राजनीतिक संस्कृति की परिभाषा
प्रश्न 7. राजनीतिक संस्कृति का अर्थ तथा प्रकार स्पष्ट कीजिए। आधुनिक राजनीतिक विश्लेषण में इस अवधारणा का क्या महत्त्व है ?
अथवा ''राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा
पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा ''राजनीतिक संस्कृति से आप क्या
समझते हैं ? इसके विविध रूप बताइए।
अथवा ''राजनीतिक संस्कृति से आप क्या
समझते हैं ? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा ''राजनीतिक संस्कृति को परिभाषित
कीजिए तथा इसके प्रकार बताइए।
अथवा ''राजनीतिक संस्कृति की परिभाषा
दीजिए। राजनीतिक संस्कृति के तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
अथवा ''राजनीतिक संस्कृति का अर्थ और
प्रकार स्पष्ट कीजिए। आधुनिक राजनीतिक विश्लेषण में इस अवधारणा का क्या महत्त्व है
?
उत्तर-
राजनीतिक संस्कृति का अर्थ -
'राजनीतिक संस्कृति' शब्द का अर्थ स्पष्ट करना या उसकी परिभाषा देना काफी कठिन कार्य है। यह सामाजिक संस्कृति का ही अंग है। सामाजिक संस्कृति को मनुष्य का जीवन के प्रति दृष्टिकोण कहा जाता है और इसी प्रकार राजनीतिक संस्कृति को भी परिभाषित किया जा सकता है। 'राजनीतिक संस्कृति' शब्द की वर्तमान में जिस अर्थ में व्याख्या होती है, उसका सर्वप्रथम प्रयोग आमण्ड ने अपने निबन्ध 'Comparative Political Systems' में सन् 1956 में किया था।
राजनीतिक संस्कृति राजनीतिक पद्धति के प्रति नागरिकों का दृष्टिकोण है। इसमें राजनीतिक पद्धति के प्रति नागरिकों का दृष्टिकोण, विश्वास, भावनाएँ, मूल्य और राजनीतिक विश्वास सम्मिलित है। यह व्यक्तियों का, जो कि राजनीतिक पद्धति के सदस्य हैं, पद्धति में हो रही राजनीतिक गतिविधियों के प्रति दृष्टिकोण है। प्रत्येक समाज के व्यक्ति भावनाओं, विचारों, नैतिकता के सम्बन्ध में सामान्य विचार रखते हैं और मनुष्यों की यह सामान्य प्रवृत्ति कुछ मूल्यों, विश्वासों एवं दृष्टिकोणों के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचती है और वही उस समाज की संस्कृति कहलाती है।
प्रत्येक समाज यह विश्वास करता है कि सरकार को किस प्रकार कार्य करना चाहिए और कौन-से कार्य करने चाहिए, यही राजनीतिक संस्कृति है। परन्तु यह विश्वास सरकार के परिचालन एवं कार्यों तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि उससे आगे बढ़कर प्रत्येक राजनीतिक, गैरराजनीतिक संस्थाओं, संरचनाओं, उनके उद्देश्यों, मानकों एवं गतिविधियों से भी सम्बन्धित हो जाता है।
इस प्रकार राजनीतिक संस्कृति
विश्वासों, भावनाओं तथा दृष्टिकोणों का एक समूह है, जो प्रत्येक राजनीतिक पद्धति में राजनीतिक गतिविधियों को समझने में सहायता
देता है और सरकारी संस्थाओं, शासकों तथा नागरिकों के व्यवहार
को परिभाषित करता है। इस प्रकार राजनीतिक संस्कृति में राजनीतिक आदर्श व राज्य के
प्रतिबन्ध, दोनों ही सम्मिलित हो जाते हैं और राजनीतिक
संस्कृति मनोवैज्ञानिक व आत्मनिष्ठ पहलुओं का योग रूप में बाह्य रूप बन जाती है।
राजनीतिक संस्कृति राजनीतिक विचारधारा, राष्ट्रीय
आचार व लोकाचार, राष्ट्रीय भावना, राष्ट्रीय
राजनीतिक मनोविज्ञान और जनता के आधारभूत मूल्यों की अवधारणा को अधिक स्पष्ट करती
है।
आमण्ड एवं पॉवेल
ने राजनीतिक संस्कृति की धारणा को एक ऐसा शीर्ष कहा है जिसमें अतीत में वर्णित
राजनीतिक मूल्यों, विचारधाराओं, राष्ट्रीय
