गुप्त काल में कला का विकास
प्रश्न 7. गुप्तकालीन कला की प्रगति पर एक लेख लिखिए। MJPRU-B.A.
III, History III
अथवा 'गुप्त
काल में कला के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर - गुप्त काल
में हुई कला की उन्नति को सभी विद्वान् स्वीकार करते हैं और प्रशंसा करते हैं।
इतिहासकार वारनेट ने लिखा है, "भारतीय इतिहास में गुप्त काल का प्राय: वही स्थान
है जो यूनान के इतिहास में पेराक्लीज युग का है।" - वास्तव में गुप्त शासकों
का युग एक सांस्कृतिक युग था, क्योंकि वे स्वयं कला में रुचि रखते थे और कलाकारों को प्रोत्साहित कर राजकीय
संरक्षण प्रदान करते थे।
गुप्त काल में स्थापत्य कला, मूर्तिकला, चित्रकला, संगीत व नृत्यकला, मुद्रा-निर्माण कला के क्षेत्र में बहुत उन्नति हुई। संक्षेप में
गुप्त काल में कला की उन्नति का उल्लेख निम्न प्रकार किया जा सकता है
(1) स्थापत्य कला -
गुप्त काल के प्रमुख उल्लेखनीय मन्दिर हैं (i) देवगढ़ का दशावतार मन्दिर, (ii) भितरगाँव का मन्दिर, (iii) तिगवाँ का विष्णु मन्दिर, (iv) भूमरा का शिव मन्दिर, (v) अजयगढ़ का पार्वती मन्दिर, तथा (vi) अपहोल का मन्दिर।
मन्दिरों के
अतिरिक्त इस काल में अनेक गुफाओं, चैत्य तथा विहारों का भी निर्माण हुआ, जिनमें से कुछ के भग्नावशेष आज भी मिलते हैं।
धमेख स्तूप -
सारनाथ का धमेख
स्तूप गुप्त काल का ही है। यह स्तूप अन्दर से अत्यन्त कलापूर्ण है।
उदयगिरि की गुफा - कला की दृष्टि से विदिशा के निकट उदयगिरि की गुफा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
गुफा के अन्दर भगवान् विष्णु के वराह अवतार की विशाल प्रतिमा स्थापित है।
प्रस्तर स्तम्भ -
गुप्त काल में अनेक प्रस्तर स्तम्भों का भी निर्माण हुआ। गोरखपुर जिले में
कहोम में स्कन्दगुप्त का प्रस्तर स्तम्भ है। एरण में भगवान् विष्णु की प्रतिष्ठा
में एक स्तम्भ बना हुआ है। गाजीपुर के भिटारी गाँव में भी भगवान् विष्णु का
प्रस्तर स्तम्भ बना हुआ है। कुमारगुप्त के काल का एक स्तम्भ भिलसद में है।
(2) मूर्तिकला –
गुप्त काल में मूर्तिकला के क्षेत्र में
सर्वाधिक प्रगति हुई। गुप्तकालीन मूर्तियों की विशेषता है-आध्यात्मिकता और भौतिकता
का अद्भुत समन्वय। भगवान् बुद्ध से लेकर शिव, विष्णु आदि देवी-देवताओं की जितनी सुन्दर
मूर्तियाँ इस युग में बनीं, सम्भवत: उतनी सुन्दर किसी भी युग में नहीं बनीं। इस युग में शिल्पकार पाषाण और
धातुओं में प्राण डालने वाले थे। गुप्तकालीन मूर्तियों के निर्माण के तीन प्रमुख
केन्द्र थे-पाटलिपुत्र, सारनाथ और मथुरा। ये मूर्तियाँ पाषाण, धातु तथा पकी हुई मिट्टी द्वारा निर्मित हैं।
सारनाथ की भगवान् बुद्ध की मूर्तियों के विषय में सत्यकेतु विद्यालंकार ने लिखा है, "बुद्ध के मुखमण्डल
पर अपूर्व शान्ति, प्रभा, कोमलता और गम्भीरता है। अंग-प्रत्यंग में सौकुमार्य और सौन्दर्य होते हुए भी
इहलौकिकता का सर्वथा अभाव है। ऐसा लगता है कि बुद्ध लोकोत्तर भावना के लिए अपने
ज्ञान बोध को संसार को प्रदान करने के लिए ही इहलोक व्यवहार में तत्पर हैं।" वास्तव
में गुप्तकालीन कलाकार बाह्य सौन्दर्य की अपेक्षा आन्तरिक सौन्दर्य की ओर विशेष
ध्यान देते थे। उन्होंने मूर्तियों के द्वारा हृदय की सूक्ष्म भावनाओं का बहुत ही
सुन्दर प्रदर्शन किया है।
(3) चित्रकला -
गुप्त काल में चित्रकला की अभूतपूर्व प्रगति
हुई। इस काल में गुफाओं की दीवारों पर अनेक कलापूर्ण तथा आकर्षक चित्र बनाए गए।
गुप्तकालीन गुफा चित्रकला का वैभव देखते ही बनता है। इस काल की गुफा चित्रकला का
संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है
(i) अजन्ता की चित्रकला-अजन्ता की गुफाएँ महाराष्ट्र में स्थित हैं। ये
बड़े-बड़े पर्वतों को काटकर बनाई गई हैं। गुफाओं में पेड़, फूल, पशु-पक्षी, भगवान् बुद्ध तथा
बौद्ध धर्म की जातक कथाओं पर आधारित चित्र बड़े कलात्मक ढंग से बनाए गए हैं।
अजन्ता में कुल 29 गुफाएँ हैं।
(ii) एलोरा की गुफाएँ--अजन्ता की गुफाओं से लगभग 60 किमी दूर एलोरा की
गुफाएँ हैं। इनमें भी अनेक कलापूर्ण चित्र बनाए गए हैं, जिनमें शिव-पार्वती
का विवाह तथा रावण द्वारा कैलाश पर्वत उठाने का चित्र गुप्त काल
की चित्रकला के
उत्कृष्ट नमूने हैं।
(ii) बाघ की गुफाओं के चित्र- मध्य प्रदेश में ग्वालियर के निकट बाघ की
गुफाएँ हैं। इन गुफाओं की संख्या 9 है। चौथी गुफा में बोधिसत्वों के बड़े आकर्षक
चित्र हैं। इनमें बौद्ध जातक कथाओं को भी चित्रित किया गया है। चित्रों का अलंकरण
बड़ा मनोरम है।
(4) संगीत एवं नृत्यकला -
गुप्त सम्माट् स्वयं संगीत तथा नृत्य के प्रेमी
थे। मुद्राओं में समुद्रगुप्त को बीणा बजाते हुए दिखाया गया है। 'प्रयाग प्रशस्ति' में उसे अत्यधिक
संगीत निपुण स्वीकार किया गया है। हरिषेण उसे नारद तथा तुम्बरू से भी ऊँचा
संगीतकार मानता है। तत्कालीन नाटकों में संगीत कला का अनेक स्थलों पर उल्लेख आया
है। स्त्रियों को मृदंग, झाँझ आदि बजाते हुए दिखाया गया
(5) मुद्रा-निर्माण कला -
गुप्तकालीन सम्राटों ने अनेक कलापूर्ण मुद्राएँ
ढलवाई। उनके द्वारा चलाए गए सिक्कों की विभिन्नता उस काल की मुद्रा-निर्माण कला की
समृद्धि का संकेत करती है।
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