B. A.
III, Political Science III
प्रश्न 1.अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को परिभाषित कीजिए तथा
इसकी प्रकृति (स्वरूप) का उल्लेख कीजिए।
अथवा"अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति समस्त राजनीति के समान
शक्ति के लिए संघर्ष है।" विवेचना कीजिए।
अथवा'' अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति से
आप क्या समझते हैं ? इसके क्षेत्र अथवा विषय-वस्तु पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति : अर्थ तथा परिभाषाएँ
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अर्थ को 'राजनीति' शब्द के अर्थ के आधार पर
सरलतापूर्वक समझा जा सकता है। सामान्यतया राजनीति का आशय 'शक्ति प्राप्त करने के लिए
किया गया संघर्ष' है । जब
कुछ समान हित अथवा
स्वार्थ रखने वाले व्यक्ति एक गुट में संगठित होकर अपने विरोधी गुट या गुटों से
टकराते हैं, तभी राजनीति का जन्म
होता है। इस प्रकार सामान्य अर्थ में विश्व के राष्ट्रों के आपसी सम्बन्धों की राजनीति
को ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति कहते हैं।
सामान्य रूप से हम राष्ट्रों के मध्य पाई जाने वाली राजनीति को अन्तर्राष्ट्रीय
राजनीति की संज्ञा प्रदान करते हैं। दूसरे शब्दों में, अन्तर्राष्ट्रीय
क्षेत्र में विभिन्न राष्ट्र अपने हित साधन के लिए आपसी सम्बन्धों में संघर्ष की
जिस स्थिति में रहते हैं, उसी का अध्ययन अन्तर्राष्ट्रीय
राजनीति की विषय-वस्तु है। इसे इस प्रकार भी स्पष्ट किया जा सकता है-शक्ति के लिए संघर्ष ही
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति है। शक्ति का अर्थ है-शक्ति अथवा योग्यता
द्वारा दूसरे पक्ष से अपने निश्चित कार्य करा लेना ।
अतः अन्तर्राष्ट्रीय
राजनीति में शक्ति, रक्षण, प्रयोग तथा विस्तार की
प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति एक विकासोन्मुख विषय है, अत: इसकी परिभाषा को लेकर
विद्वानों में काफी मतभेद हैं। कतिपय प्रमुख लेख्नकों द्वारा व्यक्त परिभाषाएँ
यहाँ प्रस्तुत की जा रही हैं-
मॉर्गेन्थाऊ ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का अर्थ बताते हुए
कहा है, "राष्ट्रों के बीच संघर्ष और शक्ति के प्रयोग का नाम ही अन्तर्राष्ट्रीय
राजनीति है ।" -
थॉम्पसन ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को परिभाषित करते हुए लिखा है, "राष्ट्रों के मध्य छिड़ी स्पर्द्धा के साथ-साथ उनके परस्पर सम्बन्धों को
सुधारने या बिगाड़ने वाली परिस्थितियों एवं संस्थाओं का अध्ययन अन्तर्राष्ट्रीय
राजनीति कहलाता है ।",
स्प्राउट के अनुसार, "स्वतन्त्र राजनीतिक समुदायों अर्थात् राज्यों के
अपने-अपने उद्देश्यों अथवा हितों के आपसी विरोध-प्रतिरोध या संघर्ष से उत्पन्न
उनकी क्रिया-प्रतिक्रियाओं और सम्बन्धों का अध्ययन ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति
है।"
पैडलफोर्ड व लिंकन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को
शक्ति सम्बन्धों के परिवर्तित होते हुए ढाँचों के भीतर एक-दूसरे से टकराती हुई
राजकीय नीतियों के रूप में देखते हैं।
चार्ल्स श्लाइचर के अनुसार, “राज्यों के सभी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शामिल
किए जा सकते हैं।”
यद्यपि वे यह मानते हैं कि सभी अन्तर्राष्ट्रीय
सम्बन्ध राजनीतिक नहीं होते।
फेलिक्स ग्रास के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति वस्तुतः राष्ट्रों की
विदेश नीति का ही अध्ययन है।”
जेम्स रोजनाऊ के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति अन्तर्राष्ट्रीय
सम्बन्धों का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपबन्ध है।"
क्विन्सी राइट के शब्दों में,“अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति एक ऐसी कला है जिसके
द्वारा कोई वर्ग, गुट अन्य बड़े गुटों को प्रभावित, छलयोजित अथवा नियन्त्रित करके कोई वर्ग,दूसरे के वर्ग विरोध के बावजूद अपना स्वार्थ सिद्ध करता है।"
संक्षेप में कहा जा सकता है कि
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का सम्बन्ध इस बात से है जिसमें विभिन्न राष्ट्र अपनी
नीतियों और कार्यों के द्वारा अपने उन राष्ट्रीय हितों की प्राप्ति हेतु प्रयासरत
रहते हैं जो दूसरे राष्ट्रों के राष्ट्रीय हितों से टकराते हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की प्रकृति (स्वरूप) :-
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की विभिन्न परिभाषाओं को ध्यान में रखते हुए प्रो.
