ब्रिटेन का संविधान - मूलभूत विशेषताएँ
MJPRU-B.A-I-Politics-II
प्रश्न 1. ब्रिटेन के संविधान की मूलभूत विशेषताएँ बताइए।
प्रश्न 1. ब्रिटेन के संविधान की मूलभूत विशेषताएँ बताइए।
अथवा ''ब्रिटिश संविधान की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर - मुनरो का मत है कि “ब्रिटिश संविधान
अन्य संविधानों का जनक है। और ब्रिटिश संसद सब संसदों की जननी है।" इस प्रकार
ब्रिटिश संविधान विश्व के समस्त संविधानों में सर्वोत्तम स्थान रखता है। विश्व के
संविधान किसी-न-किसी रूप में ब्रिटेन के संविधान से प्रभावित हुए हैं।
संक्षेप में,
ब्रिटिश संविधान की प्रमुख विशेषताएँ निम्न
प्रकार हैं
(1) विकसित संविधान -
भारत, अमेरिका, फ्रांस आदि देशों
के संविधान का निर्माण संविधान सभा के द्वारा किया गया है, किन्तु ब्रिटिश संविधान का निर्माण स नहीं, वरन् उसका विकास हुआ है। 9वीं शताब्दी में ब्रिटेन में राजतन्त्र की
स्थापना सट हुई, 13वीं शताब्दी में
संसद का विधिवत् चलन प्रारम्भ हुआ, 17वीं शताब्दी में जब संसदीय प्रभुसत्ता की स्थापना हुई और उसके बाद का
संवैधानिक इतिहास ब्रिटेन अट में लोकतान्त्रिक विकास की गाथा है। इस प्रकार
ब्रिटिश संविधान को आधुनिक ब्रिटेन स्वरूप प्राप्त करने में अनेक पीढ़ियाँ लगी
हैं।
प्रो. ऑग ने ठीक ही कहा
है, "ब्रिटिश संविधान एक
सचेष्ट जीवधारी के परिणा समान है, जिसमें निरन्तर
तथा स्थायी विकास की क्षमता है।”
ब्रिटिश
संवैधानिक विकास की विशिष्टता का वर्णन एनसन ने इन शब्दों में किया है. “यह संविधान बातें संविभिन्न प्रकार की
भवन-निर्माण सामग्री द्वारा निर्मित एक ऐसा महल है जिसमें शिशु है समय-समय पर
विभिन्न स्वामियों ने अपनी-अपनी आवश्यकतानसार दालान वस्तु नहीं बरामदे,खम्भे, शयन कक्ष तथा अतिथि कक्ष आदि बना दिए हैं। इसके निर्माण में है। इनक अनेक का
हाथ है।"
(2) अलिखित संविधान-
ब्रिटेन के संविधान को रूढियों ने बहुत अधिक प्रभावित किया है, इसलिए बहुत-से लोग ब्रिटिश संविधान को अलिखित
ही मानते है । यह अलिखित इस अर्थ
में भी है कि इसका निर्माण किसी संविधान सभा द्वारा नहीं हुआ है और न ही इसकी धाराएं लिखी गई हैं। इसी
कारण डी. टॉकविले कहा है, "इंग्लेण्ड में संविधान जैसी कोई चीज नहीं है।"
ब्रिटिश संविधान में, यद्यपि कानूनों
के रूप में कछ लिखित अंश : लेकिन उसका अधिकांश भाग प्रथाओं और परम्पराओं के रूप
में अलिखित ही है।
इस सम्बन्ध में न्यूमैन ने लिखा है कि “जो बात ब्रिटिश
संविधान को विशिष्ट बनाती है, वह ऐसे अनेक नियमों का अस्तित्व है, जो केवल परम्परा
पर आधारित हैं।”
(3) लचीला संविधान -
सैद्धान्तिक दृष्टि से ब्रिटिश संविधान लचीला है। ब्रिटिश
संसद साधारण बहुमत के आधार पर ब्रिटिश संविधान में किसी भी प्रकार का परिवर्तन कर
सकती है। इंग्लैण्ड में साधारण कानुन तथा संवैधानिक कानून में कोई अन्तर नहीं समझा
