उद्यमी का अर्थ एवं परिभाषा
प्रश्न 1. उद्यमी (Entrepreneur) से क्या आशय है ? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर- उद्यमी' (Entrepreneur) शब्द का उद्गम फ्रेंच भाषा के शब्द 'Enterpendre' से हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ है-'नये व्यवसाय के जोखिम को वहन करना'। वास्तव में उद्यमी वर्तमान समाज का सच्चा नायक या आर्थिक एवं सामाजिक परिवर्तनों का अग्रदूत बन गया है। साहसी या उद्यमी उत्पादन का एक प्रधान तथा पृथक् साधन है। वर्तमान युग में उत्पादन बहुत बड़े पमान पर किया जा रहा है। उद्यमी ने संगठन के कार्य में विशेषज्ञता प्राप्त कर ली है और भूमि, श्रम व पूँजी जैसे उत्पादन के साधनों का अधिकतम प्रयोग उचित रूप में करने लगा है।
उद्यमी का अर्थ एवं परिभाषाएँ
सामान्य शब्दों में उद्यमी से आशय एक ऐसे व्यक्ति से है जो नया उपक्रम प्रारम्भ करता है, आवश्यक संसाधनों को जुटाता है, व्यावसायिक क्रियाओं का प्रबन्ध व नियन्त्रण करता है, व्यवसाय से सम्बन्धित अनेक जोखिमों को उठाता है एवं व्यावसायिक चुनौतियों का सामना करके लाभ अर्जित करते हुए समाज के अधिकतम लाभ पहुंचाने का प्रयत्न करता है, जिससे राष्ट्र निरन्तर प्रगति के सोपानों पर अग्रसर होते हुए समृद्ध बन सके।
विभिन्न विद्वानों ने उद्यमी को अपने-अपने दृष्टिकोण से परिभाषित किया
है। अध्ययन की सुविधा वे अर्थव्यवस्था की दृष्टि से उद्यमी की परिभाषाओं को
निम्नलिखित वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
(1) परम्परागत अर्थव्यवस्था में-
आर्थिक विकास की प्रारम्भिक अवस्था में उत्पादन
अत्यन्त साधारण प्रक्रिया से होता था। समाज में उद्यमी के कार्य अत्यन्त सीमित थे।
परम्परागत अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित अर्थशास्त्रियों ने उद्यमी को जोखिम वहनकर्ता
के रूप में परिभाषित किया है। ये परिभाषाएँ निम्नलिखित
(i) जे.बी.से के अनुसार, "उद्यमी वह व्यक्ति है जो आर्थिक
संसाधनों को उत्पादकता एवं लाभ के निम्न क्षेत्री स उच्च क्षेत्रों की ओर
हस्तान्तरित करता है।"
(ii) फ्रैंक एच. नाइट के अनुसार, आनश्चितता वहन करना व जोखिम सहन करना उद्यमी का
प्रधान कार्य है।"
(iii) रिचर्ड कैण्टीलोन के शब्दों में, "उद्यमी वह व्यवसायी है जो उत्पत्ति
के साधनों को निश्चित मूल्य पर बेचता है।"
(2) विकासशील अर्थव्यवस्था में-
विकासशील देशों में उद्यमी को एक प्रवर्तक, संगठनकर्ता
एवं समन्वयकर्ता के रूप में देखा गया है। विकासशील अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत
विद्वानों ने उद्यमी को निम्नलिखित रूपों में परिभाषित किया है
(1) आर्थर एस. डेविंग के अनुसार, "उद्यमी
वह व्यक्ति है जो विचारों को लाभदायक व्यवसाय में रूपान्तरित करता है।"
(ii) अल्फ्रेड मार्शल के शब्दों में, "उद्यमी वह व्यक्ति है जो जोखिम
उठाने का साहस करता है, किसी कार्य के लिए आवश्यक पूँजी व
श्रम की व्यवस्था करता है, जो उसकी कार्य-योजना बनाता है तथा जो इसकी छोटी-छोटी बातों का निरीक्षण करता है।"
(iii) आक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार, "उद्यमी
वह व्यक्ति अथवा विशेषतः अनुबन्धकर्ता है जो किसी उपक्रम की स्थापना करता है तथा
जो पूँजी व श्रम के बीच मध्यस्थ का कार्य करता है।"
(iv) जेम्स बर्न के मतानुसार, "उद्यमी
