कैसर विलियम द्वितीय की - विदेश नीति


MJPRU-BA-III-History II / 2020  
प्रश्न 6. कैसर विलियम द्वितीय की परराष्ट्र नीति की समीक्षा कीजिए।
अथवा ''कैसर विलियम द्वितीय की विदेश नीति का आलोचनात्मक वर्णन कीजिए। प्रथम विश्व युद्ध के लिए यह कहाँ तक उत्तरदायी थी ?
उत्तर- सम्राट् कैसर विलियम द्वितीय साहसी,उत्साही,मेधावी, अध्यवसायी और महत्त्वाकांक्षी तो था, किन्तु उसमें बिस्मार्क जैसी दूरदर्शिता और कूटनीति का अभाव था । वह जिद्दी और अभिमानी था । वह शत्रु की शक्ति आँकने की क्षमता नहीं रखता था। इसका परिणाम यह हुआ कि कैसर विलियम द्वितीय की विदेश नीति के कारण शक्तिशाली जर्मन साम्राज्य को प्रथम विश्व युद्ध में नष्ट होना पड़ा।
Kaiser Wilhelm II

कैसर विलियम द्वितीय की विदेश (परराष्ट्र) नीति

कैसर विलियम द्वितीय की विदेश (परराष्ट्र) नीति निम्न प्रकार थी

(1) विलियम द्वितीय और रूस

बिस्मार्क ने 1887 ई. में रूस के साथ पुनर्विश्वास की सन्धि की थी। 1890 ई. में इस सन्धि की पुनरावृत्ति की जानी थी। इस समय तक बिस्मार्क का पतन हो चुका था। कैसर विलियम द्वितीय रूस की अपेक्षा ऑस्ट्रिया से अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करना चाहता था, इसलिए उसने रूस से सन्धि की पुनरावृत्ति करने से इन्कार कर दिया। इससे रूस के जार का आश्चर्यचकित हो जाना स्वाभाविक था। 1893-94 ई.में रूस ने फ्रांस से द्विराष्ट्रीय सन्धि कर ली । कैसर विलियम द्वितीय  को इसकी आशा नहीं थी। इस सन्धि ने यूरोप को दो गुटों में बाँट दिया। एक गुट में
ऑस्ट्रिया, जर्मनी एवं इटली थे, तो दूसरे गुट में फ्रांस एवं रूस । इंग्लैण्ड अभी भी तटस्थ रहकर यूरोप की गुटबन्दी पर नजर रखे हुए था। जर्मनी की इंग्लैण्ड के प्रति नीति ने सन् 1904 में इंग्लैण्ड को फ्रांस व रूस के गुट में शामिल कर दिया। मित्र राष्ट्रों की गुटबन्दी देखकर विलियम द्वितीय ने रूस को अपनी ओर मिलाने का प्रयास किया। उसने रूस के जार निकोलस को भी सन् 1904 से 1906 तक पत्र-व्यवहार द्वारा अपना मित्र बनाए रखा, जो इतिहास में 'विली-निको पत्र-व्यवहार' के नाम से जाना जाता है।

(2) जर्मनी का औपनिवेशिक विस्तार -

 कैसर विलियम द्वितीय ने जर्मनी के औपनिवेशिक विस्तार की नीति अपनाई । उसने निम्नलिखित प्रदेशों पर जर्मनी का प्रभुत्व स्थापित कर दिया
(i) 1897 ई. में उसने चीन स्थित ओचाऊ प्रान्त पर अधिकार कर लिया।
(ii) 1898 ई. में उसने चीन पर दबाव डालकर शाण्टुंग प्रदेश का एक भाग 99 वर्ष के लिए पट्टे पर ले लिया।
(iii) 1899 ई. में उसने चीन में बॉक्सर विद्रोह का दमन करने के लिए जर्मन सेनाएँ भेजी।
(iv) 1899 ई. में उसने स्पेन से करोजिन का द्वीप खरीद लिया।
(v) सन् 1900 में उसने सेमोआ द्वीप के कुछ द्वीपों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
(vi) कैसर विलियम द्वितीय ने अफ्रीका तथा प्रशान्त महासागर में भी बहुत-से जर्मन उपनिवेश स्थापित कर दिए।
इस औपनिवेशिक विस्तार की दौड़ में जर्मनी को फ्रांस तथा इंग्लैण्ड से शत्रुता भी मोल लेनी पड़ी।

