प्रविवरण क्या है -परिभाषा

प्रश्न 7. प्रविवरण क्या है ? प्रविवरण के उद्देश्य बताइए। प्रविवरण में असत्य कथनों (भूल, मिथ्यावर्णन तथा कपट) के परिणामों तथा प्रभावों की व्याख्या कीजिए।

अथवा '' कम्पनी प्रविवरण क्या है ? प्रविवरण में मिथ्यावर्णन या कपटमय विवरण के क्या परिणाम होते हैं ?

अथवा '' प्रविवरण में असत्य कथनों (भल, मिथ्यावर्णन तथा कपटो के परिणामों की व्याख्या कीजिए। संचालकों का ऐसे कथनों के सम्बन्ध में क्या दायित्व होता है ?

अथवा '' कम्पनी प्रविवरण की परिभाषा दीजिए। क्या प्रत्येक कम्पनी के लिए प्रविवरण निर्गमित करना अनिवार्य है ? प्रविवरण में असत्य कथनों के परिणामों की व्याख्या कीजिए।

अथवा '' उस व्यक्ति के अधिकार बताइए जो एक ऐसे प्रविवरण से प्रभावित हुआ है, जिसमें असत्य कथन है।

उत्तर- कम्पनी प्रविवरण का आशय एवं परिभाषा

कम्पनी के समामेलन के तुरन्त पश्चात् एक निजी कम्पनी अपना व्यापार प्रारम्भ कर सकती है, परन्तु एक सार्वजनिक कम्पनी द्वारा व्यापार प्रारम्भ करने से पूर्व पूँजी का प्रबन्ध करना होता है जिसके लिए वह जनता में प्रविवरण निर्गमित करती है।

कम्पनी अधिनियम की धारा 2 (36) के अनुसार, “प्रविवरण का आशय किसी ऐसे प्रपत्र से है जो कि प्रविवरण के रूप में वर्णित अथवा निर्गमित किया गया है और इसमें कोई ऐसा सूचना-पत्र, परिचय, विज्ञापन अथवा अन्य प्रपत्र सम्मिलित है जिससे द्वारा जनता से निक्षेप आमन्त्रित किये जाते हैं अथवा समामेलित संस्था के अंग अथवा ऋण-पत्रों को खरीदने हेतु जनता को आमन्त्रित किया जाता है।"

pravivaran kya hai , company

क्या प्रविवरण निर्गमित करना प्रत्येक कम्पनी के लिए आवश्यक है ?

एक अलोक या निजी कम्पनी के द्वारा अपने अंश जनता में नहीं बेचे जा सकस अतः उसे प्रविवरण निर्गमित करने की कोई आवश्यकता नहीं होती। यदि कोई सार्वजनिक कम्पनी अपनी अंश पूजी जनता से एकत्र करने के लिए जनता को आमन्त्रित करती है तो उस समय कम्पनी को प्रविवरण निर्गमित करना आवश्यक होता है। कम्पनी अधिनियम की धारा 55 के अनुसार निम्न दशाओं में एक सार्वजनिक या लोक कम्पनी को भी प्रविवरण निर्गमित करना आवश्यक नहीं है-

1. यदि निर्गमित अंश या ऋण-पत्र पहले से निर्गमित अंशों या ऋण-पत्रों के समान ही हो।

2. यदि कम्पनी अपने अंशों या ऋण-पत्रों को जनता में बेचना ही नहीं चाहती है।

3. यदि अंशों को निर्गमित अभिगोपन ठहराव के द्वारा हुआ हो ।

4. यदि अंशों या ऋण-पत्रों का निर्गमन वर्तमान अंशधारियों या सदस्यों को ही किया गया हो।

प्रविवरण में असत्य या मिथ्या कथन का आशय-

किसी भी कम्पनी का प्रविवरण एक ऐसा दर्पण होता है जिसके आधार पर भावी अंशधारी या ऋणधारी उस कम्पनी के अंश या ऋण-पत्र क्रय करने हेतु तैयार होते हैं । अतः प्रविवरण तैयार करने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह उसमें सभी सूचनाएँ सही-सही दे।

कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 65 के अनुसार,” प्रविवरण में उल्लिखित कोई कथन असत्य माना जायेगा यदि-

(अ) वह जिस रूप तथा सन्दर्भ में प्रस्तुत किया गया है वह भ्रमात्मक है तथा

(ब) प्रविवरण में किसी भी विषय को कोई भूल भ्रम में डालने वाली है ।

" इस प्रकार स्पष्ट है कि 'असत्य कथन' का आशय काफी व्यापक है जिनके अन्तर्गत केवल असत्य कथनों को ही नहीं बल्कि भ्रम में डालने वाली भूलों को भी शामिल किया जाता है । महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाना इसी श्रेणी में आता है ।

असत्य या मिथ्या कथनों के परिणाम यदि प्रविवरण में दिये गये कथन असत्य होते हैं तो उससे पीडित अंशधारियों को कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं तथा प्रविवरण को निर्गमन करने वाले अधिकारियों एवं कम्पनी के कुछ दायित्व उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसे अधिकारों एवं दायित्वों को अलिखित दो भागों में बांटा जा सकता है

(1) कम्पनी के विरुद्ध अंशधारियों के अधिकार-

प्रविवरण में उल्लिखित असत्य कथनों के लिए अंशधारियों को कम्पनी के विरुद्ध निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हो सकते हैं

(क) अनुबन्ध का परित्याग-

प्रविवरण में असत्य कथन को सत्य मानकर विनियोक्ता कम्पनी के अंश खरीद लेता है तो वह न्यायालय के सम्मुख आवेदन प्रस्तुत करके इस अनुबन्ध का परित्याग कर सकता है तथा अपने प्रदत्त धन को वापस ले सकता है । यह अधिकार केवल मूल क्रेता को ही प्राप्त है।

(ख) कपट के लिए क्षतिपूर्ति या हर्जाना-

कोई भी अंशधारी जिसने कपटमय कथन से प्रेरित होकर अंशों का क्रय किया है,कम्पनी से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है । इसके लिए यह आवश्यक है कि उसे खरीदे हुए अंशों व ऋण-पत्रों को वापस करना होगा। इस सम्बन्ध में Houlswroth Vs. City of Glassgo Bank का मामला महत्वपूर्ण है, जिसमें यह निर्णय दिया गया कि कम्पनी से क्षतिपूर्ति कराने के लिए यह आवश्यक है कि अंशधारी उन अंशों को त्याग दे जो उसने प्रविवरण के कपट के आधार पर खरीदे थे। यह सम्भव नहीं है कि अंशधारी अंशों को भी रखे व क्षतिपूर्ति प्राप्त करे।

(2) संचालकों अथवा अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध अंशधारियों के अधिकार-

प्रविवरण में असत्य अथवा कपटपूर्ण के आधार पर ही प्रवर्तक जनता के साथ धोखा कर सकते हैं । इसको रोकने के लिए कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत उन व्यक्तियों के कुछ विशेष दायित्व हैं जो कि प्रविवरण के निर्गमन के लिए उत्तरदायी हैं। अधिनियम की धारा 62 (I) के अन्तर्गत निम्नलिखित व्यक्ति उस व्यक्ति की क्षतिपूर्ति करेंगे जिसे प्रविवरण में दिये गये मिथ्यावर्णन के आधार पर अंशों को खरीद कर हानि उठायी है-

(i) संचालक ।

(ii) संचालक की तरह नामांकित व्यक्ति ।

(iii) प्रवर्तक ।

(iv) प्रविवरण निर्गमन का अधिकार देने वाला व्यक्ति ।

 

 

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