मुहम्मद बिन तुगलक - नीतियां और योजनाएं


M.J.P.R.U.,B.A. I, History I/ 2020
प्रश्न 8. मुहम्मद-बिन-तुगलक और उसकी नीतियों पर एक निबन्ध लिखिए। 
अथवा ''मुहम्मद-बिन-तुगलक की आन्तरिक सुधार योजनाओं का विश्लेषण कीजिए तथा उनकी असफलता के कारणों की व्याख्या कीजिए।
अथवा ''मुहम्मद-बिन-तुगलक के विभिन्न प्रयोगों का वर्णन कीजिए।
अथवा "मुहम्मद तुगलक एक अव्यावहारिक आदर्शवादी था।" इस कथन के सन्दर्भ में उसकी विभिन्न योजनाओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
अथवा ''मुहम्मद-बिन-तुगलक के कार्यों का आलोचनात्मक वर्णन कीजिए।

उत्तर - मुहम्मद-बिन-तुगलक 1325 . में दिल्ली का सुल्तान बना। उसका वास्तविक नाम उलूग खाँ अथवा जूना खाँ था। वह शासन सम्बन्धी नवीनतम योजनाएँ बनाने में निपुण था, किन्तु उन योजनाओं को व्यावहारिक रूप प्रदान करने की क्षमता का उसमें अभाव था। उसने अपने पिता से उत्तराधिकार में । विशाल साम्राज्य प्राप्त किया, किन्तु उसकी असफल योजनाओं के कारण वह विशाल साम्राज्य शीघ्र ही विखण्डित हो गया। इसी प्रकार मुहम्मद तुगलक के राज्यारोहण के समय सरकारी खजाना धन से पूर्ण था, फिर भी उसे गम्भीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। उसके मस्तिष्क में नित्य नवीन योजनाएँ जन्म लेती थीं।
मुहम्मद-बिन-तुगलक-की-योजनाएं

मुहम्मद तुगलक की आन्तरिक सुधार योजनाएँ और उनकी असफलता के कारण

मुहम्मद तुगलक की प्रमुख योजनाएँ निम्नलिखित थीं

(1) राजस्व व्यवस्था में सुधार-

राजस्व व्यवस्था में सुधार करने के लिए मुहम्मद तुगलक ने एक बड़ी योजना बनाई। उसने अपने साम्राज्य के विभिन्न सूबों के सूबेदारों को यह आदेश दिया कि वे अपने सूबों की आय-व्यय का हिसाब सुल्तान के पास भेजें। इस हिसाब को रखने के लिए उसने एक रजिस्टर तैयार कराया। वह
चाहता था कि पूरे साम्राज्य में समान राजस्व व्यवस्था लागू की जाए, किन्तु व्यावहारिकता के अभाव के कारण योजना सफल नहीं हो सकी।

(2) दोआब क्षेत्र में कर की वृद्धि-

अनेक इतिहासकारों का मत है कि मुहम्मद तुगलक ने राज्य की आय बढ़ाने के उद्देश्य से दोआब क्षेत्र में किसानों पर करों की मात्रा में वृद्धि कर दी थी। बदायूँनी तथा सर वूल्जले हेग के अनुसार, "दोआब '' का विद्रोही जनता पर नियन्त्रण स्थापित करने तथा उसे दण्डित करने के उद्देश्य से कर लगाया गया था।" हाजी उद्दवीर के अनुसार, "कर सुल्तान ने रिक्त राजकोष को भरने के लिए लगाया था।" फलस्वरूप किसानों ने खेती का कार्य छोड़कर चोरी, डकैती, लूटमार करना प्रारम्भ कर दिया। कर वसूल करने वाले अधिकारियों ने कठोर दमन नीति का प्रयोग किया, जिसके कारण स्थान-स्थान पर विद्रोह हो गए। मुहम्मद तुगलक ने इन विद्रोहों को क्रूरता से कुचल दिया।
इस प्रकार कर वृद्धि की योजना पूर्णतया असफल रही। यद्यपि बाद में सुल्तान ने किसानों को राहत पहुँचाने के लिए कुछ कदम उठाए, किन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जनता में असन्तोष अत्यधिक बढ़ चुका था।

