लॉर्ड रिपन - Ripon the Good


MJPRU-BA-III-History I-2020
प्रश्न 10. लॉर्ड रिपन द्वारा किए गए सुधारों का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा ''लॉर्ड रिपन  की शासन नीति और सुधारों का वर्णन कीजिए।
अथवा ''लॉर्ड रिपन  के कार्यों के आधार पर 'लॉर्ड रिपन द गुड' (Ripon the Good) कथन का परीक्षण कीजिए।
उत्तर- लॉर्ड रिपन  1880 . में भारत का वासयराय बनकर आया और 1884 ई. तक इस पद पर रहा। उसने इस अल्प अवधि में अपनी उदारवादी नीतियों द्वारा लाखों भारतीयों का दिल जीत लिया। उसने भारतीयों की समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया और उनके प्रति सहानुभूतिपूर्ण नीति अपनाई।
लॉर्ड रिपन - Ripon the Good

लॉर्ड रिपन  से पूर्व ब्रिटिश सरकार जो चाहती थी, करती थी तथा जनता का सहयोग प्राप्त करने और उनका परामर्श लेने की उसे तनिक भी चिन्ता नहीं थी। परन्तु लॉर्ड रिपन  ने भारतीयों की भावनाओं का आदर किया और यथासम्भव उनके सुख-दुःख में भाग लिया। उसके भारत आते ही अंग्रेजों की भारतीयों के प्रति नीति में परिवर्तन आया और ब्रिटिश सरकार को उदार बनाने के लिए उचित कदम उठाए गए। उसने प्रशासनिक क्षेत्र में अपने सुधारों के द्वारा भारतीयों की सहानुभूति प्राप्त कर ली ,

द्वितीय अफगान युद्ध की समाप्ति - 

लॉर्ड रिपन  ने भारत पहुँचने पर द्वितीय अफगान युद्ध को बन्द करवा दिया। उसने लिटन की अग्रगामी नीति को त्यागकर अब्दुर्रहमान को अफगानिस्तान के अमीर के रूप में मान्यता प्रदान की। उसने अफगानिस्तान को विभाजित करने की नीति को छोड़ने के साथ-साथ वहाँ पर ब्रिटिश रेजिडेण्ट थोपने के विचार को भी त्याग दिया। उसकी इस नीति से न केवल अफगानिस्तान का अमीर ही अंग्रेजों का मित्र बन गया, वरन् भारतीयों को भी इस अनुचित युद्ध के व्यय से मुक्ति मिली

लॉर्ड रिपन  ने सुधार

लॉर्ड लॉर्ड रिपन  ने अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए, जिनका मुख्य उद्देश्य भारतीय शिक्षित मध्यम वर्ग का समर्थन प्राप्त करना था। वह चाहता था कि साम्राज्य की सुरक्षा के लिए इस वर्ग को असन्तुष्ट न रखा जाए। उसने शिक्षित वर्ग को साम्राज्य के प्रति निष्ठावान बनाने की भरपूर कोशिश की तथा अपने सुधारों के द्वारा. अशिक्षितों का भी सहयोग प्राप्त किया। उसके द्वारा किए गए प्रमुख सुधार निम्नलिखित हैं-



(1) प्रथम कारखाना अधिनियम, 1881- 

लॉर्ड रिपन  ने भारतीय मिल मजदूरों की दशा सुधारने के लिए पहला कारखाना अधिनियम पारित किया, जो केवल उन कारखानों पर लागू होता था जहाँ 100 से अधिक श्रमिक कार्य करते थे। इसमें कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को नियमित किया गया और उनकी दशा में सुधार किया गया। इसके अनुसार 7 वर्ष से कम आयु के बच्चे कारखानों में काम नहीं कर सकते थे। 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए काम करने का समय निश्चित किया गया। खतरनाक मशीनों के चारों ओर बाड़ा लगाना आवश्यक हो गया। कार्यकाल के मध्य में एक घण्टे का दैनिक अवकाश तथा माह में 4 अवकाश दिए गए। इन नियमों के परिपालन के लिए निरीक्षक नियुक्त किए गए। इस अधिनियम ने भारत के औद्योगिक इतिहास में एक अध्याय जोड दिया, यद्यपि वह सीमित ही था।

