राज्य के मुख्यमन्त्री की शक्ति एवं भूमिका
प्रश्न 6. "मुख्यमन्त्री राज्य की शासन व्यवस्था का केन्द्र-बिन्दु है।" विवेचना कीजिए।
अथवा ''राज्य के मुख्यमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है ? उसकी शक्तियों तथा कार्यों पर प्रकाश डालिए।
अथवा ''राज्य के
मुख्यमन्त्री की शक्तियों एवं भूमिका की विवेचना कीजिए।
अथवा ''राज्य स्तर
पर मुख्यमन्त्री की नियुक्ति, शक्तियाँ और स्थिति स्पष्ट
कीजिए और राज्यपाल से उसके सम्बन्धों के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
उत्तर- मुख्यमन्त्री राज्य की मन्त्रिपरिषद् का प्रधान होता है। केन्द्र में जो
स्थान प्रधानमन्त्री का है, राज्य में वही स्थान
मुख्यमन्त्री का है। इसे हम 'समकक्षों में प्रथम',
'मन्त्रिमण्डल मेहराब की आधारशिला', 'तारों के
मध्य चन्द्रमा' एवं 'सौरमण्डल में
सूर्य' की संज्ञा दे सकते हैं। वह राज्य प्रशासन की धुरी
एवं वास्तविक प्रधान होता है।
भारतीय राजनीति में
मुख्यमन्त्री के चयन सम्बन्धी कुछ निष्कर्ष इस प्रकार है। -
(1) कांग्रेस दलीय राज्यों में मुख्यमन्त्री का निर्णय प्रधानमन्त्री तथा हाईकमान करता है। उसका निर्णय अन्तिम होता है।
(2) अन्य दलीय राज्यों के
सम्बन्ध में भी सत्य है कि वहाँ भी दलीय निर्णय निर्णायक है।
(3) मुख्यमन्त्री के चयन में कोई
सामान्य मापदण्ड विकसित नहीं हो सके हैं। समय-समय पर विभिन्न मापदण्ड अपनाए गए
हैं।
(4) राज्यपालों के द्वारा
मुख्यमन्त्री के चयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है, लेकिन कोई समान नीति नहीं अपनाई गई है।
(5) दल-बदल ने मुख्यमन्त्री के
चयन को अत्यधिक प्रभावित किया है।
कार्यकाल-
संसदीय शासन प्रणाली
में कार्यपालिका का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है। इसी मत के अनुसार जब तक
मन्त्रिपरिषद् को विधानसभा में विश्वास मत प्राप्त रहता है,
मुख्यमन्त्री सहित अन्य मन्त्री पदारूढ़ रहते हैं। सामान्यतया मुख्यमन्त्री
विधानसभा के कार्यकाल अर्थात् सदन के समर्थन के आधार पर पदारूढ़ रह सकता है।
मुख्यमन्त्री के
कार्य एवं शक्तियाँ –
मुख्यमन्त्री के
कार्य एवं शक्तियाँ निम्नलिखित हैं -
(1) मन्त्रिपरिषद् सम्बन्धी-
मुख्यमन्त्री
मन्त्रिपरिषद् का निर्माता है। उसके द्वारा ही मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों के नाम की
सूची दी जाती है। राज्यपाल उसके द्वारा प्रस्तावित व्यक्तियों को मन्त्री नियुक्त
कर देता है। मुख्यमन्त्री ही मन्त्रियों के मध्य विभागों का वितरण करता है और
आवश्यकतानुसार उनमें परिवर्तन करता है। वह मन्त्रिपरिषद् का नेता होता है। यह
देखना उसका कार्य है कि सभी मन्त्री अपने दायित्वों को ठीक प्रकार सम्पादित एवं
टीम की भाँति कार्य कर रहे हैं या नहीं। वह विभिन्न मन्त्रालयों एवं प्रशासकीय
विभागों के कार्यों में समन्वय स्थापित करता है।
मुख्यमन्त्री
मन्त्रियों के विवादों के सम्बन्ध में निर्णय करता है। वह उन्हें पदच्युत कर सकता
है। यदि कोई मन्त्री कहने पर भी पद-त्याग नहीं करता, तो
वह राज्यपाल को उसे पदच्युत करने का परामर्श दे सकता है।
(2) विधानमण्डल सम्बन्धी—
वह सदन का नेता होता
है। उसके परामर्श पर -ही विधानमण्डल के अधिवेशन आहूत किए जाते हैं। विधानमण्डल का
कार्यक्रम उसके परामर्श से ही निश्चित किया जाता है। शासकीय विधेयकों को सदन में
पारित करने के लिए वह आवश्यक व्यवस्था करता है। वह दोनों सदनों में शासन का अधिकृत
प्रवक्ता होता है। वह विधानसभा के विघटन की माँग कर सकता है। वह विधानमण्डल एवं
