लॉर्ड डलहौजी-हड़प नीति,राज्य अपहरण नीति
MJPRU-BA-III-History I-2020
मूल्यांकन
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प्रश्न 7. लॉर्ड डलहौजी की प्रसारवादी नीति की व्याख्या कीजिए।
अथवा ''लॉर्ड डलहौजी की देशी राज्यों के प्रति नीति बताइए।
अथवा ''लॉर्ड डलहौजी के "व्यपगत सिद्धान्त' का वर्णन कीजिए।
अथवा ''लॉर्ड डलहौजी की 'हड़प नीति' की विवेचना कीजिए।
अथवा ''लॉर्ड डलहौजी की राज्य अपहरण नीति की विवेचना कीजिए।
उत्तर- लॉर्ड
डलहौजी 1848 ई. में भारत का गवर्नर-जनरल बनकर आया। वह साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का था।
अत: भारत आते ही उसने साम्राज्यवादी नीति का अनुसरण करना आरम्भ कर दिया। उसका
स्वप्न भारत के
समस्त राज्यों को समाप्त करके ब्रिटिश शासन की व्यवस्था करना था।
उसने अपनी साम्राज्यवादी नीति के निम्नलिखित आधार बनाए
(1) राज्य अपहरण या गोद निषेध नीति।
(2) कुशासन और
भ्रष्टाचार के आरोप की नीति।
(3) पेंशनों और पदों
की समाप्ति की नीति।
(4) युद्ध और आक्रमण
की नीति।
डलहौजी का व्यपगत सिद्धान्त
अथवा
डलहौजी
की राज्य अपहरण या गोद निषेध नीति
लॉर्ड
डलहौजी
ब्रिटिश साम्राज्य का अधिक-से-अधिक विस्तार करना चाहता था। कम्पनी के राज्य का
विस्तार करने के लिए उसने एक नवीन कूटनीतिक सिद्धान्त का निर्माण किया, जो 'गोद निषेध नीति' (Doctrine of Lapse) के नाम
से जाना जाता है। भारत में प्राचीन काल से ही गोद लेने की प्रथा चली आ रही थी। जब किसी राजा के पुत्र नहीं होता था, तो वह हिन्दू
परम्परा के अनुसार किसी बालक को अपने उत्तराधिकारी के रूप में गोद ले लेता था। इस
सिद्धान्त के अनुसार कोई भी देशी राजा ब्रिटिश सरकार की अनुमति के बिना किसी को
गोद नहीं ले सकता था और न ही गोद लिया हुआ पुत्र उसके राज्य का उत्तराधिकारी बन
सकता था। डलहौजी ने इस नीति का कठोरता के साथ पालन किया और सतारा, जैतपुर, सम्भलपुर, नागपुर तथा
झाँसी का अंग्रेजी साम्राज्य में विलय कर लिया। है
(1) सतारा-
सर्वप्रथम
लॉर्ड डलहौजी ने सतारा राज्य को अपनी नीति का शिकार बनाया। सतारा के राजा के कोई
पुत्र नहीं था, अतएव उसने एक बालक को गोद लिया था। 1848 ई. में
सतारा के राजा की मृत्यु हो गई। किन्तु लॉर्ड डलहौजी ने गोद लिए हुए बालक को
उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार न करके सतारा को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला
लिया।
(2) नागपुर-
नागपुर का राजा राघोजी निःसन्तान मर गया। फलतः उसकी पत्नी
ने यशवन्तराव नामक बालक को गोद ले लिया। किन्तु लॉर्ड डलहौजी ने यह कहकर कि उसने
गोद लेने की अनुमति अंग्रेजों से प्राप्त नहीं की है, अत: राज्य पर उसका
कोई अधिकार नहीं है, नागपुर को अंग्रेजी साम्राज्य में
सम्मिलित कर लिया।
(3) सम्भलपुर–
सम्भलपुर के राजा नारायण सिंह के कोई पुत्र
नहीं था और वह कोई दत्तक पुत्रं नहीं अपना सके। 1849 ई. में
डलहौजी ने इस राज्य का भी अंग्रेजी साम्राज्य में विलय कर लिया।
(4) झाँसी–
झाँसी का राजा 1853 ई.
