भारतीय संविधान के स्त्रोत
प्रश्न 2. भारतीय संविधान के स्त्रोतों की विवेचना कीजिए।
अथवा "भारतीय संविधान उधार का
थैला है।" समझाइए।
उत्तर- भारतीय संविधान का निर्माण विश्व के अनेक दूसरे देशों की तुलना में बहुत
बाद में हुआ। संविधान शास्त्र इस समय तक पर्याप्त विकसित हो चुका था। अतः भारतीय
संविधान निर्माताओं ने किसी नये संवैधानिक ढाँचे की खोज करने के स्थान पर विश्व के
अनेक प्रचलित संविधानों के श्रेष्ठ उपबन्धों को भारतीय संविधान में सम्मिलित कर
लिया। उन्होंने दूसरे देशों के अनुभव और व्यावहारिक ज्ञान को भारतीय परिस्थितियों
के अनुकूल होने पर बिना किसी संकोच के अपने संविधान में अपना लिया।
भारतीय संविधान के
स्त्रोत –
भारतीय संविधान के
प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं -
(I)
सन् 1935 के भारत सरकार अधिनियम का प्रभाव -
भारतीय संविधान का एक प्रमुख स्रोत स्वयं सन् 1935 का भारत सरकार अधिनियम है। नि:सन्देह भारतीय संविधान पर इस अधिनियम का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है। इस अधिनियम से न केवल महत्त्वपूर्ण उपबन्ध लिए गए हैं, अपितु ऐसे अधिकांश उपबन्धों की भाषा भी अधिनियम से ली गई है। भारतीय संविधान के 200 से भी अधिक अनुच्छेद ऐसे हैं जो या तो ज्यों-के-त्यों सन् 1935 के अधिनियम से लिए गए हैं या फिर वाक्य रचना में साधारण परिवर्तन कर लिया गया है। भारतीय संविधान एवं सन् 1935 के अधिनियम की प्रमुख समानताओं का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है -
(1) संविधान का अनुच्छेद 256 भाषा व सार में सन् 1935 के अधिनियम के सेक्शन 126 से मिलता है। संविधान के
अनुच्छेद 256 में व्यवस्था है कि "प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति इस प्रकार प्रयुक्त होगी जिससे
संविधान द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन हो और संघ की कार्यपालिका शक्ति को इस
सम्बन्ध में राज्यों को उचित निर्देशन देने का अधिकार है।"
(2) संविधान के अनुच्छेद 352
व 353, जिनके द्वारा राष्ट्रपति का
आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार दिया गया है, भाषा व सार
में सन् 1935 के अधिनियम के सेक्शन 102 के अनुरूप हैं, जिनके द्वारा गवर्नर-जनरल को रक्षा
कवचों (Safeguards) के नाम से आपातकालीन शक्तियाँ प्राप्त
थीं।
(3) संविधान के अनुच्छेद 356
के अन्तर्गत व्यवस्था है कि
किसी राज्य में संवैधानिक तन्त्र के विफल हो जाने पर आपातकाल की घोषणा की जा सकती
है। सन् 1935 के अधिनियम के सेक्शन 92
में भी इसी प्रकार गवर्नरों को गवर्नर-जनरल की सहमति से अपने
प्रान्त में संविधान को स्थगित करने का अधिकार प्राप्त था।
(4) संविधान का अनुच्छेद 251,
जिसमें संघीय और राज्य के काननों में परस्पर विरोध होने पर संघीय
कानूनों को मान्यता देने की बात कही गई है सन् 1935 के अधिनियम के सेक्शन 107 की
नकल मात्र है।
(5) भारतीय संविधान व सन् 1935
के अधिनियम की उपर्युक्त भाषा
सम्बन्धी समानता के अतिरिक्त उसमें निम्नलिखित सिद्धान्तों व सामग्री से सम्बन्धित
समानताएँ भी हैं I
(i) दोनों ही संविधानों में
संघात्मक शासन प्रणाली की स्थापना की गई है, साथ ही दोनों
में केन्द्रीय शासन को अधिक शक्तियाँ दी गई हैं।
(ii) सन् 1935 के अधिनियम द्वारा केन्द्र व प्रान्तों में शक्तियों का
विभाजन निम्नलिखित सूचियों के अन्तर्गत हुआ है—
(क) संघ सूची,
(ख) प्रान्त सूची, और
(ग) समवर्ती सूची।
नये संविधान में भी
इन्हीं तीन सूचियों का उल्लेख है, केवल 'प्रान्त'
के स्थान पर 'राज्य' शब्द
का प्रयोग हुआ है।
(iii) सन् 1935 के अधिनियम द्वारा गवर्नर-जनरल को प्रान्तीय शासन में
हस्तक्षेप करने का अधिकार था और वह इसके आधार पर संघात्मक शासन को एकात्मक शासन
में बदल सकता था। नये संविधान द्वारा राष्ट्रपति को भी इसी प्रकार की शक्ति
प्राप्त है।
(iv) दोनों ही संविधानों में संसदीय
शासन प्रणाली की व्यवस्था है।
(v) सन् 1935 के अधिनियम के अन्तर्गत केन्द्रीय विधानमण्डल में दो .
