शिवाजी महाराज - कुशल योद्धा एवं प्रशासक

MJPRU-B. A. II-History I / 2020
प्रश्न 14. "शिवाजी योद्धा एवं प्रशासक का अद्भुत मिश्रण थे।" इस की विवेचना कीजिए।
उत्तर - शिवाजी का जन्म 1627. में शिवनगर के दुर्ग में हुआ था। पिता शाहजी भोंसले और माता जीजाबाई थीं। शाहजी भोंसले बीजापुर के सुल्तान के यहाँ उच्च पद पर आसीन थे और उनकी सेवाओं के पुरस्कार के रूप में पूना की जागीर प्राप्त हुई थी। शिवाजी अपनी माता के पास पूना में ही रहे उन पर अपनी माता के धार्मिक विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। दादाजी कोंणदेव शिवाजी को सैन्य शिक्षा में दक्ष किया। शिवाजी पर गुरु समर्थ रामदास की अमिट छाप पड़ी।
shivaji maharaj history in hindi

शिवाजी महान् योद्धा के रूप में

शिवाजी 12 वर्ष की आयु से ही अपने पिता की जागीर पूना का प्रशासन सँभाल रहे थे, परन्तु उन्होंने अपना विजय अभियान 19 वर्ष की आयु में 1646 में तोरण के किले पर अधिकार करके प्रारम्भ किया। 1659 ई. में बीजापुर सुल्तान ने अपने सेनापति अफजल खाँ को भेजा और उन्हें जिन्दा या मुर्दा लाने निर्देश दिया। शिवाजी ने अफजल खाँ को प्रतापगढ़ के किले में मार दिया। इस बाद भी बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी को पकड़ने के लिए कई असफल प्रयास किए और अन्त में 1662 ई. में मराठा सरदार से शान्ति सन्धि कर ली। 15 अप्रैल 1663 को शिवाजी ने औरंगजेब के दक्षिण के सूबेदार शाइस्ता खाँ को पराजित किया। इस सफलता 
के उपरान्त शिवाजी ने 1664 ई. में सूरत पर आक्रमण किया ।  यहाँ से उन्हें लगभग 1 करोड़ की सम्पत्ति प्राप्त हुई। 1665 ई. में राजा जयसि ने शिवाजी को परास्त किया तथा शिवाजी को स्वयं मुगलों के दरबार में हाजिर होना पड़ा। परन्तु उन्हें वहाँ अपमान सहना पड़ा तथा गिरफ्तार कर लिया। लेकि वे बीमारी का बहाना कर मिठाई की टोकरी में बैठकर भाग निकले और अपने  राज्य में पहुंच गए।
13 अक्टूबर, 1670 में उन्होंने पुनः सूरत को लूटा तथा अनेक किले जीते। जून, 1674 में शान-शौकत के साथ उन्होंने रायगढ़ में राज्याभिषेक किया और 'छत्रपति' की उपाधि धारण की। उनका सबसे महत्त्वपूर्ण आक्रमण कर्नाट का आक्रमण (1677-78.) था, जिसके दौरान उन्होंने वैलोर, जिंजी, तंजौर आदि अनेक किले जीते और अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाई।

शिवाजी कुशल प्रशासक के रूप में-

शिवाजी एक उच्च कोटि के राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने मराठों को संगठित करके  उनमें एक नई शक्ति का सृजन किया। शिवाजी ने शक्तिशाली राज्य का निर्माण किया। उनकी शासन व्यवस्था सुसंगठित थी। यह व्यवस्था भ्रष्टाचार और पक्षपात रहित थी। उनके शासन प्रबन्ध का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्ग किया जा सकता है

(1) केन्द्रीय शासन

शिवाजी एक निरंकुश शासक थे, परन्तु वे प्रजा के हित का सदैव ध्यान रखते थे। उनका कार्य न्याय करना था। वे शासन के सर्वोच अधिकारी थे। वे प्रधान कर्मचारियों की नियुक्ति स्वयं किया करते थे। उन्होंने राज्य कार्य की सहायता करने के लिए 'अष्टप्रधान' नामक एक समिति के स्थापना की थी। इस समिति का काम शासक को परामर्श देना था। परन्तु यह शासक पर निर्भर करता था कि वह इस परामर्श को स्वीकार करे या न करे अष्टप्रधान के सदस्य निम्न प्रकार थे
(i) पेशवा, (ii) अमात्य, (iii) मन्त्री, (iv) सचिव, (v) सुमन्त, (vi) सेनापति (vii) पण्डित राव, और (viii) न्यायाधीश।
शिवाजी के अधीन पण्डित राव और न्यायाधीश को छोड़कर शेष सभी 'मन्त्रियों को युद्ध के समय सैन्य संचालन का कार्य करना पड़ता था।

