बड़े भाई साहब कहानी की समीक्षा

प्रश्न 5. कथा तत्त्वों के आधार पर मुंशी प्रेमचन्द की कहानी 'बड़े भाई साहब ' की समीक्षा कीजिए। 

अथवा

कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर 'बड़े भाई साहब ' कहानी की समीक्षा कीजिए।

अथवा

मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित 'बड़े भाई साहब' कहानी की तात्त्विक समीक्षा कीजिए।

उत्तर- कहानीकार के रूप में मुंशी प्रेमचन्द की उपलब्धियाँ और योगदान अद्वितीय है। उन्होंने लगभग 300 कहानियाँ लिखी हैं, जो 'मानसरोवर' (आठ भाग) और 'गुप्तधन' (दो भाग) में संकलित हैं। आपकी कुछ कहानियाँ तो अन्यतम हैं।

'बड़े भाई साहब' कहानी की समीक्षा

किसी भी कहानी की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए आवश्यक है कि वह कहानी कला के तत्त्वों पर खरी उतरती हो। बड़े भाई साहब' कहानी की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए भी इसे कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर परखना होगा।

कहानी कला के छह तत्त्व हैं-

1.      कथावस्तु

2.      पात्र एवं चरित्र-चित्रण

3.      संवाद योजना

4.      देशकाल वातावरण,

5.      भाषा-शैली

6.      उद्देश्य

बड़े भाई साहब कहानी की समीक्षा

इन तत्त्वों के आधार पर आलोच्य कहानी में निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं

(1) कथावस्तु-

एक अच्छी कहानी की कथावस्तु संक्षिप्त, रोचक, घटना प्रधान एवं कौतूहलवर्द्धक होनी चाहिए। इसमें एक प्रमुख घटना होनी चाहिए, | जिसमें प्रारम्भ, चरमोत्कर्ष एवं समापन साफ-साफ दिखने चाहिए। 'बड़े भाई साहब' कहानी का कथानक इन सभी विशेषताओं से युक्त है। संक्षिप्त कथावस्तु निम्न प्रकार है

दो भाई हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। बड़ा भाई दिन-रात पढ़ाई में लगा रहता है, किन्तु मन्द-बुद्धि होने के कारण परीक्षा में सफल नहीं हो पाता है। छोटा भाई खेलकूद में लगा रहता है, किन्तु कुशाग्र बुद्धि के कारण परीक्षा में सदैव प्रथम स्थान प्राप्त करता है। बड़ा भाई अपनी दुर्बलता पर पर्दा डालने के लिए छोटे भाई को खेलकूद से मन हटाकर खूब पढ़ने का उपदेश देता रहता है।

जब-जब बड़े भाई साहब फेल होते और छोटा भाई उत्तीर्ण होता, तब-तब बड़ा भाई छोटे भाई के उत्तीर्ण होने को 'अन्धे के हाथ बटेर लगना' बताता है और अपने फेल होने का कारण परीक्षकों की असावधानी बताता है। छोटे भाई की पढ़ाई की समय सारिणी बनी, किन्तु वह उसका अनुसरण नहीं कर सका।।

एक दिन जब छोटा भाई कटी हुई पतंग लूटने के लिए बेतहाशा दौड़ रहा था, तभी बड़े भाई से उसका सामना हो गया। बड़ा भाई उसे नसीहतें देने लगा। तभी एक कटी पतंग लटकती डोर के साथ वहाँ से गुजरी, जिसके पीछे लड़कों का हुजूम दौड़ रहा था। बड़े भाई साहब ने अपनी लम्बाई का फायदा उठाकर पतंग की डोर को पकड़ लिया और हॉस्टल की ओर भागने लगे। उनके पीछेपीछे उनका छोटा भाई दौड़ रहा था। -

(2) पात्र एवं चरित्र-

चित्रण-कहानी में पात्रों की संख्या सीमित होनी चाहिए। आलोच्य कहानी में पात्रों की संख्या मात्र दो है-बड़े भाई साहब एवं स्वयं लेखक। बड़े भाई साहब को सदैव इस बात का ध्यान रहता है कि उन्हें छोटे भाई के सामने आदर्श प्रस्तुत करना है। इसलिए वे सदैव लेखक को नसीहत देते रहते हैं और अधिक-से-अधिक पढ़ते भी हैं। वे खेलकूद की इच्छा का दमन करके पढ़ने में लगे रहते हैं। भले ही एक कक्षा में दो-दो, तीन-तीन बार फेल हो जाते हैं।

