वर्साय की सन्धि - महत्त्व और दोष

MJPRU-BA-III-History II / 2020
प्रश्न 7. वर्साय की सन्धि के प्रमुख अनुबन्धों का वर्णन कीजिए। यह सन्धि द्वितीय विश्व युद्ध के लिए कहाँ तक उत्तरदायी थी ?
अथवा '' इस मत की विवेचना कीजिए किवर्साय की सन्धि कोई शान्ति सन्धि नहीं, वरन् बीस वर्ष के लिए एक युद्ध विराम सन्धि थी।"
उत्तर -  
varsay-ki-sandhi-in-hindi

शान्ति की समस्या

अगस्त, 1914 में जो प्रथम विश्व युद्ध प्रारम्भ हुआ, वह विनाशकारी संघर्ष के बाद 11 नवम्बर, 1918 को रुक गया। युद्ध की समाप्ति के बाद समस्त विश्व के सामने सबसे बड़ा और जटिल प्रश्न स्थायी शान्ति की व्यवस्था करना था।

पेरिस का शान्ति सम्मेलन-

प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी का सबसे प्रबल और घातक प्रहार फ्रांस पर हुआ था, इसीलिए फ्रांस की राजधानी पेरिस में 'शान्ति सम्मेलन' का आयोजन किया गया। सम्मेलन में भाग लेने वालों में प्रमुख थे-संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन, ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री लॉयड जॉर्ज, फ्रांस के प्रधानमन्त्री क्लीमेंसो और इटली के प्रधानमन्त्री ऑरलैण्डो । ये 'चार बड़े' (Big Four) कहलाए। इस सम्मेलन में भाग लेने वालों में कुछ और भी हस्तियाँ थीं; जैसे-बेल्जियम के हाईमन्स, पोलैण्ड के डिकोस्की, यूगोस्लाविया के पाशिष,चेकोस्लोवाकिया के वेने, दक्षिणी अफ्रीका के जनरल स्मट्स आदि । सोवियत - रूस को इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमन्त्रित नहीं किया गया।

वर्साय की सन्धि

पेरिस शान्ति सम्मेलन में हुई सन्धियों और समझौतों के प्रारूप तैयार किए गए और उन पर हस्ताक्षर किए गए, परन्तु इन सन्धियों में जर्मनी के साथ जो वर्साय सन्धि हुई,वही सबसे प्रमुख और महत्त्वपूर्ण है । लगभग चार माह के अथक परिश्रम के बाद 6 मई, 1919 को सन्धि का अन्तिम प्रारूप तैयार हुआ। यह 15 भागों में विभाजित 230 पृष्ठों का लम्बा सन्धि-पत्र था, इसमें 439 धाराएँ थीं । 28 जून, 1919 को जर्मन प्रतिनिधिमण्डल ने सन्धि पर हस्ताक्षर करने के लिए वर्साय के शीशमहल में प्रवेश किया और सन्धि पर हस्ताक्षर कर दिए। हस्ताक्षर करने के बाद जर्मन प्रतिनिधि ने कहा किहमारे प्रति फैलाई गई उस घृणा की भावना से हम आज सुपरिचित हैं। मेरा देश दबाव के कारण आत्म-समर्पण कर रहा है, किन्तु जर्मनी यह कभी नहीं भूलेगा कि यह अन्यायपूर्ण सन्धि है।" हस्ताक्षर करने के बाद जब जर्मन प्रतिनिधिमण्डल महल से बाहर आया, तो पेरिस के लोगों ने उनका अपमान किया और उन पर ईंट-पत्थर फेंके । दूसरे दिन जर्मनी के एक समाचार-पत्र में कहीं हम भूल न जाएँ' शीर्षक से एक लेख छपा। इसमें कहा गया था किसंसार के राष्ट्रों की मण्डली में जर्मनी अपना न्यायसंगत स्थान प्राप्त करने का प्रयास करेगा और तब 1919 का बदला। इन्हीं शब्दों में दूसरे विश्व युद्ध के कीटाणु छिपे थे।
वर्साय की सन्धि के प्रमुख प्रावधान या व्यवस्थाएँ