(2) प्रान्तीय शासन - 

शिवाजी ने अपने राज्य को उत्तरी प्रान्त, दक्षिणी प्रान्त दक्षिणी-पूर्वी प्रान्त तथा धुर दक्षिण प्रान्त में बाँट दिया था। प्रान्तों का सर्वोच अधिकारी राज्यपाल होता था। राजा ही उसकी नियुक्ति करता था और उसे पदच्युत कर सकता था। राज्यपाल को सहायता देने के लिए आठ अधिकारी हैं थे। ये अधिकारी राज्यपाल के प्रति उत्तरदायी होते थे। केन्द्र के समान ही प्रान्त का शासन होता था।

(3) राजस्व प्रणाली - 

राज्य में दो प्रकार की भूमि थी-प्रथम, स्वराज्य तथा  दूसरी, मुगलाई। शिवाजी ने कृषि सम्बन्धी समस्त भूमि की नाप करवाई। उन शासनकाल में पैदावार का 30% भूमि कर के रूप में लिया जाता था। किसान  राज्य को अपनी इच्छानुसार कर नकद अथवा अनाज के रूप में दे सकता था शिवाजी के समय में रय्यतवाड़ी प्रथा प्रचलित थी। शिवाजी ने 'चौथ' और 'सरदेशमुखी' की प्रणाली चलाई। चौथ' विदेशियों के आक्रमण से रक्षा करने ऐवज में लिया जाने वाला कर था। 'सस्देशमुखी' में आय का 10% भाग वसूल  किया जाता था। शिवाजी के भूमि सुधारों से किसानों की दशा अच्छी हो गई और राज्य की आमदनी बढ़े गई।

(4) न्याय प्रणाली -

शिवाजी को न्याय प्रणाली प्राचीन ढंग की थी। ग्रामों मे झगड़ों का फैसला ग्राम पंचायतें करती थीं। पटेल फौजेदारी के मुकदमे सुना कर था। इस काल में नियमित रूप से कोई न्यायालय नहीं था। उनके राज्य में न्याय का आधार धार्मिक ग्रन्थ थे। शिवाजी निष्पक्ष न्याय करते थे। उनके लिए कुरान शरीफ और वेद एक समान थे। उनके इस व्यवहार से जनता बहुत प्रसन्न थी।

(5) सैन्य व्यवस्था - 

शिवाजी एक महान् विजेता थे। विजय के लिए उन्होंने  एक विशाल सेना संगठित की। उन्होंने अपनी सेना का संगठन निम्न प्रकार किया-
(i) स्थायी सेना शिवाजी की स्थायी सेना में पैदल, घोड़े, ऊँट तथा हाथी  थे। इसमें तोपखाना भी था।
(ii) पैदल सेना शिवाजी की पैदल सेना कई भागों में विभाजित थी। 100 सैनिकों पर एक नायक होता था। 5 नायकों के ऊपर एक हवलदार, 3 हवलदारों के ऊपर एक जुमलेदार और दस जुमलेदारों के ऊपर एक हजारी और  सात हजारियों पर एक सराय-ए-नौबत होता था।
(iii) घुड़सवार शिवाजी की सेना में घुड़सवारों का बड़ा महत्त्व था। इस सेना में 25 जवानों का एक घेरा होता था। इसका प्रधान एक हवलदार होता था पाँच हवलदारों पर एक जुमलेदार और दस जुमलेदारों पर एक हजारी होता था घुड़सवार सेना दो भागों में विभाजित थीप्रथम, बरगीर और दूसरी, सिलेदार
(iv) जल सेना शिवाजी ने जल सेना का भी अच्छा संगठन किया था।

शिवाजी की सेना में हिन्दू और मुसलमान, दोनों ही धर्मों के सैनिक थे । सैनिकों को नकद वेतन दिया जाता था। वीर सैनिकों को पुरस्कार दिया जाता था । सेनाओं की व्यवस्था में दुर्गों का भी महत्त्वपूर्ण स्थान था। किलों की रक्षा के लिए सैनिक रखे जाते थे। शिवाजी को अपनी सेना में अनुशासन बनाए रखने की बर्ड चिन्ता थी। शिवाजी ने छापामार युद्धनीति अपनाई थी। सेना में घोड़े दागने की प्रथा प्रचलित थी। सैनिकों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर की जाती थी।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि शिवाजी योद्धा एवं प्रशासक का अद्भुत मिश्रण थे। वे एक महान् शासक, महान् संगठनकर्ता और राष्ट्र निर्माता थे शिवाजी ने अपनी वीरता एवं कूटनीति के द्वारा मराठा साम्राज्य का निर्माण किया शिवाजी ने मुगल शासक औरंगजेब, बीजापुर के सुल्तान मुहम्मद आदिलशाह, पुर्तगालियों और जंजीरा के सिद्दियों जैसे व्यक्तियों के होते हुए भी एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। शिवाजी द्वारा निर्मित साम्राज्य 1818 ई. तक चलता रहा। शिवाजी मराठा साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे। किन्तु अप्रैल, 1680 में 53 वर्ष का आयु में उनका निधन हो गया, जिस कारण वे मराठ राज्य को स्थायित्व प्रदान न कर सके।


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