चरित्र सांस्कृतिक नैतिकता आदि को सम्मिलित किया जाता है और इस प्रकार डर अवधारणा
में राजनीतिक लक्ष्यों, घटनाओं, कार्यों
व प्रश्नों का व्यक्ति को जान व्यक्ति की इनके प्रति भावात्मक महत्व की मात्रा,
इनके मूल्यांकन की प्रक्रिया एवं उनकी प्राप्ति की प्रेरणा मात्र
सम्मिलित है। इस अवधारणा के तीन मुख्य प्रवर्त्य हो सकते हैं, जो इस प्रकार हैं-
(i) राजनीतिक सत्ता के प्रति आवृत्ति,
(ii) राजनीतिक तत्व, तथा
(iii) वे तरीके जिनके द्वारा राजनीतिक नेता राजनीतिक
सत्ता पर नियन्त्रण पाते हैं। विश्लेषणकर्ता जनमत और अभिवृत्तियों के बारे में किए
गए सर्वेक्षण के आधार पर बड़े समूह की संस्कृति को नापने का प्रयत्न करते हैं।
व्यक्तियों के बारे में आधार सामग्री एकत्रित की जा सकती है और इस प्रकार यह
विश्लेषण वह ज्ञान उपलब्ध करा सकता है जिसके द्वारा राजनीतिक व्यवहार को समझा जा
सकता है।
रोज और डोगेन ने
इसकी सरल शब्दों में इस प्रकार व्याख्या की है, "राजनीतिक
संस्कृति की अवधारणा ऐसे मूल्यों, विश्वासों और मनोभावों को
संक्षेप में व्यक्त करने की सुविधाजनक रीति है जो राजनीतिक जीवन को अर्थ प्रदान
करती है। राजनीतिक संस्कृति का विश्लेषण करने पर कोई भी राष्ट्र समुदाय के प्रति
जनता के दृष्टिकोणों को सुविधापूर्वक पहचान सकता है। यह विशिष्ट राजनीतिक संस्थाओं
और पदों के प्रति, ऐसे पदों को धारण करने वालों के प्रति और
शासन पद्धति द्वारा प्रतिपादित नीतियों के प्रति व्यक्तिगत विश्वासों, मूल्यों और मनोभावों से मिलकर बनती है।"
लूसियन पाई के अनुसार, "राजनीतिक संस्कृति, मनोवृत्तियों, विश्वासों तथा मनोभावों का ऐसा पुंज है जो राजनीतिक क्रिया को अर्थ और
सुचारु रूप प्रदान करता है तथा राजनीतिक व्यवस्था में व्यवहार को निरूपित करने
वाली धारणाओं व नियमों को बनाता है।"
सिडनी वर्बा ने राजनीतिक
संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इसकी व्यापक परिभाषा दी है।
उसके अनुसार, "राजनीतिक संस्कृति में आनुभाविक
विश्वासों, अभिव्यक्तात्मक प्रतीकों और मूल्य की वह व्यवस्था
निहित है जो उस परिस्थिति अथवा दशा को परिभाषित करती है जिसमें राजनीतिक क्रिया
सम्पन्न होती है।"
ऐलन बाल के अनुसार, "राजनीतिक संस्कृति लोगों की राजनीतिक व्यवस्था व राजनीतिक मुद्दों से
सम्बन्धित भावनाएँ मूल्य और धारणाएँ हैं। इसमें राजनीति के प्रति नागरिकों के
दृष्टिकोण, विश्वास और आस्थाएँ सम्मिलित होते हैं।"
इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि राजनीतिक संस्कृति
लोगों की राजनीति के प्रति मनोवृत्तियों और रुखों का प्रतिमान है।
राजनीतिक संस्कृति की विशेषताएँ-
राजनीतिक संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ
निम्नलिखित हैं -
(1) राजनीतिक संस्कृति की महत्त्वपूर्ण विशेषता
राजनीतिक समाज के व्यक्तियों की आस्था एवं विश्वास है। जनता राजनीतिक व्यवस्था,
राजनीतिक संस्थाओं, संरचनाओं एवं प्रक्रियाओं
के प्रति पूर्ण आस्था रखती है। इसी कारण सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था का संचालन
प्रभावशाली ढंग से होता रहता है।
(2) तुलनात्मक राजनीति की राजनीतिक संस्कृति उपागम
में व्यक्तियों के और सम्पूर्ण समाज के लिए मूल्य अभिरुचि बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान
रखती है। कुछ राजनीतिक व्यवस्थाओं की अभिरुचि स्वतन्त्रता, समा.