सदन थे तथा कुछ प्रान्तों में भी दो सदनों की व्यवस्था थी। नये संविधान में भी
केन्द्रीय संसद में दो सदन हैं तथा कुछ राज्यों में दो और कुछ राज्यों में एक सदन
वाले विधानमण्डल हैं।
(vi) सन् 1935 के अधिनियम में गवर्नरों की नियुक्ति सम्राट् के परामर्श
पर गवर्नर-जनरल द्वारा होती थी। गवर्नर-जनरल भारत सरकार के
नियन्त्रण में थे। नये संविधान में भी राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा
होती है और वे राष्ट्रपति के प्रसाद-पर्यन्त ही अपने पदों पर बने रह सकते हैं। सन्
1935 के अधिनियम में गवर्नरों को स्वविवेकी
शक्तियाँ प्राप्त थीं। नये संविधान में भी राज्यपालों को स्वविवेकी शक्तियाँ
प्राप्त हैं, भले ही वे सन् 1935 के अधिनियम की भाँति विस्तृत न हों।
(vii) दोनों संविधानों के
मिलते-जुलते कुछ अन्य उपबन्ध इस प्रकार हैंविधानमण्डलों की कार्य प्रणाली व उनके
पदाधिकारी, न्याय व्यवस्था, लोक सेवा आयोग आदि। सन् 1956
से पूर्व भारत में जो कई प्रकार के राज्य थे, वे
भी सन् 1935 के अधिनियम की उपज थे।
(viii) अन्तत: सन् 1935
का अधिनियम और भारत का नया संविधान,
दोनों ही विस्तृत प्रलेख हैं, जिनमें
केन्द्रीय और प्रान्तीय, दोनों शासन व्यवस्थाओं का उल्लेख
है।
सन् 1935
के अधिनियम और वर्तमान संविधान
के उपर्युक्त उपबन्धों से स्पष्ट है कि नया संविधान उक्त अधिनियम का बहुत ऋणी है। डॉ.
अम्बेडकर ने इस बात को स्वीकार करते हुए संविधान सभा में कहा था कि
"मैं इस बात में किसी प्रकार की लज्जा अनुभव नहीं करता कि हमने
नये संविधान का निर्माण करते समय सन् 1935 के
अधिनियम की बहुत-सी बातों को ग्रहण कर लिया है। दसरे
प्रलेखों से इस प्रकार की बातें ग्रहण करना है। यह कोई चोरी नहीं है। संविधान के
मौलिक विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं होता है।"
(ii) ब्रिटिश संविधान का प्रभाव -
भारतीय संविधान के
समस्त संसदीय स्वरूप और उसके क्रियान्वयन के नियमों को ब्रिटिश संविधान और उसकी
परम्पराओं से लिया गया है। इसका कारण यह है कि भारत दीर्घकाल तक ब्रिटेन के
आधिपत्य में रहा। इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने अनेक अधिनियमों द्वारा यहाँ अनेक
संसदीय संस्थाओं की स्थापना की। भारत के लोग इन संस्थाओं से भलीभाँति परिचित थे।
ऐसी परिस्थिति में ब्रिटिश संविधान भारतीय संविधान का एक स्रोत बन गया। हमारे
संविधान में राष्ट्रपति की वही स्थिति है जो ब्रिटेन में सम्राट् या साम्राज्ञी की
है। जैसे ब्रिटेन में लॉर्ड सभा की अपेक्षा कॉमन सभा अधिक शक्तिशाली है और
मन्त्रिमण्डल केवल कॉमन सभा के प्रति ही उत्तरदायी है,
बिल्कुल ऐसी ही व्यवस्था भारत में की गई है। संसदीय शासन के प्रसंग
में यह उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश संसदीय प्रणाली अधिकांशतया अलिखित संविधान और
परम्पराओं पर आधारित है, परन्तु भारत में परम्पराओं का
क्षेत्र सीमित है, क्योंकि यहाँ संसदीय प्रणाली का आधार
लिखित संविधान है।
(III)
संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से ग्रहण किए गए सिद्धान्त -
(1) भारतीय संविधान की
प्रस्तावना के कुछ शब्द अमेरिका के संविधान की प्रस्तावना के शब्दों से
मिलते-जुलते हैं। अमेरिका के संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि "हम संयुक्त राज्य अमेरिका