में निःसन्तान मर गया। वहाँ की रानी ने एक बालक को गोद ले लिया था, किन्तु लॉर्ड डलहौजी ने उसे उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं किया और
1854 ई. में झाँसी को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया।
इन
राज्यों के अतिरिक्त जैतपुर, बघाट और उदयपुर को भी अंग्रेजी साम्राज्य
में मिला लिया गया।
लॉर्ड डलहौजी के गोद निषेध सिद्धान्त की आलोचना
लॉर्ड
डलहौजी के गोद
निषेध सिद्धान्त की यह कहकर आलोचना की गई है कि यह सिद्धान्त अत्यन्त क्रूर था और
हिन्दुओं की गोद लेने की प्रथा के विरुद्ध था। हिन्दुओं में अत्यन्त प्राचीन काल
से यह प्रथा चली आई थी कि निःसन्तान राजा किसी भी दत्तक पुत्र (गोद लिए हुए
पुत्र) को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर सकता है। लॉर्ड डलहौजी और कम्पनी
संचालकों की नीति देशी रियासतों को किसी-न-किसी तरह समाप्त करके ब्रिटिश साम्राज्य
में मिलाने की थी, इसलिए वे किसी-न-किसी बहाने की तलाश में रहते थे। उनके लिए इस देश की किसी
परम्परा का सम्मान करने का प्रश्न ही नहीं उठता था।
लॉर्ड डलहौजी की गोद निषेध नीति का परिणाम
लॉर्ड
डलहौजी द्वारा
अपनाई गई गोद निषेध नीति केवल उसके कार्यकाल तक ही लागू रही। बाद में उसके
उत्तराधिकारियों द्वारा इस नीति का पालन नहीं किया गया। देशी राज्यों को अधिकाधिक
रूप से यह आश्वासन दे दिया गया कि उन्हें यथावत् गोद लेने का अधिकार होगा।
अंग्रेजों की नीति में बदलाव का प्रमुख कारण था 1857 ई. का विद्रोह । गोद निषेध नीति का पालन
करने से देशी राज्यों में जो असन्तोष व्याप्त था, वह 1857
ई. के विद्रोह का प्रमुख कारण साबित हुआ।
वास्तव
में लॉर्ड डलहौजी पर साम्राज्य-विस्तार का एक जुनून सवार हो गया था। वह यह
भूल गया था कि इस नीति की प्रतिक्रिया अन्य देशी राज्यों में क्या होगी। डलहौजी
जैसे-जैसे देशी राज्यों को अंग्रेजी साम्राज्य में विलीन करता गया, 'वैसे-वैसे
राजा-महाराजा और नवाब ब्रिटिश सरकार के विरोधी होते गए। इस प्रकार डलहौजी की नीति
ही अंग्रेजी साम्राज्य के लिए एक चुनौती बन गई। अतः अंग्रेज सरकार ने इस नीति का
परित्याग करने का निश्चय किया।
कुशासन और भ्रष्टाचार के आरोप की नीति
लॉर्ड
डलहौजी की इस नीति का शिकार अवध का नवाब और हैदराबाद का निजाम हुआ।
(1) बरार-
बरार क्षेत्र हैदराबाद के निजाम के नियन्त्रण में था, उसे बहुतसी धनराशि
सहायक सेना के भरण-पोषण के लिए देनी थी। 1853 ई. में उसे धन
के बदले बरार का प्रदेश देने के लिए बाध्य किया गया।
(2) अवध-
लॉर्ड डलहौजी ने अवध को अंग्रेजी साम्राज्य में
विलय करने की योजना बनाई। 1848 ई. में उसने कर्नल स्लीमैन को लखनऊ में
रेजीडेण्ट के रूप में भेजा। स्लीमैन ने कुशासन के विस्तृत विवरण डलहौजी को भेजे। 1854
ई. में स्लीमैन के स्थान पर आउट्रम भारत आया और उसने भी अपने विवरण
में कहा कि अवध का प्रशासन बहुत दूषित है तथा लोगों की दशा बहुत शोचनीय है। उसने
अवध के नवाब वाजिदअली शाह पर अयोग्यता तथा दोषपूर्ण शासन करने का आरोप लगाया और एक
सन्धि स्वीकार करने का प्रस्ताव रखा, जिसके अनुसार नवाब को ₹ 12 लाख वार्षिक पेंशन देकर अवध राज्य को