वह व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह है जो किसी नये उपक्रम की स्थापना के लिए
उत्तरदायी होता है।"
(3) विकसित अर्थव्यवस्था में-
विकसित अर्थव्यवस्था में उद्यमी नव-प्रवर्तक एवं सामाजिक नायक के रूप में अपनी भूमिका का निर्वाह करता है। वह नव-प्रवर्तनों को जन्म देता है, नवीन वस्तु, तकनीक, यन्त्र, प्रणालियों एवं बाजारों की खोज करके व्यावसायिक अवसरों का लाभ उठाता है। विकसित दृष्टिकोण के अन्तर्गत विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित परिभाषाएँ प्रस्तुत की हैं
(i) जोसेफ ए. शुम्पीटर के शब्दों में, "एक विकसित देश में साहसी उस
व्यक्ति को कहते हैं जो अर्थव्यवस्था में किसी नवीन विधि का.सर्वप्रथम प्रयोग करता है।"
(i) पीटर एफ. ड्रकर के शब्दों में, "उद्यमी वह व्यक्ति है जो सदैव परिवर्तन
की खोज करता है, उस पर प्रतिक्रिया करता है तथा एक
अवसर के रूप में उसका लाभ उठाता है।
(iii) फ्रेंज के अनुसार, "उद्यमी प्रबन्धक से ऊँचा है। वह नव-प्रवर्तक एवं प्रवर्तक दोनों है।"
(iv) क्लेरेन्स डॉनहेफ के मतानुसार, "उद्यमी का सम्बन्ध मुख्य रूप से उत्पादन
सूत्रों में किए जाने वाले परिवर्तनों से होता है, जिस पर उसका
पूर्ण नियन्त्रण होता है।"
(4) समन्वित दृष्टिकोण से-
वर्तमान में विभिन्न देशों में आर्थिक के स्तर
में अन्तर पाया जाता है, जिससे उद्यमी का अर्थ एवं भूमिका
बदलती रह है। आधुनिक युग सूचना क्रान्ति का युग है। इस युग में नित नये-नये आवित हो रहे हैं । कम्प्यूटर, मोबाइल, इण्टरनेट
के क्षेत्र में निरन्तर प्रगति हो रही है। अब उद्यमी का कार्यक्षेत्र एवं दायित्व
अत्यन्त व्यापक हो गए हैं।
सारांश रूप में उद्यमी वह व्यक्ति है जो
व्यवसाय में लाभप्रद अवसरों की खोज करता है, विभिन्न आर्थिक संसाधनों को
संयोजित करके नवकरणों को जन्म देता है तथा उपक्रम में निहित विभिन्न जोखिमों एवं
अनिश्चितताओं का उचित प्रबन्ध करता है।
उद्यमी की विशेषताएँ-
उद्यमी की विशेषताओं को निम्नलिखित शीर्षकों के
आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह-
छोटे व्यवसायों में एक व्यक्ति ही उद्यमी
कहलाता है, जबकि विशाल उद्योगों में, जिनकी
स्थापना एक ही विचारधारा के अनेक लोग मिलकर करते हैं, व्यक्तियों
का समूह उद्यमी कहलाता
है I
(2) जोखिम वहनकर्ता-
उद्यमी जोखिम उठाने वाला व्यक्ति होता है। जब ।
उसके मस्तिष्क में व्यवसाय करने की भावना जाग्रत होती है, तो
उसमें जो जोखिम होता है, उसे वहन करने की क्षमता भी उसमें
होती है।
(3) साधन प्रदान करने वाला-
उद्यमी उपक्रम की स्थापना के लिए सभी आवश्यक
साधनों की व्यवस्था करता है। कुछ परिस्थितियों में उद्यमी स्वय साधनयुक्त होता है, किन्तु
बड़े व्यवसायों की स्थापना हेतु उद्यमी सरकार व विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से
साधनों की व्यवस्था करता है।
(4) नवीन उपक्रम की स्थापना-
उद्यमी केवल साधनों का एकीकरण ही नहीं करता है, बल्कि
नय उपक्रमो की स्थापना भी करता है तथा उन्हें विस्तृत रूप प्रदान करता है।
(5) नव-प्रवर्तनकत्ता-
उद्यमी वह व्यक्ति होता है जो व्यवसाय हतु
नवीनता, नवीन सोच, नवान उत्पादन तकनीक, नये
यन्त्र तथा नये बाजारों का खोज करता है। अतः उधमा नव-प्रवर्तनकर्ता है।
(6) अवसरों का विदाहुन-
