भारत मे बौद्ध धर्म के पतन के 7 कारण


प्रश्न 5. बौद्ध धर्म के अभ्युदय के क्या कारण थे ? इसकी अवनति के कारणों का उल्लेख कीजिए।
अथवाभारत में बौद्ध धर्म के उत्थान एवं पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर - भारत में छठी शताब्दी ई. पू. जितने क्रान्तिकारी आन्दोलन प्रारम्भ हुए, उनमें सबसे अधिक लोकप्रिय बौद्ध धर्म ही था और इसका बड़ी तेजी से प्रसार हुआ। कुछ ही समय में सम्पूर्ण उत्तर भारत में इसका प्रसार हो गया। धीरे-धीरे दक्षिण भारत में भी इसका प्रसार हो गया और कालान्तर में न केवल भारत में, वरन् श्रीलंका, बर्मा, तिब्बत, चीन, जापान, थाइलैण्ड, जावा, सुमात्रा आदि देशों में भी इसे व्यापक रूप से अपनाया गया। 
बौद्ध धर्म के पतन का  इतिहास

भारत में बौद्ध धर्म के उत्थान

(अभ्युदय) के लिए निम्न कारण उत्तरदायी थे-

(1) तत्कालीन परिस्थितियाँ - 

बौद्ध धर्म से पूर्व भारत में वैदिक धर्म प्रचलित था, जिसमें अनेक आडम्बरों व कर्मकाण्डों का बोलबाला था। इनका पालन करना जनता के लिए अत्यन्त कष्टप्रद था। अतः जनता इनका विरोध करने लगी। उस युग में ब्राह्मणों की सर्वोपरिता, चतुर्वर्ण व्यवस्था, ऊँच-नीच का भेदभाव, धार्मिक आडम्बर, यज्ञ, पशु बलि आदि से लोग ऊब गए थे। ऐसे समय में बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव हुआ, जिसमें आडम्बर और जटिलता के स्थान पर व्यावहारिकता और सरलता थी। अत: बौद्ध धर्म सहज रूप से जन-साधारण में लोकप्रिय होता गया। जा
(2) बुद्ध का आदर्श व्यक्तित्व-
महात्मा बुद्ध का जीवन अत्यन्त पवित्र और सादा था। उन्होंने सत्य की खोज में राजपाट त्याग दिया और वन में घोर तपस्या की। उनका व्यक्तित्व सहनशीलता, क्षमा, दया, स्नेह और करुणा का प्रतिरूप था। वे "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' की भावना से प्रेरित थे। उनके व्यक्तित्व में कुछ ऐसा आकर्षण था कि जो भी उनके उपदेश सुनता था, वह उनका अनुयायी बन जाता था।
(3) बौद्ध धर्म के सरल सिद्धान्त
वैदिक धर्म यज्ञ और बलि को महत्त्व देता था। यज्ञ की विधियाँ अत्यधिक जटिल थीं, जिन्हें समझने में जन-साधारण असफल रहा। अनेक यज्ञों में पुरोहितों की आवश्यकता होती थी, जिनका खर्च वहन करना जन-साधारण की पहुँच के बाहर था। बौद्ध धर्म पशु बलि का भी विरोध करता था और अहिंसा तथा सदाचार पर बल देता था। बौद्ध धर्म में न तो धार्मिक अन्धविश्वास और कर्मकाण्डों की जटिलता थी और न ही दर्शनशास्त्र की दुर्बोधता। यह धर्म ऐसे नैतिक आचरण और सदाचार के नियमों पर आधारित था जो सर्वग्राह्य और व्यावहारिक थे।

(4) उदारता एवं सहिष्णुता-

बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों में उदारता एवं सहिष्णुता थी। इसमें दूसरे धर्मों की आलोचना करना, बलपूर्वक अपने धर्म का प्रचार करना और संकीर्ण धर्मान्धता नहीं थी।

(5) सामाजिक समानता-

बौद्ध धर्म में अमीर-गरीब तथा ऊँच-नीच का कोई स्थान नहीं था। यह धर्म सामाजिक समानता के सिद्धान्त पर आधारित था। बौद्ध धर्म ने ब्राह्मणों की श्रेष्ठता को स्वीकार नहीं किया और जाति प्रथा का खुलकर विरोध किया। इसका परिणाम यह हुआ कि सभी जातियों के लोग बौद्ध धर्म की शिक्षाओं से प्रभावित हुए।

(6) लोकप्रिय भाषा और शैली

बौद्ध धर्म के लोकप्रिय होने का एक कारण यह भी था कि महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म का प्रचार संस्कृत में नहीं किया, जो विद्वानों की भाषा थी। उन्होंने अपने उपदेश साधारण बोलचाल की भाषा पालि में दिए। साथ ही वह उपदेश देते समय बड़ी रोचक शैली का प्रयोग करते थे। वे अपने उपदेशों को समझाने के लिए जिन उदाहरणों तथा उक्तियों का प्रयोग करते थे, वे सहज ही लोगों की समझ में आ जाते थे।  