(3) कृषि की उन्नति की योजना-

मुहम्मद तुगलक ने कृषि की उन्नति के लिए 'अमीर-ए-कोही' नामक कृषि मन्त्री का पद सृजित किया। एक निश्चित क्षेत्र का चयन किया जाता था, जिस पर सरकारी अधिकारियों की देखरेख में कृषि कार्य किया जाता था। यह एक प्रकार से राजकीय कृषि फार्म की भाँति था। किन्तु कर्मचारियों के भ्रष्टाचार और किसानों की उदासीनता के कारण सुल्तान की यह योजना भी असफल हो गई।

(4) राजधानी परिवर्तन-

मुहम्मद तुगलक ने 1326-27 ई. में राजधानी परिवर्तन की योजना बनाई। वह विभिन्न कारणों से दिल्ली के स्थान पर दक्षिण में स्थित देवगिरि को अपने राज्य की राजधानी बनाना चाहता था। इनमें से मुख्य कारण निम्नलिखित थे
(i) देवगिरि साम्राज्य के केन्द्र में स्थित था।
(ii). सुल्तान दक्षिण भारत के शासन पर उत्तरी भारत की अपेक्षा अधिक ध्यान देना चाहता था।
(iii) उसकी धारणा थी कि देवगिरि में मंगोल आक्रमण का सामना आसानी. से किया जा सकता था।
(iv) वह दक्षिण भारत में मुस्लिम संस्कृति की स्थापना तथा प्रसार करना चाहता था।
उपर्युक्त उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सुल्तान ने देवगिरि (दौलताबाद) को अपने साम्राज्य की राजधानी बनाने का निर्णय किया। उसने दिल्ली की जनता को दौलताबाद जाने के आदेश दिए। दिल्ली को उजाड़ दिया गया। इब्नबतूता ने लिखा है
"रात्रि में सुल्तान ने अपने महल की छत पर चढ़कर दिल्ली को देखा, तो उसे रोशनी, धुआँ अथवा एक भी चिराग दिखाई नहीं दिया। तब उसने कहा अब मेरा हृदय प्रसन्न है और मेरी आत्मा को शान्ति है।"
यद्यपि सुल्तान ने दिल्ली से दौलताबाद तक के 700 मील लम्बे मार्ग में जनता की सुविधा के लिए अनेक प्रबन्ध किए थे, किन्तु चालीस दिन की लम्बी यात्रा जनता के लिए अत्यधिक कष्टदायक सिद्ध हुई1335 ई. में सुल्तान ने जनता को उसकी इच्छानुसार दिल्ली वापस जाने की अनुमति प्रदान कर दी। इतिहासकार बर्नी ने लिखा है, "दौलताबाद जाने वाले लोगों में बहुत कम ही लोग दिल्ली वापस लौट सके।" इस प्रकार यह योजना सुल्तान की मूर्खता की प्रतीक सिद्ध हुई।

(5) सांकेतिक मुद्रा (ताँबे के सिक्कों) का प्रचलन -

मुहम्मद तुगलक नवीन प्रयोगों में रुचि रखने वाला सुल्तान था। इसी विशेषता के कारण उसने 1329-30 . में ताँबे की सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन करने की योजना बनाई। बर्नी का विचार है कि "खजाने की कमी को पूरा करने तथा शासन के खर्चों को चलाने के लिए उसने सांकेतिक मुद्रा को चलाया था।" किन्तु उसकी यह योजना भी सफल नहीं हो सकी, क्योंकि सिक्कों की ढलाई में विशेष तकनीक का प्रयोग नहीं किया गया था। फलस्वरूप लोग नकली सिक्के ढालने लगे। बाजार में नकली सिक्कों का चलन बढ़ गया। प्रत्येक घर टकसाल बन गया। ।