राज्यपाल के मध्य कड़ी का कार्य करता है।
(3) कार्यपालिका सम्बन्धी –
वह शासन का वास्तविक
अध्यक्ष होता है। वह राज्यपाल का अधिकृत परामर्शदाता है। वह राज्यपाल एवं
मन्त्रिपरिषद के मध्य सम्पर्क सूत्र का कार्य करता है। वही मन्त्रिपरिषद् के
निर्णयों की सूचना राज्यपाल को देता है। राज्यपाल द्वारा अतिरिक्त सूचनाएँ माँगने
पर वह उन्हें प्रदान करता है। राज्य के महाधिवक्ता एवं लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष
एवं सदस्यों की नियक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमन्त्री के परामर्शानुसार ही की जाती
है।
(4) प्रदेश एवं दल का नेता—
इन औपचारिक शक्तियों
के अतिरिक्त मुख्यमन्त्री दल का मान्य एवं प्रदेश का लोकप्रिय नेता होता है।
फलस्वरूप उसकी स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ होती है। दलीय नेता के रूप में वह अपने दल के
सदस्यों पर नैतिक रूप से बाध्य है। नियन्त्रण रखता है एवं प्रदेश के नेता के रूप
में प्रादेशिक हितों की रक्षा के लिए
(5) सरकार का प्रधान प्रवक्ता –
मुख्यमन्त्री राज्य
सरकार का प्रधान प्रवक्ता होता है और राज्य सरकार की ओर से अधिकृत घोषणा
मुख्यमन्त्री द्वारा ही की जाती है। यदि कभी किन्हीं दो मन्त्रियों के पारस्परिक विरोधी वक्तव्यों
से भ्रमपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो जाए, तो इसे मुख्यमन्त्री के
वक्तव्य से ही दूर किया जा सकता है।
(6) राज्य की सम्पूर्ण शासन व्यवस्था पर नियन्त्रण -
मुख्यमन्त्री राज्य
की शासन व्यवस्था पर सर्वोच्च और अन्तिम निर्णय रखता है। चाहे वह शान्ति और
व्यवस्था का प्रश्न हो; कृषि, सिंचाई,
स्वास्थ्य और शिक्षा के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण निर्णय लेना हो
अथवा कोई विकास सम्बन्धी प्रश्न हो, अन्तिम निर्णय
मुख्यमन्त्री पर ही निर्भर करता है। मुख्यमन्त्री मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों को
उनके विभागों के सम्बन्ध में आदेश और निर्देश दे सकता है। मन्त्रिपरिषद् के सदस्य
विभिन्न विभागों के प्रधान होते हैं। लेकिन अन्तिम रूप से यदि किसी एक व्यक्ति को
राज्य के प्रशासन की अच्छाई या बुराई के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, तो वह निश्चित रूप से मुख्यमन्त्री ही है।
मुख्यमन्त्री की
स्थिति –
राज्य की शासन व्यवस्था में मुख्यमन्त्री की स्थिति उसके व्यक्तित्व, नेतृत्व की क्षमता, विधानमण्डल में दलीय स्थिति, दल में उसका तथा उसके समर्थकों का प्रभाव एवं प्रधानमन्त्री का संरक्षण व केन्द्रीय नेताओं के साथ उसके सम्बन्धों पर निर्भर करती है। मुख्यमन्त्री की शक्तियों का प्रभावशाली ढंग से प्रयोग एक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला मुख्यमन्त्री ही कर सकता है। प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला मुख्यमन्त्री अपनी मन्त्रिपरिषद् का जन्मदाता, जीवनदाता एवं संहारकर्ता होता है और वह प्रदेश का वास्तविक शासक होता है। -
मुख्यमन्त्री की
स्थिति के सन्दर्भ में व्यावहारिक रूप में एक बात देखने में आती है कि एकदलीय
सरकार का मुख्यमन्त्री अधिक शक्तिशाली होता है। लेकिन मिलीजुली या संयुक्त मोर्चे
की सरकार का मुख्यमन्त्री कम शक्तिशाली होता है। एकदलीय सरकार में भी मुख्यमन्त्री
की स्थिति इस बात पर निर्भर करती है कि उसे अपने राजनीतिक दल में कैसी स्थिति और
समर्थन प्राप्त है। इसके अतिरिक्त मुख्यमन्त्री की स्थिति इस बात पर भी निर्भर
करती है कि उसे केन्द्र सरकार से किस सीमा तक समर्थन और सहयोग प्राप्त है।