(3) कैसर विलियम द्वितीय और टर्की

कैसर विलियम द्वितीय ने टर्की से मित्रता करके कुस्तुनतुनिया से बगदाद तक रेलवे लाइन बिछाने की योजना बनाई, जिसे बाद में बर्लिन से जोड़ा जाना था। बर्लिन-बगदाद रेलवे लाइन का निर्माण इंग्लैण्ड के लिए खतरे की घण्टी थी और उसके तथा एशिया के औपनिवेशिक साम्राज्य के लिए खतरा थी। विलियम द्वितीय की इस योजना ने न केवल इंग्लैण्ड को, वरन् रूस और फ्रांस को भी जर्मनी का शत्रु बना दिया। कैसर विलियम द्वितीय की इस योजना ने 'त्रिराष्ट्रीय सन्धि' को सम्भव बनाया और प्रथम विश्व युद्ध का एक महत्त्वपूर्ण कारण भी यही योजना बनी।

(4)कैसर विलियम द्वितीय और इंग्लैण्ड - 

1890 ई. तक इंग्लैण्ड और जर्मनी के सम्बन्ध अच्छे बने रहे । 1891 ई.में कैसर विलियम द्वितीय इंग्लैण्ड गया,जहाँ उसका शानदार स्वागत हुआ।1898 ई. में फसोदा के प्रश्न पर इंग्लैण्ड तथा फ्रांस के मध्य युद्ध छिड़ जाने की सम्भावना हो गई। इसी समय इंग्लैण्ड के औपनिवेशिक मन्त्री जोसेफ चेम्बरलेन ने इंग्लैण्ड, जर्मनी और संयुक्त राज्य के एक त्रिगुट के निर्माण का प्रस्ताव रखा, किन्तु सन् 1900 में जर्मनी के प्रधानमन्त्री ब्यूलो ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।सन् 1901 में चेम्बरलेन ने इंग्लैण्ड और जर्मनी में समझौता कराने का प्रयत्न किया, किन्तु उसे सफलता न मिल सकी। उसने बड़े थके हुए स्वर में कहा."यदि बर्लिन के लोग अदूरदर्शी हैं, तो इसका कोई निदान नहीं है।" _सन् 1902 में अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों से विवश होकर इंग्लैण्ड ने जापान से सन्धि कर ली। सन् 1904 में इंग्लैण्ड तथा फ्रांस में द्विराष्ट्रीय सन्धि हो गई और सन् 1907 में रूस भी इस सन्धि में शामिल हो गया। इस प्रकार जर्मनी के विरुद्ध यूरोप में एक शक्तिशाली गुट बनकर तैयार हो गया।

(5) कैसर विलियम द्वितीय और ऑस्ट्रिया (पूर्वी समस्या) - 

मित्र राष्ट्रों की गुटबन्दी से सशंकित होकर कैसर विलियम द्वितीय ने सन् 1908 में पूर्वी समस्या में हस्तक्षेप करने की योजना बनाई। इस समय टर्की में युवा तुर्क क्रान्ति का लाभ उठाकर ऑस्ट्रिया ने बोस्निया तथा हर्जेगोविना पर अधिकार कर लिया। सर्बिया ने ऑस्ट्रिया के इस कार्य का विरोध किया और युद्ध की तैयारियाँ करनी प्रारम्भ कर दी। सर्बिया का विचार था कि वह युद्ध के समय रूस, ऑस्ट्रिया और जर्मनी की संयुक्त शक्ति का सामना कर सकता था। इसके अतिरिक्त कैसर विलियम द्वितीय ने यह स्पष्ट घोषणा भी कर दी कि वह युद्ध में ऑस्ट्रिया की पूरी शक्ति से सहायता करेगा। अतः रूस की दुर्बलता के कारण ऑस्ट्रिया और सर्बिया के मध्य युद्ध कुछ समय के लिए टल गया।