जाता। परन्तु वास्तव में ब्रिटेन के निवासी इतने रूढ़िवादी है कि संविधान में
परिवर्तन लाना अत्यन्त कठिन है। ब्रिटेन में यह परम्परा है कि
संविधान में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन उस समय तक न किया जाए जब तक कि इस सम्बन्ध
में आम चुनाव में सहमति प्राप्त न कर ली जाए।
(4) ब्रिटिश संविधान : संयोग और विवेक का शिशु-
ब्रिटेन की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संस्थाएँ
वास्तव में संयोग का ही परिणाम हैं। विश्व के अन्य देशों ने न काब्रिटेन की इन
संस्थाओं से विचार लिया है। परन्तु ब्रिटेन में इन संस्थाओं का जन्म संयोग से ही
हुआ है। ब्रिटेन की कैबिनेट पद्धति संयोग का ही परिणाम है। इसी संयोग ने ब्रिटिश
मन्त्रिमण्डल को राजकीय प्रभाव से मुक्त कर दिया। प्रारम्भ में टी में जब
मन्त्रिमण्डल की बैठकें होती थीं, तो मन्त्रिमण्डल
का ही कोई सदस्य इसकी अध्यक्षता करता था। इसी के परिणामस्वरूप प्रधानमन्त्री पद
का विकास हुआ। थनिक ब्रिटेन की कुछ संस्थाएँ मानवीय प्रयत्नों का परिणाम हैं।
ब्रिटेन में स्थानीय स्वशासन और न्यायपालिका के संगठन की जो व्यवस्था है,
वह विवेक का ही री के परिणाम है।
इस प्रकार ब्रिटिश संविधान की कुछ बातें विवेक का परिणाम हैं और कुछ बातें
संयोग का । इसीलिए कहा जाता है, “ब्रिटिश संविधान
संयोग और विवेक का जसमें शिशु है।” इस सम्बन्ध में मुनरो का कथन है, “ब्रिटिश संविधान एक पूर्णतः प्राप्त , वस्तु नहीं है, वरन् एक विकासशील वस्तु है। यह विवेक और संयोग का परिणामण
है। इनका निर्माण कहीं आकस्मिकता ने और कहीं उच्च कोटि की योजनाओं ने किया
है।"
(5) सिद्धान्त और व्यवहार में अन्तर-
ब्रिटिश संविधान
की एक विशेषता यह है कि इसमें सिद्धान्त और व्यवहार में स्पष्ट अन्तर दिखाई देता
है। इस सम्बन्ध द्वारा में मुनरो ने लिखा है, “ब्रिटिश संविधान में जो कुछ दृष्टिगोचर होता है, वह वास्तविकता नहीं है और जो कुछ है, वह दिखाई नहीं देता है।”
उपर्यक्त कथन की पष्टि करते हुए प्रो आंग ने लिखा है की '' समस्त शासन व्यवस्थाओ मे
सिधान्त तथा व्यवहार मे अनेक भेद मिलते है , परंतु जीतने अधिक
रूप मे बे ब्रिटिश संविधान
में मिलते हैं, उतने किसी अन्य
संविधान में नहीं ,
ब्रिटिश संविधान में सिद्धान्त और व्यवहार में किस प्रकार
अन्तर है. या निम्नलिखित उदाहरणों से स्पष्ट किया जा सकता है
(i) सैद्धान्तिक दृष्टि से वहाँ की संसद मन्त्रिमण्डल पर
नियन्त्रण रखती है। परन्तु वास्तविकता यह है कि संसद स्वयं मन्त्रिमण्डल से
नियन्त्रित होती है।
(ii) सैद्धान्तिक रूप से यहाँ राजतन्त्र है, परन्तु व्यवहार में यहाँ पर लोकतन्त्र ब्रिटिश संविधान की इसी विशेषता का वर्णन प्रो. ऑग ने निम्न शब्दों में किया है सैद्धान्तिक दृष्टि से ब्रिटेन की शासन व्यवस्था निरंकुश राजतन्त्रात्मक है।
