मुस्लिम लीग की स्थापना

MJPRU-BA-III-History I-2020
प्रश्न 18. भारत में मुस्लिम साम्प्रदायिकता का प्रारम्भ कैसे हुआ? इसके लिए ब्रिटिश शासक कहाँ तक उत्तरदायी थे?
अथवा ''भारत में साम्प्रदायिकता के उदय के कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा ''भारत में मुस्लिम लीग के विकास के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर - लॉर्ड कर्जन के सन् 1905 में बंगाल-विभाजन के कार्य का समस्त भारत में तीव्र विरोध हुआ। फलतः सुरक्षा की दृष्टि से ब्रिटिश सरकार ने लॉर्ड कर्जन के स्थान पर सन् 1906 के प्रारम्भ में लॉर्ड मिण्टो को भारत का वायसराय नियुक्त किया। बंगाल-विभाजन के कारण बढ़ते हुए असन्तोष को दृष्टिगत रखते हुए भारत मन्त्री लॉर्ड मॉर्ले ने वायसराय लॉर्ड मिण्टो को कुछ संवैधानिक सुधार करने को कहा। 
लॉर्ड मिण्टो ने संवैधानिक सुधारों के माध्यम से हिन्दू व मुसलमानों को सदैव के लिए लड़ाने के उद्देश्य से एक मुस्लिम शिष्टमण्डल को अप्रत्यक्ष रूप से बुलाने की व्यवस्था की, जो वायसराय से मुसलमानों के लिए साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व (पृथक् प्रतिनिधित्व) की माँग करे। पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार लॉर्ड मिण्टो के निजी सचिव कर्नल डनलप स्मिथ ने अलीगढ़ कॉलेज के प्रिंसीपल मि. आर्चीवाल्ड को एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि "यदि आगामी संवैधानिक सुधारों के सम्बन्ध में मुसलमानों का एक शिष्टमण्डल मुसलमानों के लिए पृथक अधिकारों की माँग करे और इस सम्बन्ध में वायसराय से मिले, तो इससे बायसराय को बहुत प्रसन्नता होगी।"
मुस्लिम लीग का इतिहास

सन् 1906 का मुस्लिम शिष्टमण्डल और साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की मांग
1 अक्टूबर, 1906 को सर आगा खाँ के नेतृत्व में एक मुस्लिम शिष्टमण्डल वायसराय से शिमला में मिला शिष्टमण्डल के सदस्यों ने मांग की कि भविष्य में होने वाले संवैधानिक सुधारों में यदि निर्वाचन का सिद्धान्त ग्रहण किया जाता है, तो मुसलमानों को अपने प्रतिनिधि पृथक् से निर्वाचित करने का अधिकार दिया जाए। दूसरे शब्दों में, उन्होंने पृथक् प्रतिनिधित्व अथवा साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की माँग की। इस शिष्टमण्डल द्वारा प्रस्तुत अन्य माँगें निम्नलिखित र्थी
(1) सरकारी नौकरियों में मुस्लिमों को अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाए।
(2) वायसराय की कौंसिल में भारतीयों को नियुक्त करते समय मुसलमानों के हितों का भी ध्यान रखा जाए।
(3) मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए।
वायसराय ने मुस्लिम शिष्टमण्डल के उपर्युक्त विचारों से पूर्ण सहमति व्यक्त की और कहा कि "आप लोगों की यह बात ठीक है कि आपकी जाति का महत्त्व संख्या के आधार पर नहीं लगाया जाए, वरन् उसे राजनीतिक महत्त्व ब्रिटिश सरकार के प्रति की गई सेवाओं के आधार पर मिलना चाहिए।"
इससे स्पष्ट है कि यह सारा षड्यन्त्र लॉर्ड मिण्टो ने भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिक विष फैलाने के लिए रचा था

