व्यवसाय मे निर्णयन का अर्थ एवं परिभाषाएँ

प्रश्न 8. “निर्णयन प्रबन्ध का सार है।" इस कथन की विवेचना कीजिए तथा निर्णयन का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।

अथवा ''निर्णयन की परिभाषा दीजिए। एक सही निर्णय पर पहुँचने के लिए क्या विधि अपनाई जाती है ?

अथवा '' निर्णयन से क्या आशय है ? निर्णयन प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

निर्णयन का अर्थ एवं परिभाषाएँ

'निर्णय लेना' अथवा 'निर्णयन' शब्द का अर्थ है-'किसी निष्कर्ष पर पहुँचना' यह उल्लेखनीय है कि निर्णयन प्रबन्ध के कार्यों का महत्त्वपूर्ण आधार है, क्योंकि व्यवसाय की स्थापना से लेकर समापन तक प्रबन्धकों को पग-पग पर विभिन्न कार्यों के सम्बन्ध में अनेक निर्णय लेने होते हैं।

जॉर्ज आर. टैरी के अनुसार,निर्णयन कुछ मापदण्डों पर आधारित दो अथवा दो से अधिक सम्भावित विकल्पों में से किसी एक विकल्प का चयन है।"

लुईस ए. ऐलन के अनुसार, "प्रबन्धकीय निर्णयन वह कार्य है जो एक प्रबन्धक निष्कर्षों पर पहुँचने के लिए करता है।"

आर. एस. डावर के अनुसार,निर्णय लेने का मतलब है कार्य समाप्त करना या व्यावहारिक भाषा में किसी निर्णय पर पहुँचना।"

कुण्ट्ज तथा ओ'डोनेल के अनुसार,निर्णयन एक प्रक्रिया को करने के विभिन्न विकल्पों में से किसी एक का वास्तविक चयन है।"

निर्णयन प्रक्रिया में निहित चरण (पद)  

अथवा ''निर्णय लेने की विधि  

अथवा ''निर्णयन प्रक्रिया

निर्णयन प्रक्रिया में सामान्यतः निम्न पदों को शामिल किया जाता है-

(1) समस्या को परिभाषित करना-

निर्णयन प्रक्रिया में सर्वप्रथम उस समस्या को स्पष्ट रूप से समझना और परिभाषित करना होता है जिसके बारे में निर्णय लिया जाना है। यह ठीक उसी तरह होता है जैसे डॉक्टर किसी मरीज का इलाज करने से पूर्व उसकी समस्या जानने का प्रयास करता है। व्यवसाय के सन्दर्भ में समस्या को परिभाषित करने की स्थिति को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है कि यदि उत्पाद की बिक्री में कमी आ रही है, तो इस कमी को रोकने के लिए क्या प्रयास किए जाएं।

vyavsay me nirnay ka arth aur paribhasha

 (2) समस्या का विश्लेषण-

समस्या की प्रारम्भिक जानकारी के पश्चात् उसका गहन विश्लेषण करना होता है। उदाहरण के लिए, समस्या यह है कि बिक्री घट रही है, तो यह विश्लेषण करना होगा कि इसके क्या कारण है; जैसेबाजार में माँग में गिरावट आई है या मूल्य बढ़ने के कारण बिक्री गिरी है या गुणवत्ता की गिरावट से बिक्री में कमी आई है या प्रबन्धकों की लापरवाही का बिक्री पर विपरीत प्रभाव पड़ा है या अन्य कोई कारण है।

(3) वैकल्पिक हलों पर विचार

समस्या का विश्लेषण करने के पश्चात् उसका समाधान करने के विभिन्न वैकल्पिक हलों पर विचार किया जाता है। उदाहरण के लिए, घटती बिक्री में वृद्धि करने के लिए मूल्य में कमी की जाए या गुणवत्ता में सुधार किया जाए या विज्ञापन पर जोर दिया जाए या नये बाजारों की तलाश की जाए।

(4) सीमित करने वाले घटकों पर विचार-

विभिन्न विकल्पों पर विचार करते समय उनसे सम्बन्धित सीमित करने वाले घटकों पर भी विचार करना होगा। उदाहरण के लिए, बिक्री में वृद्धि करने के निर्णयों पर विचार करते समय प्रतियोगिता की स्थिति, प्रबन्ध क्षमता, कच्चे माल की उपलब्धता, मशीन की कार्यक्षमता आदि घटकों पर विचार करना होगा।

(5) सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चुनाव-

विभिन्न विकल्पों पर विचार करके उसकी सीमाओं और उपयोगिताओं को ध्यान में रखते हुए सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन किया जाता है। सैद्धान्तिक रूप से ऐसा विकल्प श्रेष्ठ माना जाता है जिससे कम-से-कम साधनों के प्रयोग द्वारा अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके।

(6) निर्णय का स्पष्टीकरण-

सर्वश्रेष्ठ विकल्प के चुनाव के पश्चात् अधिकारियों को निर्णय के प्रत्येक पहलू का पूर्ण स्पष्टीकरण करना चाहिए, जिससे निर्णय को सरलता से क्रियान्वित किया जा सके।