के. सी. गुप्ता ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की प्रकृति (स्वरूप) को निम्न
मान्यताओं के आधार पर निश्चित किया है :-
(1) विश्व में अनेक स्वतन्त्र राज्य
हैं।
(2) इन राज्यों का आधार राष्ट्रवाद और कानूनी प्रभुसत्ता है ।
(3) इन सभी के अपने-अपने राष्ट्रीय
हित हैं, जिनमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण स्वतन्त्रता तथा प्रादेशिक
अखण्डता है।
(4) जो राष्ट्रीय हित परस्पर विरोधी
होते हैं, वही अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष को
जन्म देते हैं।
(5) विभिन्न राष्ट्र अपने-अपने हितों
की वृद्धि के लिए शक्ति का प्रयोग करते हैं।
(6) शक्ति का प्रयोग मुख्यतया
राजतन्त्र और युद्ध के रूप में देखने को मिलता है।
इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में विभिन्न राष्ट्रों के बीच शक्ति के लिए
संपर्क होता है। युद्ध या शान्ति संघर्ष के उप-परिणाम हैं,न कि वे स्वयं में साध्य ।
राष्ट्र शक्ति कई तत्त्वों से मिलकर बनती है; जैसे-सांस्कृतिक, भौतिक, आर्थिक, जनसांख्यिक, सैनिक आदि। सैनिक आवश्यकता के कारण विभिन्न
सैनिक गठबन्धन किए जाते
यह उल्लेखनीय है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में राष्ट्रों के पारस्परिक
सम्बन्धों में कभी स्थिरता नहीं आ पाती है,क्योंकि कोई राष्ट्र यह नहीं चाहता कि दूसरा
राष्ट्र उससे अधिक शक्तिशाली हो जाए। इसीलिए अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों व उनके
कानूनों का भी उल्लंघन किया जाता है।
क्विन्सी राइट ने लिखा है, "जब तक कि राज्यों को कानून के प्रभावी होने में
विश्वास नहीं है और प्रत्येक राज्य अपनी सुरक्षा के लिए शक्ति बढ़ाने में
प्रयत्नशील है, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति दण्डनीति पर ही चलती
रहेगी।"
उपर्युक्त के अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का एक और भी स्वरूप
हैशान्तिपूर्ण जीवन, अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व सह-अस्तित्व। आजकल विश्व युद्धों के भयंकर परिणामों
के कारण सभी राष्ट्रों ने शान्ति की बात करना प्रारम्भ कर दिया है, चाहे वे अमेरिका और रूस
जैसे बड़े शक्तिशाली राष्ट्र ही क्यों न हों। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि
विभिन्न राष्ट्र विश्व-शान्ति और सह-अस्तित्व के मार्ग का अनुसरण करें।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का क्षेत्र अथवा
विषय-वस्तु:-
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति एक नया विषय है, अतः अभी उसका क्षेत्र निश्चित नहीं हो पाया है। सन्
1947 में विदेशी मामलों की
परिषद् ने एक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था, जिसमें एक सर्वेक्षण के आधार पर ग्रेसन किर्क
ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की विषय-वस्तु में पाँच तत्त्वों का अध्ययन शामिल किया
था-
(1) राज्य व्यवस्था के स्वरूप व
कार्य-प्रणाली का अध्ययन,
(2) राज्य की शक्ति को प्रभावित करने
वाले तत्वों का अध्ययन,
(3) अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति एवं
महाशक्तियों की विदेश नीतियों का अध्ययन,
(4) वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय
सम्बन्धों के इतिहास का अध्ययन, तथा
(5) अधिक स्वामित्व वाली विश्व व्यवस्था के निर्माण की
प्रक्रिया का अध्ययन।
चार्ल्स श्लाइचर सभी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को अन्तर्राष्ट्रीय
राजनीति में शामिल 'करते हैं।
पामर तथा पार्किन्स का मत है कि अन्तर्राष्ट्रीय