लेखक छोटा होने के कारण अपने बड़े भाई का सम्मान करता है। उसका बालमन खेलकूद में अधिक लगता है। वह है भी कुशाग्र बुद्धि। इसलिए कम पढ़ने पर भी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करता है। वस्तुतः लेखक ने कहानी के दोनों पात्रों का चरित्रांकन मनोवैज्ञानिक धरातल पर किया है, जो अत्यन्त स्वाभाविक बन पड़ा है।

(3) संवाद योजना-

संवाद कहानी के प्राण होते हैं। बड़े भाई साहब' कहानी के संवाद संक्षिप्त, रोचक, सरल एवं पात्रानुकूल हैं। संवादों में रोचकता -आद्योपान्त दर्शनीय है। उदाहरणार्थ, बड़े भाई साहब का यह कथन उद्धृत है"इस रेखा पर वह लम्ब गिरा दो, तो आधार लम्ब से दुगुना होगा। पूछिए, इससे प्रयोजन ? दुगुना नहीं, चौगुना हो जाए या आधा ही रहे, मेरी बला से, लेकिन परीक्षा में पास होना है, तो यह सब खुराफात याद करनी पड़ेगी।"

(4) देशकाल एवं वातावरण -

प्रस्तुत कहानी में कहानीकार ने बालकों की मानसिक प्रवृत्ति का चित्रण बड़ी सूक्ष्मता से किया है। खेलकूद के प्रति बच्चों की रुचि स्वाभाविक होती है। इस तथ्य का उद्घाटन लेखक ने बड़े ही मनोवैज्ञानिक ढंग से किया है। बड़े भाई साहब का दिखावटी पढ़ना, कॉपी-किताबों पर चित्र बनाना, छोटे भाई को नसीहत देना आदि का चित्रण स्वाभाविक बन पड़ा है। पतंग लूटने का दृश्य कहानी को जीवन्त बना देता है। इसी प्रकार बड़े भाई साहब ने

अपनी कक्षा का जो चित्र प्रस्तुत किया, वह दर्शनीय है-'

मेरे दरजे में आओगे,तो दाँतों पसीना आ जाएगा। जब अलजबरा और जोमेट्री के लोहे के चने चबाने पड़ेंगे और इंगलिस्तान का इतिहास पढ़ना पड़ेगा। . . . . . . . इन अभागों को नाम भी न जुड़ते थे। एक ही नाम के पीछे दोयम, तोयम, चहारम, पंचम लगाते चले गए। मुझसे पूछते तो दस लाख नाम बता देता।"

वस्तुत: कहानी में देश और काल के अनुरूप वातावरण की पूर्ण सृष्टि हुई है।

(5) भाषा-शैली

प्रेमचन्द सरल और सहज भाषा के पक्षधर थे। उन्होंने पात्रानुकूल भाषा का प्रयोग कर उसकी प्रभविष्णुता में वृद्धि कर दी है। मुहावरेदार भाषा का प्रयोग उनकी अपनी विशेषता है। उनकी भाषा में अंग्रेजी और उर्दू के प्रचलित शब्दों तथा मुहावरों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। प्रस्तुत कहानी की भाषा सरल, सुबोध एवं पात्रानुकूल है। भाषा के स्तर पर कहानी पूर्णतया सफल बन पड़ी है।

(6) उद्देश्य-

प्रेमचन्द सोद्देश्य लेखन में विश्वास करते थे। प्रस्तुत कहानी के माध्यम से कहानीकार ने बालकों की खेलकूद की स्वाभाविक प्रवृत्ति, बच्चों का पढ़ने का दिखावा करना, बड़ों द्वारा छोटों को नसीहत देना, भारत की शिक्षा व्यवस्था एवं बड़प्पन के लिए त्याग करना आदि अनेक तथ्यों का उद्घाटन किया है। आलोच्य कहानी उद्देश्यपूर्ण है और वह अपने उद्देश्य में पूर्णतया सफल सिद्ध हुई है।

मुंशी प्रेमचन्द हिन्दी के सफलतम कहानीकार हैं। बड़े भाई साहब' कहानी कथ्य की रोचकता, पात्र विधान की स्वाभाविकता, संवादों की रोचकता, भाषा-शैली की सहजता एवं उद्देश्य की सफलता आदि सभी दृष्टियों से एक श्रेष्ठ कहानी सिद्ध होती है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर बड़े भाई साहब' एक सफल कहानी है।

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