के लोग……….संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए यह सविधान स्थापित
करते हैं।“ इसी प्रकार भारतीय संविधान की प्रस्तावना में
कहा गया है कि "हम भारत के लोग……..इस संविधान सभा में आज 26 नवम्बर,
1949 को इस संविधान को स्वीकत. अधिनियम आत्म-अर्पित करते हैं।"
इस प्रकार दोनों संविधानों की प्रस्तावना से यह होता है कि दोनों
संविधानों की शक्ति का अन्तिम स्रोत इन देशों के लोग ही हैं।
(2) भारतीय संविधान के तृतीय
अध्याय में वर्णित मौलिक अधिकारों पर संयुक्त राज्य अमेरिका के 'बिल ऑफ राइट्स' का प्रभाव स्पष्ट प्रतीत होता
है।
(3) अमेरिका के संविधान की भाँति
भारतीय संविधान ने भी उप-राष्टपति के पद की व्यवस्था की है। दोनों देशों में शासन
प्रणालियों का स्वरूप भिन्न-भिन्न होने के कारण दोनों देशों के उप-राष्ट्रपतियों
की स्थिति यद्यपि एक जैसी नहीं है, तथापि भारत के संविधान
निर्माताओं ने अपने संविधान में उप-राष्ट्रपति के पद की व्यवस्था करने की प्रेरणा
संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से ही ली थी।
(4) भारत के सर्वोच्च न्यायालय
का संगठन व न्यायाधीशों की स्वतन्त्रता व उनकी पद-मुक्ति की वही विधि है, जैसी अमेरिका में है। यह दूसरी बात है कि भारत में अमेरिका की भाँति दोहरी
न्याय व्यवस्था नहीं है।
(5) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368
में अंकित की गई संविधान संशोधन प्रक्रिया का कुछ पक्ष अमेरिका के
संविधान की संशोधन प्रक्रिया से प्रभावित है। अमेरिका में कांग्रेस द्वारा पारित
संशोधन 3/4 राज्यों के विधानमण्डलों या सम्मेलनों के द्वारा
स्वीकार किया जाना आवश्यक है। इसी प्रकार हमारे संविधान में कुछ अनुच्छेदों के
सम्बन्ध में संसद द्वारा पारित संशोधन आधे राज्यों । के विधानमण्डलों द्वारा
स्वीकृत होना अनिवार्य है।
(IV)
कनाडा के संविधान से ग्रहण किए गए सिद्धान्त -
(1) भारतीय संघ व्यवस्था का मूल
आधार कनाडा का संविधान है। भारतीय संविधान के प्रथम अनुच्छेद में भारत को 'Union
of States' कहा गया है। 'Union' शब्द
कनाडा के संविधान से लिया गया है।
(2) राज्यों के राज्यपालों की
नियुक्ति करने का ढंग भी कनाडा के संविधान की देन है। कनाडा में राज्य के गवर्नरों
की नियुक्ति मन्त्रिमण्डल के परामर्श के अनुसार गवर्नर-जनरल द्वारा की जाती है।
इसी प्रकार भारत में राष्ट्रपति राज्यपालों की नियुक्ति करता है।
(3) भारत में शक्तिशाली केन्द्र
की व्यवस्था कनाडा के संविधान से प्रेरित होकर की गई है। कनाडा की भाँति अवशिष्ट
शक्तियाँ भारत में केन्द्र को दी गई हैं।
(V)
आयरलैण्ड के संविधान से ग्रहण किए गए सिद्धान्त -
(1) भारत के राष्ट्रपति को
राज्यसभा में 12 सदस्य मनोनीत करने का अधिकार दिया गया है।
भारतीय संविधान की यह व्यवस्था आयरलैण्ड के संविधान से प्रभावित है।
(2) भारतीय संविधान के चतर्थ भाग
में वर्णित राज्य के नीति-निदेशक सिद्धान्त आयरलैण्ड के संविधान से प्रेरित होकर
ही अंकित किए गए हैं।
(VI)
ऑस्ट्रेलिया के संविधान से ग्रहण किए गए सिद्धान्त -
(1) यद्यपि सन् 1935 के अधिनियम में केन्द्र तथा प्रान्तों में शक्तियों के
विभाजन के सम्बन्ध में समवर्ती सूची सम्मिलित की गई थी,
परन्तु वर्तमान भारतीय संविधान में समवर्ती सूची अंकित करने के लिए
संविधान निर्माता ऑस्ट्रेलिया के संविधान से प्रेरित हुए। इस सम्बन्ध में डॉ.
