असहयोग आन्दोलन पर निबंध

MJPRU-BA-III-History I-2020
प्रश्न 15असहयोग आन्दोलन पर निबंध लिखिए ।
अथवा ''महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम एवं उसकी प्रगति का विवेचन कीजिए। 
अथवा ''उन परिस्थितियों का वर्णन कीजिए जिन्होंने असहयोग आन्दोलन को जन्म दिया। यह आन्दोलन वापस क्यों ले लिया गया इसके महत्त्व का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा ''गांधीजी द्वारा सन् 1920 में आरम्भ किए गए असहयोग आन्दोलन की विचारधारा तथा कार्यक्रम का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। यह आन्दोलन सफल क्यों नहीं हो सका?
उत्तर - दक्षिण अफ्रीका से लौटकर महात्मा गांधी भारतीय राजनीति में सक्रिय हुए। भारत आकर गांधीजी ने गोपालकृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु बनाया। गांधीजी ने सन् 1918 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व किया। सन् 1919 से 1947 तक का युग 'गांधी युग' कहलाता है।
असहयोग आन्दोलन पर निबंध

असहयोग आन्दोलन

प्रारम्भ में गांधीजी ब्रिटिश शासन के प्रति सहयोग करने के पक्ष में थेक्योंकि ब्रिटिश सरकार ने प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् भारत को स्वराज्य देने की बात कही थी। परन्तु विश्व युद्ध समाप्त होने के पश्चात् भारतीयों को स्वराज्य देने के बजाय भारतीयों पर अत्याचार प्रारम्भ कर दिएइसलिए गांधीजी को भी स्वराज्य प्राप्त करने के लिए असहयोग आन्दोलन का सहारा लेना पड़ा।

असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ करने के कारण

महात्मा गांधी ने निम्नलिखित कारणों से असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया-

(1) रौलट एक्ट -

कांग्रेस ने सन् 1918 के अपने दिल्ली अधिवेशन में सरकार से यह माँग की थी कि उन सारे कानूनोंअध्यादेशोंरेग्यूलेशनों को समाप्त कर दिया जाए जिनके द्वारा राजनीतिक समस्याओं पर स्वतन्त्रतापूर्वक वाद-विवाद नहीं हो सकता और नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जाता है व देश निकाला दे दिया जाता है। परन्तु सरकार ने इस प्रार्थना का उत्तर दमनकारी 'रौलट एक्टके रूप में दिया। इस सम्बन्ध में गांधीजी ने कहा था कि "हमने माँगी थी रोटीमगर मिले पत्थर।"
जस्टिस सिडनी रौलट की अध्यक्षता में बनी एक समिति ने भारत के मौजूदा कानूनों को क्रान्तिकारी अपराधों को रोकने के लिए अपर्याप्त बताया। समिति की रिपोर्ट के आधार पर फरवरी, 1919 के केन्द्रीय विधानमण्डल में दो बिल पेश किए गए। इन बिलों के आधार पर सरकार किसी भी सन्देहास्पद व्यक्ति को मुकदमा चलाए बिना इच्छानुसार समय तक जेल में बन्द रख सकती थी। केन्द्रीय विधानमण्डल के सदस्यों ने इन बिलों को 'काला विधेयकका नाम देते हुए विरोध किया। महात्मा गांधी ने सरकार से निवेदन किया कि इन बिलों को पारित करने से पूर्व पुनर्विचार कर लेक्योंकि इनसे स्थिति बिगड़ सकती है। भारतीय 'नेताओं के विरोध के बावजूद भी 17 मार्च, 1919 को रौलट एक्ट पारित कर दिया गया।
गांधीजी पहले ही घोषणा कर चुके थे कि यदि ये विधेयक पास हुए तो वे सत्याग्रह करेंगेअत: उन्होंने देश का तूफानी दौरा किया और लोगों को सलाह दी कि वे सत्य व अहिंसा के द्वारा इस काले कानून का विरोध करें। अप्रैल को समस्त भारत में सत्याग्रह दिवस मनाया गयाजुलूस निकाले गएसभाएँ की गईंउपवास रखे गए और सारे कारोबार बन्द रहे। दिल्ली में विशाल जुलूस का नेतृत्व स्वामी श्रद्धानन्दजी ने किया। इस जुलूस में यूरोपियन सैनिकों की गोली से व्यक्ति मारे गए और अनेक घायल हुए।

