पानीपत का प्रथम युद्ध - कारण , महत्त्व और परिणाम
M.J. P.R.U., B.A. II, History I / 2021
प्रश्न 4. पानीपत के प्रथम युद्ध का विवरण दीजिए। भारत के इतिहास में इसका महत्त्व
बताइए। इस युद्ध में बाबर की विजय के क्या कारण थे?"
अथवा '' पानीपत के प्रथम युद्ध की विवेचना कीजिए एवं उसमें बाबर की सफलता के कारणों
का परीक्षण कीजिए।
अथवा '' पानीपत के प्रथम युद्ध का वर्णन करते हुए उसके परिणाम और महत्त्व का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा '' पानीपत के प्रथम युद्ध का वर्णन करते हुए उसके परिणाम और महत्त्व का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर -
पानीपत का प्रथम युद्ध
भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक जहीरउद्दीन मुहम्मद बाबर नवम्बर,
1525 में विशेष सैनिक
तैयारियों के साथ भारत की ओर चल पड़ा। इस समय उसके पास 25,000
अश्वारोही तथा 700 तोपें थीं। उसने शीघ्रता से सिन्धु नदी को पार किया और पंजाब जा
पहुँचा। सूबेदार दौलत खाँ लोदी की सेना बाबर का नाम सुनते ही भाग खड़ी हुई। दौलत
खाँ लोदी बन्दी बना लिया गया, परन्तु मार्ग में
ही उसकी मृत्यु हो गई। पंजाब पर अपनी स्थिति दृढ़ करने के पश्चात् बाबर ने दिल्ली
की ओर प्रस्थान किया। जब इब्राहीम लोदी को बाबर के आक्रमण का पता चला, तो वह भी अपने 40,000 सैनिकों को साथ लेकर उसका
सामना करने के लिए चल पड़ा। 12 अप्रैल, 1526 को बाबर और इब्राहीम, दोनों की सेनाएँ
पानीपत के ऐतिहासिक मैदान में आमने-सामने आ डटीं।
बाबर ने अपनी सेना की व्यूह-रचना वैज्ञानिक ढंग से की थी। 21 अप्रैल को
प्रात:काल इब्राहीम की सेना ने युद्ध प्रारम्भ कर दिया। बाबर के घुड़सवारों और
तोपखाने के आगे इब्राहीम की विशाल सेना और हाथी न ठहर सके। मुगल सेना ने उजबेगी
चाल 'तुलुगमा' पर चलते हुए इब्राहीम की सेना को घेर लिया और
इसके साथ ही तोपखाने का प्रयोग भी आरम्भ कर दिया। इस भीषण तथा योजनाबद्ध आक्रमण से
इब्राहीम की सेना में भगदड़ मच गई। हाथी तोपों के गोलों की आवाज सुनकर भड़क गए और
पीछे मुड़कर अपनी ही सेना को कुचलने लगे। यह युद्ध दोपहर तक चलता रहा। अन्त में
इब्राहीम पराजित हुआ और युद्धस्थल पर ही मारा गया। उसके लगभग 15,000 अफगान सैनिक
मारे गए।
बाबर ने अपनी आत्मकथा
'तुजुक-ए-बाबरी' (बाबरनामा) में इस युद्ध का वर्णन करते हुए लिखा
है, "जिस समय युद्ध आरम्भ हुआ,
सूर्य आकाश में चढ़ चुका था और दोपहर तक भीषण
युद्ध होता रहा। अन्त में शत्रु सेना छिन्न-भिन्न हो गई और वह भाग गई। मेरे
सैनिकों ने युद्ध में विजय प्राप्त की। ईश्वर की कृपा तथा प्रताप से यह कठिन कार्य
मेरे लिए आसान बन गया और मध्याह्न में ही उस शक्तिशाली की पराजय हो गई।"
इस प्रकार पानीपत का युद्ध बड़ी शीघ्रता से समाप्त हो गया। पानीपत की विजय के
पश्चात् बाबर ने एक सेना अपने पुत्र हुमायूँ के नेतृत्व में आगरा पर अधिकार करने के
लिए भेजी और स्वयं उसने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। शुक्रवार 27 अप्रैल, 1526 को दिल्ली में ही मुगल साम्राज्य के