मुस्लिम लीग का उदय

1906 ब्रिटिश सरकार से प्रोत्साहन पाकर मुस्लिम नेताओं ने मुस्लिम जाति के लिए अखिल भारतीय संगठन की स्थापना की दिशा में प्रयत्न किया। ढाका के नवाब सलीमुल्ला खाँ ने 'ऑल इण्डिया मुस्लिम संघ' के नाम से एक राजनीतिक संगठन बनाने का प्रस्ताव रखा। इसके लिए उन्होंने 30 दिसम्बर, 1906 को मुस्लिम नेताओं की एक मीटिंग ढाका में बुलाई। इसके अध्यक्ष नवाब वकारुल मुल्क थे। सम्मेलन में स्वीकृत प्रथम प्रस्ताव द्वारा 'ऑल इण्डिया मुस्लिम लीग' के नाम से मुसलमानों का एक राजनीतिक संगठन बनाया गया। मुस्लिम लीग की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे___
(1) भारतीय मुसलमानों में ब्रिटिश राज्य के प्रति राजभक्ति की भावना में वृद्धि करना और यदि सरकार के किसी कानून द्वारा मुस्लिम जनता में कोई गलत धारणा फैली हो, तो उसे दूर करना। ,
(2) भारतीय मुसलमानों के राजनीतिक अधिकारों व हितों की देखभाल व उनमें वृद्धि करना। मुसलमानों की इच्छाओं व आवश्यकताओं को सरकार के सामने प्रस्तुत करना।
(3) उपर्युक्त उद्देश्यों के अन्तर्गत ही यदि सम्भव हो सके तो भारत की अन्य जातियों के साथ मित्रता स्थापित करना।
सन् 1907 से 1910 तक के मुस्लिम लीग के अधिवेशनों में भी ये माँग दोहराई गई।

मुस्लिम लीग के दृष्टिकोण में परिवर्तन -

 सन् 1911 तक मुस्लिम लीग साम्प्रदायिक नीति पर ही चलती रही, परन्तु धीरे-धीरे लीग के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ और मुस्लिम लीग ब्रिटिश शासन से दूर हटकर कांग्रेस के निकट आ गई। इंग्लैण्ड की सरकार द्वारा टर्की के प्रति शत्रुतापूर्ण नीति अपनाना और बंगाल का विभाजन रद्द करना लीग के दृष्टिकोणों में परिवर्तन का तात्कालिक कारण बने।
इसके परिणामस्वरूप सन् 1916 में कांग्रेस और लीग के मध्य एक समझौता हुआ। इस समझौते के अन्तर्गत कांग्रेस द्वारा मुसलमानों की प्रतिनिधि संस्था के रूप में मुस्लिम लीग का अस्तित्व, साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व और मुसलमानों के लिए प्रतिनिधित्व में गुरुता को स्वीकार कर लिया गया। लेकिन यह हिन्दू-मुस्लिम - एकता क्षणिक सिद्ध हुई।

'साइमन कमीशन और लीग में फूट - 

भारत की संवैधानिक समस्या का अध्ययन करने व संवैधानिक सुधारों के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने सन् 1927 में साइमन कमीशन की नियुक्ति की। भारतीयों ने इस कमीशन का बहिष्कार करने का निर्णय किया, क्योंकि इसमें किसी भी भारतीय को नहीं रखा गया था। साइमन कमीशन के विरोध के प्रश्न पर लीग में फूट पड़ गई। मुहम्मद अली जिन्ना और उनके समर्थकों ने कमीशन के विरोध का निर्णय किया, लेकिन दूसरी ओर मुहम्मद शफी गुट ने साइमन कमीशन को सहयोग देने का निर्णय लिया।