(2) जलियाँवाला बाग का हत्याकाण्ड -

13 अप्रैल, 1919 का दिन भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेगा। इस दिन क्रूर जनरल डायर ने सैकड़ों निरपराध पुरुषों व बच्चों की जलियाँवाला बाग में हत्या की थी। 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर की जनता ने जलियाँवाला बाग में एक विशाल सभा का आयोजन कियाक्योंकि 10 अप्रैल को सैनिक अधिकारियों ने उस जुलूस पर गोलियां चलाईं थीं जो अपने दो नेताओं डॉ. सत्यपाल सिंह और डॉ. किचलू की रिहाई की माँग कर रहा थाजिन्हें मजिस्ट्रेट ने अपने यहाँ बुलाकर उन्हें गिरफ्तार कर अज्ञात स्थान पर भेज दिया था। सरकार ने अमृतसर में सैनिक शासन घोषित कर दिया और 12 अप्रैल को जालन्धर डिवीजन के कमाण्डेण्ट जनरल डायर को सैनिक अधिकारी नियुक्त कर दिया गया।
13 अप्रैल को जलियाँवाला बाग की सभा में लगभग 20 हजार व्यक्ति उपस्थित थे। जनरल डायर 100 भारतीय और 50 अंग्रेज सैनिकों को लेकर सभा स्थल पर जा पहुँचा। जनरल डायर ने बिना कोई चेतावनी दिए सैनिकों को गोलियाँ चलाने का आदेश दिया। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार इस हत्याकाण्ड में 379 व्यक्ति मारे गए और 137 घायल हुए। इस काण्ड के पश्चात् जनता में आतंक फैलाने के लिए अनेक अत्याचार किए गए और समस्त पंजाब में मार्शल लॉ घोषित कर दिया।
उक्त काण्ड की जाँच के लिए जो हण्टर कमीशन नियुक्त हुआउसके अंग्रेज सदस्यों ने डायर के काले कारनामों को छिपाया। यही नहींब्रिटेन में डायर के कार्यों की प्रशंसा की गई। इधर कांग्रेस ने इस काण्ड की जाँच के लिए एक समिति नियुक्त कीजिसके एक सदस्य स्वयं गांधीजी भी थे। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जनरल डायर ने पूर्व निश्चित योजना के अनुसार जानबूझकर निःशस्त्रनिरपराध पुरुषों व बच्चों की हत्या की है। समिति ने अपराधियों को दण्डित करने और पीड़ितों को आर्थिक सहायता देने की माँग कीपरन्तु सरकार ने समिति की माँगों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। फलत: गांधीजी ब्रिटिश साम्राज्य के शत्रु बन गए।
प्रो. सूद ने लिखा है कि "इसमें सन्देह नहीं है कि यदि सरकार ने सर माइकल ओडायर (पंजाब के गवर्नर-जनरल) व पंजाब के अत्याचारों से सम्बन्धित दूसरे कर्मचारियों के विरुद्ध उचित कार्यवाही की होती तो गांधीजीजो प्रारम्भ में सरकार के सहयोगी थेअसहयोग के मार्ग पर न चलते और भारत का बाद का इतिहास बिल्कुल ही भिन्न होता।"

(3) खिलाफत का प्रश्न -

प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन ने टर्की के विरुद्ध भी युद्ध में भाग लिया था। युद्ध के बाद 'सेव्रे की सन्धिद्वारा टर्की के सुल्तान कोजो कि मुस्लिम जाति का खलीफा भी थागद्दी पर से पृथक् कर दिया गया। टर्की साम्राज्य का विघटन किया गया। मुसलमानों ने इसके विरुद्ध खिलाफत आन्दोलन प्रारम्भ किया। गांधीजी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करने के लिए हिन्दुओं को भी इस आन्दोलन में भाग लेने को कहा।