(1) सैनिक व्यवस्थाएँ

विश्व-शान्ति की स्थापना तथा पड़ोसी देशों की सुरक्षा की दृष्टि से जर्मनी की सैनिक व्यवस्था पर निम्न शर्तों द्वारा अंकुश लगाया गया
(i) जर्मनी की अनिवार्य सैनिक सेवा को समाप्त कर दिया गया।
(ii) स्थल सेना की संख्या घटाकर एक लाख निश्चित की गई तथा इसे 12 वर्ष तक स्थिर रखने का प्रावधान किया गया।
(iii) आयुध एवं युद्धक सामग्री के उत्पादन पर एक निश्चित सीमा तक रोक लगा दी गई।
(iv) नौसेना को सीमित कर उसमें 10 हजार टन के 6 युद्धपोत, 6 हल्के क्रूजर और 12 डेस्ट्रॉयर रखने का प्रावधान किया गया।
(v) यह भी निर्धारित किया गया कि जल सेना में जर्मनी 15 हजार सैनिक तथा -15 सौ अधिकारी से अधिक नहीं रख सकेगा।
(vi) जर्मनी द्वारा नये लड़ाकू जहाज बनाने अथवा बाहर से मँगवाने पर प्रतिबन्ध लगाया गया।
(vii) पनडुब्बियों की अधिकतम संख्या 12 निर्धारित की गई तथा नई पनडुब्बियाँ बनाने पर प्रतिबन्ध लगाया गया। अतिरिक्त पनडुब्बियों को नष्ट करने अथवा मित्र राष्ट्रों को सौंपने की व्यवस्था की गई।
(viii) हेलिगोलैण्ड बन्दरगाह की मोर्चाबन्दी नष्ट करने तथा भविष्य में उसे कभी न बनाने की व्यवस्था की गई।
(ix) जर्मनी राइन नदी के बाएँ तट पर अपने प्रदेश में दाएँ तट पर 50 किमी क्षेत्र में किलेबन्दी नहीं कर सकता था और सेना भी नहीं रख सकता था।
(x) जर्मनी का प्रधान सैनिक कार्यालय समाप्त कर दिया गया। निःशस्त्रीकरण के नियमों का पालन कराने और उनकी देखभाल के लिए जर्मनी के ही खर्चे पर एक सैनिक आयोग नियुक्त किया गया।


(2) प्रादेशिक व्यवस्थाएँ

(i) जर्मनी द्वारा जीता गया अल्सास तथा लोरेन का प्रदेश फ्रांस को वापस दिया गया।
(ii) फ्रांस की सुरक्षा की दृष्टि से राइनलैण्ड का निःशस्त्रीकरण किया गया तथा वहाँ 15 वर्ष के लिए मित्र राष्ट्रों की सेना को नियुक्त किया गया।
(iii) जर्मनी के प्रमुख कोयले के भण्डारसार प्रदेश' की शासन व्यवस्था राष्ट्र संघ को सौंप दी गई और कोयले की खानों को फ्रांस को सौंप दिया गया। इस प्रदेश में 15 वर्ष बाद जनमत संग्रह करने का प्रावधान किया गया। (iv) मार्सनेट, यूपेन तथा मालमेडी के प्रदेशों को जर्मनी से छीनकर बेल्जियम को दे दिया गया।
(v) उत्तरी जर्मनी का प्रदेश श्लेसविग जनमत संग्रह के बाद डेनमार्क को सौंप दिया गया।
(vi) जर्मनी का पूर्वी भाग छीनकर पोलैण्ड को दिया गया। पोलैण्ड को समुद्र तट से मिलाने के लिए जर्मनी का डेन्जिंग नगर,जिसकी संख्या जर्मन बहुल थी,उससे छीनकर स्वतन्त्र नगर घोषित किया गया तथा उस पर राष्ट्र संघ का संरक्षण स्थापित किया गया। इस प्रकार डेन्जिंग बन्दरगाह पर पोलैण्ड का अधिकार स्थापित हो गया। इसके साथ समुद्र तट पर पोलैण्ड को एक गलियारा भी प्रदान किया गया। यह गलियारा जर्मनी को दो भागों में विभाजित करता था। वर्साय सन्धि की यही सबसे बड़ी दुर्बलता थी।
(vii) साइलेशिया के एक भाग को चेकोस्लोवाकिया को दे दिया गया।
(viii) मेमल बन्दरगाह पर मित्र राष्ट्रों का आधिपत्य स्वीकृत किया गया।
इस प्रकार वर्साय सन्धि के अनुसार जर्मनी को यूरोप में 25,436 वर्ग मील भूमि और 70 लाख नागरिकों से वंचित होना पड़ा तथा उसके 72% जस्ते,45% कोयले एवं 65% कच्चे लोहे के क्षेत्र छीन लिए गए।

