सिकन्दर लोदी - चरित्र और उपलब्धियां


M.J.P.R.U.,B.A. I, History I /2020 
प्रश्न 11. "लोदी शासकों में सिकन्दर लोदी महानतम शासक था।" विवेचना कीजिए।
अथवा  ''सिकन्दर लोदी के चरित्र और उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए। 
अथवा  "सिकन्दर लोदी अपने वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक था।" व्याख्या कीजिए।
उत्तरसिकन्दर लोदी अपने वंश का सबसे प्रतिभाशाली शासक था। जैसे ही बहलोल लोदी का निधन हुआ, उत्तराधिकार के मसले पर अमीर दो भागों में विभाजित हो गए। एक दल बहलोल के सबसे बड़े पुत्र बारबकशाह को, जो कि जौनपुर का शासक था, गद्दी पर बिठाना चाहते थे, जबकि अन्य अमीर उसके दूसरे पुत्र निजाम खाँ को गद्दी सौंपना चाहते थे। अन्त में निजाम खाँ के दल को ही सफलता मिली और वह 1489 . में दिल्ली के तख्त पर सिकन्दरशाह लोदी के नाम से आसीन हो गया।
सिकन्दर लोदी का चरित्र और उपलब्धियां

सिकन्दर लोदी की उपलब्धियाँ (कार्य)

सिकन्दर लोदी एक योग्य शासक था। उसके काल की प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं

(1) आलम खाँ और ईसा खाँ का दमन करना -

सिकन्दर लोदी को सबसे पहले अपने चाचा आलम खाँ के विरोध का सामना करना पड़ा। वह रापड़ी
का शासक था। सिकन्दर लोदी ने रापड़ी पर धावा बोल दिया। आलम खाँ उसका सामना नहीं कर सका। उसने ईसा खाँ के पास शरण ग्रहण की। ईसा खाँ पटियाला का शासक था। ऐसी स्थिति में सिकन्दर लोदी ने आलम खाँ को अपनी ओर मोड़ लिया तथा उसे इटावा का शासक बना दिया। उसने युद्ध में ईसा खाँ को परास्त कर दिया तथा घायल हो जाने के कारण शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गई।

(2) बारबकशाह से युद्ध -

अपने शासनकाल के प्रारम्भ में वह अपने बड़े भाई बारबकशाह के साथ भाईचारे का व्यवहार करता रहा। जैसे ही उसने अमीरों पर नियन्त्रण कर लिया, उसने बारबकशाह से निपटने का फैसला किया। उसने उसके पास सन्देश भेजा कि वह उसे सुल्तान स्वीकार कर ले। किन्तु वह नहीं माना, उल्टे युद्ध की तैयारी करने लगा। फलत: जौनपुर में दोनों की सेनाओं में जमकर संघर्ष हुआ। इसमें बारबकशाह हार गया और अन्त में उसे समर्पण करना पड़ा। सिकन्दर ने उसके साथ उदारता दिखाते हुए उसे जौनपुर का शासक बना दिया, परन्तु बारबकशाह अयोग्य सिद्ध हुआ। अन्त में उसे पकड़कर कारागार में डाल दिया गया।

(3) कालपी, बयाना और ग्वालियर जीतना-

उसने कालपी को जीता, ग्वालियर के राजा को अपने अधीन किया और बयाना के विद्रोह को कुचल डाला।

(4) जौनपुर के विद्रोहियों का दमन करना-

सिकन्दर लोदी ने अपने बड़े भाई बारबकशाह को जौनपुर का शासक बना दिया था। यहाँ के जमींदारों ने विद्रोह कर दिया। बारबकशाह उनका दमन न कर सका। सुल्तान जौनपुर पहुँचा और विद्रोहियों की शक्ति को कुचलकर रख दिया। जैसे ही वह जौनपुर से मुड़ा, वहाँ पुनः विद्रोह हो गया। अन्त में उसने विद्रोहियों को बनारस के निकट पराजित किया।

(5) बिहार की विजय-

 सिकन्दर लोदी ने बिहार पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। इस मसले को लेकर बंगाल के शासक अलाउद्दीन हुसैनशाह को अत्यन्त क्रोध आया। अन्त में दोनों के मध्य एक समझौता हुआ, जिसमें निर्णय लिया गया कि दोनों एक-दूसरे की सीमाओं का सम्मान करेंगे।  