कांग्रेस की नीति में परिवर्तन – 

सितम्बर, 1920 में कलकत्ता में कांग्रेस का जो अधिवेशन हुआउसमें गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन सम्बन्धी प्रस्ताव रखा और सभापति लाला लाजपत राय सहित अनेक वरिष्ठ नेताओं के विरोध के बावजूद गांधीजी का प्रस्ताव भारी बहुमत से स्वीकृत हो गया। दिसम्बर, 1920 में कांग्रेस का नियमित अधिवेशन नागपुर में हुआजिसमें गांधीजी के असहयोग
आन्दोलन प्रस्ताव को पुनः भारी बहुमत से पारित कर दिया गया। नागपुर अधिवेशन का राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में निम्नलिखित कारणों से विशेष महत्त्व है,
(1) इस अधिवेशन में कांग्रेस का लक्ष्य पूर्ण स्वराज्यघोषित किया गया। अभी तक कांग्रेस का लक्ष्य केवल ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत स्वशासन प्राप्त करना था। परन्तु इस अधिवेशन में गांधीजी ने घोषणा की कि "स्वराज्य सम्भव हो सके तो ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गतअन्यथा आवश्यकता हो तो इसके बाहर।इस लक्ष्य की घोषणा करने के लिए कांग्रेस को अपने संविधान में परिवर्तन करना पड़ा था।
(2) स्वराज्य प्राप्ति के साधनों में भी परिवर्तन किया गया। अभी तक स्वराज्य प्राप्ति के लिए केवल वैधानिक साधन ही प्रयुक्त किए जा सकते थे। परन्तु अब घोषित किया गया कि 'सभी शान्तिपूर्ण व उचित साधनलक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रयुक्त किए जा सकते हैं।
स्पष्ट है कि नागपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने अपने जीवन के 35 वर्षों में पहली बार सरकार के विरुद्ध क्रान्तिकारी कदम उठाए। कांग्रेस ने 'राजनीतिक भिक्षाका मार्ग त्यागकर 'सीधी कार्यवाहीका मार्ग ग्रहण किया।

असहयोग आन्दोलन का उद्देश्य एवं कार्यक्रम

सन् 1920 में गांधीजी ने जो असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ कियाउसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासन तन्त्र को पूरी तरह ध्वस्त करना था। इस आन्दोलन का कार्यक्रम निम्नलिखित था
·         निषेधात्मक कार्यक्रम- असहयोग आन्दोलन के इस पक्ष में निम्नलिखित कार्यक्रम शामिल थे
(1) सरकारी उपाधियों और अवैतनिक पदों को छोड़ दिया जाए।
(2) स्थानीय संस्थाओं के मनोनीत सदस्य अपना-अपना त्याग-पत्र दे दें।
(3) न तो सरकारी दरबारों व समारोहों में सम्मिलित हुआ जाए और न ही सरकार के स्वागत में कोई समारोह आयोजित किया जाए।
(4) सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार किया जाए।
(5) अदालतों का बहिष्कार किया जाए।
(6) विदेशी माल का बहिष्कार किया जाए।
(7) मॉण्ट-फोर्ड योजना (1919 का अधिनियम) के अन्तर्गत बनने वाले विधानमण्डल के निर्वाचनों     में खड़े उम्मीदवारों को बिठाना और मतदाताओं द्वारा अपने मताधिकार का प्रयोग न करना।
(8) सैनिकक्लर्क और मजदूरी पेशा करने वाले मेसोपोटामिया में अपनी सेवाएँ अर्पित न करें।
·         (II) रचनात्मक कार्यक्रम - उपर्युक्त के अतिरिक्त कांग्रेस ने अपना कुछ रचनात्मक कार्यक्रम भी घोषित किया
(1) स्वदेशी वस्तुओं का अधिक-से-अधिक प्रयोग किया जाए।
(2) चरखेकताई-बुनाई का व्यापक प्रचार किया जाए।
(3) सरकारी स्कूलों के स्थान पर राष्ट्रीय विद्यालय खोले जाएँ।
(4) अस्पृश्यता का निवारण किया जाए।
(5) हिन्दू-मुस्लिम एकता को मजबूत किया जाए।
(6) पंचायतों की स्थापना की जाए।