उद्यमी के अन्दर सजनात्मक असन्तोष छिपा रहता है, जिसके द्वारा वह सदव व्यावसायिक अवसरों की खोज में रहता है तथा उनका विदोहन करके लाभ अर्जित करता
(7) सकारात्मक दृष्टिकोण-
उद्यमी व्यक्ति का दृष्टिकोण सदैव
कारात्मक होता है। वह व्यावसायिक बाधाओं से हार नहीं मानता और न ही हनिया की दशा
में निराश होता है। वह लक्ष्य की प्राप्ति की लिए सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है।
(8) कार्य ही लक्ष्य एवं सन्तुष्टि-
उद्यमियों के लिए उनका कार्य ही अपने भाप म
लक्ष्य एवं सन्तुष्टि का बड़ा स्रोत होता है। उद्यमी का मूल उद्देश्य आत्म-सन्तुष्टि होता है, जबकि
मौद्रिक लाभ उसके लिए गौण होता है।
(9) उच्च उपलब्धियाँ-
उद्यमी कठोर परिश्रम द्वारा असम्भव कार्यों को
करने की इच्छा रखता है तथा समाज में अलग पहचान बनाना चाहता है। अतः उद्यमी सदैव
उच्च उपलब्धियों को प्राप्त करने में विश्वास रखता है।
(10) स्वतन्त्र प्रकृति-
उद्यमी व्यक्ति का स्वभाव स्वतन्त्र रूप से
जीवन व्यतीत करने का होता है। वह प्रत्येक कार्य को अपने ढंग से करना पसन्द करता
(11) नेतृत्वकर्ता-
उद्यमी व्यावसायिक जगत् का मूलाधार है। वह
व्यवसाय एवं उद्योग को नेतृत्व प्रदान करता है तथा समाज को एक नई दिशा देता है।
(12) गतिशील प्रतिनिधि-
उद्यमी ही वह व्यक्ति है जो अपने ज्ञान एवं
नीतियों के द्वारा व्यवसाय में निरन्तर परिवर्तन करके सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को
गतिशील बना देता है। शुम्पीटर के शब्दों में, "उद्यमी का कार्य सृजनात्मक विकास
करना है।"
(13) पेशेवर प्रकृति—
पहले यह मान्यता थी कि उद्यमी पैदा होते हैं, बनाए
। नहीं जाते। किन्तु अब यह धारणा समाप्त होती जा रही है। व्यावसायिक ज्ञान, प्रशिक्षण
सुविधाओं एवं विभिन्न प्रेरणाओं की उपलब्धि के कारण अब उद्यमी भी बनाए जाते हैं, पैदा
नहीं होते।
(14) एक संस्था-
उद्यमी स्वयं में एक संस्था है, क्योंकि
यह विभिन्न संस्थाओं को जन्म देता है। आज विकासशील देशों में अनेक संस्थाएँ उद्यमी
के रूप में कार्य कर रही हैं।
(15) कार्य के प्रति समर्पण-
उद्यमी सदैव अपने कार्य के प्रति समर्पण का भाव
रखते हैं। उद्यमी में अपने लक्ष्य के प्रति तन्मयता, एकाग्रता एवं
वचनबद्धता होती है।
(16) पूँजीपति एवं विनियोजक से भिन्न-
पूँजीपति एवं विनियोजक उस व्यक्ति को माना जाता
है जो व्यवसाय के लिए पूँजी की व्यवस्था करता है व उसमें
निवेश करता है। पूँजीपति व विनियोजकों का मुख्य उद्देश्य लाभ के साथसाथ सामाजिक
एवं अन्य उद्देश्यों को पूरा करना है। अतः पूँजीपति व विनियोजकों को उद्यमी से अलग
माना गया है।
(17) उद्यमी का प्रतिफल लाभ है—
सामान्यतः उद्यमी लाभ की आशा में ही कार्य करता
है, परन्तु आधुनिक युग में उद्यमी अमौद्रिक
प्रेरणाओं की दृष्टि से भी कार्य करते हैं।
(18) विश्वासाश्रित सम्बन्ध–
वर्तमान युग निगम (Corporate) संस्कृति का युग है, जिसमें
बड़ी-बड़ी
कम्पनियों व निगमों की स्थापना की जा रही है। उद्यमी ही प्रवर्तक के रूप में इनकी
स्थापना करते हैं। अतः उद्यमी का न केवल उपक्रम, बल्कि
सम्पूर्ण समाज के साथ भी विश्वासाश्रित सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।
(19) अनुसन्धान पर बल–
आधुनिक उद्यमी वैज्ञानिक शोध एवं अनुसन्धान पर
बल देते हैं तथा सदैव प्रयोग व परिवर्तन में विश्वास करते हैं।
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