(3) जर्मन उपनिवेश - 

विभिन्न मित्र राष्ट्र जर्मनी के सभी उपनिवेशों को स्वयं हड़पना चाहते थे, किन्तु वुडरो विल्सन उन्हें राष्ट्र संघ के संरक्षण में रखना चाहते थे। काफी बहस के बाद इन उपनिवेशों को राष्ट्र संघ के संरक्षण में रखा गया, किन्तु संरक्षक मित्र राष्ट्रों को ही नियुक्त किया गया । फलत: जर्मनी के एशिया तथा अफ्रीका के समस्त उपनिवेशों को मित्र राष्ट्रों ने संरक्षण प्रणाली के आधार पर आपस में बाँट लिया। इस प्रकार जर्मनी के समस्त उपनिवेश छीन लिए गए।

(4) क्षतिपूर्ति व्यवस्था

युद्ध में मित्र राष्ट्रों की अपार जन-धन की हानि हुई। इसके लिए जर्मनी को उत्तरदायी ठहराया गया। एक आयोग द्वारा इस क्षतिपूर्ति का भुगतान निम्नलिखित ढंग से किया गया-
(i) जर्मनी को मई, 1921 तक क्षतिपूर्ति के रूप में 5 अरब डॉलर देने के लिए आदेश दिया गया।
(ii) जर्मन पनडुब्बियों द्वारा डुबोये गए जहाजों के बदले में जर्मनी को 44,800 टन के व्यापारिक जहाज मित्र राष्ट्रों को सौंपने को कहा गया। उसे निर्देश दिया गया कि वह मित्र राष्ट्रों के लिए 56 लाख टन के जहाज बनाता रहे । विराम सन्धि के समय " से ही जर्मनी के युद्धपोतों पर मित्र राष्ट्रों का अधिकार हो गया।
(iii) जर्मनी की कील नहर को अन्तर्राष्ट्रीय घोषित किया गया। उस पर अप्रत्यक्ष रूप से मित्र राष्ट्रों का अधिकार हो गया।
(iv) मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी से लोहे और कोयले के क्षेत्र अल्सास तथा लोरेन छीन लिए। इसके साथ जर्मनी को 70 लाख टन कोयला प्रतिवर्ष फ्रांस को, 80 लाख टन इंग्लैण्ड को तथा 80 लाख टन बेल्जियम को देने हेतु कहा गया।
(v) क्षतिपूर्ति के रूप में जर्मन उपनिवेशों की सरकारी गैर-सरकारी सम्पत्ति को मित्र राष्ट्रों द्वारा छीन लिया गया।
(vi) मिस्र, बुल्गारिया, मोरक्को तथा चीन आदि से प्राप्त जर्मनी के व्यापारिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
(vii) जर्मनी द्वारा फ्रांस को कुछ महत्त्वपूर्ण रासायनिक पदार्थ भी देने पड़े।
(viii) जर्मनी द्वारा फ्रांस की बहुत-सी कलात्मक कृतियाँ छीन ली गई थीं, उन्हें वापस लौटाया गया।