अम्बेडकर ने संविधान सभा में बोलते हुए कहा था कि "भारतीय संविधान में समवर्ती सूची ऑस्ट्रेलिया के संविधान से प्रभावित होकर
सम्मिलित की गई है।"
(2) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124
की उप-धारा 4 के अधीन सर्वोच्च
न्यायालय के न्यायाधीशों को प्रमाणित हो चुके कदाचार या अयोग्यता के कारण पदच्युत
किया जा सकता है। 'प्रमाणित हो चुका कदाचार या अयोग्यता
‘ शब्दावली ऑस्ट्रेलिया के संविधान से ली गई है।
(VII)
दक्षिण अफ्रीका के संविधान से ग्रहण किए गए सिद्धान्त -
(1) भारत में राज्यसभा के
सदस्यों का चुनाव राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व
के आधार पर होता है। भारतीय संविधान की यह व्यवस्था दक्षिण अफ्रीका के संविधान से
ग्रहण की गई है।
(2) दक्षिण अफ्रीका की संसद
साधारण कानूनों को पारित करने की विधि द्वारा संविधान में परिवर्तन कर सकती है।
हमारे संविधान में भी कुछ अनुच्छेद ऐसे हैं जिनमें संसद साधारण कानून बनाने की
प्रक्रिया द्वारा परिवर्तन कर सकती है I इस प्रकार हमारे
संविधान की संशोधन विधि का यह पक्ष दक्षिण अफ्रीका के संविधान से प्रभावित है।
(VIII)
जर्मनी के संविधान का प्रभाव -
भारतीय राष्ट्रपति
को आपातकाल में संविधान को स्थगित करने की जो शक्ति दी गई है,
वह जर्मनी के वायमर संविधान से मिलती-जुलती है।
समालोचना -
भारतीय संविधान में
उपर्युक्त संविधानों के प्रभाव व उनके उपबन्धों को शामिल कर लेने के कारण आलोचकों
ने संविधान को 'भानुमती के कुनबे की भाँति
गड़बड़' कहा है। कुछ आलोचकों ने इसे 'उधार का थैला' कहा है, जिसके
कारण संविधान पेचीदा, जटिल और अस्पष्ट हो गया है। भारतीय
संविधान के सम्बन्ध में उपर्युक्त आलोचनाएँ ठीक नहीं हैं। इन आलोचनाओं को अनुचित
बताते हुए संविधान के समर्थकों ने निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए हैं -
(1) संविधान निर्माताओं ने अन्धे
होकर विदेशी संविधानों की नकल नहीं की है। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन
के संविधान से संसदीय प्रणाली को ग्रहण किया गया है, परन्तु
उसके साथ ब्रिटेन को एकात्मक प्रणाली को ग्रहण नहीं किया. क्योंकि वह भारतीय
परिस्थितियों के अनुकूल नहीं थी।
(2) भारतीय संविधान सन् 1935
के अधिनियम की कार्बन कॉपी नहीं है। पं.
नेहरू के शब्दों में, “1935 का अधिनियम दासता का एक
नया चार्टर था।" इसके विपरीत नया संविधान केवल भारतीयों के द्वारा बनाया गया है और समस्त
शासन सत्ता जनता में ही निहित है। नये संविधान में न केवल वयस्क मताधिकार की
व्यवस्था की गई है, अपितु नागरिकों को महत्त्वपूर्ण मूल
अधिकारों से भी सुशोभित किया गया है।
(3) वर्तमान समय में कोई भी देश
मौलिक संविधान बनाने की गारण्टी नहीं दे सकता। हमारे संविधान की मौलिकता यही है कि
इसमें स्वतन्त्रतापूर्वक विश्व के प्रायः सभी संविधानों के श्रेष्ठतम भागों को
सम्मिलित कर लिया गया है।
(4) अन्ततः संविधान निर्माता
यथार्थवादी रहना चाहते थे, इसीलिए उनका लक्ष्य ऐसा संविधान
बनाना था जो भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल हो। निःसन्देह संविधान निर्माताओं को
अपने लक्ष्य में सफलता मिली है।
निष्कर्ष रूप में हम डॉ. एम. पी. शर्मा के मत को उद्धृत कर सकते हैं, जो इस प्रकार है-"हमारे संविधान निर्माताओं का लक्ष्य यह नहीं था कि वे कोई मौलिक अथवा अभूतपूर्व संविधान प्रस्तुत करें। वे केवल अच्छा और व्यावहारिक संविधान बनाना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने विदेशी संविधानों की उन धाराओं और व्यवस्थाओं को मुक्त रूप से अपने संविधान में ग्रहण कर लिया जो उन देशों में सफल रही थीं और भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल थीं।"
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