औद्योगिक क्रान्ति के कारण और प्रभाव

MJPRU-BA.I-History II / 2022 
प्रश्न14. औद्योगिक क्रान्ति से क्या आशय है ? इसके कारण एवं प्रभाव बताइए। 
उत्तर- क्रान्ति से आशय थोड़े समय में आमूलचूल (पूरी तरह से ) परिवर्तन होने से लगाया जाता है। 18वीं शताब्दी में औद्योगिक क्षेत्र में उत्पादन की तकनीक में जो तीव्र परिवर्तन हुए, उसे 'औद्योगिक क्रान्ति' की संज्ञा दी जाती है।
डेविड के शब्दों में, “औद्योगिक क्रान्ति का अभिप्राय उन परिवर्तनों से है जिन्होंने यह सम्भव कर दिया कि नुष्य प्राचीन उपायों को त्यागकर बड़े पैमाने "विशाल कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन कर सके।"
वस्तुतः औद्योगिक क्रान्ति ने कुटीर तथा लघु उद्योगों के स्थान पर कारखानों उत्पादन की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी। इस व्यवस्था में पशु तथा मानवीय श्रम के स्थान पर मशीनों और भाप की शक्ति का प्रयोग प्रारम्भ हो गया। उत्पादन के साधनों तथा उत्पादन पर पूँजीपतियों का अधिकार हो गया। इस प्रकार औद्योगिक कान्ति ने एक नई अर्थव्यवस्था को जन्म दिया।