(5) युद्ध अपराध-

(i) जर्मनी के सम्राट विलियम कैसर को युद्ध के लिए उत्तरदायी ठहराकर उन्हें युद्ध अपराधी माना गया । उन पर मुकदमा चलाने के लिए मित्र राष्ट्रों ने एक न्यायालय की नियुक्ति की।
(ii) राइन नदी के पश्चिमी किनारे और जर्मनी के एक भूखण्ड पर मित्र राष्ट्रों को सैनिक अड्डे बनाने की सुविधा प्रदान की गई।
(iii) बेल्जियम को यह अधिकार दिया गया कि वह अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए आवश्यक सन्धियाँ कर सके।
(iv) लक्जेमबर्ग की तटस्थता समाप्त कर ऑस्ट्रिया की स्वाधीनता और अखण्डता को स्वीकृत किया गया।

(6) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व्यवस्थाएँ  

विश्व में चिरस्थायी शान्ति की स्थापना के लिए इस सन्धि द्वारा राष्ट्र संघ' की स्थापना का प्रावधान किया गया। इसका उद्देश्य बातचीत द्वारा विश्व समस्याओं का हल खोजना और विश्व-शान्ति की स्थापना करना था। इसके साथ ही पुरुष, स्त्रियों और बालकों के लिए श्रम की उचित एवं मानवीय अवस्थाओं की प्राप्ति के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ के निर्माण पर बल दिया गया।