नेहरू रिपोर्ट और मुस्लिम लीग

साइमन कमीशन की नियुक्ति के समय भारत मन्त्री बर्किनहैड ने चुनौती देते हुए कहा था कि भारतीय संवैधानिक सुधारों के सम्बन्ध में अपनी ओर से कोई सर्वसम्मत योजना पेश नहीं कर सकते। इस चुनौती का जबाव देने के लिए दिल्ली में फरवरी, 1928 में कांग्रेस के प्रयासों से एक सर्वदलीय सम्मेलन आयोजित किया गया। पं. मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में भारत में संविधान के सम्बन्ध में योजना बनाने हेतु समिति गठित की गई। इस समिति की रिपोर्ट को तैयार किए जाते समय मुसलमानों का प्रतिनिधित्व संयुक्त चुनाव प्रणाली के जरिए स्वीकार कर लिया गया था। लेकिन इस रिपोर्ट पर विस्तृत वाद-विवाद हुआ, तो मुहम्मद अली जिन्ना ने निम्न तीन सुझाव प्रस्तुत किए
(1) केन्द्रीय विधानमण्डल में मुसलमानों को एक-तिहाई प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए।
(2) पंजाब और बंगाल में मुसलमानों को 10 वर्ष के लिए जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व दिया जाए।
(3) अवशिष्ट शक्तियाँ प्रान्तीय विधानमण्डल को दी जाएँ, केन्द्र को नहीं।
सर्वदलीय सम्मेलन ने जब जिन्ना के सुझावों को ठुकरा दिया, तो वे मुस्लिम लीग के शफी गुट से जा मिले और उन्होंने पूर्णतया साम्प्रदायिक राजनीति का मार्ग अपनाया।
1935 के अधिनियम के अन्तर्गत चुनाव और कांग्रेस-लीग कटुता- सन् 1935 के भारत सरकार अधिनियम के अन्तर्गत सन् 1937 में विधानमण्डलों के लिए जो चुनाव हुए, उनमें लीग को विशेष सफलता नहीं मिली। 11 प्रान्तों में से 8 प्रान्तों में कांग्रेसी मन्त्रिमण्डल बने और शेष तीन प्रान्तों में मिले-जुले मन्त्रिमण्डल बने। लीग एक भी प्रान्त में अपना मन्त्रिमण्डल नहीं बना सकी। अतः लीग का निराश होना स्वाभाविक था। उत्तर प्रदेश में, जहाँ लीग और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़े थे, मुस्लिम लीग ने कांग्रेस से संयुक्त मन्त्रिमण्डल बनाने की माँग की। लेकिन कांग्रेस ने लीग को मन्त्रिमण्डल में शामिल करने के लिए निम्नलिखित शर्ते रखीं
(1) लीग एक पृथक् गुट के रूप में कार्य करना समाप्त कर देगी।
(2) उत्तर प्रदेश के विधानमण्डल में लीग के जो सदस्य हैं, वे कांग्रेस के सदस्य माने जाएँ और कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करें।
(3) उत्तर प्रदेश की लीग का संसदीय बोर्ड समाप्त कर दिया जाए।
मुस्लिम लीग ने कांग्रेस की उपर्युक्त शर्तों को ठुकरा दिया। कांग्रेस की उपर्युक्त शर्तों ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को प्रायः समाप्त कर दिया। वस्तुतः कांग्रेस का यह रुख हिन्दू-मुस्लिम सम्बन्धों में स्थायी कटुता का कारण बन गया। पं. नेहरू ने इस तथ्य को इन शब्दों में स्वीकार किया है, "साम्प्रदायिक प्रश्न पर इस घटना के प्रभाव दुर्भाग्यपूर्ण थे और उसने काफी बड़ी संख्या में मुसलमानों में असन्तोष और पृथकता की भावना उत्पन्न कर दी।" सायमण्ड्स ने लिखा है, "पाकिस्तान के निर्माण में इससे अधिक और किसी घटना ने सहायता नहीं दी।" इस घटना के उपरान्त लीग ने अपनी पूरी शक्ति के साथ हिन्दुओं के अत्याचारों का ढिंढोरा पीटना शुरू कर दिया। सन् 1939 के द्वितीय विश्व युद्ध में जब ब्रिटिश सरकार ने भारत को कांग्रेस से बिना परामर्श किए धकेल दिया और कांग्रेस ने मन्त्रिमण्डल से विरोध स्वरूप त्याग-पत्र दे दिया, तो लीग को अत्यधिक प्रसन्नता हुई। 22 दिसम्बर, 1939 को मुस्लिम लीग ने अपनी प्रसन्नता प्रदर्शित करने हेतु 'मुक्ति दिवस' भी मनाया।
द्विराष्ट्र सिद्धान्त (1940) के उपरान्त मुस्लिम साम्प्रदायिकता का चरमोत्कर्ष