निर्णयन का महत्त्व 

अथवा  

निर्णयन प्रबन्ध का सार है

निर्णय लेना प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। प्रत्येक व्यवसाय चाहे वह छोटा हो या बडा, प्रबन्धको को समय-समय पर विभिन्न विषयों के सन्दर्भ में निर्णय लेना पड़ता है। अत: व्यवसाय के निर्बाध संचालन के लिए निर्णय लेना न केवल आवश्यक है, वरन् अनिवार्य है।

प्रबन्ध में निर्णयन के महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं-

(1) प्रबन्धकीय कार्यों के सम्बन्ध में निर्णय-

प्रत्येक प्रबन्ध को व्यवसाय के विभिन्न कार्यों के सम्बन्ध में, चाहे वह नियोजन, संगठन, नीति-निर्धारण या नियन्त्रण से सम्बन्धित हो, अनेक निर्णय लेने पड़ते हैं। निर्णयन के अभाव में किसी भी योजना को कार्यरूप नहीं दिया जा सकता।

(2) व्यावसायिक नीतियों के निर्धारण के सम्बन्ध में निर्णय-

प्रत्येक प्रबन्ध को अपने विभाग से सम्बन्धित नीति-निर्धारण करते समय अनेक निर्णय लेने पड़ते  है I

(3) उपक्रम के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए-

प्रत्येक उपक्रम किन्हीं विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए स्थापित किया जाता है। अतः उपक्रम के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि विभिन्न कार्यों के सम्बन्ध में सोच-विचार कर निर्णय लिए जाएँ, तत्पश्चात् उन्हें क्रियान्वित किया जाए।

(4) निर्णयन की सार्वभौमिकता-

प्रबन्ध का काइ भा काय, चाह वह नियोजन, संगठन, नीति-निर्धारण या समन्वय हो, निर्णयन की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। पीटर एफ. ड्रकर ने ठीक ही कहा है, "एक प्रबन्धक जो भी कार्य करता है, वह निर्णयन पर आधारित होता है।"

(5) निर्णयन प्रबन्धकों की सफलता का सूचक है-

प्रत्येक व्यावसायिक उपक्रम में निर्णय प्रबन्धक द्वारा लिये जाते हैं। इन निर्णयों पर ही व्यवसाय की सफलता निर्भर करती है। यदि प्रबन्धक योग्य, अनुभवी तथा दूरदर्शी है, तो वह व्यवसाय के हित में निर्णय लेता है और व्यवसाय उन्नति के पथ पर अग्रसर होने लगता है। इसके विपरीत अयोग्य तथा अदूरदर्शी प्रबन्धक संस्था के पतन का कारण बन जाता है।

(6) प्रबन्ध तथा निर्णयन सहगामी हैं-

प्रबन्ध के द्वारा जो भी कार्य सम्पादित किए जाते हैं, वे निर्णय के आधार पर किए जाते हैं। पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार, "एक प्रबन्धक जो भी करता है, निर्णय द्वारा ही करता है।" इस प्रकार निर्णयन तथा प्रबन्ध, दोनों कार्य साथ-साथ चलते हैं।

(7) निर्णयन का सम्बन्ध साधन व साध्य दोनों से हो सकता है-

कुछ परिस्थितियों में साध्य (लक्ष्य) दिया जा सकता है तथा प्रबन्ध को उसे प्राप्त करने के लिए सर्वश्रेष्ठ साधन के बारे में निर्णय करना होता है। कुछ परिस्थितियों में विचार-विनिमय तथा विश्लेषण करने की क्रमागत प्रक्रिया द्वारा साध्य के सम्बन्ध में निर्णय लेना होता है।

(8) चुनौती का सामना करने में निर्णयन महत्त्वपूर्ण है-

वर्तमान युग में जो तकनीकी परिवर्तन हो रहे हैं, उनका सफलतापूर्वक सामना करने के लिए कुशल निर्णयन आवश्यक है। इन निर्णयों को क्रियाशील करने तथा इन्हीं के अनुरूप नीतियों, कार्यों एवं पद्धतियों आदि में परिवर्तन करने के लिए प्रबन्धकों द्वारा अनेक निर्णय लिये जाते हैं।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि व्यापार का स्वरूप छोटा हो या बड़ा, उसे अपने निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए, उपलब्ध साधनों का समुचित उपयोग करने के लिए, प्रबन्धकों की कार्यकुशलता व योग्यता के मापन के लिए तथा प्रबन्ध के आधारभूत कार्यों के निष्पादन के लिए आदि कार्यों में निर्णयन की पशष भूमिका है। अन्य शब्दों में, एक प्रबन्धक व्यवसाय के प्रबन्ध सचालन, नियोजन, संगठन, समन्वय तथा नीति के सम्बन्ध में निर्णय लेता है। अतः निर्णयन को प्रबन्ध का सार कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

 

 

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