वर्साय सन्धि के दोष

अथवा
वर्साय सन्धि द्वितीय विश्व युद्ध के लिए उत्तरदायी थी
वर्साय सन्धि की शर्तों पर जर्मनी हस्ताक्षर करने के लिए विवश था, किन्तु जर्मनी जैसा स्वाभिमानी राष्ट्र इस अपमान को सहन न कर सका। यह सन्धि उसके लिए शान्ति का नहीं वरन् जहर का छूट था, जिसे परिस्थितिवश उसे निगलना तो पड़ा, किन्तु उसने जर्मनी के अंग-प्रत्यंग में हलाहल घोल दिया। वह रात-दिन अपमान की ज्वाला में जलने लगा। उसका प्रत्येक नागरिक बदला लेने के लिए उद्यत था। यह सन्धि-पत्र विश्व राजनीति के लिए एक विषैला बीज सिद्ध हुआ। इसे मित्र राष्ट्रों ने बोया और उसके फल भी उन्हें ही चखने पड़े । जर्मनी को जैसे-जैसे अवसर मिलता गया,वह वर्साय सन्धि की शर्तों का उल्लंघन करता गया। इस सन्दर्भ में मार्शल फॉश ने कहा था, “वर्साय की सन्धि कोई शान्ति सन्धि नहीं है, वरन् यह बीस वर्ष के लिए एक युद्ध विराम सन्धि है ।द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में उनका कथन सत्य निकला। निम्नलिखित तर्क यह सिद्ध करते हैं कि वर्साय सन्धि ने ही द्वितीय विश्व युद्ध की भूमिका तैयार की
(1) वर्साय सन्धि पर जर्मनी ने विवशतावश हस्ताक्षर किए। पहले तो जर्मन प्रतिनिधियों ने उसे अपने आरोप-पत्रं के साथ लौटा दिया। बाद में जब वही संशोधित शर्तनामा उनके सामने प्रस्तुत किया गया, तो युद्ध के भय से उन्हें हस्ताक्षर करने पड़े। ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री लॉयड जॉर्ज ने कहा था, "जर्मनी का कहना है कि हम इस सन्धि पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे, परन्तु हमारा भी कहना है कि सज्जनों हमें हस्ताक्षर कराने होंगे, वर्साय में नहीं तो जर्मनी में ही।" जर्मनी को जैसे अपमानित किया गया, वह उसका बदला लेने के लिए सदैव तत्पर रहा, जिसकी परिणति द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में हुई।
(2) जर्मनी के लोग वर्साय सन्धि का अन्त करना चाहते थे और यह तभी सम्भव था जब जर्मनी औद्योगिक, आर्थिक और सैनिक दृष्टि से सम्पन्न हो। इस सम्पन्नता को प्राप्त करने तथा अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए उसे द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ करना पड़ा।
(3) जर्मनी अपने खोये हुए प्रदेशों को पुनः प्राप्त करना चाहता था। इसलिए उसने ऑस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया, सुडेटनलैण्ड,डेन्जिंग तथा पोलैण्ड के गलियारे को प्राप्त करने के लिए भरसक प्रयत्न किया, जिसका परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध हुआ ।
(4) ब्रिटेन और फ्रांस ने वर्साय सन्धि द्वारा जर्मनी के साथ जो अन्याय किया,उसे बाद में उन्होंने अनुभव किया और जर्मनी के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाई। .जर्मनी ने इसका पूरा लाभ उठाया और यूरोप पर द्वितीय विश्व युद्ध लाद दिया।
(5) वर्साय सन्धि से इटली को कुछ भी लाभ नहीं हुआ। अत: वह जर्मनी से मिल गया। दोनों ने मिलकर यूरोप पर अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश की,जिसके परिणामस्वरूप वहाँ नाजीवाद और फासीवाद जैसे अधिनायकवादी चिन्तन का जन्म हुआ, जो सैनिकवाद और आक्रामकता में प्रचण्ड आस्था रखता था। यह भी द्वितीय विश्व युद्ध का कारण बना। हिटलर और मुसोलिनी जैसे लोग इसके अधिनायक बने ।
(6) वर्साय की सन्धि में राष्ट्रों के आत्म-निर्णय के सिद्धान्त को नकार दिया गया था, जिसे जर्मनी कभी भी स्वीकार नहीं कर सका। हिटलर ने स्पष्ट घोषणा की थी कि "जर्मन सीमाएँ विभिन्न समयों में होने वाले राजनीतिक संघर्षों का परिणाम हैं-राज्य की सीमाएँ मनुष्यों के द्वारा ही स्थापित की जाती हैं और उन्हीं के द्वारा बदली जाती हैं।" इन सीमाओं को हिटलर ने द्वितीय विश्व युद्ध के माध्यम से बदलने का भरसक प्रयत्न किया।
(7) वर्साय सन्धि की निःशस्त्रीकरण की शर्ते एकतरफा थीं। वे सब जर्मनी पर लागू होती थीं, मित्र राष्ट्रों पर ये लागू नहीं होती थीं। अतः हिटलर ने इसे अन्याय बताकर शस्त्रीकरण और सैन्यीकरण की होड़ प्रारम्भ कर दी। वस्तुतः मित्र राष्ट्रों ने निःशस्त्रीकरण की व्यवस्था को कारगर ढंग से लागू करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। इस उदासीनता का लाभ हिटलर ने उठाया और प्रचण्ड रूप से शस्त्रीकरण एवं सैन्यीकरण किया, जिसका अनिवार्य परिणाम युद्ध होना ही था।
(8) वर्साय सन्धि राष्ट्रों के मध्य मैत्री,शान्ति, एकता और व्यवस्था के स्थान पर घृणा,वैमनस्य और अविश्वास का वातावरण ही बना सकी,जिसने द्वितीय विश्व युद्ध को जन्म दिया।
(9) वर्साय की सन्धि समानता के आधार पर नहीं हुई। यह पराजित राष्ट्रों पर थोपी गई । जनरल स्मट्स के शब्दों में, “यह सन्धिनामा राजनीतिज्ञों का शान्तिनामा था, जनता का नहीं।"
(10) इसमें अल्पसंख्यक जातियों के हितों का ध्यान नहीं रखा गया। अनेक राष्ट्रों की सीमाओं का निर्धारण इस प्रकार किया गया जिससे कई जातियों को गुलामी स्वीकार करनी पड़ी। हिटलर ने इस कमजोरी का लाभ उठाया और अल्पसंख्यकों को
अधिकार दिलाने के बहाने अनेक देशों पर आक्रमण किए। अनेक राष्ट्रों को जीत लिया, जिसके फलस्वरूप द्वितीय विश्व युद्ध भड़क उठा।
(11) वर्साय की सन्धि में एक अच्छा काम यह किया गया कि इसके द्वारा राष्ट्र संघ' नामक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य शान्तिपूर्ण उपायों से अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल करना था। किन्तु इस संस्था के निर्माण में मित्र राष्ट्रों ने कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई । मात्र अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन को प्रसन्न करने के लिए राष्ट्र संघ का निर्माण किया गया, अतः यह संस्था कमजोर रही। मित्र राष्ट्रों ने इसे अपने स्वार्थ का साधन बनाया, परिणामस्वरूप यह संस्था कोई 'महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं कर सकी।
(12) मित्र राष्ट्रों ने विल्सन के 14 सिद्धान्तों की भी पूर्ण उपेक्षा की थी।