असहयोग आन्दोलन की प्रगति-

आन्दोलन को लोकप्रिय बनाने के लिए गांधीजी ने देश का व्यापक दौरा किया। उन्होंने स्वयं केसर-ए-हिन्दकी उपाधि छोड़ दी। फिर सैकड़ों लोगों ने अपनी पदवियों का परित्याग कर दिया। पं. मोतीलाल नेहरूपं. जवाहरलाल नेहरूडॉ. राजेन्द्र प्रसादलाला लाजपत रायसरदार वल्लभभाई पटेल जैसे नेताओं ने वकालत छोड़ दी। विद्यर्थियों ने सरकारी स्कूलों व कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। कई राष्ट्रीय विद्यालय स्थापित किए गएजैसेकाशी विद्यापीठगुजरात विद्यापीठदिल्ली का जामिया मिलिया विश्वविद्यालय आदि। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया तथा विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई। इस दौरान हिन्दू-मुस्लिम एकता भी देखी गई। आन्दोलन में डॉ. अंसारीअली बन्धुओं और मौलाना आजाद जैसे मुस्लिम नेताओं ने भी भाग लिया।

सरकार द्वारा दमन चक्र -

नवम्बर, 1921 में सम्राट जॉर्ज पंचम के ज्येष्ठ पुत्र प्रिंस ऑफ वेल्स भारत आने वाले थे। कांग्रेस ने उनका बहिष्कार करने का निर्णय किया। फलस्वरूप सरकार ने आन्दोलन को कुचलने के लिए दमन चक्र प्रारम्भ किया। नेताओं को गिरफ्तार व तंग किया गया। लोगों पर जुर्माने लगाए गए। कांग्रेस तथा खिलाफत समिति को गैर-कानूनी घोषित किया गया।

चौरी-चौरा काण्ड और आन्दोलन स्थगन -

दिसम्बर, 1921 के अहमदाबाद में हुए कांग्रेस अधिवेशन में आन्दोलन को तीव्र करने का निश्चय किया गया। गांधीजी ने वायसराय लॉर्ड रीडिंग को । फरवरी, 1922 को पत्र लिखा कि यदि
सरकार ने एक सप्ताह के अन्दर अपनी दमन नीति का परित्याग नहीं कियातो वे बारदोली और गुण्टूर में सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करेंगे।
परन्तु अभी एक सप्ताह भी पूरा नहीं हो पाया था कि फरवरी, 1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में चौरी-चौरा नामक स्थान पर उत्तेजित भीड़ ने एक पुलिस चौकी में आग लगा दीजिसमें 21 सिपाही और एक सब-इंस्पेक्टर जिन्दा जल गए। इस हिंसक घटना से गांधीजी ने अपना असहयोग आन्दोलन एकदम स्थगित कर दिया। सरकार ने 10 मार्च, 1922 को गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया। राजद्रोह के आधार पर मुकदमा चलाकर उन्हें वर्ष की सजा दी गई।

असहयोग आन्दोलन की असफलता के कारण-

'असहयोग आन्दोलन निम्नलिखित कारणों से सफल नहीं हो सका
(1) प्रारम्भ से ही कांग्रेसी नेता इस आन्दोलन के बारे में एकमत नहीं थे। गांधीजी के व्यक्तिगत प्रभाव के कारण ही यह प्रस्ताव पारित हो सका था।
(2) गांधीजी का यकायक बिना नेताओं से परामर्श किए इस आन्दोलन को स्थगित कर देना गलत रहा। वी. पी. मेनन ने लिखा है, "यदि गांधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन उस समय समाप्त न किया जाता जबकि यह शासन के लिए अत्यधिक चिन्ता का विषय बन रहा थातो सम्भवतः सरकार भारतीय जनमत को सन्तुष्ट करने के लिए कोई कार्य करने को बाध्य हो जाती।"
(3) असहयोग आन्दोलन की सफलता के लिए अनुशासन व बलिदान की आवश्यकता थीउसका लोगों में अभाव था।
(4) असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम का ध्वंसात्मक पहलू भी विशेष सफल नहीं हुआविधानमण्डलों में स्थान रिक्त रहे। कॉलेज और अदालतें भी चलती रहीं।
(5) खिलाफत के प्रश्न को राजनीति में सम्मिलित करना गांधीजी की बड़ी भूल थी। खिलाफत का प्रश्न मूलतः धार्मिक प्रश्न थाभारतीय राजनीति से उसका कोई सम्बन्ध नहीं था।

