नूरजहाँ का चरित्र-चित्रण

B. A. II, History I 

प्रश्न 7. जहाँगीर के शासनकाल की राजनीति पर नूरजहाँ के प्रभाव का वर्णन कीजिए।  
अथवा ''नूरजहाँ का चरित्र-चित्रण कीजिए । 
अथवा ''नूरजहाँ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा ''जहाँगीर के शासन पर नूरजहाँ का क्या प्रभाव था?
अथवा ''जहाँगीर के शासनकाल के विभिन्न विद्रोहों का वर्णन कीजिए।


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बचपन का नाम - मेंहरुन्निसा
पिता - मिर्जा ग्यासबेग
विवाह- जहाँगीर
उपाधि- नूरजहाँ

उत्तर - नूरजहाँ का परिचय

नूरजहाँ के बचपन का नाम मेंहरुन्निसा था। उसका पिता मिर्जा ग्यासबेग पर्शिया का रहने वाला था। मई, 1611 में जहाँगीर के साथ उसका विवाह सम्पन्न हुआ था। जहाँगीर ने उसे 'नूरजहाँ' की उपाधि प्रदान की। विवाह के समय जहाँगीर की आयु 42 वर्ष और नूरजहाँ की आयु 24 वर्ष थी।
विवाह के समय से ही राजनीति में नूरजहाँ का प्रभाव बढ़ने लगा था। अपने सौन्दर्य एवं प्रभाव के कारण वह जहाँगीर की प्रमुख बेगम बन गई। बहुत-से सिक्कों पर नूरजहाँ का नाम आने लगा तथा राज्य के आदेश-पत्रों पर जहाँगीर के हस्ताक्षरों के साथ-साथ नूरजहाँ के हस्ताक्षर भी होने लगे। धीरे-धीरे जहाँगीर की शासन व्यवस्था एक प्रकार से नूरजहाँ के हाथों में केन्द्रित हो गई।
डॉ. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव के अनुसार, "मुगल सम्राट अकबर महान् के इस प्रतिभाशाली पुत्र ने इस महिला के स्नेह में अपने अस्तित्व को ही मिटा दिया और एक स्त्री के सौन्दर्य के सम्मुख नतमस्तक हो गया। सत्य तो यह है कि जहाँगीर के शासनकाल का इतिहास इस अद्भुत महिला की क्रीड़ाओं का इतिहास है जहाँगीर के साथ नूरजहाँ का विवाह उसके जीवन की एक महत्त्वपूर्ण घटना है। नूरजहाँ के पूर्व भारतवर्ष के इतिहास में कोई भी स्त्री ऐसी नहीं हुई जिसने इतना ऊँचा स्थान पाया हो तथा विश्व को प्रेम का परिचय दिया हो।" । नूरजहाँ सुन्दर होने के साथ-साथ अपूर्व बुद्धिमती भी थी। वह मुगल राजनीति में सक्रिय होकर भाग लेने लगी। आरामतलब और विलासी जहाँगीर ने धीरे-धीरे शासन के सभी अधिकार नूरजहाँ के हाथ में सौंप दिए। जहाँगीर स्वयं ही कहा करता था-"मैंने राजसत्ता नूरजहाँ को सौंप दी है। वह शासन प्रबन्ध में बहुत निपुण है। मुझे तो केवल एक प्याला जहर और खाने को एक टुकड़ा मांस चाहिए।" मुतमाद खाँ नूरजहाँ के प्रभाव का वर्णन करते हुए लिखता है, "उसकी मोहर लगे बिना किसी को जागीर नहीं मिल सकती थी। सम्राट ने उसे उपाधियों के साथ ही प्रभुत्व शासनाधिकार भी सौंप दिए। कभी-कभी वह झरोखों में बैठकर दर्शन देती और अमीरों को आदेश प्रदान करती थी। उसके नाम से सिक्के ढाले जाने लगे और उन पर उसका नाम अंकित किया जाने लगा।"