वर्साय की सन्धि का महत्त्व

उपर्युक्त दोषों के होते हुए भी वर्साय सन्धि के अन्तर्गत कुछ महत्त्वपूर्ण व्यवस्थाएँ निहित थीं। एक इतिहासकार ने लिखा है, “यह (वर्साय सन्धि) पहला अन्तर्राष्ट्रीय समझौता था जो कुछ सिद्धान्त और नैतिकताओं पर आधारित था।" इस सम्बन्ध में निम्नलिखित बिन्दु विचारणीय हैं
(1) राष्ट्रपति विल्सन द्वारा प्रतिपादित किए गए चौदह सूत्रों के अनुसार पेरिस के राजनीतिज्ञों ने विश्व-शान्ति की स्थापना करने तथा भविष्य की समस्याओं को आपसी बातचीत के माध्यम से हल करने के उद्देश्य से राष्ट्र संघ की स्थापना की थी। यह निश्चित रूप से एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य था।
(2) श्रमिकों की स्थिति में सुधार करने के लिए 'अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन' की स्थापना भी की गई।
 (3) जर्मनी के उपनिवेशों को मैण्डेट व्यवस्था के आधार पर मित्र राष्ट्रों के मध्य वितरित किया गया।
(4) जर्मनी को युद्ध की सम्पूर्ण क्षतिपूर्ति करने को बाध्य नहीं किया गया। उसे केवल उतनी क्षतिपूर्ति करने को कहा गया,जितनी जर्मनी के आक्रमणों के कारण मित्र राष्ट्रों की जनता को हुई थी।
(5) क्षतिपूर्ति की धनराशि को निश्चित करने के लिए क्षतिपूर्ति आयोग का गठन किया गया।
(6) राष्ट्रीयता और आत्म-निर्णय के सिद्धान्त पर पोलैण्ड, फिनलैण्ड, चेकोस्लोवाकिया, यूगोस्लाविया, लिथुआनिया आदि अनेक नवीन राज्यों का गठन किया गया। यह प्रथम अवसर था जब राष्ट्रीयता के सिद्धान्त को इतने व्यापक स्तर पर लागू किया गया था। इस निर्णय के फलस्वरूप यूरोप महाद्वीप की कुल जनसंख्या का मात्र 3% भाग ही विदेशी शासन के अधीन रह गया।
इस प्रकार वर्साय की सन्धि युद्ध का कोई स्थायी हल नहीं निकाल सकी। उसकी कठोर और स्वार्थपूर्ण व्यवस्था ने जर्मनी को पुनः संगठित होकर युद्ध करने को मौन निमन्त्रण दिया। इस सन्धि ने राष्ट्रों के मध्य प्रेम,विश्वास, सहयोग और मैत्री के स्थान पर घृणा, अविश्वास, असन्तोष, छल और बैर भाव की भावनाओं का पोषण किया। जर्मनी प्रतिशोध को कटिबद्ध हो गया और वर्साय की सन्धि को उलटने तथा यूरोप में
अपना राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने का सदैव प्रयास करता रहा । सौभाग्य से उसे * हिटलर जैसा अधिनायक और युद्धोन्मादी नेता मिला, जिसने वर्साय सन्धि की धज्जियाँ उड़ा दी और सम्पूर्ण यूरोप को ही नहीं, वरन् सम्पूर्ण विश्व को दूसरे विश्व युद्ध की लपेट में ले लिया।


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