मुख्यमन्त्री राज्य
के शासन का प्रधान है, किन्तु उसे किसी भी रूप में
राज्य शासन का तानाशाह नहीं कहा जा सकता। वह तो राज्य का सर्वाधिक लोकप्रिय जननायक
है।
राज्यपाल और
मुख्यमन्त्री का सम्बन्ध –
संविधान के अनुच्छेद
163 में कहा गया है कि राज्यपाल को
उसके कार्यों के सम्पादन में सहायता और परामर्श देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होगी,
जिसका
प्रधान मुख्यमन्त्री
होगा। किन्तु यह वैधानिक शब्दावली है और जहाँ तक व्यवहार का सम्बन्ध है,
मन्त्रिपरिषद् राज्य की वास्तविक कार्यपालिका सत्ता है। यद्यपि
प्रशासन राज्यपाल के नाम से किया जाता है, किन्त अधिकांश
मामलों में वास्तविक निर्णय मन्त्रिपरिषद् द्वारा लिए जाते हैं। सामान्य
परिस्थितियों में राज्यपाल से मन्त्रियों की मन्त्रणा के आधार पर ही कार्य करने की
अपेक्षा की जाती है। यद्यपि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो राज्यपाल को
मन्त्रियों के परामर्श को मानने के लिए बाध्य करती हो, किन्तु
फिर भी संसदात्मक शासन व्यवस्था की स्वीकृत परम्पराओं के अनुरूप उसे मन्त्रणा
माननी होती है। यदि राज्यपाल ऐसी मन्त्रिपरिषद की सलाह को अस्वीकार कर दे, जिसे विधानसभा का विश्वास प्राप्त है, तो
मन्त्रिपरिषद विरोध स्वरूप त्याग-पत्र दे सकती है और ऐसा होने पर राज्यपाल कठिन
स्थिति में पड़ जाएगा!
अनुच्छेद 167(a)
के अनुसार मुख्यमन्त्री का यह संवैधानिक कर्त्तव्य है कि
राज्य के प्रशासन सम्बन्धी मामलों में लिए गए मन्त्रिमण्डल के सभी निर्णयों की
सूचना राज्यपाल को दे। इस अनुच्छेद में 'सभी निर्णयों' शब्दावली का प्रयोग किया गया है। इसका अभिप्राय है कि मुख्यमन्त्री को
मन्त्रिमण्डल द्वारा लिए गए सभी निर्णयों की सूचना राज्यपाल को देनी है। इस
अनुच्छेद से स्पष्ट है कि राज्य के प्रशासन सम्बन्धी और कानून-निर्माण के सन्दर्भ
में सभी निर्णय राज्यपाल द्वारा नहीं अपितु मन्त्रिमण्डल द्वारा लिए जाते हैं। मन्त्रिमण्डल
द्वारा लिए गए ऐसे निर्णय राज्यपाल स्वीकार कर लेता है।
अनुच्छेद 167(c)
में कहा गया है कि राज्यपाल मुख्यमन्त्री को किसी ऐसे विषय को
मन्त्रिमण्डल को सुपुर्द करने के लिए कह सकता है. जिस सम्बन्ध में किसी एक मन्त्री
ने निर्णय ले लिया है, परन्तु अभी मन्त्रिमण्डल ने उसके
सम्बन्ध में विचार नहीं किया है। इसका अभिप्राय है कि प्रशासन के मामलों के निर्णय
लेने का अधिकार राज्यपाल का नहीं, अपितु मन्त्रिमण्डल का है।
मुख्यमन्त्री से
प्राप्त सूचनाओं के आधार पर राज्यपाल द्वारा मन्त्रिपरिषद् को परामर्श देने,
प्रोत्साहित करने और चेतावनी देने का कार्य किया जा सकता है। लेकिन
इस प्रकार की सलाह और चेतावनी के बावजूद मन्त्रिपरिषद् द्वारा एक बार निर्णय कर
लेने पर राज्यपाल उसे स्वीकार करने के लिए बाध्य होता है।
संविधान में कहा गया है कि मन्त्रियों द्वारा राज्यपाल के प्रसाद-पर्यन्त अपना पद धारण किया जाएगा। इसका शाब्दिक अर्थ यह लिया जा सकता है कि राज्यपाल मन्त्रियों को पदच्युत कर सकेगा। लेकिन इस प्रकार की कार्यवाही संसदीय शासन प्रणाली की सुस्थापित परम्पराओं के विरुद्ध होगी। अत: सैद्धान्तिक रूप से राज्यपाल को इस प्रकार की शक्ति प्राप्त होने पर भी व्यावहारिक रूप में कोई राज्यपाल इस प्रकार का कार्य करने का साहस नहीं कर सकता। राज्यपाल और मन्त्रिपरिषद के मध्य यदि किसी विषय पर किसी कारणवश विरोध उत्पन्न हो जाए, तो उसका क्या वैधानिक हल होगा, इस सम्बन्ध में संविधान मौन है
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