जहाँगीर के शासनकाल के विद्रोह

(1) नूरजहाँ द्वारा गुटबन्दी करना - अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए नूरजहाँ ने एक गुट का निर्माण किया, जिसके प्रमुख सदस्य थेउसके पिता. ग्यासबेग, उसकी माँ असमत बेगम उसका भाई आसफ खाँ तथा शहजादा खुर्रम (शाहजहाँ)। यह गुट 'नूरजहाँ गुट' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह गुट प्रारम्भ में बड़ा प्रभावशाली रहा और एक दशक तक मिलकर शासन करता रहा। परन्तु आगे चलकर स्थिति बदल गई। शहजादे खुर्रम को उसने विशेष सुविधाएँ दी तथा उसे महत्त्वपूर्ण सैन्य अभियानों पर भेजा। परन्तु जब नूरजहाँ ने अलीकुली से उत्पन्न अपनी पुत्री का विवाह जहाँगीर के दूसरे पुत्र शहरयार के साथ कर दिया, तो खुर्रम और उसके मध्य तनाव उत्पन्न हो गया, क्योंकि वह शहरयार को जहाँगीर का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी। उसने अपने दामाद शहरयार का पक्ष लेना आरम्भ कर दिया। परिणामस्वरूप खुर्रम उसका विरोधी हो गया और नूरजहाँ गुट में दरार उत्पन्न हो गई। दुर्भाग्य से इसी बीच नूरजहाँ के पिता ग्यासग (एत्मादुद्दौला) तथा माँ असमत बेगम का निधन हो गया। इस प्रकार उसे सहयोग प्रदान करने वालों की संख्या घट गई। जहाँगीर के अन्तिम काल में नूरजहाँ गुट टूट ही नहीं गया, वरन् उसके सदस्यों में परस्पर संघर्ष भी उत्पन्न हो गया। नूरजहाँ की इस नीति के परिणामस्वरूप शहजादे खुर्रम को विद्रोह करना पड़ा और आगे चलकर महावत खाँ भी विद्रोही हो गया।

(2) खुर्रम का विद्रोह - 

नूरजहाँ की महत्त्वाकांक्षाओं की कोई सीमा नहीं. थी। वह हर कीमत पर शाहजादा खुर्रम के प्रभाव को समाप्त करके स्वयं हमेशा के लिए शक्तिशाली बनना चाहती थी। 1621-22 ई. में नूरजहाँ के माँ-बाप की मृत्यु हो जाने से वह अधिक निरंकुश हो गई। अब उसे समझाने वाला कोई नहीं था। जहाँगीर का स्वास्थ्य निरन्तर गिरता गया। ऐसी स्थिति में खुर्रम (शाहजहाँ) भी नूरजहाँ की बढ़ती हुई शक्ति एवं योग्यताओं से सशंकित हो गया। उसने शासन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह निश्चित रूप से नूरजहाँ की सत्ता लोलुपता का ही परिणाम था। यह विद्रोह तीन वर्ष तक चलता रहा। इसके फलस्वरूप मुगल साम्राज्य की शक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ा। इसकी पुष्टि करते. हुए डॉ. एस. आर. शर्मा ने लिखा है
"इस प्रकार तीन वर्ष के रक्तपात और अपार जन व धन के विनाश के पश्चात् यह निष्फल विद्रोह समाप्त हो गया, जिसके कारण साम्राज्य दुर्बल हो गया. और अनेकों कठिनाइयाँ उपस्थित हो गईं।"

(3) महावत खाँ का विद्रोह - 

यह विद्रोह भी नूरजहाँ की महत्त्वाकांक्षा का परिणाम था। शाहजहाँ के विद्रोह का दमन करने में महावत खाँ ने सक्रिय योगदान दिया था, जिसके कारण उसके प्रभाव एवं लोकप्रियता में वृद्धि हो गई। महावत खाँ एक योग्य सेनापति था, किन्तु वह नूरजहाँ के बढ़ते हुए प्रभाव से असन्तुष्ट था। नूरजहाँ भी महावत खाँ की योग्यता एवं लोकप्रियता से घबराती थी, इसलिए उसने महावत खाँ को अफगानिस्तान की सीमा पर नियुक्त कर दिया था। महावत खाँ ने इसे अपना अपमान समझकर 1626 ई. में विद्रोह कर दिया और जहाँगीर को बन्दी बना लिया। यद्यपि यह विद्रोह शीघ्र ही दबा दिया गया और एक माह के पश्चात् महावत खाँ भाग गया, तथापि इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि जहाँगीर ने वृद्धावस्था में एक सेनापति को खो दिया। यद्यपि इन सम्पूर्ण घटनाओं में नूरजहाँ के भाई शाहजहाँ के ससुर आसफ खाँ का हाथ था, तथापि यह भी सत्य है कि स्वयं नूरजहाँ भी मंहावत खाँ की शक्ति को समाप्त करना चाहती थी।

