व्यंग्य किसे कहते हैं - परिभाषा

 

प्रश्न 1. व्यंग्य किसे कहते हैं ? व्यंग्य की परिभाषा देते हुए उसके उदभव एवं विकास का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

 अथवा ‘’व्यंग्य विधा के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उसका संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत कीजिए।

अथवा ‘’ व्यंग्य विधा को परिभाषित करते हुए हिन्दी व्यंग्य विधा की विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए। (2013)

उत्तर- व्यंग्य एक प्रकार का निबन्ध रूप ही है, परन्तु इसकी वर्णन शैली ने इसे एक स्वतन्त्र विधा के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया है। इसमें वैचारिकता के साथ व्यंग्यात्मकता अधिक होटी है। लेखक प्राय: सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक विसंगतियों पर चोट करते हैं। परिवेश की घुटन, त्रासदी, पीड़ा और थोथी मान्यताओं को उभारते हैं, विभिन्न प्रतिक्रियाओं को पैने ढंग से उभारते हैं

vyang kise kehte hai

यथार्थ और उसके प्रभाव परिणाम को प्रस्तुत करते हैं, इनकी शैली व्यंजना प्रधान और व्यंग्यात्मक होती है, ताकि पाठक यथार्थ स्थिति से परिचित हो सके और उसको 'सोच' भी उभर सके।

व्यंग्य की परिभाषा 

डॉ. श्रीराम शर्मा के अनुसार, "इस रचना में हास्य व व्यंग्य की प्रधानता रहती है ,

डॉ. चन्द्रदत्त शर्मा के अनुसार, "किसी भी असंगत बात पर हँसी आ सकती है परन्तु यह मजाक मनोरंजन का माध्यम होता है। इसका एक व्यक्ति की बौद्धिक चेतना से कोई सार्थक सम्बन्ध नहीं बन पाता। . . . . . . व्यंग्य एक गम्भीर प्रकार का लेखन कर्म है। इसमें विसंगति को खोजकर उसके अन्तर्गत तत्त्वों को उद्घाटित किया जाता है। यह लेखन चेतना को झकझोरता है। वस्तुत: व्यंग्य समाज  के मानस या चरित्र में आई रोगग्रस्तता को पहचानता है और उसे दूर करने की महत्वपूर्ण  भूमिका  निभाता है।"

व्यंग्य साहित्य का विकास

हिन्दी मे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से और स्वतन्त्र संकलनों के  माध्यम से पर्याप्त व्यंग्य साहित्य प्रकाशित हुआ है। यह विधा द्विवेदी युग मे विराजमान थी। भारतेन्दु बालमुकन्द , गुप्त जैसे श्रेष्ठ निबन्धकारों ने इस पर लेखनी चलाई। चन्द्रधर शर्मा 'गलेरी' के निबन्धों में व्यंग्य पर्याप्त विकसित रूप में उपलब्ध है और सरदार पूर्णसिंह के निबन्धों में भी व्यंग्यात्मकता निहित है। पर वर्तमान काल की विसंगतियों को उभारने में इस विधा ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इस काल के प्रतिष्ठित व्यंग्य लेखक हैं

हरिशंकर परसाई (उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-अपनी-अपनी बीमारी, पगडण्डियों का जमाना, ठिठुरता हुआ गणतन्त्र, शिकायत मुझे भी है, विकलांग श्रद्धा का दौर, जैसे उनके दिन फिरे, सदाचार का ताबीज, और अन्त में),

शरद जोशी (इनके प्रमुख संकलन हैं-जीप पर सवार इल्लियाँ, रहा किनारे बैठ, तिलिस्म),

रवीन्द्रनाथ त्यागी (भित्ति चित्र, कृष्णवाहन की कथा, देवदार के पेड़), प्रभाकर माचवे (तेल की पकौड़ियाँ),

केशवचन्द्र वर्मा (गधे की बात, आँसू की मशीन, मुर्गा छाप होरी),

श्रीलाल शुक्ल (अंगद का पाँव, मकान),

अमृतलाल नागर (नवाबी मसनद, कृपया दाएँ चलिए, भारतपुत्र नौरंगीलाल),

हरिमोहन झा (रूहर काका),

रोशनलाल 'सुरीरवाला (डॉ. एम.ए., पी-एच.डी.),

बेढव बनारसी (धन्यवाद)।

इसके साथ ही के. पी. सक्सेना, मनोहर श्याम जोशी और हरीश नवल के भी पर्याप्त हास्य-व्यंग्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं।

निष्कर्ष-

वर्तमान काल की अनेक विसंगतियों ने व्यंग्य विधा को पर्याप्त लोकप्रियता प्रदान की है और यह विधा एक स्वतन्त्र रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है। इस विधा का भविष्य भी उज्ज्वल है।

Comments

Post a Comment

Important Question

कौटिल्य का सप्तांग सिद्धान्त

सरकारी एवं अर्द्ध सरकारी पत्र में अन्तर

ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की शक्ति और कार्य

नौकरशाही का अर्थ,परिभाषा ,गुण,दोष

पारिभाषिक शब्दावली का स्वरूप एवं महत्व

प्लेटो का न्याय सिद्धान्त - आलोचनात्मक व्याख्या

मैकियावली अपने युग का शिशु - विवेचना

प्रयोजनमूलक हिंदी - अर्थ,स्वरूप, उद्देश्य एवं महत्व

राजा राममोहन राय के राजनीतिक विचार

शीत युद्ध के कारण और परिणाम