ता एवं बन्धुत्व में होती है, तो किसी की वर्ग-संघर्ष के
माध्यम से सामाजिक न्याय की होती है। ये अभिरुचियाँ हिंसा, अन्याय
व असमानता को स्थिति में ही बनती हैं। सामान्यतया राजनीतिक व्यवस्थाएँ न्याय,
कानून व स्थायित्व को ही अपने मूल्यों में स्थान देती हैं। राजनीतिक
व्यवस्था को विघटन से बचाने के लिए मूल्यों व अभिरुचियों का सामूहिक रूप से एक
होना तथा स्थायी होना आवश्यक है।
(3) राजनीतिक संस्कृति के कारण राजनीतिक संस्थाओं,
प्रक्रियाओं और व्यवस्थाओं पर जनता की विशेष अनुक्रियाएँ (Responses)
होती है। कोई राजनीतिक व्यवस्था वर्ग-संघर्ष को हेय दृष्टि से देखती
है, तो कोई उसे अपना आदर्श मानती है। इसी प्रकार कोई
राजनीतिक व्यवस्था स्वयं को धर्म विशेष से जोड़कर रखती है, तो
कोई सभी धर्मों को समभाव से देखती है। राजनीतिक संस्कृति में राजनीतिक व्यवस्था की
ये अनुक्रियाएँ भिन्न-भिन्न हो सकती हैं। राजनीतिक संस्कृति में मात्र राजनीतिक
मूल्य, राजनीति के प्रति अभिवृत्तियाँ, विचारधाराएँ, राष्ट्रीय चरित्र एवं सांस्कृतिक
आचार-व्यवहार ही नहीं जुड़े रहते, अपितु राजनीतिक ढंग,
आयाम, शैली तथा उनका तथ्यात्मक ढाँचा भी
सम्मिलित रहता है।
राजनीतिक संस्कृति के निर्माणकारी
तत्त्व-
राजनीतिक संस्कृति के अनेक निर्माणकारी
तत्त्व हैं,
जो निम्न प्रकार हैं
-
(1) इतिहास -
राजनीतिक संस्कृति के निर्माणकारी
तत्त्वों में सबसे महत्त्वपूर्ण इतिहास है। प्रत्येक राजनीतिक पद्धति में राजनीतिक
विश्वास,
विचार, भावनाएँ एवं दृष्टिकोण एक पीढ़ी से
दूसरी पीढ़ी तक पहुँचते हैं। यही कारण है कि राजनीतिक संस्कृति इतिहास की देन कही
जाती है।
(2) विचारधाराएँ-
विचारधाराएँ भी राजनीतिक संस्कृति के
निर्माणक तत्त्वों में सम्मिलित हैं। विचारधाराएँ स्वतन्त्रता, समानता
व भ्रातृभाव से जुड़ी होती हैं। देश में विद्यमान विचार व दृष्टिकोण समय-समय पर
आवश्यकतानुसार परिवर्तित होते रहते हैं, जो संस्कृति पर
प्रभाव डालते हैं।
(3) भौगोलिक स्थिति-
किसी भी देश की भौगोलिक स्थिति उस देश
की संस्कृति का निर्माण करती है। बड़े-बड़े देशों में, जहाँ
धार्मिक या जातीय भिन्नता अधिक है, वहाँ एक संस्कृति का
निर्माण कठिन हो जाता है। राजनीतिक संस्कृति के निर्माण में बड़े-बड़े देश अधिक
सफल हो जाते हैं।
(4) सामाजिक विकास-
राजनीतिक संस्कृति के निर्माणक तत्त्वों
में सामाजिक विकास का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। जो देश विकसित नहीं हैं, वे
समाज की स्थिति के अनुसार संस्कृति का निर्माण करते हैं। जहाँ रूढ़िवादी विचार
अधिक होते हैं, ऐसे देशों में परम्परागत राजनीतिक संस्कृति
स्थापित हो जाती है।
(5) आर्थिक विकास-
जिस औद्योगिक समाज में शिक्षा का स्तर
ऊँचा है,
निर्णय-निर्माण प्रक्रिया विस्तृत है, संचार
साधनों के विकास के कारणवश जनसम्पर्क सरल है, वह न केवल
स्थायी सभ्यता स्थापित करता है, अपितु एकरस संस्कृति का निर्माण
भी करता है।
(6) संविधान-
किसी भी देश का संविधान प्रायः राजनीतिक