औद्योगिक क्रान्ति के कारण

औद्योगिक क्रान्ति के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे
(1) पूँजी-इंग्लैण्ड में लोगों के पास पर्याप्त पूँजी थी, जिससे नये कारखाने लगाए गए। नये कारखाने स्थापित होने से उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा, जिसने औद्योगिक क्रान्ति को बढ़ावा दिया।
(2) प्राकृतिक संसाधनइंग्लैण्ड में लोहा एवं कोयला निकटवर्ती क्षेत्रों से उपलब्ध होता था, जिसने उद्योगों एवं मशीनों के विकास में योगदान दिया। कोयले एवं लोहे ने औद्योगिक क्रान्ति की सुदृढ आधारशिला रख दी। कोयले से लोहा पिघलाकर नई-नई मशीनें तथा परिवहन के साधन बनाए गए। मशीनों ने औद्योगिक क्रान्ति का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
(3) वैज्ञानिक प्रगति-यूरोप में पुनर्जागरण के फलस्वरूप वैज्ञानिक क्षेत्र में बहुत प्रगति हुई। नई मशीनों, वैज्ञानिक विधियों तथा सुधरी हुई तकनीक ने औद्योगिक क्रान्ति को प्रोत्साहन दिया। वस्त्र उद्योग के लिए नई मशीनों का विकास होने से इसमें एक क्रान्ति आई। मशीनों ने कृषि, परिवहन तथा व्यापार के क्षेत्र में भी क्रान्ति उत्पन्न कर दी।
(4) उपनिवेशों की स्थापना- यूरोप के अनेक देशों ने साम्राज्य-विस्तार के उद्देश्य से अपने उपनिवेशों की स्थापना की। इनसे उन्हें कच्चा माल मिल जाता था तथा तैयार माल बिक जाता था। अधिक धन कमाने के उद्देश्य से इन देशों में उद्योग-धन्धों की बाढ़ आ गई। इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, जापान आदि देशों ने एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका के अनेक देशों में अपने उपनिवेश स्थापित किए। दोहरा लाभ कमाने की अभिलाषा ने औद्योगिक क्रान्ति को सुदृढ़ आधार प्रदान किया।
(5) परिवहन एवं शक्ति के साधनों का विकास - यूरोप में जल एवं स्थल पारवहन के साधन विकसित किए गए, जिनसे व्यापार के क्षेत्र में सफलता मिली। इस कार्य ने नये देशों की खोज में भी सहायता की। भाप के इंजन की खोज से  रेलों और जलयानों का विकास हुआ। परिवहन के साधनों के विकास के माल और तैयार माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना व ले जाना सा गया। परिवहन के साधनों के साथ सन्देशवाहन के साधनों का विकास हो जाने व्यापार में क्रान्तिकारी परिवर्तन आ गए।
16) बाजारों की अधिकता-विश्व के सभी देशों में मशीनों से बनी वस्तुओं की माँग बहुत बढ़ गई थी। उत्पादित माल का बाजार सला होने से उनके उत्पादन को प्रोत्साहन मिला, जिससे औद्योगीकरण तेजी से बढा विभिन्न देशों के उपनिवेश उनके कारखानों में बने माल के लिए सुलभ बाजार बन गए। उपनिवेशों में अधिकाधिक माल बेचने के उद्देश्य से उत्पादन में वृद्धि कर दी। गई।
(7) अनुकूल परिस्थितियाँ - यूरोप के अनेक देशों में सस्ते श्रमिक, बाजार तथा कच्चे माल की उपलब्धि जैसी सुविधाएँ प्राप्त थीं। इन अनुकूल परिस्थितियों ने औद्योगीकरण को प्रोत्साहन दिया।
(8) चालक शक्ति तथा श्रमिक-  इस समय कारखाने चलाने के लिए शक्ति के साधन खोज निकाले गए। श्रमिक गाँवों से कृषि कार्य छोड़कर नगरों में आकर बस गए, जिससे कारखानों को सस्ते और कुशल श्रमिक पर्याप्त संख्या में सुलभ हो गए। कारखानों में बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा। परिणामस्वरूप औद्योगिक क्रान्ति को बहुत बल मिला।
(9) उदारवादी सरकारी नीति - इंग्लैण्ड में 17वीं शताब्दी से ही और फ्रांस में 18वीं शताब्दी से व्यापार पर आधारित एक नये कुलीन वर्ग का उदय हो चुका था। इस कुलीन वर्ग के पास धन तो था, परन्तु पुराने सामन्ती वर्ग की तरह प्रतिष्ठा नहीं थी। वे सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील थे। इसके अतिरिक्त एक ऐसा नया पेशेवर वर्ग भी था जो किसी पेशे में कुशल था और समाज के लिए उपयोगी कार्यों का सम्पादन भी कर रहा था। ऐसे पेशेवर वर्ग में शिक्षक, वकील, डॉक्टर आदि थे। नव धनिक व्यापारी वर्ग और इस पेशेवर वर्ग में बौद्धिक रूप से प्राचीन सामन्तवादी राजव्यवस्था के प्रति रोष था। वे जन-साधारण के लिए एक नया राजनीतिक दर्शन प्रस्तुत कर रहे थे। ऐसे लोगों ने इंग्लैण्ड में संसदीय शासन प्रणाली के लिए और फ्रांस में गणतन्त्र के लिए क्रान्ति में अग्रणी भूमिका निभाई। ऐसे लोगों के प्रभाव से ऐसी सरकारें स्थापित होती गईं जिन्होंने व्यापार व उद्योग के हित में अनेक नीतियाँ बनाईं। 1750 ई. के पश्चात् पश्चिमी यूरोप में प्रायः ऐसी सरकारें थीं जो व्यापार व उद्योग को प्रोत्साहन देना चाहती थीं ऐसी उदारवादी सरकारी नीतियाँ औद्योगिक क्रान्ति के लिए मार्ग प्रशस्त कर रही थीं।

औद्योगिक क्रान्ति के प्रभाव (परिणाम)

औद्योगिक क्रान्ति ने समस्त यूरोप के सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित किया। इसके निम्नलिखित प्रभाव (परिणाम) पड़े -