(2) वर्नाक्यूलर अधिनियम को रद्द करना -  

1882 ई. में इस घृणित अधिनियम को रद्द कर दिया गया और भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्रों को अंग्रेजी भाषा के समाचार-पत्रों के समान ही स्वतन्त्रता दे दी गई। इससे लोकमत को पुनः प्रसन्न करने में पर्याप्त सहायता मिली। सरकार ने समुद्र आशुल्क अधिनियम (Sea Customs Act) फिर भी बनाए रखा, जिसके अधीन डाकघर वालों को किसी भी स्थानीय भाषा में लिखे विद्रोहजनक लेखों को जब्त करने का अधिकार था।

(3) स्थानीय स्वशासन को प्रोत्साहन

लॉर्ड रिपन  का सबसे महान कार्य स्थानीय स्वशासन को प्रोत्साहन देना था। उदार विचारों वाला व्यक्ति होने के कारण लॉर्ड रिपन  स्थानीय स्वशासन के पक्ष में था। इसलिए उसने 1882 ई. में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जो भारत में स्थानीय स्वशासन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जाता है। इस प्रस्ताव के अनुसार निम्नलिखित कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया
(i) देश में नगरपालिकाओं, जिला परिषदों और स्थानीय निकायों की स्थापना की गई।
(ii) इन स्थानीय संस्थाओं को स्वास्थ्य, सफाई, शिक्षा आदि स्थानीय विषय सौंप दिए गए और प्रान्तीय सरकारों को कहा गया कि वे उन्हें राजस्व का एक निश्चित भाग सौंप दें।
(iii) इन नगर पालिकाओं तथा स्थानीय संस्थाओं को अपने सम्बद्ध क्षेत्रों में यथासम्भव स्वतन्त्रता प्रदान की गई। उनके अधिकांश सदस्य गैर-सरकारी होते थे। इस पर भी बल दिया जाता था कि इन संस्थाओं के अध्यक्ष भी गैर-सरकारी हों। ऐसी आशा की गई कि इन संस्थाओं में यथासम्भव चुनाव प्रणाली लागू की
(iv) स्थानीय संस्थाओं के कार्यों में कम-से-कम सरकारी हस्तक्षेप किया
-इस प्रकार लॉर्ड रिपन  के प्रयत्नों से भारत के प्रमुख नगरों में नगर पालिकाओं और स्थानीय निकायों एवं बोर्डों का जाल बिछ गया। स्थानीय स्वशासन के क्षेत्र में अपने सुधारों के कारण लॉर्ड रिपन  को 'भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक' कहा जाता है।

(4) शिक्षा सम्बन्धी सुधार-

लॉर्ड रिपन  भलीभाँति जानता था कि भारतीयों का उत्थान तब तक संभव नही जब तक एक बड़ी संख्या न हो जाए । शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से उसने 1882 ई. में विलियम हण्टर के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया, जिसने निम्नांकित सिफारिशें प्रस्तुत की--
(i) प्राइमरी स्कूलों का प्रबन्ध नगर पालिकाओं तथा जिला बोर्डों को दिया जाए और उनका निरीक्षण शिक्षा अधिकारी करें।
(ii) जहाँ तक हो सके उच्च शिक्षा का दायित्व निजी संस्थाओं को सौंप दिया जाए और इन्हें सरकार की ओर से अनुदान दिया जाए।
(iii) शिक्षण संस्थाओं में नागरिक शिक्षा पर भी बल देने की सिफारिश की गई ।
(iv) मुस्लिम शिक्षा के प्रोत्साहन हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की जाए।
(v) आयोग ने व्यावसायिक शिक्षा एवं औद्योगिक शिक्षा प्रारम्भ करने का भी सुझाव दिया।
(vi) प्रान्तीय आय का एक विशेष भाग प्राथमिक शिक्षा पर व्यय किया जाना चाहिए।
(vii) माध्यमिक शिक्षा के स्कूलों को धीरे-धीरे गैर-सरकारी समितियों को सौंप देना चाहिए। प्रत्येक जिले में एक आदर्श हाईस्कूल खोला जाए।
(ix) आयोग ने स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन दिए जाने पर भी बल दिया। लॉर्ड रिपन  ने हण्टर आयोग द्वारा की गई सिफारिशें स्वीकार कर ली। फलतः स्कूलों और कॉलेजों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि होने लगी। 1882 ई. में पंजाब मे विश्वविद्यालय की स्थापना हुई । 

(5) नागरिक सेवाओं में सुधार

लॉर्ड रिपन  को आई. सी. एस. (I.C.S.) परीक्षा में बैठने वाले अभ्यर्थियों की आयु सीमा 22 वर्ष कराने में सफलता मिली।