संस्कृति के मूल्यों का अधिष्ठाता होता है।
(7) मूल्यों में आस्था-
किसी राजनीतिक व्यवस्था में नागरिक
सम्बन्ध वहाँ की राजनीतिक संस्कृति के मूलभूत मूल्यों में विश्वास व आस्था पर
निर्भर करता है।
(8) मूल्यों का सम्बन्ध-
मूल्यों का सम्बन्ध उन खेलों के नियमों
व विधि से होता है जिनसे राजनीतिक संगठनों का निर्माण व संचालन होता है।
राजनीतिक संस्कृति के प्रकार (रूप) -
मुख्यतः राजनीतिक संस्कृति को दो भागों
में बाँटा जा सकता है -
(1) सहभागी संस्कृति-
सहभागी संस्कृति वह संस्कृति है जिसमें
राजनीतिक प्रक्रिया में सभी व्यक्ति रुचि रखते हों एवं भाग लेते हों। ऐसी सभ्यता
विकसित देशों में अधिक सम्भव है, जहाँ हर नागरिक में राजनीति के प्रति दृष्टिकोण का
निर्माण हो जाता है। संचार साधनों के विकसित होने के कारणवश उचित ज्ञान हो जाता है
और हर व्यक्ति अपने आपको पद्धति का अंग समझने लगता है।
(2) अलगाव संस्कृति-
अलगाव संस्कृति वह संस्कृति है जिसमें
व्यक्ति राजनीतिक गतिविधियों में भाग नहीं लेते और न ही राजनीति के प्रति सक्रिय
होत हैं। इसके अनेक कारण हो सकते हैं, परन्तु राजनीतिक
वस्तुओं के प्रति ज्ञान का अभाव सर्वप्रथम स्थान रखता है। परम्परागत राजनीतिक
समाजों में अधिकांशतः ऐसी स्थिति देखी जा सकती है।
उपर्युक्त विभाजन विश्लेषण में अधिक
सहायक सिद्ध नहीं हो सकता। इसका मूल कारण यह है कि अधिकांश देशों में मिली-जुली
संस्कृति पाई जाती है। साथ ही सहभागिता स्तर राजनीतिक प्रश्न एवं समय और स्थान पर
निर्भर रहता है।
आमण्ड एवं वर्बा ने लोगों
की राजनीति में सहभागिता या उससे अलगाव के आधार पर राजनीतिक संस्कृति के तीन
प्रकार बताए हैं -
(1) संकीर्ण राजनीतिक संस्कृति-
संकीर्ण राजनीतिक संस्कृति से आशय उस संस्कृति से है जिसमें राजनीतिक समाज परम्परागत रूप रखता है। ऐसी व्यवस्था में शासक ही सभी प्रकार की भूमिकाएँ अदा करता है और लोगों को राजनीति से पूर्णतया अलग-थलग रहना ही पसन्द होता है अर्थात् लोगों की राजनीति में कोई रुचि नहीं होती है।
(2) पराधीन राजनीतिक संस्कृति-
पराधीन राजनीतिक संस्कृति का आशय उन
राजनीतिक समाजों की संस्कृति से है, जहाँ लोग राजनीतिक व्यवस्था के निर्गतों, जिनका उनके जीवन से सीधा सम्बन्ध है, सरोकार रखते
हैं। ये लोग उन व्यवस्था
के निवेशों की संरचनाओं से विमुख ही रहते हैं।
(3) सहभागी राजनीतिक संस्कृति-
सहभागी राजनीतिक संस्कृति का आशय उस
संस्कृति से है जिसमें वे सभी लोग, जिनकी राजनीतिक प्रक्रिया में रुचि है, उसमें भाग लेते हैं तथा उसके नियामक होते हैं। इसमें व्यक्ति राजनीतिक
व्यवस्था के निवेशों से सचेत होते हैं। राजनीतिक व्यवस्था की सक्रियता के प्रत्येक
चरण पर दृष्टि रखते हैं। ऐसी मनोवृत्ति विकसित देशों में देखने को मिलती है।
राजनीतिक अभिमुखन या उन्मुखन के ये तीन
मॉडल आनुभाविक राजनीतिक व्यवस्थाओं के यथार्थ सांस्कृतिक पर्यावरण को प्रस्तुत
नहीं करते। सामान्यतया राजनीतिक संस्कृति कभी भी समरस नहीं होती। इसी कारण आमण्ड