संस्थापक जहीरउद्दीन मुहम्मद बाबर के नाम का खुतवा पढ़ा गया। इसके साथ ही दिल्ली
की लोदी सल्तनत का अन्त हो गया और भारतीय इतिहास में एक नवीन अध्याय का आरम्भ हुआ।
पानीपत के युद्ध के परिणाम
यह युद्ध भारत के इतिहास का निर्णायक तथा महत्त्वपूर्ण
युद्ध था। इस युद्ध के निम्नलिखित प्रभावशाली परिणाम हुए—
(1) निर्णायक युद्ध - यह युद्ध भारत के इतिहास में एक निर्णायक युद्ध था। इस
युद्ध में लोदियों की पराजय हुई। स्वयं दिल्ली का सुल्तान इब्राहीम लोदी अपने
20,000 सैनिकों के साथ युद्ध में हताहत हुआ।
(2) लोदी वंश का अन्त - इस युद्ध के परिणामस्वरूप
भारत में लोदी वंश का पूर्णतया अन्त हो गया। उनकी सत्ता दिल्ली व पंजाब से
पूर्णतया समाप्त हो गई।
(3) अफगानों में उत्साह की भावना का उदय - इस पराजय ने
अफगानों की आँखें खोल दी और उन्हें अपनी सैनिक अयोग्यता का आभास हो गया। अतएव
उनमें नवीन उत्साह की भावना का उदय हुआ और वे तेजी से अपनी शक्ति का संगठन करने लगे।
(4) बाबर को अपार धन की प्राप्ति - इस युद्ध में
बाबर को दिल्ली से अपार धन प्राप्त हुआ। उसने उस धन को अपनी प्रजा तथा सैनिकों में
बाँट दिया।
(5) बाबर की कठिनाइयों का अन्त - इस विजय के
पश्चात् बाबर ने शीघ्र ही दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया। उसका पंजाब पर पहले
ही अधिकार स्थापित हो चुका था। अतएव उसकी कठिनाइयों का अब पूर्णतया अन्त हो गया और
वह एक विशाल साम्राज्य का स्वामी बन गया। रसबुक विलियम्स के शब्दों में,
"इस युद्ध में विजयी होने
से बाबर की कठिनाइयों का अन्त हो गया और उसे अपने प्राणों की रक्षा तथा सिंहासन की
सुरक्षा के लिए चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं रही। अब उसे अपनी सैनिक प्रतिभा और
असीम शक्ति का प्रयोग अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए करना पड़ा।"
(6) एक नवीन राजवंश की स्थापना - इस युद्ध के
परिणामस्वरूप भारत में एक नवीन राजवंश की स्थापना हुई, जो 'मुगल वंश'
के नाम से विख्यात हुआ। मुगल वंश के सम्राटों
ने दीर्घकाल तक भारत में शासन किया और भारत की राष्ट्रीय एकता में अपना सहयोग
प्रदान किया।
(7) धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना - मुगलों ने भारत में धर्मनिरपेक्ष राज्य की
स्थापना की। उन्होंने धर्म को राजनीति से पूर्णतया पृथक् करके सभी धर्मों के साथ
उदारता का व्यवहार किया।
इस युद्ध का सबसे निर्णायक परिणाम यह रहा कि दिल्ली सल्तनत के शासन का अन्त हो
गया और भारत में एक नये राजवंश 'मुगल राजवंश'
की स्थापना हो गई। लेनपूल ने इस युद्ध के
राजनीतिक परिणाम को स्पष्ट करते हुए कहा है, "पानीपत का युद्ध दिल्ली के अफगानों के लिए विनाशकारी सिद्ध
हुआ और उनका राज्य तथा बल नष्ट-भ्रष्ट हो गया।" इस युद्ध को निर्णायक स्वीकार
करते हुए डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है, "पानीपत के युद्ध ने दिल्ली के साम्राज्य को बाबर के हाथों
