टिप्पणी की परिभाषा और प्रकार
प्रश्न 3. प्रतिपादन, प्रसार एवं विस्तार की दृष्टि से टिप्पणी के प्रकारों को बताइए।
अथवा ‘’टिप्पणी की परिभाषा करते हुए टिप्पणी के भेदों पर प्रकाश डालिए।
अथवा ‘’टिप्पणी की परिभाषा देते हुए उसके विभिन्न प्रकारों की विवेचना कीजिए।
अथवा ‘’
टिप्पणी का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए इसके विभिन्न प्रकारों की
विवेचना कीजिए।
उत्तर- 'टिप्पणी' शब्द अंग्रेजी भाषा के Note शब्द का हिन्दी पर्यायवाची है। टिप्पणी वे अभियुक्तियाँ हैं जिनका प्रयोग सरकारी कार्य-प्रणाली में विचाराधीन कागज या मामले के निपटारे हेतु सुझाव या निर्णय देने के लिए किया जाता है।
डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना के शब्दों
में टिप्पणी का अर्थ है, “कार्यालयों में आने वाले पत्रों पर अन्तिम
निर्णय अथवा उनके अन्तिम निपटारे तक सम्बन्धित लिपिक तथा अधिकारी जो संक्षेप में
लिखा करते हैं, वह टिप्पणी कहलाता है।”
टिप्पणी के निम्न प्रकार होते हैं-
(1) विषय-वस्तु की दृष्टि से
विषय-वस्तु की दृष्टि से टिप्पणी दो
प्रकार की होती हैं
(i) सामान्य टिप्पणी-
सामान्य टिप्पणी के अन्तर्गत ऐसी
टिप्पणी को लेते हैं जो दैनिक/रोजमर्रा की सामान्य समस्याओं पर बिना किसी छानबीन, नियम-उपनियमोल्लेख
के लिखे जाते हैं। उदाहरण के लिए एक कार्यालय में ठण्डे पानी की व्यवस्था हेतु
कूलर लगवाने के लिए लिखी जाने वाली टिप्पणियों को हम सामान्य टिप्पणी के अन्तर्गत
ले सकते हैं।
(ii) सम्पूर्ण टिप्पणी -
किसी भी जटिल मामले को सुलझाने के लिए
जो 'ब्यौरेवार टिप्पणी लिखी जाती हैं,सम्पूर्ण टिप्पणी
के अन्तर्गत इस मामले से सम्बन्धित सभी सूचनाओं,नियमों-उपनियमों,
सन्दर्भो एवं तर्कों को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
उदाहरण के लिए, किसी कर्मचारी की छुट्टियाँ बाकी नहीं हैं और
वह प्रशासन से अग्रिम अवकाश की माँग करता है। ऐसी स्थिति में प्रशासन यदि उसकी मदद
करना चाहता है तो अग्रिम अवकाश स्वीकृत किए जाने के पक्ष में सामग्री एवं तथ्यों
को प्रस्तुत करते हुए टिप्पणी प्रस्तुत करता है। ऐसी टिप्पणी सम्पूर्ण टिप्पणी कही
जाती हैं।
(2) प्रतिपादन की दृष्टि से-
प्रतिपादन की दृष्टि से टिप्पणी दो
प्रकार की होती
(i) मख्य टिप्पणी-
किसी भी समस्या पर प्रस्तुत की गयी
प्रारम्भिक टिप्पणी मुख्य टिप्पणी होती है इस मुख्य टिप्पणी में समस्या को पूरे
विवरण के साथ प्रस्तत किया जाता है, जिससे कि उच्च श्रेणी के कर्मचारियों को समस्या के
निराकरण हेत किसी सूचना का अभाव न महसूस हो । मुख्य टिप्पणी लचर या कमजोर होने पर
उच्च श्रेणी के कर्मचारी एवं अधिकारी को मुख्य टिप्पणी लिखनी चाहिए।
(ii)आनषंगिक टिप्पणी-
मुख्य टिप्पणी के आधार पर उच्च
अधिकारियों द्वारा जो अभिमत प्रस्तुत किए जाते हैं, वे उस मुख्य टिप्पणी के
सन्दर्भ में आनुषंगिक टिप्पणी कहे जाते हैं।
(3) प्रसार की दृष्टि से-
प्रसार की दृष्टि से भी टिप्पणी दो
प्रकार की होती
हैं-
(i) आन्तरिक टिप्पणी-
किसी एक कार्यालय या विभाग के अन्तर्गत
कार्यरत कर्मचारियों द्वारा उत्तरोत्तर क्रम से प्रस्तुत की गई टिप्पणी आन्तरिक होती
हैं । सामान्य मसलों को विभागीय स्तर पर ही निपटा लिया जाता है और फाइल बाहर नहीं
जाती है।
(ii) बाह्य टिप्पणी-
जब समस्या काफी जटिल होती है और उसे
निपटाने के लिए विभिन्न कार्यालयों की सम्मतियाँ माँगनी पड़ती हैं, तो
विभागेत्तर लिखे गये टिप्पण बाह्य टिप्पणी कहलाती हैं । उदाहरण के लिए, शिक्षा मन्त्रालय की किसी फाइल पर विधि मन्त्रालय या वित्त मन्त्रालय से
ली गई टिप्पणी ।
(4) विस्तार की दृष्टि से-
विस्तार की दृष्टि से भी टिप्पणी दो
प्रकार की होती
(i) विस्तृत टिप्पणी-
इसके अन्तर्गत विचाराधीन मसले पर
विस्तृत रूप लिखा जाता है. सन्दर्भ,तर्क आदि क्रमिक रूप में प्रस्तुत करके विषय को
स्पष्ट करते हुए पक्ष अथवा विपक्ष में संस्तुति की जाती है।
मुख्य टिप्पणी प्रायः विस्तृत ही होती
है।
(ii) सूक्ष्म टिप्पणी-
इसके अन्तर्गत सहमति,असहमति,
स्वीकृति, अस्वीकृति, अनुरोध
सूचक शब्द, आदेशसूचक शब्द मात्र लिखे जाते हैं।
🥺
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