सन् 1940 में मुहम्मद अली जिन्ना ने यह दावा किया कि हिन्दू और मुसलमान भारत में रहने वाले दो अलग-अलग राष्ट्र हैं, जिनका स्थान और अधिकार बराबर का है। मुसलमानों की संस्कृति, धर्म और हित भारत में सुरक्षित नहीं है। वह केवल पृथक् राष्ट्र में ही सुरक्षित रह सकता है। उन्होंने सन् 1940 के मुस्लिम लीग के अधिवेशन में कहा, "हिन्दू धर्म और इस्लाम धर्म शाब्दिक अर्थ में धर्म नहीं हैं, वरन ये दो पृथक और स्पष्ट सामाजिक व्यवस्थाएँ हैं। हिन्दू और मुसलमान कभी एक संयुक्त राष्ट्र के रूप में रह सकते हैं, यह एक कोरा स्वप्न है। राष्ट्र की किसी भी परिभाषा के अनुसार मुसलमान एक राष्ट्र है, अतः उनका अपना प्रदेश तथा राज्य होना चाहिए।" जिन्ना द्वारा प्रतिपादित इस सिद्धान्त के आधार पर लीग के लाहौर अधिवेशन में पाकिस्तान की स्थापना सम्बन्धी प्रस्ताव स्वीकृत हुआ, जिसमें कहा गया था कि भारत के पश्चिमोत्तर तथा पूर्वी क्षेत्र जैसे मुस्लिम बहुल प्रान्तों को मिलाकर एक स्वतन्त्र राज्य के रूप में संगठित किया जाना चाहिए।" इस प्रस्ताव से विभाजन की दिशा में सोचने वाली शक्तियों को नया आधार मिला।
8 अगस्त, 1940 की ब्रिटिश सरकार की घोषणा में 'पाकिस्तान' की स्थापना का संकेत दिया गया। मार्च, 1942 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भेजे गए क्रिप्स मिशन ने परोक्ष रूप से पाकिस्तान के निर्माण की माँग को स्वीकार कर लिया था। द्वितीय
विश्व युद्ध के उपरान्त ब्रिटिश प्रधानमन्त्री एटली ने मार्च, 1946 में कैबिनेट मिशन भारत भेजा। यद्यपि इसने पाकिस्तान की माँग को तो ठुकरा दिया, लेकिन लीग को सन्तुष्ट करने के उद्देश्य से प्रान्तों के समूहीकरण की बात कहकर पाकिस्तान को सार रूप में स्वीकार कर लिया।
प्रान्तों के समूहीकरण के बारे में कांग्रेस और लीग में मतभेद था। लीग इसे कैबिनेट योजना का अनिवार्य अंग मानती थी, जबकि कांग्रेस के विचार में प्रान्तों का समूहीकरण एक ऐच्छिक बात थी। जुलाई, 1946 में पं. नेहरू ने एक वक्तव्य में कहा कि संविधान सभा में हम जो कुछ करेंगे, उसके लिए पूर्ण स्वतन्त्र होंगे। सम्भावना यह है कि प्रान्तों के इस प्रकार से कोई वर्ग नहीं बनेंगे। मुहम्मद अली जिन्ना ने पं. नेहरू के वक्तव्य का अपने लाभ के लिए प्रयोग किया और 29 जुलाई, 1946 को कैबिनेट मिशन योजना को अस्वीकार कर दिया। यद्यपि लीग अन्तरिम सरकार में शामिल हो गई थी, परन्तु संविधान सभा की कार्यवाही में भाग लेने से उसने मना कर दिया। यही नहीं, पाकिस्तान की माँग को पूरा करने के लिए मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त, 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस' मनाने का निश्चय किया। इस दिन देश के विभिन्न भागों में दंगे हुए। ऐसे वातावरण में 20 फरवरी, 1947 को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री ने घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार सन्' 1948 से पूर्व भारतीयों के हाथों में शक्ति का हस्तान्तरण कर देगी। जून, 1947 में लॉर्ड माउण्टबेटन ने अपनी योजना प्रस्तुत की, जिसमें भारत और पाकिस्तान, इन दो पृथक् उपनिवेशों की स्थापना की व्यवस्था थी। इस योजना को कांग्रेस सहित भारत के सभी दलों ने स्वीकार कर लिया। इस योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद ने जुलाई, 1947 में भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम स्वीकार कर लिया। 14 अगस्त, 1947 को मुहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान का गवर्नर-जनरल घोषित कर दिया गया और इसी दिन पाकिस्तान ने एक स्वतन्त्र राष्ट्र का रूप धारण कर लिया।


Comments

Important Question

मैकियावली अपने युग का शिशु - विवेचना

ऋणजल धनजल - सारांश

पारिभाषिक शब्दावली का स्वरूप एवं महत्व

राजा राममोहन राय के राजनीतिक विचार

जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक विचार

सरकारी एवं अर्द्ध सरकारी पत्र में अन्तर

प्लेटो के शिक्षा सिद्धांत की आलोचना

कौटिल्य का सप्तांग सिद्धान्त

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस - 1885 से 1905

गोपालकृष्ण गोखले के राजनीतिक विचार