(6) विजय योजनाएँ-

मुहम्मद तुगलक एक महत्त्वाकांक्षी शासक था। वह भारत के आसपास के देशों को जीतना चाहता था। सबसे पहले उसने राजनीतिक परिस्थितियाँ अनुकूल जानकर विजय की योजना बनाई। इसके लिए 3,70,000 सैनिकों की एक विशाल सेना का गठन किया और उसको एक वर्ष तक वेतन दिया। वेतन के अलावा काफी धन साज-सामान तथा युद्ध सामग्री एकत्रित करने में खर्च किया। परन्तु एक वर्ष पश्चात् मध्य एशिया की स्थिति बिल्कुल बदल गई। ईरान और मिस्र के शासकों के साथ उसके सम्बन्ध सुधर गए। अतः उसने अपना विचार बदल दिया और सेना भंग कर दी। एक वर्ष तक के व्यय से राजकोष को बड़ी हानि हुई और जब सेना भंग कर दी गई, तो उसने देश में ही लूटमार शुरू कर दी।

मुहम्मद तुगलक का चरित्र एवं मूल्यांकन

चरित्र तथा कार्यों की दृष्टि से मुहम्मद तुगलक मध्ययुगीन शासकों में सबसे अधिक विवादपूर्ण व्यक्ति माना जाता है। अपने चरित्र की क्रूरता, दुराग्रह तथा अपनी असफल योजनाओं के कारण इतिहासकारों में उसके चरित्र एवं उपलब्धियों के विषय में पर्याप्त मतभेद हैं। उसके चरित्र में असाधारण गुणों का प्राधान्य था। उसने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। वह कविता करने तथा पढ़ने-लिखने में रुचि रखता था। वह विद्वानों का यथोचित सम्मान करता था। वह शराब का सेवन नहीं करता था। उसका जीवन उच्च आदर्शों से युक्त था। वह एक कुशल सैनिक तथा योग्य सेनापति था। शासन कार्य करने में वह अत्यधिक परिश्रम करता था।
उपर्युक्त विशेषताओं के बावजूद मुहम्मद तुगलक के दोहरे चरित्र, व्यवहार तथा कार्यों के विषय में इतिहासकारों में अत्यधिक मतभेद हैं। अधिकांश विद्वानों का यह मत है कि मुहम्मद तुगलक में धैर्य एवं व्यावहारिक योग्यता का अभाव था। उत्तेजनापूर्ण स्वभाव एवं दुराग्रही चरित्र के कारण वह अपनी योजनाओं को सफल नहीं बना सका। इस प्रकार के विरोधी स्वभाव के कारण एलफिंस्टन ने मुहम्मद तुगलक के 'पागल' होने का सन्देह किया है। कुछ इतिहासकारों ने उसे 'रक्त-पिपासु' भी बताया है। सबसे अधिक विवाद का विषय यह है कि मुहम्मद तुगलक के चरित्र में विरोधी गुणों का मिश्रण था अथवा नहीं। डॉ. ईश्वरी प्रसाद, डॉ. के. एम. निजामी, डॉ. मेंहदी हुसैन उसके चरित्र में विरोधी गुणों के तर्क को स्वीकार नहीं करते। इसके विपरीत डॉ. आर. सी. मजूमदार का मत है
"मुहम्मद तुगलक न तो रक्त-पिपासु दैत्य था और न पागल, लेकिन उसमें निःसन्देह विरोधी गुणों का मिश्रण था।" उपर्युक्त असफलताओं के होते हुए भी उसकी विद्वत्ता, कल्पना शक्ति, धार्मिक सहिष्णुता एवं श्रेष्ठता को भुलाया नहीं जा सकता। डॉ. ईश्वरी प्रसाद के शब्दों में "मध्य युग में राजमुकुट धारण करने में निःसन्देह मुहम्मद तुगलक सबसे अधिक योग्य व्यक्ति था। मुस्लिम शासन की स्थापना के बाद दिल्ली के सिंहासन पर आसीन होने वाले शासकों में वह सबसे अधिक विद्वान् और सुसंस्कृत शासक था।'
सर वूल्जले हेग के अनुसार, दिल्ली के सिंहासन पर बैठने वाले असाधारण शासकों में वह एक था।" इस प्रकार मुहम्मद तुगलक की श्रेष्ठता उसकी सफलताओं अथवा असफलताओं के कारण नहीं है, बल्कि विद्वता और चरित्र के कुछ विशेष गुणों के कारण है।


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