जहाँगीर के शासन पर नूरजहाँ का प्रभाव

जहाँगीर के शासन पर नूरजहाँ के प्रभाव के विषय में लेनपूल ने लिखा है"यद्यपि नूरजहाँ का प्रभाव प्रारम्भ में राज्य के लिए कल्याणकारी सिद्ध हुआ, तथापि उसकी प्रशासनिक शक्ति, उसकी स्वार्थता तथा अज्ञानपूर्ण पक्षपात ने उसके शत्रु पैदा कर दिए। परिणामस्वरूप अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न हुईं, जिनसे विलासी सम्राट् के अन्तिम दिन अन्धकारमय हो गए और मुगलों की पुरानी वीर सैन्य शक्ति को ठेस पहुँची, जिसके कारण दरबार में दोष उत्पन्न हुए।"

नूरजहाँ के कल्याणकारी प्रभाव - 

नूरजहाँ के प्रभाव के फलस्वरूप ही जहाँगीर के अंत्यधिक मद्यपान में उत्तरोत्तर कमी होती गई और वह अति मद्यपान के उन घातक परिणामों से बच सका जिनके कारण उसके दो छोटे भाइयों को जान से हाथ धोना पड़ा था। उसके सफल प्रयत्नों से मुगल दरबार में वैभव तथा समृद्धि की वृद्धि हुई। उसने अपने पति की आन एवं ललित कलाओं की अभिवृद्धि तथा संरक्षणप्रियता का भी अनुमोदन किया। उसने आचार-व्यवहार तथा वेशभूषा में सौन्दर्य उत्पन्न कर दिया। दीन-दु:खियों तथा असहायों को आश्रय देती थी और उनकी यथोचित सहायता करती थी। जो कोई पीड़ित उसकी शरण में जाता था, वह अत्याचार से सुरक्षित हो जाता था। अनाथ बालिकाओं के विवाह में वह पूरी सहायता देती थी। उसके काल में कला और साहित्य के पुजारियों को प्रोत्साहन व सहायता मिली। यही नहीं, वह जहाँगीर को आवेश में आकर क्रूर कार्यों को करने से रोकती थी।

नूरजहाँ के विनाशकारी प्रभाव - 

नूरजहाँ अपने प्रभाव के द्वितीय चरण में स्वार्थ से अन्धी हो गई और उसने इस काल में अनेक निन्दनीय कार्य किए। इस काल में उसने अपने पूर्व समर्थकों का भी विरोध किया, जिसके परिणामस्वरूप राजनीतिक अशान्ति उत्पन्न हो गई।

डॉ. श्रीवास्तव के शब्दों में "यद्यपि नूरजहाँ का वैयक्तिक तथा नैतिक प्रभाव सराहनीय था, किन्तु राजनीतिक तथा शासन सम्बन्धी मामलों में उसके प्रभाव ने बड़ा घातक परिणाम पैदा किया। राजनीति में प्रवेश करते ही उसने शक्ति संग्रह तथा दलबन्दी प्रारम्भ कर दी, जिसके कारण एकता का नाश हो गया। उसने अपनी शक्ति पिपासा को शान्त करने के लिए निरन्तर जहाँगीर के प्रभाव को कम करने का प्रयास किया, जिससे जहाँगीर भोग-विलास की ओर झुकता गया और राजनीति की ओर से उदासीन होता गया। उसने अपने निकट सम्बन्धियों को उच्च पदों पर प्रतिष्ठित किया और अपने दल के विरोधियों को निकाल बाहर किया। उसके इस पक्षपात का फल अच्छा न हुआ और राज्य में महान् असन्तोष फैला। राज्य गृह कलह तथा उपद्रवों का अड्डा बन गया।"


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