राजनीति का राज्य व्यवस्था से घनिष्ठ सम्बन्ध है।
मॉर्गेन्थाऊने राष्ट्रों
के राजनीतिक सम्बन्धों और विश्व-शान्ति की समस्याओं को केन्द्र-बिन्दु मानकर
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का विश्लेषण किया है।
संक्षेप में, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र अथवा विषय-वस्तु को अग्र शीर्षकों के
अन्तर्गत व्यक्त किया जा सकता है
(1) राष्ट्रों के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन:-
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रमुख पात्र राज्य होते हैं और इसके अन्तर्गत
राज्यों के बाह्य व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। राज्यों के आपसी सम्बन्ध बड़े
जटिल और कई प्रकार के तत्त्वों; जैसे-भू-राजनीतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, वैचारिक, सामरिक तत्त्वों आदि से प्रभावित
होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति अन्तर्राष्ट्रीय
सम्बन्धों के अध्ययन पर बल देती है।
(2) राज्य व्यवस्था का अध्ययन:-
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति राज्यों के मध्य की। राजनीति है । इसलिए इसमें सबसे
पहले राज्य व्यवस्था का अध्ययन होता है। राज्य ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की
इकाइयाँ होते हैं । पामर तथा पार्किन्स के अनुसार, “विश्व समाज का आधार राज्य
या राज्य व्यवस्था ही है। इसलिए विश्व समाज और अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के
अध्ययन का आरम्भ यहीं से होना चाहिए।” सम्प्रभुता, राष्ट्रीयता और शक्ति इस राज्य व्यवस्था की
प्रमुख विशेषताएँ हैं । जब इन राज्यों में राष्ट्रीय हितों के लिए संघर्ष होता है
और वे शक्ति का सहारा लेते हैं, तब अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का जन्म होता है।
(3) शक्ति सम्बन्धों का अध्ययन:-
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रख्यात विद्वान् मॉर्गेन्थाऊ के अनुसार
राष्ट्रों के मध्य शक्ति के लिए संघर्ष वास्तव में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति है।
अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में सभी राज्य शक्ति के उपार्जन के लिए प्रयत्नशील होते हैं
और शक्ति का दृष्टिकोण ही उनकी विदेश नीति की रचना में सबसे अधिक निर्णायक भूमिका
अदा करता है।
(4) विदेश नीतियों का अध्ययन:-
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन में विभिन्न देशों के मध्य राजनीतिक, आर्थिक, व्यापारिक तथा सैनिक सम्बन्धों
का अध्ययन किया जाता है। इससे राष्ट्रों के आपसी सम्बन्धों के नियमन को समझा जा
सकता है। कुछ विचारक तो यह भी मानते हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन
विदेश नीति के अध्ययन का ही पर्याय है।
(5) अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का अध्ययन:-
राज्यों के मध्य आर्थिक, सैनिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग
की वृद्धि करने हेतु ही अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का निर्माण किया जाता है। संयुक्त
राष्ट्र संघ की स्थापना ने अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के महत्त्व को बढ़ाने में
महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। आज संयुक्त राष्ट्र संघ ही एकमात्र संगठन नहीं है, अपितु अब अनेक प्रकार के
प्रादेशिक संगठनों की स्थापना हो चुकी है। ये सभी संगठन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति
में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
(6) अन्तर्राष्ट्रीय कानून का अध्ययन:-