(6) कैसर विलियम द्वितीय और फ्रांस (मोरक्को समस्या) -

सन् 1904 में हुई इंग्लैण्ड और फ्रांस की सन्धि के अनुसार फ्रांस को मोरक्को में प्रभाव-विस्तार करने की छूट मिल गई थी और इसके बदले में फ्रांस ने इंग्लैण्ड को मिस्र में विशेषाधिकार प्रदान किए थे। दोनों देशों ने एक-दूसरे के खेमे (मोरक्को व मित्र) में हस्तक्षेप न करने का वचन भी दे दिया था। इस सन्धि से जर्मनी बड़ा रुष्ट था, क्योंकि मोरक्को की सामरिक स्थिति अत्यधिक महत्त्वपूर्ण थी। अतः 31 मार्च, 1905 को कैसर विलियम द्वितीय ने टेंजियर (मोरक्को) पहुँचकर यह घोषणा कर दी किमोरक्को एक स्वतन्त्र राज्य है।"
11 अप्रैल, 1905 को जर्मनी के प्रधानमन्त्री ब्यूलो ने मोरक्को की समस्या को सुलझाने के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाने और फ्रांस के विदेश मन्त्री देलकांसे को पदच्युत करने की माँग की। फ्रांस ने जर्मनी की इन माँगों का विरोध किया, जिससे जर्मनी और फ्रांस के मध्य युद्ध छिड़ जाने की सम्भावना बढ़ गई। लेकिन इस समय यूरोप की राजनीति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो रहे थे और फ्रांस का घनिष्ठ मित्र रूस जापान के साथ युद्ध करने में व्यस्त था। अत: परिस्थितियों से विवश होकर देलकांसे ने त्याग-पत्र दे दिया और फ्रांस ने जर्मनी की उक्त दोनों माँगें स्वीकार कर लीं। यह जर्मनी की एक बड़ी कूटनीतिक विजय थी। लेकिन इंग्लैण्ड और फ्रांस की मैत्री अधिक मजबूत हो गई। . मोरक्को की समस्या को सुलझाने के लिए सन् 1906 में स्पेन के नगर एल्जी सिराज में एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया गया। इसमें निम्नलिखित निर्णय लिए गए
(i) मोरक्को को एक स्वतन्त्र राज्य मान लिया जाए तथा मोरक्को के सुल्तान की प्रभुसत्ता (सम्प्रभुता) स्थापित की जाए।
(ii) मोरक्को को सभी देशों में व्यापार करने के समान अवसर दिए जाएँ।
(iii) मोरक्को में एक अन्तर्राष्ट्रीय बैंक खोला जाए।
(iv) मोरक्को की सुरक्षा के लिए फ्रांस और स्पेन मिलकर वहाँ पर पुलिस व्यवस्था की स्थापना करें।
 इस सम्मेलन से जर्मनी को कोई विशेष लाभ नहीं हुआ, क्योंकि मोरक्को की सुरक्षा का उत्तरदायित्व फ्रांस को ही प्राप्त हुआ था।
सन् 1906 में एल्जी सिराज में लिए गए निर्णयों के अनुसार फ्रांस को मोरक्को में शान्ति एवं सुव्यवस्था स्थापित करने का अधिकार प्राप्त हो गया था। इस अधिकार की आड़ में फ्रांस ने मोरक्को में अपने प्रभाव का विस्तार करना आरम्भ कर दिया। इससे जर्मनी रुष्ट हो गया। मोरक्को के द्वितीय संकट (1908) को समाप्त करने के लिए एक पंच न्यायालय की स्थापना की गई तथा 8 फरवरी, 1908 को द्वितीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया गया। इस सम्मेलन में फ्रांस ने मोरक्को की अखण्डता की पुष्टि की, परन्तु सन् 1911 में पुनः तृतीय मोरक्को संकट उत्पन्न हो गया। - सन् 1911 में मोरक्को के असन्तुष्ट सरदारों ने विद्रोह कर फ्रांस के उच्च पदाधिकारी मार्शा की हत्या कर दी। इस परिस्थिति का लाभ उठाकर फ्रांस ने सुरक्षा के बहाने सेना भेजने का अधिकार न होते हुए भी अपनी एक सेना मोरक्को की राजधानी फैज में भेज दी। 21 मई, 1911 को फ्रांसीसी सेना ने फैज पहुँचकर विद्रोहियों का दमन करना प्रारम्भ कर दिया।
25 जर्मनी ने फ्रांस के इस अनुचित हस्तक्षेप को सहन नहीं किया और जर्मनी के प्रधानमन्त्री ने तत्काल यह घोषणा कर दी कियदि फ्रांस का फैज में रहना आवश्यक हुआ, तो मोरक्को की पूर्व समस्या पर पुनः विचार किया जाएगा और इटली तथा एल्जी सिराज के निर्णय पर हस्ताक्षर करने वाली समस्त शक्तियों को उनकी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतन्त्रता पुनःप्राप्त हो जाएगी।"
जब फ्रांसीसी सेना विद्रोह का दमन करने के पश्चात् वापस लौटने लगी, उसी समय कैसर विलियम द्वितीय ने जर्मन जनता की सुरक्षा का बहाना करके दक्षिणी मोरक्को के अगादीर नामक बन्दरगाह पर एक जर्मन जंगी जहाजी बेड़ा भेज दिया। उसकी इस कार्यवाही से सम्पूर्ण यूरोप में सनसनी फैल गई और एक भयंकर युद्ध के छिड़ जाने की सम्भावना दृष्टिगोचर होने लगी।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कैसर विलियम द्वितीय की उग्र महत्त्वाकांक्षी तथा विस्तारवादी नीति ने जर्मनी को विनाश के गर्त में ढकेल दिया। उसकी गलत नीतियों ने यूरोप में जर्मनी के अनेक शत्रु उत्पन्न कर दिए और इंग्लैण्ड जैसा शक्तिशाली देश भी जर्मनी का प्रबल शत्रु बन गया।

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