(A) सामाजिक प्रभाव-

औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक जीवन पर निम्न प्रभाव पड़े-
(1) नगरीकरण- औद्योगीकरण के फलस्वरूप नगरों का विकास तीव्र गति से हुआ। लोगों ने गाँवों में कृषि कार्य छोड़कर शहरों में रहना प्रारम्भ कर दिया। नगरों में तेजी से जनसंख्या बढ़ने के कारण वहाँ अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गईं। नगरों में जन-सुविधाओं का अभाव हो गया तथा प्रदूषण बढ़ने लगा। जनसंख्या की अधिक वृद्धि के कारण समाज में जुआ, शराब, हिंसा तथा शोषण का प्रभाव बढ़ गया तथा नैतिक व सामाजिक मूल्यों का ह्रास हो गया।
(2) नये वर्गों की उत्पत्ति एवं संघर्ष - औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज श्रमिक एवं पूँजीपतिदो वर्गों में बँट गया। इन दोनों वर्गों में संघर्ष प्रारम्भ हो गया। हड़ताल और तालाबन्दी इसी वर्ग-संघर्ष का परिणाम है। पूँजीपतियों के शोषण के कारण श्रमिकों की दशा अत्यन्त शोचनीय हो गई। अत: पूँजीपतियों और श्रमिकों में टकराव आवश्यक हो गया।
(3) श्रमिकों की दयनीय दशा-पूँजीवाद के उदय के साथ ही श्रमिकों का शोषण प्रारम्भ हो गया। श्रमिकों से कम मजदूरी पर 18 घण्टे तक काम लिया जाने लगा। श्रमिकों के आवास, शिक्षा और मनोरंजन की समुचित व्यवस्था नहीं की गई। इस प्रकार औद्योगिक क्रान्ति ने सामाजिक वर्ग-भेद की खाई को और भी गहरा कर दिया।
(4) स्त्रियों और बच्चों का शोषण-अधिक उत्पादन करके लाभ अर्जित करने की धुन में उद्योगपतियों ने स्त्रियों और बच्चों को भी काम पर लगा दिया। स्त्रियों और बच्चों से अधिक घण्टे काम लेकर उन्हें पुरुषों की अपेक्षा कम वेतन दिया जाता था। स्त्रियों और बच्चों का शोषण देखकर अनेक देशों की सरकारों ने उद्योगों में स्त्रियों और बच्चों के काम पर रोक लगा दी।
(5) नैतिक मूल्यों का पतन-औद्योगीकरण के कारण धन का बोलबाला हो गया, जिससे लोगों के नैतिक मूल्यों में कमी आ गई। अत: शराब, जुआ, व्यभिचार आदि नागरिकों की दिनचर्या के अंग बन गए।

(B) आर्थिक प्रभाव- 

औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े
(1)पूँजीबाद का उदय- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप उत्पादन में वटि हई। उत्पादन बढ़ने से उद्योगपतियों की आय में वृद्धि हुई। एक ही स्थान पर का केन्द्रीकरण होने से पूँजीपति वर्ग का प्रादुर्भाव हुआ, जिसने पूँजीवाद को जरा दिया। पूँजीपति श्रमिकों का शोषण करने लगे, जिससे उनमें भारी असन्तोष हो गया।
(2) परिवहन के साधनों का विकास-औद्योगिक क्रान्ति ने रेल सड़क आदि परिवहन के साधनों का विकास किया। परिवहन के साधनों ने व्यापारी उद्योगों का बहुत विस्तार किया।
(3) कृषि का विकास -औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप नवीन कृषि यनों का आविष्कार हुआ तथा कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाने लगा। कृषि की नई तकनीक तथा उत्पादन विधियों की खोज होने से कृषि क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए।
(4) उत्पादन में वृद्धि-औद्योगिक क्रान्ति ने बड़े पैमाने के उद्योगों को बढ़ावा दिया, जिससे उत्पादन में बहुत अधिक वृद्धि हुई।
(5) जीवन-स्तर में सुधार - उत्पादन बढ़ने से श्रमिकों को आजीविका के नये स्रोत मिले, जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई। आय बढ़ने से श्रमिकों के जीवन-स्तर में सुधार हुआ।

(C) धार्मिक एवं नैतिक प्रभाव-

औद्योगिक क्रान्ति ने धार्मिक एवं नैतिक जीवन को निम्न प्रकार प्रभावित किया
(1) औद्योगिक क्रान्ति ने धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया।
(2) औद्योगिक क्रान्ति से अनैतिकता में वृद्धि हुई तथा लोगों का चारित्रिक पतन प्रारम्भ हो गया।
(3) धन बढ़ने से लोगों में जुआ खेलने, शराब पीने आदि दोष उत्पन्न हो गए, जिससे उनका नैतिक पतन हो गया।
(4) उत्पादन कार्य में मशीनों का प्रयोग होने के कारण बेरोजगारी में वृद्धि हुई, समाज में असन्तोष बढ़ने लगा, जिसने अन्य अनेक दोषों को जन्म दिया।
(5) औद्योगीकरण का एक प्रमुख परिणाम जनसंख्या वृद्धि भी था। बढ़ी हुई जनसंख्या ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया। 

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