भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया -अनुच्छेद 368

प्रश्न 4. भारतीय संविधान में संशोधन की पद्धति का वर्णन कीजिए।

अथवा  ''भारतीय संविधान में किन विधियों द्वारा संशोधन किया जा सकता है ?

अथवा ''अनुच्छेद 368 में वर्णित संविधान संशोधन प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-भारत में संघात्मक शासन व्यवस्था को अपनाया गया है। अत: संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और स्विट्जरलैण्ड के संविधानों की भाँति भारत के संविधान का कठोर होना आवश्यक था। किन्तु संविधान निर्माता अमेरिका जैसे अत्यधिक कठोर संविधान को अपनाकर उससे उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों से परिचित थे। अतः उनके द्वारा संविधान संशोधन के सम्बन्ध में मध्यवर्ती मार्ग को अपनाया गया है। इसी कारण भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया न तो इंग्लैण्ड के संविधान के समान अत्यधिक लचीली है और न ही अमेरिका के संविधान की भाँति अत्यधिक कठोर । 

भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया

अत: भारतीय संविधान को लचीलेपन और कठोरता का सम्मिश्रण कहा जा सकता है। पं. जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में कहा था कि "यद्यपि जहाँ तक सम्भव हो हम इस संविधान को एक ठोस और स्थायी संविधान का रूप देना चाहते हैं, संविधान में कोई स्थायित्व नहीं होता, इसमें कुछ लचीलापन होना ही चाहिए। यदि आप इसे कठोर और स्थायी बनाते हैं, तो आप एक राष्ट्र की प्रगति पर जीवित, प्राणवत् एवं शरीरधारी व्यक्तियों की प्रगति पर रोक लगा देते हैं। 

" इसी प्रकार संविधान के लचीलेपन और उसमें संशोधन की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए फाइनर ने कहा है कि "अपने निर्माण के दस वर्ष पश्चात् प्रत्येक संविधान पुराना पड़ जाता है, जिसे यदा-कदा आवश्यकतानुसार परिवर्तन करके ही वर्तमान के अनुकूल रखा जा सकता है।"

डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संविधान संशोधन प्रक्रिया को निम्न शब्दों में व्यक्त किया है, "हम संविधान के अनुच्छेदों को तीन वर्गों में विभाजित करने का विचार रखते हैं ! प्रथम वर्ग में वे अनुच्छेद होंगे जो संसद द्वारा साधारण बहुमत से संशोधित किए जा सकेंगे। उदाहरण के लिए, वे उपबन्ध लीजिए जिनका सम्बन्ध राज्यों में विधान परिषदों की स्थापना व उन्मूलन से है। द्वितीय वर्ग में वे अनुच्छेद होंगे जिनके संशोधन के लिए संसद में 2/3 बहुमत की आवश्यकता होगी। मौलिक अधिकार तथा राज्य के नीति-निदेशक तत्त्व इस वर्ग के उदाहरण हैं। तृतीय वर्ग के अनुच्छेदों में संशोधन करने के लिए संसद के 2/3 बहुमत के साथ भारतीय संघ के कम-से-कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों की स्वीकृति भी  आवश्यक होगी। राज्यों तथा संघ के मध्य शक्ति-विभाजन सम्बन्धी उपबन्ध इसी श्रेणी के हैं।"

भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार संविधान में संशोधन के लिए निम्नांकित तीन प्रणालियों को अपनाया गया है  -

(1) साधारण विधि द्वारा संशोधन,

(2) संसद के विशिष्ट बहुमत द्वारा संशोधन, तथा

(3) ससद के विशिष्ट बहुमत और राज्य विधानमण्डलों की स्वीकृति द्वारा संशोधन।

(I) साधारण विधि द्वारा संशोधन  -

संविधान के कुछ अनुच्छेदों; जैसेअनुच्छेद 2, 3, 4 और 169 में साधारण विधि-निर्माण की प्रक्रिया द्वारा संशोधन करने की व्यवस्था की गई है। इसके अन्तर्गत संसद के दोनों ही सदन अपने अलग-अलग बहुमत द्वारा संशोधन प्रस्ताव को पारित करते हैं। तत्पश्चात् उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु भेज दिया जाता है। इस प्रकार संसद के प्रत्येक सदन से साधारण बहुमत पारित होने तथा राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल जाने पर ही संविधान के अनुच्छेदों में संशोधन किया जा सकता है।