अंग्रेजी साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया जाता। किन्तु नवाब ने इस सन्धि को
स्वीकार नहीं किया। फलतः लॉर्ड डलहौजी ने एक सेना अवध भेजी और नवाब को
गद्दी से उतारकर अवध पर अधिकार कर लिया। 13 फरवरी, 1856 की एक
घोषणा के अनुसार अवध का राज्य कम्पनी के राज्य में मिला लिया गया।
पेंशन और पदों की समाप्ति की नीति
कम्पनी
जिन राज्यों को अपने शासन में सम्मिलित करती थी, वहाँ के शासकों को वह पेंशन देती थी। लॉर्ड
डलहौजी ने इन पेंशनों को बन्द कर दिया। 1853 ई. में
कर्नाटक के नवाब की मृत्यु हो गई। डलहौजी ने मद्रास सरकार के सुझाव से सहमत होकर
उसके उत्तराधिकारियों को मान्यता नहीं दी और उसके वंशजों का राजपद समाप्त कर दिया।
पेशवा बाजीराव द्वितीय को ₹ 8 लाख वार्षिक पेंशन
मिलती थी। 1853 ई. में उसकी मृत्यु हो जाने पर यह पेंशन उसके
दत्तक पुत्र नाना साहब को नहीं दी गई।
1855 ई. में तंजौर के राजा की मृत्यु हो गई। उसके पश्चात् उसकी सोलह विधवा
रानियाँ और दो बेटियाँ रह गईं। डलहौजी ने उनकी उपाधि को समाप्त कर दिया। इसी
प्रकार डलहौजी मुगल सम्राट् की उपाधि भी समाप्त करना चाहता था, किन्तु कम्पनी के संचालकों ने उसके इस सुझाव को स्वीकार नहीं किया।
युद्ध और आक्रमण की नीति
(1) द्वितीय आंग्ल-
सिक्ख
युद्ध द्वारा पंजाब का विलय-मुल्तान के सिपाहियों ने अंग्रेज अधिकारियों की हत्या
कर दी। हजारा के सिक्ख गवर्नर ने भी विद्रोह का झण्डा फहराया। सिक्खों ने पेशावर
अफगानिस्तान के अमीर दोस्त मुहम्मद को दे दिया और उसकी मित्रता प्राप्त कर ली।
बहुत-से सिक्ख शासक मूलराज के झण्डे तले एकत्रित हो गए। इधर शेर सिंह ने घोषणा की
कि रानी झिन्दन को बन्दी बनाकर अंग्रेजों ने सिक्खों का अपमान किया है। उसने 31 अक्टूबर को पेशावर
जीत लिया। लेकिन 22 जनवरी तक अंग्रेजों ने मुल्तान जीत लिया
और मूलराज ने आत्म-समर्पण कर दिया। शेर सिंह, छतरसिंह एवं
अन्य सिक्ख सरदारों ने भी 12 मार्च, 1849 तक आत्म-समर्पण कर दिया। 29 मार्च, 1849 को पंजाब का अंग्रेजी साम्राज्य में विलय कर लिया गया। सन्धि के अनुसार
महाराजा दिलीप सिंह को पेंशन दी गई और अंग्रेजों ने शासन सँभाल लिया।
(2) सिक्किम-
सिक्किम के राजा ने दो अंग्रेज अधिकारियों को कैद कर लिया।
उस पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाकर अंग्रेजों ने सिक्किम को 1850 ई. में अंग्रेजी
साम्राज्य में मिला लिया।
मूल्यांकन
-
सर
रिचर्ड टेम्पल का कथन है, "एक साम्राज्यवादी प्रशासक के रूप
में जो योग्य व्यक्ति इंग्लैण्ड ने भारत भेजे, उनमें से किसी
ने भी कदाचित ही उसकी समानता की है, अतिक्रमण तो कभी
नहीं किया।" परन्तु यह स्वीकार करना पड़ेगा कि डलहौजी
के प्रदेशों के विलय करने से व्यवस्था बिगड़ गई। उसकी गति बहुत तेज थी और वह सीमा
से कुछ अधिक आगे चला गया। उसकी इस नीति ने समकालीन असन्तोष की भावना को एक दिशा दी
और 1857 ई. के आन्दोलन में विद्रोह आरम्भ होने के पश्चात् एक
मस्तिष्क का कार्य किया। 1857-58 ई. के विद्रोह का
उत्तरदायित्व डलहौजी पर ही है।
Do
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