों की सहमति से
पारित प्रस्ताव द्वारा हुई हो ।
3. यदि केन्द्रीय सरकार चाहे तो किसी भी व्यक्ति को
दो से अधिक कम्पनियों में प्रबन्धक बने रहने की अनुमति दे सकती है।
4. कोई भी प्रबन्धक एक अवधि में 5 वर्ष से अधिक अवधि के लिए नियुक्त नहीं किया जा सकता।
प्रबन्धक का पारिश्रमिक
(Remuneration of Manager)
एक कम्पनी के प्रबन्धक को कम्पनी विधान
के अनुसार मासिक भुगतान के रूप में या एक निश्चित प्रतिशत के रूप में पारिश्रमिक
दिया जा सकता है, किन्तु यह पारिश्रमिक कम्पनी के शुद्ध लाभों के 5
प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता। धारा 198 की
व्यवस्था के अनुसार एक लोक कम्पनी में संचालकों, प्रबन्ध
संचालक तथा
प्रबन्धक को दिये जाने वाला पारिश्रमिक कम्पनी के
शुद्ध लाभों के 11 प्रतिशत अधिक नहीं हो सकता।
प्रबन्ध संचालक
कम्पनी अधिनियम की धारा 2(26) के अनुसार, "प्रबन्ध संचालक से आप किसी ऐसे संचालक से है
जिसे कम्पनी के साथ अनुबन्ध द्वारा अथवा कम्पनी ही व्यापक सभा में पारित किये गये
प्रस्ताव द्वारा अथवा संचालक मण्डल की सभा में पारित प्रस्ताव द्वारा अथवा कम्पनी
के पार्षद सीमानियम या अन्तर्नियमों द्वारा प्रबन्ध सम्बन्धी पर्याप्त अधिकार दिये
जाते हैं जिन्हें कि वह ऐसा न होने पर प्रयोग नहीं कर सकता, इसमें
ऐसे संचालक भी सम्मिलित हैं जो प्रबन्ध संचालक का स्थान ग्रहण किये हए हैं.चाहे
उसे किसी नाम से पुकारा जाता है।" इस परिभाषा के
विश्लेषण से निम्नलिखित बातें स्पष्ट हैं-
1. केवल संचालक ही प्रबन्ध संचालक बन सकता है। 2.
प्रबन्ध संचालक को प्रबन्ध करने सम्बन्धी पर्याप्त अधिकार प्राप्त
होते हैं।
3. प्रबन्ध संचालक के अधिकारी किसी समझौते, प्रस्ताव अथवा सीमानियम एवं अन्तर्नियमों के अधीन दिये जाते हैं।
निजी कम्पनियों का नियम लागू न होना-
प्रबन्ध संचालक की नियुक्ति सम्बन्धी
उपर्युक्त प्रावधान निजी कम्पनियों पर लागू नहीं होते।
१८ वीं शताब्दी में भारत में आंग्ल फांसी प्रतिद्वंद्विता का वर्णन किजिये
ReplyDeletehttps://www.mjprustudypoint.com/2019/11/Anglo-French-conflict-India-Duple.html
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