सौंप दिया। लोदी वंश की शक्ति खण्ड-खण्ड हो गई और. भारतवर्ष की सर्वोच्च सत्ता
चुगताई तुर्कों के हाथ में चली गई।" प्रो. एम. एम. जाफर के शब्दों में,
"इस युद्ध से भारतीय
इतिहास में एक नवीन युग का प्रादुर्भाव हुआ। लोदी वंश के स्थान पर मुगल वंश की
स्थापना हुई।"
पानीपत के युद्ध में बाबर की विजय (सफलता) के कारण
पानीपत के युद्ध में बाबर को अफगानों के विरुद्ध विजय
प्राप्त हुई। उसकी विजय के निम्नलिखित कारण थे
(1) इब्राहीम लोदी का अमीरों के साथ कठोर दुर्व्यवहार - इब्राहीम लोदी एक
क्रोधी तथा सनकी सुल्तान था। उसने कभी भी अमीरों तथा सैनिकों के साथ अच्छा व्यवहार
नहीं किया, जिससे वे उसकी नीति से
असन्तुष्ट होकर उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रचने लगे। दौलत खाँ लोदी तथा आलम खाँ लोदी
ने तो बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया।
(2) अफगानों की असंगठित तथा अव्यवस्थित सेना - अफगान सेना मुगलों की सेना की अपेक्षा काफी
असंगठित और अव्यवस्थित थी। अफगान सेना में अनुशासन का पूर्णतया अभाव था तथा अफगान
सैनिक भी अयोग्य और अकुशल थे। अतएव उन्होंने युद्ध में कोई सक्रिय वीरता न दिखाई।
फलत: युद्ध में बाबर की विजय हुई।
(3) इब्राहीम की सैनिक अयोग्यता तथा अनुभवहीनता - इब्राहीम एक अयोग्य सैनिक तथा अनुभवशून्य
व्यक्ति था। वह एक कुशल सेनापति नहीं था। इसके विपरीत बाबर में उच्च सैनिक योग्यता
तथा सेनापति के गुण विद्यमान थे। अतएव उसने शीघ्र ही अफगान सेना को पराजित करने
में सफलता प्राप्त की।
(4) अफगान सेना में तोपखाने का अभाव - अफगान सेना में
तोपखाने का पूर्णतया अभाव था। इसके विपरीत बाबर के पास 700 तोपों का एक विशाल
तोपखाना था। उसके पास अच्छी बन्दूकें भी थीं, जिनकी तेज मार अफगान सेना सहन न कर सकी और शीघ्र ही युद्ध
का मैदान छोड़कर भाग खड़ी हुई। इसके अतिरिक्त अफगानों की युद्ध पद्धति दोषपूर्ण
थी। अतएव बाबर ने 'तुलुगमा' युद्ध पद्धति का प्रयोग करके अफगान सेना को
पराजित करने में सफलता प्राप्त की।
(5) भारत में एकता का अभाव - उस समय भारत में राजनीतिक एकता का पूर्णतया अभाव था।
सम्पूर्ण भारत छोटे-छोटे स्वतन्त्र राज्यों में बँटा हुआ था। उनमें पारस्परिक
ईर्ष्या और द्वेष की भावना विद्यमान थी। वे एक-दूसरे को सहयोग देना नहीं चाहते थे।
अतएव इस परिस्थिति का लाभ उठाकर बाबर ने इब्राहीम लोदी को युद्ध में पराजित कर
दिया।
(6) बाबर का उच्च कोटि का सैन्य संगठन - बाबर केवल एक उच्च कोटि का सैनिक ही नहीं था,
वरन् वह एक कुशल सेनापति भी था। उसने अनेक
युद्धों में सफलता प्राप्त की थी। बाबर की सेना में योग्य तथा अनुभवी सैनिक थे।
उन्हें युद्धकला का पर्याप्त ज्ञान था। उन्होंने बड़ी तेजी से अफगान सेना पर
आक्रमण करके उसे पीछे खदेड़ दिया।
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Panipat ke yudhh kr pramukh karan
ReplyDeleteBabar ka delhi saltanat ko pana
Deletewhere is mahatwa
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