राजनीतिक संस्कृति के इन तीन शुद्ध प्रकारों के अलावा इसके तीन मिश्रित प्रकारों
की चर्चा करता है। ये हैं -
(i) संकीण पराधीन राजनीतिक संस्कृति,
(ii) पराधीन सहभागी राजनीतिक संस्कृति, तथा
(iii) संकीर्ण सहभागी राजनीतिक संस्कृति।
आमण्ड ने ये मिश्रित प्रकार सम्पूर्ण
विश्व की राजनीतिक व्यवस्थाओं का राजनीतिक संस्कृति के आधार पर वर्गीकरण करने के
लिए स्वीकार किए हैं।
उनकी मान्यता है कि अधिकांश समाजों में
विविध प्रकार की संस्कृतियाँ मिश्रित रूप में ही पाई जाती हैं।
आमण्ड राजनीतिक संस्कृति और संरचनाओं के
घनिष्ठ सम्बन्धों में विश्वास करता है। वह यह भी विश्वास करता है कि राजनीतिक
पद्धति भूमिकाओं का समूह है और इसलिए नागरिकों का राजनीतिक क्रियाओं के प्रति
दृष्टिकोण इन भूमिकाओं के निभाने में विशेष महत्त्व रखता है और इसलिए एक राजनीतिक
पद्धति की संस्कृति नागरिकों के ज्ञान, उसके प्रति दृष्टिकोण और उसके मूल्यांकन की क्षमता
पर निर्भर करता है।
राजनीतिक संस्कृति की उपयोगिता
(महत्त्व)-
राजनीतिक संस्कृति उपागम के समर्थकों की
मान्यता है कि इसने आधुनिक राजनीतिशास्त्र के विकास में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण
योगदान दिया है। इस उपागम से सम्बन्धित विश्वासों की माप, आस्थाओं
का आकलन तथा उस माप का एवं आकलन का आनुभाविक सत्यापन करना सम्भव है। एस. पी.
वर्मा ने इस उपागम के पाँच मुख्य योगदानों का उल्लेख किया है
(1) इसमें व्यष्टि और समष्टि, दोनों
स्तरों के अध्ययनों को मिलाकर राजनीति विज्ञान को एक अधिक पूर्ण समाज विज्ञान बना
दिया है।
(2) इसने हमारा ध्यान व्यक्ति से भिन्न गतिशील
सामूहिक अस्तित्व के रूप में राजनीतिक समुदाय या समाज के अध्ययन पर केन्द्रित किया
है या उसे हमारे अध्ययन का केन्द्र-बिन्दु बनाया है और इस प्रकार सम्पूर्ण
राजनीतिक व्यवस्था को हमारे अध्ययन का विषय बना दिया है।
(3) इसने राजनीतिशास्त्रियों को उन सामाजिक और
सांस्कृतिक कारकों का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया है जो किसी देश की
राजनीतिक संस्कृति को व्यापक आकार प्रदान करने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
(4) राजनीतिक संस्कृति दृष्टिकोण ने व्यक्तियों की
क्रियाओं के बुद्धिसंगत कारकों के अध्ययन के साथ-साथ व्यवहार के अधिक गुप्त
अविवेकी नियामकों के अध्ययन को भी महत्त्व दिया है।
(5) राजनीतिक संस्कृति उपागम ने इस बात को समझने में
हमारी सहायता की है कि अलग-अलग राजनीतिक समाज अपरिहार्य रूप से राजनीतिक विकास की
अलग-अलग दिशाओं में किस प्रकार अग्रसर होते हैं अथवा उनमें सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक प्रतिबन्ध क्यों देखने में आते हैं, जिससे वे राजनीतिक क्षय की दिशा में अग्रसर होते हैं।
(6) राजनीतिक संस्कृति विविध व पृथक्-पृथक्
प्रत्ययों को राजनीतिक व्यवस्था की अपनी अवधारणा में एकीकृत करने का अवसर प्रदान
करती है।
Very good nots
ReplyDelete