(6) अमीरों को नियन्त्रित करना-

अमीर सुल्तान के लिए सिर दर्द बने हुए थे। अमीर सदैव उपद्रव और षड्यन्त्र में लिप्त रहते थे। सुल्तान इस बात से बहुत रुष्ट था। उनका दमन करने के लिए उसने उनसे आय-व्यय का हिसाब माँगा। जो अमीर आय-व्यय का हिसाब ठीक प्रकार से नहीं दे सके, उन्हें कठोर दण्ड दिया गया। उसने अमीरों के लिए फरमान जारी करना प्रारम्भ कर दिया। अब उसकी अनुपस्थिति में भी उसके आदेशों का सम्मान करना आवश्यक हो गया। फरमान एक आम सभा में जोर-जोर से पढ़े जाते थे, जिन्हें खड़े होकर सुनना होता था।

(7) आगरा नगर की स्थापना-

ग्वालियर, जौनपुर, इटावा आदि प्रदेशों के भूमिपतियों पर आतंक जमाने के लिए सुल्तान ने एक स्थान पर सैनिक छावनियाँ स्थापित की और सैनिकों के लिए भवनों का निर्माण कराया। यही स्थान वर्तमान आगरा नगर है। इसकी नींव 1504 . में सुल्तान सिकन्दर लोदी ने डाली थी। इसके निर्माण के एक वर्ष पश्चात् ही एक भयंकर तूफान के कारण इसका बहुतसा भाग नष्ट हो गया था।

सिकन्दर लोदी के चरित्र एवं उपलब्धियों का मूल्यांकन

सिकन्दर लोदी शिक्षित एवं विद्वान् था। वह फारसी भाषा का ज्ञाता था और स्वयं कविताओं की रचना करता था। उसके समय में संस्कृत के कई ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद किया गया। उसके समय में 'लज्जत-ए-सिकन्दरशाही' नामक एक श्रेष्ठ ग्रन्थ की रचना हुई।
सिकन्दर लोदी वास्तव में एक योग्य और पराक्रमी शासक था। उसने अपने साम्राज्य का विस्तार बिहार तक कर लिया था और दिल्ली के आसपास के प्रदेशों पर पूरी तरह अपना नियन्त्रण स्थापित किया। उसने अपने गुप्तचर विभाग का भी अच्छी तरह संगठन किया, ताकि उसको हर प्रकार की सूचना शीघ्र और प्रामाणिक रूप से मिलती रहे। उसने किसानों और व्यापारियों को भी अनेक सुविधाएँ दी तथा एक ही तरह के तौल और बाँट चलाए। इसका यह परिणाम निकला कि वस्तुओं के भाव बहुत सस्ते हो गए। उसने माल विभाग के प्रबन्ध को भी ठीक किया और जमींदारों के हिसाब की जाँच-पड़ताल कराई। वह निर्धनों और दुःखियों की बहुत सहायता करता था। धार्मिक मामलों में सिकन्दर लोदी इस्लाम का पूरी तरह पालन करता था। वह एक कट्टरपंथी तथा धर्मान्ध शासक था। उसने भी धार्मिक असहिष्णुता की नीति का अनुसरण किया। उसने हिन्दुओं पर घोर अत्याचार किए तथा अनेक मन्दिरों व मूर्तियों को तोड़ा
सिकन्दर लोदी निष्पक्ष न्याय में विश्वास रखता था और निर्धनों की फरियाद सुनने के लिए तैयार रहता था। वह विद्वानों का बहुत सम्मान करता था। उसके इन सब कार्यों का यह परिणाम निकला कि पुरानी अव्यवस्था दूर होकर सम्पूर्ण साम्राज्य में शान्ति और व्यवस्था स्थापित हो गई।
डॉ. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने लिखा है, "सिकन्दर लोदी वंश का महानतम सुल्तान था। मध्यकालीन इतिहासकारों ने उसके चरित्र की अतिशय प्रशंसा इस प्रकार की है कि वह बहुत ही योग्य, न्यायप्रिय, उदार तथा ईश्वर से डरने वाला सुल्तान था।"
डॉ. के. एस. लाल ने लिखा है, "सिकन्दर लोदी ने ऐश्वर्य और सफलता के 29 वर्ष शासन किया था। वह लोदी वंश का श्रेष्ठ शासक था और उसने अपने को पिता बहलोल तथा अपने पुत्र इब्राहीम से अधिक सफल साबित किया।''


Comments

  1. Chapter name-
    Lodi vansh ki sthapna

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  2. लोदी शासकों में सिकन्दर लोदी महानतम शासक था।" विवेचना कीजिए।
    (2023 B.A 1st year me same question aaya )
    Kal isi se padh ke gya tha aur yhi aa gya

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