संसद स्वप्रेरणा, राज्य विधानमण्डलों या अन्य किसी अधिकारी के अनुरोध पर इस प्रकार का संशोधन ला सकती है। इसके अन्तर्गत संसद राष्ट्रपति को पूर्व अनुमति से विधि के द्वारा नये राज्यों का निर्माण कर सकती है व राज्य के क्षेत्र, सीमा और नाम में परिवर्तन कर सकती है। इसी प्रकार राज्य विधानमण्डलों के अनुरोध पर संसद किसी राज्य की व्यवस्थापिका के द्वितीय अथवा उच्च सदन का उन्मूलन या उसकी नये सिरे से सृष्टि कर सकती है। संसद संविधान की नागरिकता सम्बन्धी, अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन सम्बन्धी तथा क्षेत्रों की प्रशासन सम्बन्धी व्यवस्थाएँ भी सामान्य विधि द्वारा संशोधित कर सकती है।

साधारण विधि द्वारा हो सकने वाले इन संशोधनों से संविधान का लचीलापन स्पष्ट होता है और अब तक इस प्रक्रिया द्वारा संविधान में कई बार संशोधन हो

(2) संसद के विशिष्ट बहुमत द्वारा संशोधन

संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संशोधन करने के लिए संसद के विशिष्ट बहुमत की आवश्यकता होती है; जैसेमौलिक अधिकार, नीति-निदेशक तत्त्व तथा न्यायपालिका की शक्तियों से सम्बन्धित अनुच्छेदों में संशोधन विशिष्ट बहुमत द्वारा ही होता है। इस प्रक्रिया द्वारा संशोधन सम्बन्धी प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा  सकता है। यदि यह प्रस्ताव संसद का वह सदन कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के 2/3 मतों से उस विधेयक को पारित कर दे, तो वह दूसरे सदन में भेज दिया जाता है और उस सदन में भी इसी प्रकार पारित होने के बाद वह राष्ट्रपति की अनुमति हेतु भेज दिया जाता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलते ही यह संशोधन संविधान का अंग हो जाता है। संशोधन प्रस्ताव पर संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग विशिष्ट बहुमत से स्वीकृति दियो जाना आवश्यक है।

(3) संसद के विशिष्ट बहुमत और राज्य विधानमण्डलों की स्वीकृति द्वारा संशोधन  -

संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संशोधन करने के लिए संसद के विशिष्ट बहुमत तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से पारित विधेयक को राज्यों के कुल विधानमण्डलों के कम-से-कम आधे विधानमण्डलों की स्वीकृति की आवश्यकता होती है, साथ ही राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल जाने के पश्चात् प्रस्ताव के अनुसार संविधान में संशोधन किया जा सकता है।

संविधान के तृतीय वर्ग में केवल वे ही बातें आती हैं जिनका सम्बन्ध राज्यों की शक्तियों, अधिकारों तथा संविधान के संघीय स्वरूप से है। इस वर्ग में संविधान की निम्नलिखित व्यवस्थाएँ आती हैं  -

(i) राष्ट्रपति का निर्वाचन (अनुच्छेद 54), CHES

(ii) राष्ट्रपति के निर्वाचन की पद्धति (अनुच्छेद 55), EASINESS

(iii) संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार (अनुच्छेद 73),

(iv) राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार (अनुच्छेद 162),

(v) संघीय क्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 241),

(vi) संघीय न्यायपालिका (संविधान के भाग 5 का अध्याय 4),

(vii) राज्यों में उच्च न्यायालय (संविधान के भाग 6 का अध्याय 5),

(viii) संघ तथा राज्यों के मध्य विधायी सम्बन्ध (संविधान के भाग 11 का अध्याय 1),

(ix) सातवीं अनुसूची में से कोई भी सूची,

(x) संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व, तथा

(xi) संविधान के संशोधन की प्रक्रिया से सम्बन्धित उपबन्ध (अनुच्छेद 368)

भारतीय संविधान में संशोधन के लिए अपनाई गई उपर्युक्त प्रक्रिया के आधार पर कहा जा सकता है कि भारतीय संविधान लचीलेपन और कठोरता का अनूठा मिश्रण है।

 

 

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