परन्तु उसका स्वरूप सीमित संवैधानिक राजतन्त्र का है तथा वस्तुत: वह लोकतान्त्रिक गणराज्य है।”
(6) संसदात्मक प्रजातन्त्र-
ब्रिटेन में संसदीय प्रजातन्त्र है। वास्तव में
ब्रिटिश शासन व्यवस्था संसदात्मक प्रजातन्त्र का एक आदर्श प्रतीक है। इसमें
संसदात्मक शासन में तीन लक्षण देखे जा सकते हैं-
(i) दोहरी कार्यपालिका
(ii) व्यवस्थापिका तथा कार्यपालिका में घनिष्ठ
सम्बन्ध, और
(ii) कार्यपालिका का अनिश्चित कार्यकाल ।
ब्रिटेन का सम्राट् कार्यपालिका का नाममात्र
का प्रधान होता है। ब्रिटेन का वास्तविक प्रधान वहाँ का प्रधानमन्त्री तथा
मन्त्रिमण्डल होता है। कार्यपालिका व्यवस्थापिका में से ही ली जाती है।
कार्यपालिका के सदस्य कानन का निर्माण करते हैं । स्पष्ट है कि जहाँ संसद कानून
बनाती है वहीं शासन पर भी नियन्त्रण रखती हैं । इस प्रकार कहा जा सकता है कि
इंग्लैण्ड में सामान प्रजातन्त्र है।
(7) संसद की प्रभुसत्ता -
ब्रिटिश संविधान
की एक अन्य विको प्रभुसत्ता या सर्वोच्चता है । इंग्लैण्ड में एकात्मक शासन है। इस
कारन कानून बनाने का कार्य संसद करती
है। कानून बनाने के लिए संसद में साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है। परन्तु संसद के कानून-निर्माण की शक्ति की कोई सीमा नहीं
है। ब्रिटेन की संसद जो कानून बनाती है, वह अन्तिम होता है। इस कानून को किसी भी न्यालय
मे अथवा किसी सत्ता के समक्ष चुनौती
नहीं दी जा सकती।
इस प्रकार ब्रिटेन की संसद के पास असीम शक्ति है। इस विचार को डी लोम्ब ने अपने शब्दों में इस प्रकार व्यक्त
किया है, संसद स्त्री को पुरुष तथा
पुरुष को स्त्री बनाने के
अतिरिक्त अन्य सब कुछ कर सकती है।”
(8) धर्मनिरपेक्ष संविधान नहीं-
ब्रिटिश
संविधान धर्मनिरपेक्ष संविधान नहीं है। यह सत्य है कि ब्रिटेन में सभी नागरिकों को
धार्मिक स्वतन्त्रता प्राप्त है। किसी भी धर्म का व्यक्ति प्रधानमन्त्री बन सकता
है। परन्तु साथ ही यह भी आवश्यक है कि उसका राजा अथवा रानी प्रोटेस्टेण्ट ही होगा।
(9) मिश्रित
संविधान-
ब्रिटिश संविधान
में शासन व्यवस्थाओं के तीनों रूप (राजतन्त्र, कुलीन तन्त्र और
प्रजातन्त्र) देखने को मिलते हैं। ब्रिटेन में राजतन्त्र का प्रतीक राजा, कुलीन तन्त्र का प्रतीक संसद का ऊपरी सदन लॉर्ड सभा और प्रजातन्त्र का प्रतीक
वहाँ की कॉमन सभा और मन्त्रिमण्डल है। राजतन्त्र, कुलीन तन्त्र और
प्रजातन्त्र की मिश्रित व्यवस्था बिटिश शासन प्रणाली को अनोखा स्वरूप प्रदान करती
हैं।
(10) एकात्मक शासन-
ब्रिटेन में एकात्मक शासन
पद्धति अपनाई गई है। संविधान के द्वारा शासन की समस्त शक्तियाँ केन्द्रीय सरकार
में निहित कर दी गई हैं। ब्रिटेन की केन्द्रीय सरकार देश का शासन चलाती है। केन्द्रीय
सरकार ने प्रशासन की सुविधा के लिए स्थानीय प्रशासकीय इकाइयों की स्थापना की है।
इन स्थानीय प्रशासकीय इकाइयों को पर्याप्त शक्तियाँ भी प्रदान की गई हैं। परन्तु
