न्यायिक पुनरावलोकन -अमेरिका,फ्रांस,स्विट्जरलैण्ड

प्रश्न 12. न्यायिक पुनरावलोकन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस तथा स्विट्जरलैण्ड में यह किस प्रकार व्यवहार में आया है ?

अथवा "न्यायिक पुनरावलोकन अमेरिका के राजनीतिक जीवन का आधार है।" विवेचना कीजिए।

उत्तर-

न्यायिक पुनरावलोकन

व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका के कार्यों के संविधान के विपरीत होने की दशा में न्यायालयों को उन्हें अवैध घोषित करने की शक्ति होती है। न्यायालयों के इस अधिकार को न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति या अधिकार कहते हैं। कभी-कभी इसे 'न्यायिक निषेधाधिकार' की संज्ञा भी दी जाती है।

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डिमॉक के अनुसार, "न्यायिक पुनरावलोकन व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानून और कार्यपालिका या प्रशासकीय अधिकारियों द्वारा किए गए कार्यों से सम्बन्धित अपने सामने आए मुकदमों में न्यायालय द्वारा उस जाँच को कहते हैं जिसके अन्तर्गत वे निर्धारित करते हैं कि कानून का कार्य संविधान द्वारा प्रतिबन्धित है या नहीं।"

कॉरविन ने न्यायिक पुनरावलोकन को परिभाषित करते हुए लिखा है, "न्यायिक पुनरावलोकन का अभिप्राय न्यायालयों की उस शक्ति से है जो उन्हें अपने न्याय क्षेत्र के अन्तर्गत लागू होने वाले व्यवस्थापिका के कानूनों की वैधानिकता का निर्णय देने के सम्बन्ध में प्राप्त है, जिन्हें वे अवैध और व्यर्थ  समझे।"

एच. जे. अब्राहम के अनुसार, "न्यायिक पुनरावलोकन न्यायालयों की वह शक्ति है जो किसी कानून या सरकारी कार्य को असंवैधानिक घोषित कर सकती है और उसके प्रयोग को रोक सकती है।"

एनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका के अनुसार, "न्यायिक पुनरावलोकन न्यायालयों की वह शक्ति है जिसके द्वारा न्यायालय किसी देश की सरकार के विधायिनी, कार्यकारिणी और प्रशासकीय अंगों के कार्यों का परीक्षण करता है तथा यह देखता है कि वे संविधान के प्रावधानों के अनुकूल हैं।"

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि न्यायालय को विधायिका और कार्यपालिका के कार्यों की जाँच करने की शक्ति प्राप्त है। वह संविधान का संरक्षक है। इस हैसियत से यह देखना उसका पुनीत कर्त्तव्य है कि विधायिका का कोई कानून देश के मौलिक कानून या संविधान के किसी प्रावधान के प्रतिकूल तो नहीं है।

अमेरिका में न्यायिक पुनरावलोकन

अमेरिका में सर्वप्रथम 1803 ई. में मारबरी बनाम मेडिसन के मुकदमे में मुख्य न्यायाधीश मार्शल ने न्यायिक पुनरावलोकन के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था। न्यायाधीश मार्शल ने स्पष्ट रूप से यह घोषणा की थी कि न्यायालय कानून की वैधानिकता की जाँच कर सकता है, संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करने पर उसे अवैध घोषित कर सकता है तथा उसे लागू करने से अस्वीकार कर सकता है।

न्यायिक पुनरावलोकन के सम्बन्ध में दी गई व्याख्याओं के आधार पर निम्न तथ्य स्पष्ट होते हैं  -

(1) संविधान देश का सर्वोच्च कानून है।

(2) विधानमण्डल द्वारा पारित विधेयक या कार्यपालिका के आदेश संविधान का विरोध करने पर अवैध करार किए जा सकते हैं।

(3) न्यायालय को संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है।

(4) न्यायालय किसी भी विधेयक या कार्यपालिका के आदेश की संवैधानिकता की जाँच कर सकता है।

(5) संविधान के प्रतिकूल पाए जाने वाले विधेयक एवं कार्यपालिका आदेश को न्यायालय अवैध घोषित कर उसे लागू करने से अस्वीकार कर सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनरावलोकन के अधिकार के सम्बन्ध में कुछ महत्त्वपूर्ण बातें निम्नवत् हैं -