अन्तर्राष्ट्रीय कानून का अध्ययन भी अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का ही एक भाग है
। प्रायः सभी राष्ट्रों में यह प्रवृत्ति पाई जाती है कि वे उन अन्तर्राष्ट्रीय
कानूनों का पालन करते हैं जो उनके हितों की रक्षा करते हैं। वास्तव में
अन्तर्राष्ट्रीय कानून का क्षेत्र विस्तृत होता जा रहा है। वह राष्ट्रों के
व्यवहार को मर्यादित करता है और विश्व व्यवस्था बनाए रखने में सहयोग प्रदान करता
है।
(7) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के यन्त्र:-
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र के अन्तर्गत वे सभी साधन और यन्त्र भी आते
हैं जिनसे यह संचालित होती है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति कूटनीति, विदेश नीति, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, विदेशी और सैनिक सहायता, शक्ति तथा शस्त्र और युद्ध
के माध्यम से संचालित होती है। इन्हीं का सहारा लेकर एक राज्य राष्ट्रीय हितों के
लिए हो रहे संघर्ष में अपने पक्ष को सबल करने का प्रयत्न करता है। इन्हीं के चारों
ओर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति चक्कर लगाती है।
(8) राष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद
:-
आधुनिक युग में विभिन्न राज्यों के पारस्परिक व्यवहार के मध्य जिन शक्तिशाली
प्रवृत्तियों का उदय हुआ है उनमें राष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद प्रमुख हैं। इनका
अध्ययन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अन्तर्गत किया जाता है। राष्ट्रवाद की भावना ने
एशिया, अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका
का नक्शा ही बदल डाला है। इसी ने साम्राज्यवाद को नष्ट किया है, परन्तु साथ ही हम
साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के नये-नये रूप देख रहे हैं। यह नव-उपनिवेशवाद आज
आर्थिक नियन्त्रण,सैनिक निर्भरता तथा प्रभाव क्षेत्र के रूप में प्रकट हो रहा है।
(9) राष्ट्रीय चरित्र:-
किसी राष्ट्र की विदेश नीति उसके राष्ट्रीय हितों पर आधारित होती है और उसके
निर्माण में राष्ट्र के नागरिकों के चरित्र का भी एक विशेष योगदान होता है। सभी
राष्ट्रों का आचरण एक समान नहीं होता है। वस्तुतः अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के
रंगमंच पर राष्ट्रों की भूमिका एक बड़ी सीमा तक उनके अपने चरित्र द्वारा निश्चित
होती है।
(10) विचारधाराएँ:-
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के संचालन में कुछ विचारधाराओं ने महत्त्वपूर्ण
भूमिका अदा की है। 'यथास्थिति' की विचारधारा, 'शक्ति-वितरण में परिवर्तन
की विचारधारा तथा 'शक्ति-प्रदर्शन' की विचारधारा कुछ प्रमुख विचारधाराएँ हैं।
(11) प्रादेशिकतावाद अथवा क्षेत्रीयतावाद :-
विगत वर्षों में राज्य व्यवस्था में जो नये परिवर्तन हुए हैं, उनमें प्रादेशिकतावाद सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण है। इसके प्रभाव के - फलस्वरूप एक प्रदेश अथवा क्षेत्र में स्थित
बहुत-से राज्य मिलकर एक प्रादेशिक संगठन का निर्माण करते हैं।
(12) युद्ध एवं शान्ति की गतिविधियों का अध्ययन :-
युद्ध की परम्परा में शीत युद्ध ने निःसन्देह एक
नया अध्याय जोड़ा है। शीत युद्ध एक प्रकार का स्नायु युद्ध है। अन्तर्राष्ट्रीय
राजनीति में आज इस बात पर विचार किया जाता है कि युद्धों को कैसे रोका जाए अथवा
समाप्त किया जाए । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में निःशस्त्रीकरण, शस्त्र नियन्त्रण,शीत युद्ध तथा तनाव-शैथिल्य
का भी अध्ययन किया जाता है।
विशाल
ReplyDelete