प्रशासन की एक विशेषता यह है कि ये इकाइयाँ अपनी शक्ति संविधान से न लेकर
केन्द्रीय सरकार से प्राप्त करती हैं। इस प्रकार प्रशासनिक इकाइयाँ अपने अस्तित्व
के लिए केन्द्रीय सरकार पर आश्रित रहती हैं।
(11) विधि का
शासन-
ब्रिटेन में विधि का शासन
है। इसका आशय यह है कि ब्रिटेन में समस्त प्रशासनिक कार्य इच्छा से नहीं, वरन् विधि के अनुसार किए जाते है ,ब्रिटेन में सभी
व्यक्ति, चाहे वे कितने ही उच्च या निम्न पद पर हों, एक ही न्यायालय के अधीन हैं। ब्रिटेन के निवासी अपने संविधान की इस विशेषता पर
विशेष रूप से गर्व करते हैं।
डायसी ने ब्रिटेन के संविधान की इस विशेषता का वर्णन अपने शब्दों में इस प्रकार किया है- “विधि के शासन के अनुसार
प्रत्येक सरकारी कर्मचारी, प्रधानमन्त्री से लेकर एक सामान्य सिपाही तथा
कर एकत्रित करने वाले अधिकारी तक,
अपने गैर-कानूनी (अवैध)
कार्यों के लिए देश के कानून के प्रति उसी प्रकार से उत्तरदायी हैं, जैसे कोई अन्य सामान्य नागरिक ।”
ब्रिटिश संविधान की उपर्युक्त विशेषता सैद्धान्तिक रूप से तो पूर्ण सत्य है, परन्त व्यावहारिक रूप से उतनी सत्य नहीं है। व्यवहार में इस पर अनेक प्रतिबन्ध
हैं।
(12) नागरिकों की स्वतन्त्रता तथा उनके अधिकार-
प्रत्येक देश संविधान में
नागरिकों के लिए उनकी स्वतन्त्रता की गारण्टी दी जाती हैं। संविधान में यह भी
व्यवस्था की जाती है कि नागरिकों को उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।
परन्तु ब्रिटिश संविधान में ऐसा कुछ भी नहीं किया गया है। परन्तु इसका आशय यह नहीं
है कि ब्रिटेन के निवासियों को अधिकार प्राप्त नहीं हैं। इनमें से कुछ अधिकार
(बन्दी प्रत्यक्षीकरण का अधिकार शस्त्र धारण करने का अधिकार, आवेदन-पत्र प्रस्तुत करने
का अधिकार, अत्यधिक जुर्माने और अमानुषिक दण्ड से बचने का अधिकार आदि) तो संसदीय
अधिनियमों के द्वारा प्रदान किए गए हैं और कुछ अधिकार (भाषण और अभिव्यक्ति की
स्वतन्त्रता, सम्मेलन और संघ बनाने की स्वतन्त्रता आदि) सामान्य विधि पर आधारित हैं।
नागरिकों को इन अधिकारों से तब तक वंचित नहीं किया जा सकता है जब तक कि वे किसी
कानून का उल्लंघन न करें अथवा
किसी अन्य नागरिक के इसी प्रकार के अधिकार को आघात न पहुँचाएँ।
(13) द्विदलीय पद्धति-
ब्रिटेन में राजनीतिक
दलों के संगठन की स्वतन्त्रता है अर्थात राजनीतिक दलों के संगठन पर कोई प्रतिबन्ध
नहीं है। परन्त लामा 300 वर्षों में ऐसा देखने में आया है कि ब्रिटेन में केवल दो
ही प्रमख राजनीतिक दल हैं- अनुदार दल और मजदूर दल। ब्रिटेन में एक ही राजनीतिक दल
की सरकार का निर्माण होता है। इसी कारण वहाँ राजनीतिक स्थायित्व रहा है। बिटेट में
संसदीय शासन ने विशेष सफलता प्राप्त की है। इसका बहुत कळ श्रेय पद्धति को ही है।
nice idea
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