असहयोग आन्दोलन के परिणाम

उपर्युक्त का यह अर्थ नहीं कि असहयोग आन्दोलन पूर्णतया असफल रहा। भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में इस आन्दोलन का विशेष महत्त्व हैक्योंकि

 (1) राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार - 

असहयोग आन्दोलन का प्रभाव अत्यन्त व्यापक रूप से समस्त देश पर पड़ा। जनता ने ब्रिटिश शक्ति का मुकाबला __ अत्यन्त संगठित होकर किया। भारतवासियों में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार हुआ। सभी प्रान्तों के निवासियों ने अपने को कांग्रेस के झण्डे के नीचे रखकर संघर्ष के लिए तैयार होने का निश्चय किया और इससे देश में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार हुआ।

(2) कांग्रेस की नीति में परिवर्तन -

असहयोग आन्दोलन कांग्रेस की नीति में  परिवर्तन का द्योतक था। अब तक कांग्रेस केवल वैधानिक साधनों को ही अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रयोग करती थी। सरकारी कानूनों की उपेक्षा निश्चय ही एक ऐसी बात थी जिसने भावी आन्दोलन में जान डाल दी तथा असहयोग आन्दोलन ने अनेक क्रान्तिकारियों को जन्म दिया।

(3) जनता में स्वदेशी वस्तुओं के प्रति प्रेम की भावना - 

असहयोग आन्दोलन ने भारतीय जनता में विदेशी वस्तुओं के प्रति तिरस्कार की भावनाउत्पन्न करके देशी वस्तुओं के प्रति प्रेम की भावना उत्पन्न की। जनता खादी से प्रेम करने लगी और उसका विशेष प्रचार हुआजिसके फलस्वरूप भारत के कुटीर उद्योग-धन्धों को प्रोत्साहन मिला और उनमें नवजीवन का संचार हुआ।

(4) सरकार की जड़ों का हिलना - 

असहयोग आन्दोलन के फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार की जड़ें हिल गईं और उसने उदारवादी नेताओं की बात मानकर सुधारवादी योजनाओं को लागू करने का निश्चय किया।

(5) जनता में आत्मनिर्भरता व निडरता की भावना का विकास 

आन्दोलन से जनता में आत्मनिर्भरता व निडरता की भावना को बल मिला। आन्दोलन के दौरान सरकार स्वयं भयभीत रही। वायसराय ने भारत मन्त्री को लिखा कि "शहरों में आम जनता पर आन्दोलन का गहरा प्रभाव पड़ा। भारत सरकार को इस समय बहुत बड़े संकट का सामना करना पड़ रहा हैऐसा संकट पहले कभी नहीं देखा गया। इस बात को छिपाया नहीं जा सकता है कि सम्भावनाएँ खतरनाक हैं।"

(6) सामाजिक सुधारों को प्रोत्साहन - 

आन्दोलन के द्वारा देश में सामाजिक सुधारों की ओर भी ध्यान दिया गया। अस्पृश्यता निवारण पर बल दिया गया। शराब की दुकानों पर धरना देकर मद्य-निषेध को प्रोत्साहन दिया गया।
इस आन्दोलन के द्वारा स्वराज्य की मंजिल नजदीक आ गई। कालान्तर में इसी प्रकार के आन्दोलनों से भारतीयों को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई।

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