(6) जनगणना - 

लॉर्ड रिपन  अपने सभी सुधारों को वैज्ञानिक ढंग से लागू करना चाहता था। यह तभी सम्भव था जब भारतीयों की सही जनसंख्या मालूम हो। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए उसने 1881 ई. में भारत की प्रथम जनगणना करवाई और यह भी निर्णय किया कि जनगणना प्रत्येक 13 वर्ष के पश्चात् हुआ करे।

(7) इल्बर्ट बिल - 

लॉर्ड रिपन  ने अपनी परिषद् के विधि सदस्य इल्बर्ट की सहायता से एक बिल पारित करवाने का प्रयास किया। इस बिल के अनुसार भारतीय न्यायाधीशों को भी यूरोपीय अपराधियों के मुकदमे सुनने का अधिकार दिया जाना था। परन्तु जैसे ही केन्द्रीय विधानमण्डल में इस बिल को प्रस्तुत किया गया, यूरोपीय तथा ऐंग्लो-इण्डियन्स ने इसका कड़ा विरोध किया। फलतः बिल पारित न हो सका। केवल इतना कहा गया कि कोई भी यूरोपीय अपराधी किसी भी न्यायाधीश के सम्मुख प्रस्तुत किया जा सकता है। परन्तु उसे इस बात की माँग करने का अधिकार है कि उसका निर्णय ज्यूरी के द्वारा कराया जाए, जिसके कमसे कम आधे सदस्य यूरोपीय हों।

(8) आर्थिक विकेन्द्रीकरण - 

लॉर्ड मेयो द्वारा प्रारम्भ की गई आर्थिक विकेन्द्रीकरण की नीति को लॉर्ड लॉर्ड रिपन  ने जारी रखा। चूँकि यह नीति पर्याप्त सफल रही थी, अत: अब कर के साधनों को तीन भागों में बाँट दिया गया-

(i) साम्राज्यीय मदें -

इसमें सीमा शुल्क, डाक, तार, रेलवे, अफीम, नमक, टकसाल, भूमि कर आदि रखे गए। इनकी समस्त आय केन्द्र को जाती थी और केन्द्र को इसी आय से व्यय करना होता था।

(ii) प्रान्तीय मदें - 

स्थानीय प्रकृति की मदें; जैसे-जेलों, डॉक्टरी सेवाओं मुद्रण, राजमार्ग, साधारण प्रशासन आदि से प्राप्त समस्त आय प्रान्तीय सरकारों को के निश्चित प्रतिशत से पूरा किया जाता था।

(iii) विभाजित मदें -

 आबकारी कर, स्टाम्प शुल्क, जंगल, पंजीकरण शुल्क आदि प्रान्तीय तथा केन्द्र सरकारों में बराबर-बराबर बाँट दिया जाता था। व्यय भी प्राय: इसी अनुपात मे होता था ।  
एक प्रस्ताव के अनुसार यह निश्चित किया गया कि प्रान्तों से प्रत्येक पाँच . वर्ष के पश्चात् एक नया समझौता किया जाए। इन नये निर्णयों का यह लाभ हुआ कि प्रान्तों को अपनी आय बढ़ाने में रुचि हो गई और दोनों सरकारों के हितों में समन्वय हो गया।
'लॉर्ड रिपन  ने स्वतन्त्र व्यापार नीति का भी विकास किया। अनेक वस्तुओं पर से आयात कर समाप्त कर दिया गया। केवल राजनीतिक कारणों से शराब, स्प्रिट, शस्त्र, बारूद आदि वस्तुओं पर यह कर रहने दिया गया। नमक कर में भी कमी की गई।

मूल्यांकन-

लॉर्ड रिपन अपने सुधारवादी कार्यों के द्वारा भारतीयों में बहुत लोकप्रिय हो गया था और वे उसे 'सज्जन लॉर्ड रिपन ' (Ripon the good and virtuous) के नाम से स्मरण करते थे। फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने लॉर्ड रिपन  को भारत के उद्धारक की संज्ञा दी है। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के अनुसार, "लॉर्ड रिपन  को इसलिए स्मरण नहीं किया जाता कि उसने बहुत सफलता प्राप्त की, अपितु इसलिए कि उसके उद्देश्य पवित्र थे, उसके ध्येय ऊँचे, उसकी नीति शुद्ध थी और वह जातीय भेदभाव से घृणा करता था।"



Comments

  1. Answer is normal language but very good thankyou for upload in question

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