(7) मध्यम मार्ग का अनुसरण-

बौद्ध धर्म में न तो भोग-विलास और  आसक्ति से रहने का आदेश था और न ही यह कठोर तपस्या और उपवास पर बल देता था। बौद्ध धर्म मध्यममार्गी था, जो जन-साधारण के लिए सरल, सुगम  और अनुकरणीय था।

(8) बौद्ध संघों का प्रभाव-

बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में बौद्ध संघों से बड़ी सहायता मिली। बौद्ध संघों के विहार देश के विभिन्न भागों में बने थे, जिनमें  बौद्ध भिक्षु निवास करते थे। वे घूम-घूमकर जन-साधारण में बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार करते थे। बौद्ध भिक्षुओं का जीवन सरल, पवित्र और त्यागमय होता था, जिससे जनता अधिक प्रभावित हुई।।

(9) राजकीय संरक्षण

बौद्ध धर्म के तेजी से लोकप्रिय होने का एक प्रमुख कारण उसे राजकीय संरक्षण प्राप्त होना था। महात्मा बुद्ध के जीवनकाल में ही मगध, कोशल, अवन्ति तथा कौशाम्बी के शासक उनके अनुयायी बन गए थे। बिम्बिसार, अशोक, कनिष्क, हर्ष आदि राजाओं ने बौद्ध धर्म को स्वीकार कर उसे अपना राजधर्म घोषित किया और उसके प्रचार-प्रसार के लिए यथासम्भव प्रयत्न किए। सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए श्रीलंका भेजा। इसके अतिरिक्त राजाओं ने अनेक विहार, चैत्य तथा स्तूपों का निर्माण करवाया, जिनसे बौद्ध धर्म तेजी से पल्लवित हुआ।

बौद्ध धर्म के पतन के कारण

यद्यपि भारत में बौद्ध धर्म का तेजी से विस्तार हुआ और भारत से ही विदेशों में गया, तथापि भारत में बौद्ध धर्म लगभग नष्ट हो गया। इसके निम्नलिखित कारण थे-

(1) बौद्ध संघों में भ्रष्टाचार का प्रवेश - 

महात्मा बुद्ध की मृत्यु के उपरान्त । आचार-विचार को शुद्ध रखने के नियम धीरे-धीरे शिथिल हो गए और बौद्ध भिक्षुओं में भ्रष्टाचार उत्पन्न हो गया। अत: लोग विलासी एवं पाखण्डी भिक्षुओं  से घृणा करने लगे।

(2) बौद्धों में तान्त्रिक प्रथाओं की उत्पत्ति - 

धीरे-धीरे बौद्धों में तन्त्रवाद (जादू-टोने) आदि का प्रवेश हो गया। महात्मा बुद्ध के पिछले जीवन के सम्बन्ध में हजारों व्यर्थ की कथाएँ प्रचलित हो गई। अत: इस धर्म से लोगों का विश्वास उठने लगा।

(3) बौद्धों का दो सम्प्रदायों में विभाजन -

महात्मा बुद्ध की मृत्यु के उपरान्त बौद्ध 'महायान' और 'हीनयान' नामक दो सम्प्रदायों में बँट गए, जिससे इनकी शक्ति घटने लगी। महायान बौद्धों ने मूर्ति-पूजा, योग तथा हिन्दुओं के कई अन्य सिद्धान्त अपना लिए, जिससे बौद्धों और हिन्दुओं में बहुत कम भेदभाव रह गया। धीरे-धीरे महायान बौद्ध हिन्दू धर्म में मिल गए तथा हिन्दुओं ने भी बुद्ध को अवतार मान लिया।

(4) हिन्दू धर्म में सुधार-

ब्राह्मणों ने बौद्धों का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए अपने धर्म में अनेक सुधार कर लिए और बहुत-सी बुराइयों को दूर कर दिया,

 (5) शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट का प्रचार - 

शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट, दोनों ही वैदिक धर्म के कट्टर समर्थक थे और बौद्धों के नास्तिकवाद को बिल्कुल पसन्द नहीं करते थे। उन्होंने बौद्ध पण्डितों को अनेक स्थानों पर शास्त्रार्थ मैं पराजित किया और सम्पूर्ण देश में पुन: वैदिक धर्म का प्रचार किया। उनके प्रचार से हिन्दू धर्म जाग उठा और बौद्ध धर्म का हास होने लगा।

(6) शुंग, गुप्त और राजपूत राजाओं का हिन्दू धर्म को संरक्षण - 

शुंग, गुप्त तथा राजपूत राजा हिन्दू धर्म के महान् समर्थक थे। उनके काल में पुनः यज्ञों और संस्कृत भाषा का महत्त्व बढ़ा और हिन्दू धर्म में एक नई जागृति उत्पन्न हुई। इसीलिए बौद्धों का प्रभाव घटने लगा।

(7) तुर्कों के आक्रमण -

12वीं और 13वीं शताब्दी में तुर्कों ने बौद्धों के उद्दन्तपुरी विहार, नालन्दा विहार और अन्य विहारों को नष्ट कर दिया। उन्होंने सहस्रों बौद्धों को मार भगाया। अनेक बौद्ध भिक्षु अपनी जान बचाकर तिब्बत भाग । गए। अत: तुर्कों द्वारा बंगाल और बिहार की विजय से बौद्ध धर्म को असह्य धक्का लगा।


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