(1) सर्वोच्च न्यायालय अपनी ही पहल पर किसी कानून की वैधानिकता या अवैधानिकता पर विचार नहीं कर सकता। इसके द्वारा यह कार्य तभी किया जा सकता है जब कोई व्यक्ति या समुदाय किसी विवाद या अपील के अन्तर्गत किसी कानून की संवैधानिकता को चुनौती दे।

(2) न्यायिक पुनरावलोकन के अधिकार का प्रयोग केवल सर्वोच्च न्यायालय ही नहीं करता, अपितु संघीय न्यायालय और राज्यों के उच्च न्यायालय भी इस अधिकार का प्रयोग करते हैं। इतना अवश्य है कि उनके निर्णय के विरुद्ध  सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है और इस सम्बन्ध में अन्तिम निर्णायक सर्वोच्च न्यायालय ही है।

स्विट्जरलैण्ड में न्यायिक पुनरावलोकन

कुछ विद्वानों ने स्विट्जरलैण्ड के संविधान में न्यायिक पुनरावलोकन का सिद्धान्त ढूँढने का प्रयास किया है। वस्तुतः स्विट्जरलैण्ड के न्यायालय को आंशिक रूप से न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार प्राप्त है। स्विस संविधान के अनुच्छेद 113  में कहा गया है कि "सभी मामलों में संघीय न्यायालय संघीय सभा द्वारा पारित सभी विधियों तथा सर्वमान्य आज्ञाओं को तथा संघीय सभा द्वारा अनुमोदित विधियों को मान्यता देने पर विवश होगा।" इस प्रकार स्विट्जरलैण्ड में संघीय न्यायाधिकरण को न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार प्राप्त नहीं है। उसे केवल कैण्टनों की विधियों की संवैधानिकता की जाँच करने का अधिकार है। स्विट्जरलैण्ड में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के कारण न्यायिक पुनरावलोकन के सिद्धान्त का कोई अर्थ नहीं रह गया है।

फ्रांस में न्यायिक पुनरावलोकन

फ्रांस में न्यायपालिका को सामान्य प्रशासकीय यन्त्र का एक अंग माना जाता है और इस कारण फ्रांस में नियमित न्यायपालिका कानूनों की संवैधानिकता की जाँच नहीं कर सकती। इस प्रकार फ्रांस में न्यायिक पुनरावलोकन का अभाव  है।

फ्रांस के पाँचवें गणतन्त्र के संविधान में यह प्रावधान है कि संवैधानिक परिषद् कानूनों की वैधता का परीक्षण कर सकती है। संवैधानिक परिषद् को यह अधिकार प्राप्त है कि वह किसी भी प्रस्तावित कानून को उसको लागू किए जाने से पूर्व संवैधानिकता का परीक्षण करके यह निश्चित करे कि वह वैध है अथवा नहीं। इस उद्देश्य के लिए राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री अथवा दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों में से कोई भी किसी भी ऐसे कानून को, जिसे संसद ने पारित किया हो, लागू किए जाने से पूर्व संवैधानिक परिषद् के पास भेज सकते हैं, ताकि वह यह निश्चित कर सके कि वह कानून संवैधानिक है अथवा नहीं। संसद द्वारा पारित किसी भी कानून को यदि संवैधानिक परिषद् अवैध घोषित कर दे, तो उसे लागू नहीं किया जा सकता है। किसी भी कानून को संवैधानिक परिषद् के पास परीक्षण के लिए भेजे जाने के 1 माह के भीतर उसे अपना निर्णय अवश्य देना होता है। परन्तु किसी संकट के समय या विशेष परिस्थिति में यदि सरकार चाहे तो संवैधानिक परिषद् से अपना निर्णय 8 दिन में देने के लिए कह सकती है। इस  परिषद् के निर्णय अन्तिम होते हैं। इसके निर्णय के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती है।

इस प्रकार फ्रांस के संविधान में कानूनों की वैधता का परीक्षण करने की जिस प्रक्रिया का वर्णन किया गया है, वह विचित्र और अनुपम है।

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